सोमवार, 12 जून 2017

पागा कलगी -35//2//राम कुमार साहू

आसों मोरो अंगना म, बरस जा रे बादर!
सुक्खा परगे तरिया नदिया,
जर के माटी होगे राखर!!
*टोंटा सुखागे पानी बिना,
चिरई चुरगुन ह रोवत हे!
रूखराई म लू अमागे
असाढ़ म भोंभरा होवत हे!!
गाय गरूआ छेरी मरत हे,कुकरी पंड़की घाघर
आसो मोरो.......
* बूंद बूंद बर सब तरसगे,
पीरा होगे किसान ल!
दुनिया के पेट भरइया ,
अब कब बोहूं मैं धान ल !!
लइका मन के पेट बर बेंचेंव बइला नांगर...
आसों मोरो.........
* ददा के दवा अऊ बेटी के बिहाव,
सेठ के करजा ल कइस करिहौ !
दुकानदार के गारी सुनके,
खातू के.लागा ल कइसे भरिहौं !!
"आत्महत्या"ेके सिवा, अब नइये मोर जांगर
आंसो मोरो .........
..... राम कुमार साहू
सिल्हाटी,स.लोहारा

पागा कलगी -35 //1//नवीन कुमार तिवारी

विषय-‘‘आसो मोरो अँगना म बरस जा रे बादर‘‘
आसो मोरो अंगना में बरस जा रे बादर 
,पावस के करिया बदरी आजा बे मोरो अंगना दुवारी ,
देश बिदेश घुमत हावस,
परदेश मा लुकावत हावस
उमड़ घुमड़ के चमकावत हावस
फेर दू बूंद के पावस तरसावत हावस
खेत खलिहान सुखा गे
झिरिया पोखर अटा गे
किसान के झोखा मढ़ा दे
मोअरो अंगना में बरस जा रे बादर
नवीन कुमार तिवारी

पागा कलगी -34 //4//धनसाय यादव

** विषय- कर ले खेती किसानी के तियारी **
भूईया के भगवान तै किसान 
कर ले बाउग के तियारी,
मेहनत तोर जग के बियारी,
भूईया के भगवान तै किसान ।
चतवार तै खेती,
बीन ले काटाखूंटी,
खान के खनती,
पाट भरका अउ मुंही ।
घुरवा के गोबर खातू,
पाल सब ले आघू,
बीजहा ल फून पछिन,
कोदईला,बदौरी ल बीन ।
नांगर नवा सिरजा,
नवां परचाली लगा,
नाहना जोता बना,
तुतारी कोर्रा बना ।
बीजबोनी बीसा,
कमरा, खुमरी बना,
लोचनी कनिहा ओरमा,
रापा कुदारी ल पजा ।
बस बरसा के अगोरा,
तियार बाउग के घोड़ा,
चाबुक तुतारी कोर्रा,
हरियाही धरती के कोरा ।
होही जब फसल भरपूर,
दुःख दरिदर होती दूर,
बजही चैन के बंसरी,
सुफल होही खेती किसानी के तियारी ।
भूईया के भगवान तै किसान
भूईया के भगवान तै किसान
*** धनसाय यादव, पनगांव-बलौदा बाजार ***

पागा कलगी -34//3//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

गीतिका छंद(जोरा खेती किसानी के)
उठ बिहनिया काम करके,सोझियाबों खेत ला।
कोड़ खंती मेड़ रचबों, पालबों तब पेट ला।
धान होही खेत भीतर,मेड़ मा राहेर जी।
सोन उपजाबोन मिलके,रोज जाँगर पेर जी।
हे किसानी के समय अब,काम ला झट टारबों।
बड़ झरे काँटा झिटी हे,गाँज बिन बिन बारबों।
काँद दूबी हे उगे चल,खेत ला चतवारबों।
जोर के गाड़ा म खातू,खार मा डोहारबों।
काम ला करबोंन डँटके,साँझ अउ मुँधियार ले।
संग मा रहिबोन हरदम,हे मितानी खार ले।
रोज बासी पेज धरके,काम करबों खेत मा।
हे बचे बूता अबड़ गा, काम बइठे चेत मा।
रूख बँभरी के तरी मा,घर असन डेरा हवे।
ए मुड़ा ले ओ मुड़ा बस,मोर बड़ फेरा हवे।
हाथ धर रापा कुदारी,मेड़ के मुँह बाँधबों।
आय पानी रझरझा रझ,फेर नांगर फाँदबों।
जेठ हा बुलकत हवे अब,आत हे आसाड़ हा।
हे चले गर्रा गरेरा ,डोलथे बड़ डार हा।
अब उले दर्रा सबो हा,भर जही जी खेत के।
झट सुनाही ओह तोतो,हे अगोरा नेत के।
धान बोये बर नवा मैं,हँव बिसाये टोकरी।
खेत बर बड़ संग धरथे, मोर नान्हें छोकरी।
कोड़हूँ टोकॉन कहिथे,भात खाहूँ मेड़ मा।
तान चिरई के सुहाथे ,गात रहिथे पेड़ मा।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)

पागा कलगी -34 //2//ज्ञानु'दास' मानिकपुरी

विषय-खेती किसानी के करले तइयारी
विधा-दोहा-चौपाई मा लिखे के प्रयास
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चिंता मा परगे ददा,आवत देख अषाढ़।
भिड़े हवे दिनरात जी,बूता के हे बाढ़।।
फेंकत हावै खातू कचरा।
पाटतँ हावय डिपरा डबरा।।
काँटा खूँटी बीनत हावै।
छानी परवाँ ला जी छावै।।
नाँगर बख्खर साजत हावै।
जुड़ा नवाँ अउ डाँड़ी लावै।।
लेवत हावै नहना जोता।
सौचै आसो करहूँ बोता।।
बइला हवै एक मरखण्डा।
देखत चमके लउड़ी डण्डा।।
मुश्किल मा होथे जी काबू।
लान पकड़ के बाँधे बाबू।।
करिया धवरा जोड़ी साजे।
दिनभर उंखर बूता बाजे।।
पैरा भूसा काँदी खावै।
पानी पी पी खूब कमावै।।
नाँगर बोहे खाँध मा,धरे तुतारी हाथ।
बाखा चरिहा हा दबे,बइला जावै साथ।।
धान बीजहा आनी बानी।
सिटिर सिटिर जी गिरथे पानी।।
सुग्घर चलत हवै पुरवाई।
करे बाँट बूता मिल भाई।।
कोनो नाँगर हावै फाँदे।
कोनो मेढ़पार ला चाँदे।।
कोनो सींचत हावै खातू।
धान बोय जी कका बरातू।।
बड़े ददा के गोठ सियानी।
नइये काही के अभिमानी।।
एके लउड़ी हाँके सबला।
हाट बजार घुमावँय हमला।।
दाई बासी धरके जावै।
बइठ मेढ़ सब मिलके खावै।।
काकी घरके बूता करथे।
कोदो ल बड़े दाई छरथे।।
सुनता अड़बड़ हे इखर,धरे हाथ मा हाथ।
दुख पीरा रहिथे सहत,मिलके हावै साथ।।
🙏🙏🙏
ज्ञानु'दास' मानिकपुरी
चंदेनी कवर्धा

पागा कलगी -34//1//बालक "निर्मोही

*घनक्छरी छ्न्द*
🌴🌴🌷🌷🌷🌴🌴
जाग न रे बेटा जाग भाग न रे बेरा संग,
करे बर तोर बेटा अबड़ बियारी हे।
नांगर बाखर ल तो सुघर जतन कर,
मन म सरेख ले न कति ब तूतारी हे।
खातू माटी बिजहा के कर ले जुगाड़ बेटा,
खेती अउ किसानी के करना तियारी हे।
पाछु झन रबे तैहा, बादर निहोरै नहीं,
आघू बरकत बेटा पाछु सँगवारी हे।
🌴 *बालक "निर्मोही"*🌴
🌷🌷बिलासपुर🌷🌷

बुधवार, 17 मई 2017

पागा कलगी -33//9//ज्ञानु'दास' मानिकपुरी

कुंडली छंद-देश बर जीबो मरबो
मरना जीना देश बर,करो देश हित काम।
छोड़व स्वारथ के करम,हौवे जग मा नाम।।
हौवे जग मा नाम,देश के सेवा करबो।
बैर कपट ला छोड़,दुःख पीरा ला हरबो।।
जात पाँत ला छोड़,संगमा सबके रहना।
छोड़ राग अउ द्वेष,देश बर जीना मरना।।
ज्ञानु'दास' मानिकपुरी
चंदेनी कवर्धा