बुधवार, 3 मई 2017

पागा कलगी -32//11//*बालक "निर्मोही"*

गरमी म स्कूल
🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴
देख देख..देख .एह्हे....ए दाई......
बरसत आगी असन,
देख तो गुंईया घाम ल,
चमड़ी तो चमड़ी हे,
हांड़ा जर जात हे।
तभो ले तो नोनी बाबू,
पढ़े बर जात हे।
ताते तात गर्रा धूँका,
बिकटे जनावत हे।
मुड़ी ले तरपांवा तक,
पसीना ह बोहावत हे।
हंफरत नोनी बाबू,
मरत पियास हे।
रेंगते रेंगत गुंईया,
कोनो गिर जात हे।
तभो ले तो नोनी बाबू,
पढ़े बर जात हे।
बरफ वाला स्कूल म,
डेरा ल जमाय हे।
मोला दे मोला सबो,
हाथ ल दंताय हे।
चुहकत कुलफी ल,
सपना सजात हे,
कोनो ल तो सरदी हे,
कोनो ह झोरात हे।
तभो ले तो नोनी बाबू,
पढ़े बर जात हे।
बस्ता ल पीठ म तो,
बोझा अस लादे हवय।
एक्की दूक्की कहिके,
कतको तो भागे हवय।
पा जाथे गुरुजी तव,
नंगत ठठात हे।
चमड़ी तो चमड़ी हे,
हांड़ा जर जात हे।
तभो ले तो नोनी बाबू,
पढ़े बर जात हे।
🌴 *बालक "निर्मोही"*✍🌴
🌷🌷बिलासपुर🌷🌷

पागा कलगी -32//10//राजेश कुमार निषाद

।। गरमी म स्कूल ।।
छोटे से लईका संगी जाथे गरमी म स्कूल।
तात तात झांझ चलथे अऊ उड़थे धूल।
गला म अरोय पानी डब्बा पीठ म बस्ता भारी।
स्कूल जाही बेटा कहिके दाई करथे तईयारी।
स्कूल के आंगन म सुंदर सुंदर पेड़ लगे हे।
पेड़ म सर्व शिक्षा अभियान के तख्ता टंगे हे।
स्कूल के तिरे तिर लगे हे सुंदर गेंदा फूल।
छोटे से लईका संगी जाथे गरमी म स्कूल ।
गुरुजी पढ़ावत रहिथे स्कूल के अंदर म।
लईका मन खेलत रहिथे स्कूल के बाहर म।
स्कूल के खेल घलो हावय बड़ा अजब ग।
लईका मन में पढ़े बर उत्साह हे गजब ग।
पढ़ाई लिखाई म लईका मन नई करत हे भूल।
छोटे से लईका संगी जाथे गरमी म स्कूल।
आनी बानी के किताब कॉपी धरके स्कूल जाथे।
स्कूल म पढ़े पाठ ल घर म दाई ददा ल बताथे।
स्कूल म गुरुजी आनी बानी के पाठ पढ़ाथे।
लईका मन के ज्ञान ल ओ हर जादा बढ़ाथे।
नई मानय गुरुजी के बात देखाथे डंडा अऊ रूल।
छोटे से लईका संगी जाथे गरमी म स्कूल।
रचनाकार :- राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद पोस्ट समोदा तहसील आरंग
जिला रायपुर छत्तीसगढ़ 493441
9713872983

पागा कलगी -32//9//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छप्पय छंद(गरमी मा स्कूल)
बस्ता लादे खाँध ,स्कूल लइका मन जाये।
जरत घाम मा स्कूल,मूड़ पीरा बड़ ताये।
तीपे भुँइयाँ खेत,हवै तीपे घर छानी।
रहि रहि जरथे चाम,पियाथे ठंडा पानी।
अइसे मा कइसे भला,पढ़ई लिखई होय जी।
धार पछीना के झरे,लइका मन हा रोय जी।
चलथे हवा गरेर, झाँझ झोला के डर हे।
लू लक्कड़ ले घेर,बरत आगी बन घर हे।
जरथे चारो खूँट,घाम होगे दुख-दाई।
भुँइयाँ के सब जीव , देख फूटे जस लाई।
पेपर होगे क्लास के,कहाँ पढ़े के धून हे।
तभो देख ले स्कूल हा,खुले मई अउ जून हे।
करके पेपर जाँच, बताबे हमला जल्दी।
जावत हवन बिहाव,खेलबों गुरुजी हल्दी।
इती उती ले घूम,ममा के घर हे जाना।
उँहे खेलबों खेल,खाय के बढ़िया खाना।
अब बस अतकी हे आस जी,हो जावन हम पास जी।
गौकिन गरमी मा स्कूल हा, नइ आवत हे रास जी।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

पागा कलगी -32//8//पारितोष धीरेन्द्र

।। गरमी म स्कुल ।।
गरमी म स्कुल सोंचके 
मास्टर खुद सोलहागे 
आगि लगगे बादर म 
सुरुज खुद भुंजागे
लकलक लकलक
करत हे भुंइया
रुख राई अंईलागे
बैसाख के पहली पाख म भइया
जेठ के अगन धरागे
रद्दा चमकय बरफ बदरिया
मृग घलो भरमागे
नवतपा कस सुरुज के तांडव
बियाकुल जी बगियागे
अंश मात्र सृष्टि खुद ब्रम्हा
कमल नाल म समागे
गरमी म स्कुल सोंचके
मास्टर खुद सोलहागे
आगि लगगे बादर म
सुरुज खुद भुंजागे
लकलक लकलक
करत हे भुंइया
रुख राई अंईलागे
चरका भरका खेत दिखत हे
रुख म लाशा लसलसागे
सुकवा ऊवत बाँग देवइया
कुकरा घलो फटफटागे
गोख्खी बैरी सुरुज देव के
कंकालिन रूप धरागे
लाहो लेवय घेरि बेरि
तन उसनाय भुंजाय कस लागे
गर्मी म स्कुल सोंचके
मास्टर के बया भुलागे
आगि लगगे बादर म
सुरुज खुद भुंजागे
लकलक लकलक
करत हे भुंइया
रुख राई अंईलागे
तिपत हे तरुवा जरत हे भोंभरा
पीठ म घमुर्री भदभदागे
चातकी मन स्वाति जल ब
तरस तरस अधियागे
पानी फोटका कस जिनगानी
गिधवा डेना कस हाथ गोड़ तनागे
हाथ नारी जुड़ावत हे अब तो
बटाई कस आँखी बटरागे
गरमी म स्कुल सोंचके
मास्टर के मंता छरियागे
आगि लगगे बादर म
सुरुज खुद भुंजागे
लकलक लकलक
करत हे भुंइया
रुख राई अंईलागे

-पारितोष धीरेन्द्र
कोरबा 7999591957

पागा कलगी -32//7//मिलन मलरिहा

गर्मी मा इसकुल जाके
अड़बड़ मजा पाथन....
गुरुजी सुत भुलाथे ता
कलेचुप भाग-पराथन
भागत भागत सब्बो संगी
आमा बगीचा जाथन
इमली, आमा मार लबेदा
मार मार झोरियाथन
धर-सकेल सुस्ताके छईहा
नून गोद गोद खाथन
अब्बड़ अकन सकलाथे ता
बस्ता भर-भर लाथन
गर्मी मा इसकुल जाके
अड़बड़ मजा पाथन....
.
घाम मुड़ी मा जब चढ़जाथे
तरिया मा तऊर मताथन
तऊरत तऊरत सब मिलके
छू-छूआऊला खेलथन
लहुटत संझवति बेरा मा
गारी दाई के सुनथन
थके-मांधे ओही रतिहा
बिन खाए सुत जाथन
फेर बिहनहे बासी खाके
नून मिरचा कलेचुप धरके
इसकूल बर निकलथन
देखवटी थोकन पढ़के
फेर सुतत ले अगोरथन
गर्मी मा इसकुल जाके
अड़बड़ मजा पाथन....
☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆
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मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर

पागा कलगी -32//6//दिलीप पटेल बहतरा

// गर्मी म स्कूल//
सर सर सर पवन चलत हे उड़त हवय ग धूल
मोर मयारूक मोर मनमोहना कभू नई करय जी भूल
गर्मी म जाही ओ स्कूल , गर्मी म जाही ओ स्कूल
गरीब ल दूख के नईहे चिंता
न सुख के अभिमान
दाई तो ओकर बूता करईया
ददा हवय ग किसान
सगरो दूख ल हस के सहईया हिरदय के नयना झूल,
पढ जाही चार आखर कहीके जांगर टोर कमावत हव
बेटी के पढहे जाये म मै हर घलो सौख पावत हव
का सर्दी का गर्मी भईया , हासत आवय खूल खूल
न गरीब घर एसी हे न हे कुलर फेन
लक लक ले तिपय जेठ म छानी चूचवावय जब बरसे रैन
कर भी का हम सकत हन ग
हमर तो अतकेच बने असूल
गांव के सरकारी स्कूल , गांव के सरकारी स्कूल ।।
दिलीप पटेल बहतरा , बिलासपुर
मो नं-- 8516850023

पागा कलगी -32//5//एमन दास मानिकपुरी 'अंजोर'

विषय-‘‘ गर्मी मा स्कूल ‘‘
खेलहूं कहिके कहिथंव मय,
बिल्लस अउ पित्तुल।
फेर गुरूजी लगा देहे,
गर्मी मा स्कूल।
लईकुसहा मन मोर मानय नहीं,
हिरदे के पीरा कोनो जानय नहीं।
यहा लाहकत घाम म पढ़े ल जाथन,
पढ़ई तो होवय नहीं भात खाके आथन।
गजब निक लागथे मोला,
झुलना के झुल।
फेर गुरूजी लगा देहे,
गर्मी मा स्कूल।
ममा गांव जाये के साध लागे भारी,
स्कूल के सेती ददा दाई देथे गारी।
पढ़ई लिखई म कथे मन ल लगा,
ननपन के साध जम्मो ल बिसरा।
नंगत ले पढ़ बेटा,
झन कहीं ल भूल।
येदे गुरूजी लगा देहे,
गर्मी मा स्कूल।
—एमन दास मानिकपुरी 'अंजोर'