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शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

पागा कलगी -27//7//चोवा राम " बादल"

*बसंत के रंग (कुण्डलिया छन्द)*
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(1)
लाली फूल गुलाब के, रिगबिग बगिया छाय।
ठाढ़े परसा खार मा, रंग गुलाल नहाय।
रंग गुलाल नहाय, मोंगरा ममहावत हे।
चम्पा अउ कचनार, चमेली सरमावत हे।
टोरत हाबय फूल , देख रितु राजा माली।
गिंजर गिंजर के बाग, खोज के दसमत लाली।
(2)
आमा घन मउराय हे, भौंरा गीत सुनाय ।
रितु राजा के आय ले, मौसम हे बउराय।
मौसम हे बउराय, हवा हा ममहावत हे।
रंग रंग के फूल, सबो के मन भावत हे।
कामदेव के बान, परे अंतस हे रामा।
मँदुरस घोरय कान, कोइली बइठे आमा ।
( 3)
लाली परसा फूलगे, अब्बड़ मन ला भाय।
कउहा फूले गँधिरवा , कहर महर ममहाय।
कहर महर ममहाय, रंग सरसों के पीला ।
गोंदा पिंवरा लाल, दिखय अरसी हा नीला ।
हाँसय देख बसंत , बजावय खुसी म ताली।
बगरे चारों खूँट , रंग पीला अउ लाली।
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चोवा राम " बादल"
हथबंद 9926195747

पागा कलगी -27//6//आशा देशमुख

विषय ...बसंत
विधा ,मात्रिक छंद मा गीत
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बसंत के राज मा
बइठे आमा डार कोयली बोलत हावय ,
मया प्रीत के गीत मधुर रस घोलत हावय |
पुरवाई संदेशा देवय गली गली ,
रितुराजा ला देखत खिलगे कली कली |
महर महर महकय सब फुलवा बगिया मा |
भँवरा रस बर आगू पाछू डोलत हावय |
नाचत हे मन बीतिस अब बिरहा के दिन ,
धरती हा सजगे जैसे सजथे दुलहिन |
महुआ परसा सरसों अरसी परछन बर |
अपन अपन गहना पेटी सब खोलत हावय |
सुख के चद्दर ताने हावय अमरैया ,
चंदन चँवर डुलावत हावय पुरवैया |
नवा नवा कपड़ा पहिरे रुख राई मन ,
फुदक फुदक के मन पंछी कछु फ़ोलत हावय |
सबो डहर खुशहाली के बाजा बाजे ,
परकिति के अंग अंग मा गहना साजे ,
रंग बिरंगा रूप धरे फगुवा किंजरे ,
हँसी ठिठोली प्रेम रंग ला मोलत हावय |
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आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
8 .2.2017 बुधवार

पागा कलगी -27//5//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बसंत
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चल बइठबों बसंत म,पीपर तरी।
पूर्वा गाये गाना ,घरी - घरी।
मोहे मन मोर मउरे,मउर आमा के।
मधूबन कस लागे,मोला ठउर आमा के।
कोयली कुहके ,कूह - कूह डार म।
रंग-रंग के फूले हे,परसा-मउहा खार म।
बोइर-बर-बंम्भरी बर,बरदान बने बसंत।
सबो रितुवन म , महान बने बसंत।
मुड़ नवाये डोले पाना,तरी-तरी।
पूर्वा गाये गाना ,घरी - घरी।
डोलत हे जिवरा देख,सरसो फूल पिंवरा।
फूल - फर धरे नाचे , राहेर, मसूर, तिवरा।
घमघम ले फूले हे, अरसी मसरंगी।
हंरियर गंहूँ-चना बीच,बजाय धनिया सरँगी।
सुहाये खेत -खार , तरिया - नंदिया कछार।
नाचे सइगोन-सरई डार, तेंदु-चिरौंजी-चार।
सुघरई बरनत पिरागे,नरी-नरी।
पूर्वा गाये गाना , घरी -घरी।
गोभी-सेमी-बंगाला,निकलत हे बारी म।
रोजेच साग चूरत हे, सबो के हाँड़ी म।
छेंके रद्दा रेंगइया ल, हवा अउ बंरोड़ा।
धरे नंगाडा पारा म , फगुवा डारे डोरा।
गाँव लहुटे सहर,अब दुरिहात हे बसंत।
जुन्ना पाना-पतउवा ल,झर्रात हे बसंत।
नवा - नवा प्रकृति ल,बनात हे बसंत।
खुदे रोके;मनखे बर, गात हे बसंत।
कर्मा-ददरिया-सुवा,तरी-हरी।
पूर्वा गाये गाना ,घरी-घरी।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

पागा कलगी -27//4//✍​ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*

कुण्डलियां
*बसंत*
(१)
आमा मउरे डार मा,परसा फूले लाल।
कोयल गावत गीत हे,पूछत सबके हाल।।
पूछत सबके हाल,बांध मया संग डोरी।
झूमे नाचे मोर,देख बसंत घनघोरी।।
हरियर डारा पान,सबो के दिन ह बहुरे।
राजा हे रितु आम,गांव अमरइया मउरे।।
(२)
मनभावन मन बावरी,ढूंढय रे मनमीत।
कोयल कूके डार मा,गावय सुघ्घर गीत।।
गावय सुघ्घर गीत,पंख दुन्नो फइलाये।
झूमय नाचय खार,देख बसंत हे आये।
जीना अब दुश्वार,नैन आँसू हे बोहे।
भाये नइ घर संसार,पिया मन भावन मोहे।।
(३)
आगे बिरहा के बखत,लगय जुवानी आग।
करम विधाता का गढ़े,चोला लगथे दाग।।
चोला लगथे दाग,मोर धधकत हे छतिया।
तरसे नैना मोर,मया के भेजव पतिया।।
कोयल छेड़य तान,कोयली मारे ताना।
छलनी छलनी देख,करे ये बिरहा गाना।।
✍​ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*

पागा कलगी -27//3//ज्ञानु"दास" मानिकपुरी

विधा-दोहा मा लिखे के प्रयास
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-आमा मउरे सब डहर,महुआ हा ममहाय।
डारा बइठे कोयली,सुग्घर तान सुनाय।।
-महर महर बारी करय,हरियर हावय खेत।
आवत हावे फगुनुवा,राखे रहिबे चेत।।
-चंपा,गेंदा,मोंगरा, आनी बानी फूल।
देवत ए संदेश हे,सब राहव मिलजूल।।
- फूले सरसों निक लगे,टेसू झूलें डार।
मतंग तन मन हो जथे,झूमत हे संसार।।
-सुग्घर पुरवाही चलें,तन मन ला हरषाय।
मउसम बसन्त देख के,लगे जवानी आय।।
-स्वागत हे स्वागत हवे,हे बसन्त ऋतु तोर।
मनखे मनखे बन सके,अतके बिनती मोर।।
ज्ञानु"दास" मानिकपुरी
चन्देनी कवर्धा(छ.ग.)

पागा कलगी -27//2//गीता नेह

आगे मयारु बसंत सखी निक पागा मंजूर के पाँख सुहावन
रिगबिग फूल फुले अँगना झरे कहर महर छबि सुग्घर पावन
लाज के रंग रँगाये जिया मुसकावय पिया बड़ लोभ लोभावन
बजे बँसरी मन भीतरी ले झलके रंग जोबन ले मन भावन ।
परेम सुबास सुकंठ धरे भल गुरतुर गोठ हे आनी बानी
अटकय मटकय हपटय लपटय न करय ककरो संग आनाकानी
सुख के पुरव बरजोर करय करे कोन जतन तन के निगरानी
जब मया मतावत रार करय तब जोर चलय नइ चलय सियानी ।
गीता नेह

पागा कलगी -27//1//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर'अंजोर'

विषय:- बसंत
"'लाबो चल परघाके द्वार'"
बँबुरी हा पइरी पहिराय।
सुनके सबझन दउड़त जाय।
गोंदा पहिरे पींयर सोन।
कोनजनी पहिराये कोन।
परसा फूले सुरूग लाल।
चुपरे कोनो लाल गुलाल।
सरसो के झूमत हे डार।
पींयर सोन पाय उपहार।
मउरे हे आमा के पेड़।
जेन ल राखे हावय मेड़।
मउहा माते हे सिरतोन।
कोन पियाये हे रस सोम।
पुरवाही छेड़े हे तान।
जइसे मन ला मिले जुबान।
गावत कोन मया के गीत।
जिनगी खोजत हे मनमीत।
आज खुशी भेंटत हे गांव।
अतका पबरित काखर पांव।
कोन भरे हे अइसन रंग।
जइसे सुख दुख मिलगे संग।
नंगारा नाती धर आय।
देख बबा ला खूब बजाय।
पुरवाही हा फगुआ गाय।
अरसी झुमका देय बजाय।
ये सब करनी करे बसंत।
मुच मुच हाँसय चमके दंत।
ऋतु राजा हे परसिध नाव।
आय खड़े हे हमरे ठाव।
सब संगी ला टेही पार।
लाबो चल परघाके द्वार।
रचना:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर'अंजोर'
शिक्षक,गोरखपुर,कवर्धा
9685216602
15/02/2017