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शनिवार, 4 मार्च 2017

पागा कलगी -28 //6//ज्ञानु'दास' मानिकपुरी

जइसे कटगे हमर पाँखी देना।
वाह रे बेटा तय लमसेना।
1-मोर चारी चुगली होवत हे गली खोर।
बिहनिया ले संझा सुन लेवत हव बटोर।
कतको मोला ताना मारे,कतको गारी देथे
कतको सुनाथे एला लाज नइये थोर।
जइसे खाय ला परथे इही मनला देना।
वाह रे बेटा तय लमसेना।
2-मोरो दाई ददा हे,मोरों घर द्वार हे।
थोडा बहुत हावय घला खेतीखार हे।
संगमा पढ़त लिखत होंगे आँखी चार
मय का जानव एखर अइसन पियार हे।
मोर बर का रोना अउ हँसना।
वाह रे बेटा तय लमसेना।
3-मोर अंतस के पीरा कोन ला बतावव।
मोर जिनगी के कथा कोन ला सुनावव।
का मय अइसन गुनाह कर डारेव 'ज्ञानु'
नदी मा रहिके कइसे मगर ले दुश्मनी निभावव।
होगेव जइसे मय पोसवा परेवना।
वाह रे बेटा तय लमसेना।
ज्ञानु'दास' मानिकपुरी
चंदेनी कवर्धा

पागा कलगी -28//5//ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*

विषय - लमसेना
विधा - तुकबंदी
*लमसेना*
बनके जी मैं लमसेना।
थोपत हँवव गोबर छेना।।
सोचे रहेंव खूब मजा पाहूँ,
सुखे सुख म जिनगी पहाहूँ,
फेर धंधागेव पिंजरा कस मैना।
बनके जी मैं लमसेना।
थोपत हँवव गोबर छेना।।
सोचेंव कथरी ओढ़ घीव खाहूँ,
सास ससुर के गुन ल गाहूँ।
फेर मैं अढ़हा का जानव संगी,
कि सुवारी के गोड़ ल दबाहूँ।।
रात दिन रोवावत हे फूलकैना
बनके जी मैं लमसेना।
थोपत हँवव गोबर छेना।।
सारी नइ हे न सारा नइ हे,
दुख पीरा के सुनइया नइ हे।
घुट घुट के जिनगी जीयत हँव ,
आँसू के कोनो पोछइया नइ हे।
छूटगे दाई ददा से लेना देना।
बनके जी मैं लमसेना।
थोपत हँवव गोबर छेना।।
मोह माया म मैं ह धंधायेंव,
घानी कस बइला मैं ह पेरायेंव।
गंगू तेली हवय मोर ससुरार,
अठ्ठनी रुपया बर मैं लुलवायेंव।।
सुवारी बुलावय खींच के डेना।
बनके जी मैं लमसेना।
थोपत हँवव गोबर छेना।।
ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*
बिलासपुर -8889747888

पागा कलगी -28 //4//चोवा राम " बादल"

लमसेना (आल्हा छंद में)
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पाँच साल बर मँय लमसेना, हावँव भाई गोंड़ गरीब।
पानी रहिके प्यासा रहिथँव, अइसे हावय मोर नसीब।।1।।
हालत मोर समझ लव संगी,खेत ससुर के करथँव काम।
जोता थँव बइला भँइसा कस, नइये आठों पहर अराम ।।2।।
दिन भर मोर परीक्षा होथे, जाँचत रहिथे दाई सास।
नम्बर कोनो नइ देखावय, पता नहीं कब होहूँ पास ।।3।।
मँय तो अभी कहे भर के हँव, पाछू बनहूँ असल दमाँद ।
मन चातक के प्यास बुझाही, उही शरद पुन्नी के चाँद ।।4।।
पढ़े लिखे तो नइ अन संगी, जुन्ना हमरो रीत रिवाज।
लमसेना बस्तर के घोंटुल, पुरखौती मानत हन आज।।5।।
नारी के हम इज्जत करथन, होथे नारी हमर सियान।
का अच्छा का गिनहा होथे, नइये हमला जादा ग्यान ।।6।।
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चोवा राम " बादल"
हथबंद
23/02/2017

पागा कलगी -28//3//जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"

दोहा(लमसेना)
1
बेटा के जी आस में,बढ़ जाये परिवार।
बोहे लमसेना घलो,सास ससुर के भार।
2
बेटी के दाई ददा, सेवा बर लुलवाय।
लमसेना हर हाल के,एक आसरा ताय।
3
लमसेना के रीत ला, पुरखा हवे बनाय।
जेखर बेटा नइ रहय,वो लमसेना लाय।
4
छोटे रख परिवार ला,बेटा बेटी काय?
बेटी पा झन दुख मना,घर लमसेना आय।
5
बस बेटी भर के बिदा, हमर हरे का रीत?
कखरो जिनगी सुख बिना,जाये जी झन बीत।
6
बाबू पथरा लाद के,बेटी करे पराय।
उसने बेटा के ददा,लमसेना ल पठाय।
7
दाई बाबू झन छुटय, झन जाबे तैं भूल।
बनके लमसेना रबे,दूनो कुलबर फूल।
8
लमसेना बन बेटवा, बेटी के घर जाय।
करम करय घर जान के,जग में नाम कमाय।
9
बेटी बर हे दू ठिहा,मइके अउ ससुरार।
बेटी कस बेटा घलो,सबके बने अधार।
10
बेटी परघर जाय के,लेवय सबला जीत।
बेटा लमसेना बनय, बढ़े मया अउ मीत।
11
सेवा बर जाये भले,कखरो धन झन गने।
लमसेना लालच करे, नोहे एहा बने।
12
लमसेना ला लेय के, होवे कतको बात।
पइसा वाला पाय के,लालच मा हे जात।
13
जतका ठिन भेजा हवे,ततका ठिन हे गोठ।
बेटी कस सेवा बजा,नाम काम कर पोठ।
जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981442795

पागा कलगी -28//2//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर 'अंजोर '

विषय:-- लमसेना
विधा:-- सार छंद
बेटा तयँ जिनगी के थेघा,आवच पाँखी डेना।
कइसे हमला छोड़ अकेला,बनगे तयँ लमसेना।
जे दिन थकजाही जांगर हा,का खाबो का पीबो।
अउ का बाँच जही जिनगी मा,जेखर बर हम जीबो।
पाय मया कइसन ससुरे मा,हमर भुलागे कोरा।
का हमरे कस उँखरो आँखी,करथे तोर अगोरा?
मनके बात बतावत नइहच,अइसे काबर लगथे?
जइसे हमरे करम उपर मा,बइठे हमला ठगथे।
कान फुसारी गोठ सुने हन,सँच काहे अलखादे?
सास ससुर अउ हमर बहू के,हाल हवाल बतादे।
सुने हवन मन पथरा करके,थोपत रहिथच छेना।
कइसे हमला छोड़ अकेला,बनगे तयँ लमसेना।
जे मनखे के हमर दरद मा,नइये आना जाना।
तेनो कुलकत हाँसत हावै,जइसे पाय खजाना।
गुन अंतस आंसू ढरकावै, देख ददा के आँखी।
दाई के मन पसतावत हे,काबर नइहे पाँखी?
अबतो एके आस हवै गा,कोरा पावन नाती।
नाचन गावन ओखर सनमा,तभे जुड़ावै छाती।
जिनगी के अँधियार मिटाके,धर लाही उजियारा।
अतके लालच मा जीयत हन,बाकी राम सहारा।
जाँवर जोंड़ी जेन बनाथे,ओही पार लगाही।
मालिक मा बिश्वास हवै अब,रद्दा खोज धराही।
हमर दरद मा ये दुनिया ला,का लेना का देना।
कइसे हमला छोड़ अकेला,बनगे तयँ लमसेना।
रचना:- सुखदेव सिंह अहिलेश्वर 'अंजोर '
शिक्षक,गोरखपुर,कवर्धा
9685216602
26/02/2017

पागा कलगी -28//1//असकरन दास जोगी "अतनु"*

*लमसेना*
बबा गो डोकरी दाई ओ, मोला पठो दव लमसेना !
ददा गो दाई ओ, मैं जाहूँ लमसेना !!
होवइया ससुर सास, बड़ा हे पइसा वाला !
नानमुन घर नही, लेंट्टर हे तीन तल्ला !!
लोख्खन के ओकर बेटी, हावय एेके झन !
जबले देखे हवँ, आगे हावय मोरो मन !!
सब अढ़वा ले करहवँ, अउ थोपहवँ भले छेना !
ददा गो दाई ओ, मैं जाहूँ लमसेना !!......(१)
दस इक्कड़ खेत हे, पाहूँ मैं अकेल्ला !
जाँगर पेर नाँगर जोंतहूँ, उहाँ नइ राहवँ निठल्ला !!
सुंदरी हावय होवइया बाई, मन लागे रइही !
ससुरार मँ रइहूँ, भले मोला मेंड़वा कइहीं !!
मान जा बबा गो, अब तो भेज दे ना !
ददा गो दाई ओ, मैं जाहूँ लमसेना !!....(२)
लमसेना ला मिलहऊर, घलो कइथैं !
सब जात बर, ससुरार के आसरा मँ रइथैं !!
गोसईन के सबे, नखरा ला उठाथे !
भात साग रंधना, अउ साड़ी घलो ला धोवाथे !!
सब टेमटेमा ल सइहूँ, डोकरी दाई मान ले ना !
ददा गो दाई ओ, मैं जाहूँ लमसेना !!.....(३)
कोठा मँ भरे हे गरुआ, दूध दही के खान हे !
कोठी डोली बोरा, अलमल भरे धान हे !!
अँगना मँ तुलसी, चँवरा मँ गोंदा !
सब बात ऊँकर सुनहूं, बनके रइहूँ कोंदा !!
मोला तुमन जावन दव, मोर अऊ भाई इहाँ तो हे ना !
ददा गो दाई ओ, मैं जाहूँ लमसेना !!.....(४)
ससुर सास के सेवा, करहवँ दिन रात !
गोसईन सो मया, अउ करहवँ मिठ बात !!
कथरी ओंढ़ के, मैं तो घीवँ खाहवँ !
लमसेना जाये ले, धन्य हो जाहवँ !!
मान जातेव ददा-दाई, मोला अब पठो देना !
ददा गो दाई ओ, मैं जाहूँ लमसेना !!........(५)
*असकरन दास जोगी "अतनु"*
ग्राम-डोंड़की,पोस्ट-बिल्हा,तह-बिलासपुर ,छत्तीसगढ़
मो. 8120477077