सोमवार, 25 अप्रैल 2016

पागा कलगी -8//महेन्द्र देवांगन माटी

पानी ल बचावव
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दिनों दिन गरमी ह बाढ़त, तरिया नदियां सुखावत हे
कुंवा बोरिंग सुक्खा परगे, पानी घलो लुकावत हे
बूंद बूंद अनमोल होगे , अब समझ में आवत हे
एक कोस में पानी भरे बर, नवा बहुरिया जावत हे
चिरई चिरगुन के मरना होगे, पियास में फड़फड़ावत हे
गाय गरुवा मन भूख पियास में, भारी हड़बड़ावत हे
पेड़ पौधा के पत्ता झरगे, खड़े ठाड़ सुखावत हे
धरती दाई पियासे हाबे, पानी कहां लुकावत हे ।
जल हाबे त जीवन हाबे, एला तुम बचावव
बिना पेड़ के पानी नइ गिरे, एला सब समझावव ।
पानी बिना जग हे सुना , बात ल तुमन मानव
एक एक पेड़ लगाके संगी, सबके जीव बचावव ।
रचना
महेन्द्र देवांगन माटी
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला - कबीरधाम ( छ. ग. )

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