शनिवार, 25 जून 2016

पागा कलगी-12/30/शालिनी साहू

परयावरण बचाबो
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हरियर हरियर रुख लगाबो
सुग्घर सितल छंईहा पाबो
करत रहव तुमन अइसनहे कटाई
फेर झिन कहू कइसे बिपदा आई
परयावरण ले छेडछाड करहू
अपने डोंगा म खुदे छेद करहू
करत रहव जंगल परबत के छटाई
फेर झिन कहू कइसे बिपदा आई
परकिरिती ल रुष्ट करहू
जीनगी भर कष्ट सइहू
चिरइ चिरगुन के संख्या घटाहू
सितल हवा काहा पाहू
शेर भालू के दहाड कइसे आही
जंगल नइ रिही त जम्मो गाव डहर आही
परदुषन ल दुरिहा भगाहू
जीनगानी ल खुशहाली बनाहू
जेन ए बात ल नइ समझिस
तब देखव कइसे घोर बिपदा मातिस।
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शालिनी साहू
अमली पारा कुरुद

पागा कलगी-12/29/ललित वर्मा

बिकास के आरी चलावथे
देखव जिनगी के नारी जुडावथे
अपन डेरा के सिरजन खातिर
चिरई के खोंधरा गिरावथे
कटथे पेंड अउ चीखत हाबय
सुन मूरख इनसान
सुक्खा अकाल ह परत हाबय
काबर गुन पहिचान
महल अटारी बनाये के खातिर
बिनास के बारी बोवावथे
बिकास के आरी चलावथे
देखव जिनगी के नारी जुडावथे
रोवथे चिरई तडफत हाबे
छूटत हे जी परान
अतेक निरदई कईसे होगे
देवता सरिक इनसान
निज-स्वारथ ल साधे खातिर
करम के लेख बिगाडथे
बिकास के आरी चलावथे
देखव जिनगी के नारी जुडावथे
घपटथे परदूसन के बादर
करनी म तोर इनसान
भूख-बिमारी के बाजथे मांदर
नाचथे जम भगवान
परयावरन ल बचाये खातिर
पागाकलगी ह सबला जगावथे
बिकास के आरी चलावथे
देखव जिनगी के नारी जुडावथे
अपन डेरा के सिरजन खातिर
चिरई के खोंधरा गिरावथे
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रचना -ललित वर्मा छुरा गरियाबंद

पागा कलगी-12/28/देव साहू

रो रो के गोहरावत हव
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लहू के हर कतरा ले भिज गे हव
टंगिया ले अब झन मारव मोला
आगास के बादर ले पूछलव
मोला कइसे लइका सरिक पोसे हे
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मउसम ह खुन पसिना ले सिचे हे
माटी तको बरबसी झाडे हे
फुरफुर पुरवाही हवा ले पूछलव
जेन मया के झुलना म झुलाय हे
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हर पल मोर खियाल रखे हे
तभे अंतस ले बिजा मोर जागे हे
तय सुखा ये भुंइया म
रुखराई के एक बगिचा बना लव
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रो रो के गोहरावत हव मितान
मोला जमिन ले झन उखाडव
मेहा हर जिनगी के सांस हरव
मोर मयारु सगी मोला झन काटव
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ए भुंइया के सुग्घर छंइहा
रुखराई चिरइ चिरगुन ले बने हे
फुरफुर पुरवाई के ए हवा
अमरित बन के चलत हे
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हमरे नत्ता हे जम्मो जीव ले
जेन ए भुंइहा म संगी आही
हमरे ले रिस्ता ह मनखे मनखे के
जेन ए भुंइया म संगी जाही
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हवा गरेर ले डारा खांधा टूटगे
जगे जगाए रुख ल चुलहा म झन डारव
रो रो के गोहरावत हव
मोला जमिन ले झन उखाडव
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कतको फल फलहरी ल हमन देथन
तभो ले अजनबी सरिक पडे हन
धरे टंगिया हाथ म हमला ताक झन
जवाब देवव काबर मुरदा सन खडे हन
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हमरे ले सुग्घर जिनगी मिले हे तोला
पारत हव गोहार झन काटव मोला
बुरा नजर मोर उपर म झन डारव
तुहर मया के छंइहा ले झन मारव
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रो रो के गोहरावत हव मितान
मोला भुंइया ले झन उखाडव
मेहा हर जिनगी के सांस हरव
मोर मयारु मितान मोला झन काटव
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कहू जमिन म नई रिही रुख राई
तुहर जिनगी हो जाही एक दिन दुखदाई
तराही तराही मनखे मनखे ल होही
दुनिया म हाहाकार तको मच जाही
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तभे पछताहू तुमन ह गा संगी
हमन एला काबर बिगाडे हन
हमर ले जब घर कुरिया बनथे
दु बखत के भरपेट चाउर चुरथे
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हर घर म खडे किवाड हे
गली गली म रुख लगावव
जम्मो मनखे म आस जगावव
सुग्घर मया के रुख लगावव
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रो रो के गोहरावत हव मितान
मोला भुंइया ले झन उखाडव
मेहा हर जिनगी के सांस हरव
मोर मयारु मितान मोला झन काटव
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
देव साहू
गवंइहा संगवारी
कपसदा धरसीवा

पागा कलगी-12/27/सुशील यादव

का नफा नुकसान हे भाई
तुहर अलग भगवान हे भाई
रुख राई ला काट मढ़ाएव
गाव उही पहिचान हे भाई
तरिया पार पीपर हवा में
बर्नी भर अथान हे भाई
चिरइ चिरगुन के बसेरा में
बिहिनिया के अजान हे भाई
एके पेड़ ऐ जनम उगा लो
इहि म जम्मो ज्ञान हे भाई
सुशील यादव 

शुक्रवार, 24 जून 2016

पागा कलगी-12/26/लक्ष्मी करियारे

रूख रई झन काटव ग भइया
एकरे से हमर जिनगानी हे..
पीरा ल समझव चिरई चुरगुन के 
जम्मो के एके कहानी हे...
जिनगी के सब रस सकेले अपन अँचरा मं
मिलथे जीवन एकर एक एक सँथरा मं
लेवय नही कछु हमर से
देते रइथे जइसे राजा दानी हे..
रूख रई झन काटव ग...
कहाँ नाचे मंजूर कहाँ झूम के कोईली गाही
बन ल बचाव नही त सब ये नंदा जाही
हरियर रहय दाई के अँचरा ह
सुआ पाखी लुगरा ये धानी हे..
रूख रई झन काटव ग...
पुरवा घुमर के करिया बादर बलाथे
डारा पाना बन म मया के गीत गाथे
ए ही जीवन के गीत ये संगी
अटकन बटकन मुनि घानी हे..
रूख रई झन काटव ग...
जुरमिल बैर भाव के खचवा ल पाटव
सुघ्घर सुमत के नवा बीझा लगावव
चलव लगाबो पेड भइया
ए ही हमर परवा कुरिया छानी हे..
रूख रई झन काटव ग....
रूख रई झन काटव ग भइया
एकरे से हमर जिनगानी हे..
पीरा ल समझाव चिरई चुरगुन के
जम्मो के एके कहानी हे...
एकरे से हमर जिनगानी हे....
लक्ष्मी करियारे 
जाँजगीर
छत्तीसगढ़
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गुरुवार, 23 जून 2016

पागा कलगी-12/25/महेन्द्र देवांगन माटी

रुख ल झन काटो
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रुख राई ल झन काटो,जिनगी के अधार हरे 
एकर बिना जीव जंतु, अऊ पुरखा हमर नइ तरे 
इही पेड़ ह फल देथे, जेला सब झन खाथन
मिलथे बिटामिन सरीर ल, जिनगी के मजा पाथन
सुक्खा लकड़ी बीने बर , जंगल झाड़ी जाथन
थक जाथन जब रेंगत रेंगत, छांव में सुरताथन
सबो पेड़ ह कटा जाही त, कहां ले छांव पाहू
बढ़ जाही परदूसन ह, कहां ले फल फूल खाहू
चिरई चिरगुन जीव जंतु मन, पेड़ में घर बनाथे
थके हारे घूम के आथे, पेड़ में सब सुरताथे
झन उजारो एकर घर ल, अपन मितान बनावो
सबके जीव बचाये खातिर, एक एक पेड़ लगावो
********************
रचना
महेन्द्र देवांगन माटी
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला - कबीरधाम (छ ग )
8602407353

पागा कलगी-12/24//आचार्य तोषण

॥चिरई के दरद दुख॥
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चिरई कहिथे मनखे ला
झन काटव गा रूख ला
का तुंहर ले देखे नी जाय
हमर मन के दरद दुख ला
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सुवारथ बर अपन तैहर
जंगल ला उजारत हस
रूख राई म बसे चिरई
जिते जियत तै माराथस
देवतहस हमला दुख त
कहां ले पाबे तै सुख ला
का तुंहर ले देखे नी जाय
हमर मन के दरद दुख ला
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तहूं जीव तइसने हमूं जीव
सबला गढ़य भगवान गा
नइ बन सकस इंसान त
झन बन तै शैतान गा
पाप करेबर छोड़ दे तै
यमराज देखही तोर मुख ला
का तुंहर ले देखे नी जाय
हमर मन के दरद दुख ला
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चिरई कहिथे सुनरे मनखे
जिए के हमला अधिकार हे
जंगल झाड़ी के दाना पानी
इही मा हमर संसार हे
सच्चा मनखे विही हरे
समझे सबके सुख दुख ला
का तुंहर ले देखे नी जाय
हमर मन के दरद दुख ला
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आचार्य तोषण
धनगांव डौंडीलोहारा
बालोद छत्तीसगढ़

पागा कलगी-12 /12/संतोष फरिकार

*झन उजाड़व*
डोगरी पहाड़ परवत के 
पेड़ ल झन काटव गा
नान नान चिरंई चिरगुन के
बसे बसाए घर ल झन उजाड़ गा
मांई नान नान पीला ल धर के काहा जही
पेड़ ह नई रही अपन बर खोधरा काहा बनाही
गरमी के दीन पेड़ लहकत रहिथे
नान नान पीला कतका सुघ्घर चहकत रहिथे
कोनो जगा के पेड़ ल झन काटव
बरसात म एक ठन पेड़ लगावव
चिरंई चिरगुन के जीव ल बचावव
बसे बसाए घर ल झन उजाड़व
जिए के एक बहाना हरय
पेड़ ह जिनगी के सहारा हरय
हवा पानी ले बचे के बहाना हरय
पानी बरसात म लुकाय के सहारा हरय
पेड़ ल झन काटव गा
कखरो घर ल झन उजाड़व गा
**************************************
रचना संतोष फरिकार
देवरी भाटापारा
9926113995

पागा कलगी-12/23/कन्हैया साहू "अमित"

आवव,
परकीति के पयलगी पखार लन।
धरती ल चुकचुक ले सिंगार दन।
परकीति के पयलगी पखार लन।।
धरती ल चुकचुक ले सिंगार दन।।।
रुख-राई फूल-फल देथे,
सुख-सांति सकल सहेजे।
सरी संसार सवारथ के,,
परमारथ असल देते।।
धरती के दुलरवा ला दुलार लन।
जीयत जागत जतन जोहार लन।।
परकीति के पयलगी पखार लन।।१
रुख-राई संग संगवारी,
जग बर बङ उपकारी।
अन-जल के भंडार भरै,
बसंदर के बने अटारी।।
मत कभु टंगिया,आरी,कटार बन।
घर कुरिया ल कखरो उजार झन।।
धरती ल चुकचुक ले सिंगार दन।।२
रुख-राई ल देख बादर,
बरसथे भुइंया आगर।
बिन जल जग जल जाही,
देवधामी जस हे आदर।।
संरक्छन के सुग्घर संसार दन।
परियावरन के तैं रखवार बन।।
परकीति के पयलगी पखार लन।।३
रुख-राई ल बचाव संगी,
पेङ परिहा बनाव संगी।
चिहुर चिरई चिरगुन,
सिरतोन सिरजाव संगी।।
बिनास ल बेवहार म उतार झन।
पर हित 'अमित' पालनहार बन।।
धरती ल चुकचुक ले सिंगार दन।।४
परकीति के पयलगी पखार लन।।।।
***********@*************
@ v @
हथनीपारा~भाटापारा
जिला~बलौदाबाजार (छग)
पिनकोड~493118
संपर्क~9753322055
WAP~9200252055
©©©©©©©©©©@©©©©©©©©©©
@ लगाव रुख~कमाव सुख@

बुधवार, 22 जून 2016

पागा कलगी-12/22/अमित चन्द्रवंशी"सुपा"

का होंगे आज मनखे मन ला दुनिया ला बरबाद करे बर तुले हवय,
दुनिया ला उजाड़े बर पेड़ पौधा ला काटे बर मनखे मन तुले हवय।
पेड़ ही नई होहिय ता शुद्ध-शुद्ध ताजा-ताजा वायु कहा ले पहु,
दुनिया मा जीना हवय ता पड़े पौधा ला कटाव नही ओला उगहु।।
उजड़त हवय जंगल हा जमीन होवत हवय रुखासुखा,
उजड़त हवय जंगल हा पशु पक्षी दुनिया ले जावत हवय।
पानी सुखागे पेड़ झाड़ हा दुःखे बरोबर दिखात हवय,
पर्यावरण ला बरबाद करे बर मनखे मन तुले हवय।।
कबहु-कबहु जंगल मा आगी लगथे,
पुरा पशु-पक्षी मन जल के मर जाथे।
का होंगे मनखे मन ला पेड़ ला कटथे,
ट्रेन दौड़ाय बर जंगल ला उजड़त हे।।
वर्षो बाद जंगल धरती में धस के नवा-नवा कोयला देथे,
कबहु-कबहु प्रकृतिक आपदा ले जंगल ह बचावत हवय।
हर साल नवा-नवा फूल-फल सुन्दर हवा देवत हवय,
तभो मनखे मन दुनिया ला उजड़े बर पेड़ काटत हवय।।
-अमित चन्द्रवंशी"सुपा"
रामनगर कवर्धा
8085686829

पागा कलगी-12/21/चोवाराम वर्मा

"झन काटव पगला"
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झन काटव पगला रुख राई ल
कलपावव मत धरती दाई ल।
रुख राई,जंगल झाड़ी म
जीव जन्तु के बसेरा हे।
सुवा,मैना,पड़की,कठखोलवा
नाना पंछी के डेरा हे।
बड़ मयारू होथे बिरवा
दाई ददा कस कोरा हे।
समझावव बहिनी भाई ल।
झन काटव पगला रुख राईल
देख तो नान नान पिलवा,
कइसन छटपटावत हे।
तोर चलाये आरा आरी
चिर करेजा खावत हे।
बिन छंईहाँ घाम पियास म
कतको झन मर जावत हे।
करम के फल भुगते ल परही
तोर पाप घईला भरावत हे।
सरग म बईठे चन्द्रगुप्त ह
घाटे घाटा चढ़ावत हे।
झन खन गिरे बर खाई ल।
झन काटव पगला रुख राई ल
नई रइहि जंगल झाड़ी
हवा बिना मर जाबे।
बंजर हो जहि भुँइया के कोंख
अन्न पानी कंहाँ ले पाबे।
डार के चुके बेंदरा कस
मुड़ धर पाछू पछताबे ।
अपने टंगिया म अपने गोड़ ल
काट रोबे चिल्लाबे।
झन रिसवावव"बादल"भाईल
(रचनाकार---चोवाराम वर्मा "बादल"ग्राम पोस्ट हथबंध )

सोमवार, 20 जून 2016

पागा कलगी-12/20/महेश मलंग

जियत जागत देवता ए भैया
नदिया जंगल रुख राई .
एला बचाव लव कहिके
गोहरावत हे परकिति दाई.
ये नदिया जंगल पहार
हमला मिले बरदान आय
जम्मो परानी के जिनगी के
अहि सहारा और परान आय.
फर फूल जरी बुटी देथे
अहि लाथे बरखा रानी.
चला के आरी रुख राई म
करत हन बड़ नदानी .
परियाबरन के रच्छा करथे
मौसम के चक्का चलाथे.
परदूषन राक्षस ले घलो
हमला एहा बचाथे.
दुनिया म मंगल तब तक हे
जब तक बचे हे जंगल.
खतम हो जाही तौ हो जाही
सबके जीना दुभर.
जेन डारा म बैईठन ह
ओही ला झन काटव .
बहुत हो गे देरी भैया
अब तो सब मन जागव .

-महेश मलंग

पागा कलगी-12/19/डा: गिरजा शर्मा

सब प्रानी संग चिर ई चिरगुन
मन पारें गोहार
एहर हमर है जीये के अधार
झन का टो तुमन मितान
उमड़त घुमड़त करिया। बादर ल बलाके
एमन पानी बरसाथें ग
त हरियाथे हमर धरती दाई
सोनहा धान हर लहलहाथे खेत म
त किसान हर मुसकाथे ग मितान
एमे के फूल फल अमरित कस
एकर छाँव म जुड़ाथे ग प्रान
आज उजारबो हमन ऐला त न ई बाँचे ग हमर परान
सब झन मिलके किरिया खाई
जगाबो ग हमन रूख राई ल
हमर दाई के कोरा ल हरियर करबो
आऊ गरब बो बन जाबो एकर मितान
आऊ बचा बो सबके प्रान
आवा आवा ग मितान।
🌷🌷🌷🙏
डा: गिरजा शर्मा
क्वार्टर-225,से-4/a
बालको नगर
कोरबा। (छ ग)

पागा कलगी-12/18/सूर्यकांत गुप्ता

परियावरन बचाव
चीरत हौ का समझ के, मोरद्ध्वज के पूत।
काटे पेड़ जियाय बर, नइ आवय प्रभु दूत।।
रूख राइ काटौ मती, सोचौ पेड़ लगाय।
बिना पेड़ के जान लौ, जिनगी हे असहाय।।
बिन जंगल के हे मरें, पशु पक्षी तैं जान।
बाग बगइचा के बिना, होही मरे बिहान।।
आनन फानन मा सबो, कानन उजड़त जात।
करनी कुदरत ला तुँहर, एको नई सुहात।।
पीये बर पानी नही, कइसे फसल उगाँय।
बाढ़े गरमी घाम मा, मूड़ी कहाँ लुकाँय।।
जँउहर तीपन घाम के, परबत बरफ ढहाय।
परलय ओ केदार के, कउने सकय भुलाय।।
एती बर बाढ़त हवै, उद्यम अउ उद्योग।
धुँगिया धुर्रा मा घिरे, अनवासत हन रोग।।
खलिहावौ झन देस ला, जंगल झाड़ी काट।
सरग सही धरती हमर, परदूसन मत पाट।।
करौ परन तुम आज ले, रोजे पेड़ लगाव।
बिनती "सूरज" के हवै, परियावरन बचाव।।
जय जोहार.......
सूर्यकांत गुप्ता
1009, "लता प्रकाश"
सिंधिया नगर दुर्ग (छ. ग.)

पागा कलगी-12 /17/शुभम् वैष्णव

कुंडली-
चिरई मन जाही कहाँ , जब काटहु सब पेंड़।
करले थोकिन तैं दया , ओला झन अब छेड़।
ओला झन अब छेड़ , उजाड़ झन तैं घरौंदा।
जुड़ जुड़ के तिनका ह, ऊंखर बने ग घरौंदा।
झन ले कखरो हाय , जिनगी दुभर हो जाही।
अपन घर मन ल छोड़, कहाँ चिरई मन जाही।
सिरा जाही ग सम्पदा, हो जाही नुकसान।
जस धरती के अंग हे , तस एला तैं मान।
तस एला तैं मान, एखर तैं ह कर रक्षा।
सब ह करै सम्मान, होवय ग अइसन शिक्षा।
काल ले सबो मेर , इही तो बात सुनाही।
कखरो घर टुटही त , तोर पुन्य सिरा जाही।
देख झन अपन फायदा , पेंड कटई ल रोक।
जेन मन पेड़ काटही , ओहु मन ल तैं टोंक।
ओहु मन ल तैं टोंक , खरा नियम तैं बना दे।
करय सब ह सम्मान, तै ह अब अलख जगादे।
झन कर बन के नास, परानी के ग कर जतन।
रख तैं सबके ध्यान , फायदा देख झन अपन।
-शुभम् वैष्णव

पागा कलगी-12/16/बी के चतुर्वेदी

" जीवन अउ जंगल "
**************************************
"रूखवा राई जीवन. के खानदानी लागे रे
काट काट झाड़ी जंगल. मनमानी लागे रे "
"नई बांचे रूख राई जीव जंतु कहां जाही
तोर. अंगना चिरैयय बोली नदारत. हो जाही
तोला संसो फीकर जीव. चाय. पानी लागे रे "
"वनखरहा जीव देखे गहबर कूदत. नाचे
चिरैया डारा डारा चहकत. आनी बानी बांचे
कैसन भूईयां आकास. के कहानी लागे रे "
"कुसियार कतको मीठ लागे जरी ले नई काटें
डारा पाना धरावत आगी कैसन जाड़ छांटे
मनखे जोनी सुराज अब. बईमानी लागे रे "
"हवा पानी गर्रा धुंका पनिया बिमार लागे
कभू डोले धरती गुइंया किल्ली गोहार. जागे
एठत अटियात करे विकास के जुबानी लागे रे "
"तोर चतुराई होगे मुड़ पीरा कतेक जीये पाही
हवा मा बिमारी बहे पानी मा जहर घोराही
तोर जिनगी के जिद्दी मरे के दिवानी लागे रे "
"सबले चतुरा सवले बपुरा मनखे तनखे बांके
अपन. सुख. देखे कभू दूसर के दुख. नई. झांके
तोरी मोरी चिथा पुदगी अजब. परानी लागे रे "
"तोला देथे तेला तै काटे तौ सांस. कहां ले पाबे
घर. बनाये उजारे जंगल. वन सांप. जैसन चाबे
तोर. चतुराई. हर. कतका कन. बयानी लागे रे "
*************************************
बी के चतुर्वेदी 8871596335
क्वाटर न-- डी टाईप 153
एच टी पी एस कालोनी दर्री
कोरबा पश्चिम जिला कोरबा

पागा कलगी-12/15/योगेश साहु

"झन काट रुख ला"
***********************************
झन काट सगवारि ओ रुख ला गा .... 
जेमे मिलते तोला फल फुल हा गा ....... 
चारों कोति हवा चलत हे ...... 
कतना सुघड़ लगत हे .....
 कतना खुशी के बात ए सगवारि हो .......
 ए रुख राई हाबे ना ता हमर जिंदगी चलत हे....
जिंदगी जीए बर आए हन ......
जइसन हमर ए घर हे .......
ओसने ओ काकरो घर ए ........ 
झन काट सगवारि ओ रुख ला वहु
में काकरो जीवन हे........
 झन काट सगवारि ओ रुख ला गा ..........
जीव जंतु चिराई मन तोला देखत हे ...... 
अब हमन कहा जाबो कहीं के ओकर आँखी ले आसु निकलत हे ........
 झन काट सगवारि ओ रुख ला गा ......... 
एमे सबके जिंदगी ह समाये हे .......
उही रुख ले कच्चा माल बनके आय हे ........ 
अउ ए जिंदगी ला चालाये बर बेरोजगार मन ला काम दिलाये हे...... 
झन काट सगवारि ओ रुख ला गा........
सबो झन के जिंदगी इही में हे ........
 फुल मिलत हे फल मिलत हे.......
अउ मिलत हे चारा .......
 झन काट सगवारि ओ रुख ला गा ए जिंदगी के नईये ठिकाना ......
***योगेश साहु अरजुनि बालोद ***

रविवार, 19 जून 2016

पागा कलगी-12/14/अनुभव तिवारी

तरपत तरपत रहिगे चिरई अमराई कहां गंवागे रे
नावा जुग का आइस मनखे जुन्ना जुग ल भुलागे रे
दुख पीरा काकर करा गोहरावन देवता पथरा होगे रे
संसो म जिनगी पहाथे सुख अब सपना होगे रे
जेखर खांद म कूदन झूलन ओ बर पीपर नंदागे रे
नावा जुग का आइस मनखे जुन्ना जुग ल भुलागे रे
कइसे जिनगी जीबो संगी लोहा लाखड के अमराई म
कांपत हे छाती बिचकत हे मनखे अपन परछाई म
परियावरन परदूसित होगे चिरइ चुरगुन सिरागे रे
नावा जुग का आइस मनखे जुन्ना जुग ल भूलागे रे
अब भूंइया नइ बांचिस सिरतो मरघट काला बनाबो रे
परिया परे खेती डोली ल फेर कइसे हरियाबो रे
मानुस के लोभन म देखा सावन घलौ रिसागे रे
नावा जुग का आइस मनखे जुन्ना जुग ल भूलागे रे |
**************************************
आपका
अनुभव तिवारी खोखरा जांजगीर चाम्पा छग 9179696759

पागा कलगी-12/13/ललित साहू "जख्मी"

"लकड़ी चोरहा" (बियंग)
अरे टूरा कहां जात हस रे
टंगिया धर के मटमटात हस रे
गोंदे तो रा एको ठन रुख ला
चपटा दुहुं साले तोर मुख ला
तोर बाप के राज चलत हे का
मोला रुख गोंदे बर छेंकत हस
कतको ला कटवात हे सरकार हा
फेर हर पईत तेहा मुही ला देखत हस
रुख गोंद के मेहा परवार पोसत हव
जंगल उजरईया मन ला महुं कोसत हव
हमन तो सुख्खा रुख ला गोंद के लानथन
ऊही लकड़ी मा तो अपन चुल्हा सिपचाथन
चार काड़ी कोरई मा छानही ला छाथन
चार काड़ी ला बेच के पईसा कमाथन
चार काड़ी कही-कही के जंगल चाट डारत हव
सुख्खा कही-कही के कांचा रुख ला मारत हव
वाह रे तुंहर पढ़े-लिखे मन के मतलबिहा गोठ
सरी जंगल ला बेच के हो गे हव बड़ पोठ
मोला बता जंगल के जगा का मोर बबा बेचत हे
रद्दा बर रुख गोंदथे तेला बता कोन छेंकत हे
आरा मे गोला चिरथे अऊ बंदुक मा चिरई तुकत हे
रुख ला उंडा के चिरई गुडा़ ला आगी फूंकत हे
जंगल के सबो जीव आज कांपत हावे
कोनहो आही बंचाय बर कहीके झांकत हावे
चिरई आगास मा उडीयाथे फेर ठिहा रुख राई ये
मरहा चिरई के टूटे पांख ये मनखे के चतुराई ये
साले तोला छेंकत हव ता तेहा सब ला गिनावत हस
धरती दाई ला भुला के परवार के फरज निभावत हस
अईसन मत का महु ला कुदरत के चिंता हे
फेर तेहा मोला बता नेता मन के पेट के बिता हे
रुख राई ला बचाना हे ता सबला एक होना परही
भोरहा मा हो जौन सोंचत होहु नेता मन देस गरही
चलो किरया खाओ आज ले सबो मोर संग दुहु
लकड़ी चोरहा जानहु तेला पानी घलो झन दुहु
रुख ले हे हवा पानी छांव अऊ सबो के जिनगानी
नई कटे जंगल, नई मरे जीव अब हमरो हावे बानी
**************************************
रचनाकार - ललित साहू "जख्मी"
ग्राम -छुरा
जिला - गरियाबंद (छ.ग.)
9144992879

पागा कलगी-12/11/ लता नायर

घिनहा कस काम काबर करेस गा l
घम छाँही तोहू तो पात रहेस
गवार कस काट देहेस गा !!
घर गोंसईयां कस होय कर
गर के काँटा बने तै !
जै गाछ ला दावन कुछु नहीं करिस
तैला तै गिधवा कस नोंच देहे गा !!
मोर बसेरा ला तिडी -बिडी़
गुरमट्टी कस कर देहेस गा !
तै कलेचुप काबर मोर सोन चिरई ला मुरईकस मुरकेट देहे गा !!
अब झेन कहबे आँधी घटा आइस है !
तै खुदे नियतखोर कस जमो भुईयां ला उजाड देहेस गा !!
*************************************
**** लता नायर
लखनपुर सरगुजा ******

पागा कलगी-12/10/राजकिशोर धिरही

झन काटव रुख ल।
झन काटव रुख ल।।
उजर जाथे हमर खोंधरा
पाथन हमन जाड़ भोंभरा।
बड़ कल्लइ होथे जीये ल
मरथन जम्मों माइ पिला।।
समझव भाखा,दुख ल।
झन काटव रुख ल।।
धर के आरी तै काट देथच
टांगी टांगा ले छांट देथस।
ची ची चूं चूं करत रइथन
भिंया मा गिर गिर मरथन।।
छमा करव भूल चूक ल।
झन काटव रुख ल।।
केप केप करथे पिला,
महतारी हर उड़ जाथे।
काट काट रुख राइ,
मनखे हर दुख लाथे।।
सही के सहथन भूख ल।
झन काटव रुख ल।।
रुख काटे ले भईया
आसरा उजर जाथे।।
चिरई चुरगुन मन
बिन रुख मर जाथे।।
जीये देवव जिव मूक ल
झन काटव रुख ल।।
**********************
🙏🏼राजकिशोर धिरही🙏🏼
ग्राम+पोस्ट-तिलई
तहसील-अकलतरा
जिला-जांजगीर चांपा(छ.ग.)
पिन-495668

पागा कलगी-12/9/इंजी.गजानंद पात्रे"सत्यबोध"

रुख राई हे बेटा बरोबर
सुघ्घर पोसव पालव जी।
जिंदगी के ये आधार हे भईया
मिलके पेड़ लगावव जी।
सुख दुःख के साथी हमर
तनहा के मितान जी।
देवता रूप विराजे ये म
कहत हे पोथी पुराण जी।
मया दया के शीतल छाँव देथे
जिंदगी बर पुरवाई जी।
भूखे प्यासे ल खाना देथे
तन काया बर दवाई जी।
दुनिया के आधार खड़े हे
बड़े बड़े कारखाना जी।
झईन काटव् रुख राई ल भाई
ये हे जीवन समाना जी।
रुख राई पानी बरसावय
किसान के मन हरसावय जी।
सरग के बादर ल खिंच
धरती म उतारय जी।
अन्न धन्न सब हुए मतंगा
करम किसान के सिरजावय जी।
सोये बर पलंग सुपेती बने हे
बइठे बर सोफ़ा दीवाना जी।
लकड़ी काठ कस जीवन बने हे
सब ल हे एक दिन इही म जल जाना जी।
आज शहरीकरण औद्योगीकरण के कारन
बन के होवत हे विनाश जी
भविष्य के बात ल सोचव
जीना दूभर हो जाहि सबके,
जब शुद्ध हवा नई मिलहि
लेह बर हमला स्वांस जी।
बइठे बर छाँव नई मिलहि,
सब मरही भूखे प्यास जी।
करत पुकार हे पात्रे भाई,
कहना मोर मानव जी।
सब कोई अपन जीवन म
भाई रुख राई लगावव जी।
तन मन धन !
सब ले ऊपर वन !
*********************************
रचना-- इंजी.गजानंद पात्रे"सत्यबोध"

शनिवार, 18 जून 2016

पागा कलगी-12/8/राजकिशोर पाण्डेय

मनखे मन के मन ले मया सिरावत हे ।
घरी घरी, घरी जातरी के आवत हे ॥
साँस के धरखन हावै दुनियाँ के रुख राई,
इंकरे ले झक्कर, झड़ी अउ हे पुरवाई ।
रुख ल काट के कस्साई कस गिरावत हे ॥
खोंधरा के भीतर ले चूजा चिंचियावत हे,
आरा टाँगा धर ओदे मनखे आवत हे ।
चिऊचींउ सुन के घलाव नइ सोगावत हे ॥
घाम ह आगी होगे अक्कल फेर नइ आइस,
केदार के परलै देखिस परछो फेर नइ पाइस ।
बादर के पुरुत पुरुत ह परपरावत हे ॥
धुर्रा गर्रा बादर आगी अउ पानी बर,
रुख राई बहुत ज़रूरी हें जिनगानी बर ।
कतेक जुग ले कवि हर चिंचियावत हे ॥
घरी घरी, घरी जातरी के आवत हे ॥
🌷🌹राजकिशोर पाण्डेय 🌹🌷
नगर पंचायत मल्हार 
मों न 9981713645
🌸🌷🌹🌻🌻🌻🌻🌻

पागा कलगी-12 /7/असकरन दास जोगी "अतनु"

"बसेरा🏡"
मनखे होगे अतका निरदई, आगे कौऊन बेरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!
करेजा नई फाटीच तुंहर, जब चलायेव आरी !
धरहा टंगिया म छोप डारेव, रूखवा के झिलारी !!
लुटागे छईहां मुड़ी ले, नई निकले हे पाँखी !
अंधरौटी आथे का तुंहला, नई दिखय आँखी !!
तुंहरे जईसन हमूं ल सिरजाये, नोहन हम लमेरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!१!!
खर-खर बाजीच आरी, कलपिच महतारी !
बचा नई सकिच हमला, रहिगे फड़फड़ावत भारी !!
खुन के आंसू रोवत रहिगे, करत चिवं-चावं !
झर्रट ले खोंधरा टुटगे, कोन मेरा मिलही छावं !!
थोर-थार चलत सांसा , का बांचे हमर मेरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!२!!
काट-काट के रूख-राई, नास करत हव जंगल ल !
पहुना कस नेवता नेवतत हव, अपन जिनगी म अमंगल ल !!
तुंहरो बसेरा एक दिन लुटाही , बताव तब कईसे लागही !
करम ठठावत रई जाहव, मांगे म छांव नई मिल पाही !!
बिन जंगल झाड़ी के , बंज्जर हो जाही धरती के कोरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!३!!
सुरूज जंग्गाये रईही रोज, करही मनमानी !
नई आही गर्रा धुका, कईसे गिरही पानी !!
हमर बिगाड़ करके, का तुंहर बन जाही !
हम तो माटी म मिल जाबो, फेर माटी रईही गवाही !!
कहां उड़ागे परवार हमर, कति डारिन होहीं डेरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!४!!
पलंग पलगई बनाहव, धुन बनाहव फईरका !
एक दुठन नही , काटे परत हव रूख खईरखा !!
मानवता मरगे का मनखे के, कबले होगे निरदई !
चिरई चिरगुन ल कलपावत हें, होगे हे करलई !!
आँखी म छावत हे हमर, अंधियारी के घेरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!५!!
चेत जावव अभी ले, बांचे हे बहूंत बेरा !
जंगल ल झन उजाड़ करव, झन टोरव ककरो डेरा !!
रूख-राई लगा-लगा के , ए धरती के सिंगार करव !
अपन संग-संग सबे जीव जंत्तु के , तुमन दुख ल हरव !!
नई करहव अईसन त, तुंहरो भभिस ल हे खतरा !
हम का बिगाड़े रहेन, उजाड़ दिएव हमर बसेरा !!६!!
*************************************
असकरन दास जोगी "अतनु"
पता : ग्राम-डोंड़की,पोस्ट+
तह-बिल्हा,जिला-बिलासपुर ( छग)
मो.नं. 9770591174

पागा कलगी-12/6/राजेश कुमार निषाद

।। झन काटव ग रुखराई ल ।।
चिरई चिरगुन मन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
जंगल झाड़ी मन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
इहि म हावय हमर बसेरा छोड़ के कहाँ जाबो अपन डेरा
ये रुखराई के कटईया सुन लव ग हमर करलाई ल।
चिरई चिरगुन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
जंगल झाड़ी काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
प्रदुषण ल कम करईया देथे सुघ्घर प्राण वायु ल।
गरमी ल दूर भगईया नई बदलन दय जलवायु ल।
इखरे ले तो हमर जिनगानी हे झन घटन दव सुखदाई ल।
चिरई चिरगुन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
जंगल झाड़ी काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
रुखराई सबो ल छईयां देथे अपन लोग लईका जईसन।
पर हमन ओला काट के अन्याय करत हन कईसन।
पेड़ लगावव ग जतन के बने महकन दव अमराई ल।
चिरई चिरगुन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
जंगल झाड़ी काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
किसान मन के संगवारी त खेत बर पानी गिरईया ये।
घाम पियास ले दूर रखथे अऊ दुख पिरा के हरईया ये।
इखर बिना तो काही नइये बचा लव ग ये जीवनदाई ल
चिरई चिरगुन मन काहत हे झन काटव ग रुखराई ल।
जंगल झाड़ी मन काहत हे झन काटव क रुखराई ल।
रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद ( समोदा )
9713872983

पागा कलगी-12/5/जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

चीख चिरई के
__________________________
का करबोन राख, 
ये उड़ईया पाँख।
जइसने काटे पेड़ ल,
तइसने यहू ल काट।।
उड़-उड़ के चारो-कोति,
आके ईहचेच बईठन ।
खा-खा के फूल-फर ल,
मेछरान अउ अंईठन ।
मोर पिला लुकाय,
पाना के आड़ म।
ईहचेच रेहेन,
घाम-जाड़-असाड़ म।
झुलत रहेन झुन्ना फुलगी म,
देखत-देखत धरती-अगास।
का करबोन राख,
ये उड़ईया पाँख ।
जईसने काटे पेड़ ल,
तईसने यहू ल काट।
हमर संग कतरो परानी,
रोवत हे घेरी-बेरी।
तहूँ तो सुरतात रेहेय
बाँधत रेहेय गाय-गरुवा-छेरी।
फेर आरा अऊ टँगिया,
काबर चलाय।
मोर झाला - खोन्धरा ल,
काबर जलाय।
परे भुईयॉ म ,
लेवत हो आखिरी सांस।
का करबोन राख,
ये उड़ईया पाँख ।
जइसने काटे पेड़ ल,
तइसने यहू ल काट।
का पेड़ के फूल-फर ल,
हमीमन पोगरी खाथन?
बिन्थो लईका-लोग संग,
जेन ल हमन गिराथन।
रुख-राई के कोरा म,
लहलहात रिहिस गाँव।
तिंहा चिरई आज चीखत हे,
जे करत रिहिस चाँव-चाँव।
काट के रुख-राई ल,
मोर जिनगी संग अपनो जिनगी ल,
झन फाँस।
का करबोन राख,
ये उड़ईंया पाँख।
जइसने काटे पेड़ ल,
तइसने यहू ल काट।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
9981441795

पागा कलगी-12/4/ऋषि कुमार वर्मा

🌳झन काट रुख-राई ल🌳
हत् रे अभागा,तोला कतका बतावंव।
झन काट पेंड़ कहिके,कतका समझावंव।।
ये भुँइया ल तैँ अपन महतारी कहिथस।
बेटा अंव माटी के तैँ भारी कहिथस।।
फेर हत् रे करमछड़हा,ये तैँ काय करतहस।
काट-काट पेंड़ तैँ,बड़ बाय करतहस।।
खच्चित हे एक दिन तैँ भारी पछताबे।
उजरही तोर घर-दुवार त,करम ल ठठाबे।।
के ठन खोन्दरा हे ओ पेंड़ में,बने बट-बट ले निहार।
ओकर घर ल ऊजार्,तैँ मनावत हस तिहार।।
अपन करम के फल ल तैँ इंहेच भोगबे।
देखबे,तोरो घर उजरही,त तैँ कइसे रोकबे।।
अरे भोकवा,चिटिकुन सोंच,बिहिनिया के बेरा।
तोला सुते खटिया ले उठाथे,छोड़ अपन डेरा।।
अपन मया ल तैँ,मोर मैना,मोर सुआ,मोर कोयली,मोर पड़की कहिथस।
सब ल मार डरबे त देखहुँ,तैँ कइसे रहिथस।।
अरे रुख-राई,चिरई-चुरगुन,शोभा ये धरती दाई के।
कोनो बेटा नई उतारय,सिंगार अपन माई के।।
चेत जा,मान जा,झन काट रुख-राई ल।
नई ते तोर सेती रे पगला,भोगबो करलाई ल।।
**************************************
ऋषि कुमार वर्मा
ग्राम-निनवा
पोस्ट-मनोहरा
व्हाया-बैकुंठ
तह.-तिल्दा
जिला-रायपुर(छ.ग.)
493116

पागा कलगी-12/3/बी के चतुर्वेदी

रूखवा राई जीवन के खानदानी लागे रे
काट क झाड़ी जंगल. मनमानी लागे रे "
नई बांचे रखवा राई जीव जंतु कहां जाही
तोर अंगना चिरैया बोली नदारय हो जाही
तोला संसो न फीकर जीव चाय पानी लागे रे
सवले चतुरा सबले बपूरा मनखे तनखे लागे
अपने सुख देखे कभू दूसर दुख ला नई. झांके
तोरी मोरी चिथा पुदगी अजब. परानी लागे रे
कुसियार कतको मीठ लागे जरी ले नई. काटें
डारा पाना धरावत आगी कइसे जाड़ छांटे
मनखे जोनी सराज. अब. बेमानी लागे रे
बनखरहा जीव देखे गहबर कूदत.बइहा नाचे
चिरैया डारा डारा चहकत आनी बानी बाचें
मनखे जोनी सराज. अब. बैमानी लागे रे
हवा पानी गर्रा धुंका पनीया बिमार. लागे
कभु डोले धरती गुइंया किल्ली गोहार. लागे
एठत अटियात करे विकास के जुबानी लागे रे
तोर चतुराई होगे मुड.पीरा कतेक जीये पाही
हवा में बिमारी वहे पानी मा जहर. घोराही
तोर जीनगी मा जिद्दी मरे के दिवानी लागे रे
तोला देथे तेला काटे सांस कहां ले पाबे
घर. वनाये उजारे जंगल सांप. जैसनहा चाबे
तोर चतुराई. हर. कतका बयानी लागे रे
**************************************
बी के चतुर्वेदी
8871596335

पागा कलगी-12/2/डी पी लहरे

बन के रूख म आरी चलावव झन
बन के रूख ल उजारव झन।
पंछी परानी ल मारव झन।
देवता होथे परकृति ह
बिगडथे हमर संस्कृति ह
अपन सुवारथ ल बढावव झन।
पंछी परानी के बली चढावव झन।
रूख म काबर आरी चलावत हव
दुकाल ल खुदे बलावत हव
पानी गिराथे छईहा देथे
पेड ह
ऑकसीजन म सांहच चलावत हव।
पंछी परानी बाघ भालु
सबके बन म बसेरा होथे
आनी बानी के जडी बुटी
सबके बन म डेरा होथे।
आरी चलाहु रूख म त पानी कहा से आही।
तडफ के जाही सब जीव जंतु मन पियास कामा बुझाही।
नीक लागथे कोयली, हंस, मजूर, बनकुकरी के बोली।
झन शिकार करव ईंखर
झन चलावव गोली।
बन के रूख म आरी चलावव झन।
बन ल उजारव झन
पंछी परानी ल मारव झन।
*************************************
लिखईया--डी पी लहरे
कवर्धा ले---

//छत्तीसगढ़ के पागा कलगी 11 के परिणाम //

विषय-‘बेटी ला शिक्षा संस्कार दौ‘
मंच संचालक- भाई अशोक साहू भानसोज
निर्णायक-डां हंसा शुक्ला
संगी हो,
सबले पहिली आप सब ला ये आयोजन म हिस्सा ले बर आभार । आप सबके सहयोग ले हमर साहित्य निश्चित रूप ले आघू बढ़ही । सबो झन विजेता नइ हो सकन । लेकिन कोनो रचना बेकार नई होवय, कोनो मेहनत निरर्थक नई होवय । आप सबला अच्छा रचना लिखेबर बधाई ।
ये प्रतियोगिता के शिर्षक रहिस बेटी ला शिक्षा अउ संस्कार दौ‘ न कि ‘बेटी ला शिक्षा दौ‘ ये अंतर ला बहुत संगी मन ध्यान नई देइन अउ अपन रचना ला केवल शिक्षा तक रखिन । कुछ रचनाकार मन ये शिर्षक ल नारी शक्ति ले जोड़ के देखीन । शिक्षा संग संस्कार जरूरी हे ये संदेश ये विषय म देना हे । ये प्रतियोगिता के रचना के मूल्यांकन शीर्षक के सार्थकता म देखे गे हे ।
परिणाम घोषित करे के पहिली एक बात के निवेदन आप सब से करना चाहत हंव हमर देश म ‘पंच परमेश्वर‘ कहे गे हे । कोनो निर्णय करना आसान नई होवय । सबके अपन सोच अपन कसौटी होथे, निर्णायक ऊपर अविश्वास नई करना चाही ।
ये आयोजन से पहिली, दूसर अउ तीसर विजेता के संगे संग प्रशंसनीय रचना घोषित करे के शुरूवात करे जात हे -
आदरणीया निर्णायक के अनुसार -
प्रशंसनीय रचना- श्री हेमलाल साहू,, गिधवा नवागढ़ जिला-बेमेतरा
श्री महेन्द्र देवांगन ‘माटी‘, पंडरिया जिला -- कबीरधाम
श्रीमती लता चंदा, बालको नगर, कोरबा
तीसर विजेता-श्री डी.पी. लहरे, कवर्धा
दूसर विजेता-श्री रामेश्वर शांडिल्य, हरदी बाजार कोरबा
पहिली विजेता-श्री टीकाराम देशमुख ‘करिया‘ कुम्हारी,, दुर्ग
सबो विजेता संगीमन ला छत्तीसगढ़ी मंच अउ छत्तीसगढ़ के पागा कलगी के संचालक समीति डहर ले बहुत-बहुत बधाई ।

गुरुवार, 16 जून 2016

पागा कलगी-12/1/देवेन्द्र कुमार ध्रुव(डीआर)

ऐ मनखे मन पेड़ ला करत हे गोंदा गोंदा
नई देखींन ऐमा रिहिस चिरई के घरौंदा
देखव कईसे दूसर के घर ला उजाड़ के
आदमी मन अपन बर घर बनावत हे
रुख राई कतको परानी के ठउर ठिकाना ऐ
इहिच में कतको ला अपन जिनगी पहाना हे
दुःख के झकोरा म उड़ा जथे ओ खोन्धरा
तिनका चुन चुनके जेकर बर लावत हे
नई सोचिस मिलय ओ पेड़ ले छांव
राहय चिरई मन करे सुघ्घर चीव चाँव
छीनके अइसने दूसरा के रैन बसेरा
आदमी अपन गाँव शहर सजावत हे
आदमी अपने मा रमें काही नई समझय
दूसरा के दुःख पीरा ल कभु नई समझय
भुईया मा चिरई के खोन्धरा छरियाये परे हे
नई देखय कुछु आरी टंगिया भर चलावत हे
नई रही जंगल ता कहाँ रही जंगल के परानी
अऊ रुख राई बिगन नई तो गिरय गा पानी
भूख पियास मा मुश्किल हे जिनगी बचाना
सबला अपन डेरा उजड़े के डर सतावत हे
अरे कोन ऐ चिरई मनके गोहार सुनही
कोन इकर मनके चीख पुकार सुनही
कोन अब इकर मनके बारे मा गुनही
मरगे का जीयत हे नई देखे बर आवत हे
सिरतोन ऐ जिनगी सबबर अनमोल हे
नइहे अबिरथा अपन जगा सबके मोल हे
दूसरा ला मरईया मनखे घलो नई बाचय
आदमी काल ल खुदे अपन बर बलावत हे
अरे खुद बने जीना हे जिनगी बचावव जी
अपन बेरा ल फ़ोकट झन गंवावव जी
आसरा देवव सबो जीव ल पेड़ लगावव जी
देखव इही काम मा हित नजर आवत हे
चिरई चिरगून ला घलो जीयन दो
बेफिकर आसमान मा उड़न दो
दाना पानी राखव इकर बर अंगना म
देखव ताहन कईसे सुघ्घर चहचहावत हे
रचना
देवेन्द्र कुमार ध्रुव(डीआर)
फुटहा करम बेलर
जिला गरियाबंद (छ ग)
9753524905

‘‘छत्तीसगढ़ के पागा कलगी-12‘ के विषय

छत्तीसगढ़ी कविता के प्रतियोगिता ‘‘छत्तीसगढ़ के पागा कलगी-12‘ के विषय रूपरेखा ये प्रकार होही-
समय- दिनांक 16/6/16 से 30/6/16 तक
मंच संचालक- श्रीललित टिकरिहा (छत्तीसगढ़ पागा कलगगी 5 के विजेता)
निर्णायक-
1.सुश्री सुधा वर्मा (देशबंधु मंड़ई के संपादक) वरिष्ठ साहित्यकार, रायपुर
2. श्री रामेश्वर शर्मा, वरिष्ठ गीतकार, रायपुर
विषय - दे गे चित्र ले विषय लेना हे ।
विधा- विधा कोनो बंधन नई हे, फेर रचना संक्षिप्त अउ गंभीर होय अइसे निवेदन हे ।
परिणाम घोषण 3/7/16
...........................................................
संक्षिप्त नियम-
1. प्रतिभागी अपन रचना सीधा ‘छत्तीसगढ़ी मंच‘ म पोष्ट कर सकत हे । जेन संगी छत्तीसगढ़ी मंच के सदस्य नई हे ओ मन एडमिन मन के माध्यम से रचना दे सकत हे । फेर जेन ये मंच के सदस्य हे अपन रचना खुद अपन वाल म पोष्ट करंय ।
2. प्रतियोगिता के रचना कोनो आन फेसबुक समूह या वाटसाप मा प्रतियोगिता अवधी तक पोष्ट नई करना हे, येदरी से जेन रचना ये नियम के विरूद्ध पाये जाही तेला प्रतियोगिता से बाहिर कर दे जाही ।
3. आप अपन रचना अभी से लेके 30/6/16 के रात्रि 12 बजे तक पोष्ट कर सकत हंव । ओखर बाद के रचना मान्य नई होही ।
बाकी नियम पहिली असन

पागा कलगी-11//सुनिल शर्मा"नील"

""""बेटी ल पढ़ाव जी""""
~विधा-घनाक्षरी~
*********************************
जिनगी के अधार बेटी,घर के बहार बेटी
आवय गंगा धार बेटी,बेटी ल बचाव जी
बेटी चिरईया आय,आँसू पोछैया आय
बेटा-बेटी बरोबर ,भेद ल मिटाव जी|
बेटी छुही अगास,लाही नवा उजास
बेटी ल ओखर अधिकार देवाव जी
समाज म पाही मान ,लाही जी नवा बिहान
देके सुग्घर संस्कार ,बेटी ल पढ़ाव जी
हिरदे म सपना के ,गठरी बंधाय हे
कहत हे का नोनी के,हिरदे सुनव जी
पिंजरा के मिट्ठू ह ,उड़ना चाहे अगास
सुवना के थोरकुन, सपना ल गुनव जी
उचहा उड़ावन दे,गीत ल गावन दे
रद्दा के ओखर काटा,खुटी ल बिनव जी
आधा अबादी बिन हे,अभिरथा बिकास
बेटी के बिकास बर ,रद्दा ल गढ़व जी
नव दिन पूजे जाथे,"बेटी" देबी कहाथे
तभो ले काबर ओहा,दुख बोलोपाथे जी
कहु होथे बलत्कार,कहु पाथे दुत्कार
काबर ओहा भोग के,चीज माने जाथे जी
बेटी-बहनी-सुवारी,अउ बन महतारी
जीवन ल अपन सेवा म बिताथे जी
बदला म कभू कुछू,बपरी मांगे नही
तभो ले काबर बेटी,"गरुच"कहाथे जी|
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सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया,बेमेतरा(छ.ग.)
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बुधवार, 15 जून 2016

पागा कलगी-11//अनिल कुमार पाली

छ ग के पागा कलगी 11
""बेटी ल शिक्षा संस्कार दौ
बेटी ला अब्बड़ मया अउ दुलार दौ।
जिनगी ला जीये के थोड़कीं अधिकार दौ।
बेटी ला शिक्षा अउ संस्कार दौ।
थोड़कीं तो ओखर बर अपन व्यव्हार दौ।
बेटी ला जिनगी के अपन आधार दौ।
समाज ले लड़े के ता अधिकार दौ।
बेटी ला अब्बड़ मया अउ दुलार दौ।
पैर मा खड़े होय के ओला पहिचान दौ।
बेटी ला बेटी होये के ता अधिकार दौ।
अपन मया ले ओला शिक्षा अउ संस्कार दौ।
बेटी ला बने-बने ता विचार दौ।
खुशाली ला ओखर जिनगी म डाल दौ।
बेटी ला अब्बड़ मया अउ दुलार दौ।
जिनगी ला जीये के थोड़कीं अधिकार दौ।
बेटी ला तो शिक्षा अउ संस्कार दौ।।।
रचना-
अनिल कुमार पाली
तारबाहर बिलासपुर(छ.ग)
मो-7722906664
ईमेल-anilpali635@gmail. com

पागा कलगी-11//दुर्गा ईजारदार

बेद-पुरान के बात अाय,एला तुमन मान लौ।
बेटी के जींहा होथे मान, देवता रहिथे जान लौ।
कहाँ जाबे मथुरा काँशी,तीरथ इही ल मान लौ।
जिनगी के हर पुन मिलही,बेटी ल शिक्षा अ�उ संस्कार दौ।।
बेटी लक्ष्मी,दुर्गा,सरस्वती हे,ए बात सब जान
लौ।
सच मे सेवा होही देवी के,तुमन अोखर अधिकार दौ।
नव सिरजन होही जग के,दामन बेटी के थाम लौ।
तीनों पुर के बात बनही,बेटी ल शिक्षा अउ संस्कार दौ।।
सीता ,सावित्री, अहिल्या,राधा,रूखमणी के
अोला संस्कार दौ।
रानी दुर्गावती, लक्ष्मी बाई के ,ओला तुमन हथियार दौ ।
किरण,कल्पना, लता,ऊषा,जइसे ओला ज्ञान दौ।


-दुर्गा ईजारदार

पागा कलगी-11//कुलदीप कुमार यादव

बेटी ला शिक्षा अउ संस्कार दौ ।।
सबिधान के ओला अधिकार दौ,
बेटी ला शिक्षा अउ संस्कार दौ ।।
कोनजनि समाज के कइसन लाचारी हे,
बेटा सुख पाये के सबो ला बिमारी हे ।।
बेटी हा तो दुनिया ला आघू बढ़ावत हे,
एकरे रहे ले तोर घर दुवारी जागत हे ।।
यहू ला बेटा कस दुलार दौ,
बेटी ला शिक्षा अउ संस्कार दौ ।।01।।
बेटी ला घलो पढ़े बर स्कुल मा भेजव,
समाज बिकास के रद्दा नावा गढव ।।
यहू तोर घर मा सुख-शांति लाही,
पढ़ लिख बड़े अफसर बन देखाही ।।
पढ़ा लिखा के जिनगी एकर संवार दौ,
बेटी ला शिक्षा अउ संस्कार दौ ।।02।।
ससरार मा रहे वो सुग्घर गावत झूमत,
सास ससुर संग बने रहे ओकर सुमत ।।
दुख झन हो कोनो ला ओकर धियान रखय,
अपन ले बड़का के ओहर मान करय ।।
बांधे रहे परिवार ला मया के अछरा मा,
ओला अइसन ब्यवहार दौ,
बेटी ला शिक्षा अउ संस्कार दौ ।।
रचना
कुलदीप कुमार यादव
ग्राम-खिसोरा,धमतरी
9685868975

पागा कलगी-11//मिलन मलरिहा

नोनी बाबू एक हे, झिन कर संगी भेद !
रुढ़ीवादी बिचार ला, लउहा तैहा खेद !!
लउहा तैहा खेद, समाज म सुधार आही!
पढ़ही बेटी एक, दूइ घर सिक्छा लाही !!
मान मिलनके गोठ, भ्रुणहत्या कर काबू !
भेज दुनो ल एकसंग, इसकुल नोनी बाबू!!
-
पुस्तक डरेस लानदे, बिसादे अउ सिलेट !
बरतन चउका झिनकरा, पढ़ाई ल झिन मेट !!
पढ़ाई ल झिन मेट, सिक्छा के अधिकार दे!
बेटी बने पढ़ाव, अउ चरित सन्सकार दे !!
आही सिक्छा काम, दुख-दरद देही दस्तक !
मनुस छोड़थे संग, फेर नइछोड़य पुस्तक !!
-
बेटी पढ़के बाँटही, गांव गांव म गियान !
परकेधन झिन मान रे, इही देस के जान !!
इही देस के जान, पढ़लिख नवाजुग लाही !
रुकही अतियाचार, कुकरमी दूर हटाही !!
मलरिहा कहत रोज, पुस्तक धरादे बेटी !
अबतो जाग समाज, सिक्छित बनादे बेटी !!
-
मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर

पागा कलगी-11//रामेश्वर शांडिल्य

बेटी बचाओ बेटी पढाओ.
योजना ल सफल बनाना होगी 
बेटी बेटा एक समान. 
लोगन ल बताना होगी ऩ
==================सीता राधा दुपर्ती कतका.
पढ़े लिखे रहीन ऩ
घर के शिक्षा संस्कार पाके.
आगू बढे रहीन ऩ
==================
बेटी हर घर ले ही.
संस्कार ले के जनम लेथे ऩ
कखरो ले कछु मांगे नही.
गियान के शिक्षा सब देथे ऩ
============= =====
दाई ददा मन बेटी बेटा ल.
अपन समझाव जी ऩ
पहली पाठशाला घर होथे.
घर के संस्कार बतावव जी ऩ
==================
बेटा बेटी नाती नतनीन सब ल.
पढे बर रोज भेजव इसकूल ऩ
पुस्तक पैसा ड्रेस मिलथे.
पढे लिखे म नई हे मशकुल ऩ
===============!===
बेटी पढ लिख के समझदार हो जाही.
मइके ससुरार के मन ओकर
गुन गाही ऩ
======== = ========
बेटी शिक्षा ले ग्यान के दीया. घर घर बरही ऩ
बेटी के अनपढ रहे ले.
घर दुवार मरघट लगी ऩ
==================
अब हम करजा ले के.
नोनी लइका ल पढाबोन जी ऩ
ओला शिक्षा संस्कार दे के.
सबले आगू बढाबोन जी
==================
रामेश्वर शांडिल्य
हरदीबाजार कोरबा

पागा कलगी-11//राजकिशोर पाण्डेय

पुरखा मन के जमो गलती सुधार लौ,
बेटी मन ला सिकछा अउ संस्कार दौ ।
इज्जत मरजाद के ओडहर म
अब मत फाँदव,
जुग ले धँधात आइन घर म
अब मत धाँधव ।
सुग्घर सपना ल इंकरो दुलार दौ ।
बेटी मन ला सिक्छा अउ संस्कार दौ ॥
फरक ल बिसारौ अब बेटा
अउ बेटी के,
जनम ल अकरथा झन जाए
दव बेटी के ।
रहैं अबला झन एतका अधिकार दौ ।
बेटी मन ला सिक्छा अउ संस्कार दौ ॥
जेतका सख होवय ओतका
उड़ाय दौ इनला,
जुग ले खुखुवावत हावय
जुड़ाय दौ इनला ।
हीन भावना ले सफ़्फ़ा उबार दौ ।
बेटी मन ला सिक्छा अउ संस्कार दौ ॥
मुंडी के बोझा नौहै अइसन
बिसवास भरव,
दाईज देके इंकर कभु झन
बिहाव करव ।
इंकर हिस्सा म मया के पहार दौ ।
बेटी मन ला सिक्छा अउ संस्कार दौ ॥
जेतका कन पढ़हत हें ओतके
कड़हन देवव,
सूरूज अउ चंदा के जात ले
चढ़हन देवव ।
जुन्ना रूढ़ही ले इनला उबार दौ ।
बेटी मन ला सिक्छा अउ संस्कार दौ ॥
🌷🌹राजकिशोर पाण्डेय 🌹🌷
नगर पंचायत मल्हार
जिला बिलासपुर छत्तीसगढ़
मों नम्बर 9981713645
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