रविवार, 3 जनवरी 2016

छत्तीसगढ के पागा क्र -6/ काव्यांश आधारित




ये दोहा के आधार मा कविता लिखना रहिस-

मुखिया मुख सो चाहिये, खान पान को एक ।
पालय पोषय सकल अंग, तुलसी सहित विवेक ।।
-गोस्वामी तुलसीदास
विधा- तुकांत कविता
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 प्राप्त रचना अइसन हे -

 1-श्री सूर्यकांत गुप्ता


छत्तीसगढ़ के पागा क्रमांक - 6 बर चार आखर....

मुखिया जानौ आज के, अपने मुख के दास।
खा खा जानै स्वाद के, मरम बियंजन खास।।
मुखिया काया मान लौ, परजा ओकर अंग।
मुख समान पोसै नही, करत रथे अतलंग।।
मर मर हाड़ा टोर के, जउन उपजावै अन्न।
खुद ल करजा म बोर के, कइसे रहय प्रसन्न।।
चिंता हाल अकाल के, वाजिब आय मितान।
जिनगी ले जी हार के, मरते जात किसान।।
काबर मुखिया मौन हे, देख दुरदसा आज।
बखत म काकर कौन हे, जानै देस समाज।।
पीरा परजा के हरै, बन मुखिया भगवान।
बनै सरग दुनिया जहां, बाढ़ै सबके सान।।
जय जोहार....
सूर्यकांत गुप्ता
1009, "लता प्रकाश"
वार्ड नं 21 सिंधिया नगर
दुर्ग (छ. ग.)
9977356340



2-सुनीता शर्मा "नीतू "



विषय - तुलसीदास जी का दोहा " मुखिया " पर आधारित ।

मुखिया के गोड़ म , परे हे छाला ।
लइका मन बर , जुगाड़य निवाला ।
लतियावत हे ,दूर दूर कहिके लइका
कइसे रिसावय , जनम देने वाला ।।
अपन लांघन रहिके ददा ह ,
लईका के जिनगी संवारथे ।
छाती पथरा हो जथे संगी जब
बाढ़ के उही लईका ह दूतकारथे ।।
काल तक रिहिस मुखिया फेर
आज देहरी के बन गे हे कुकुर ।
एक मुठा खाय बर दुनो जुआर
निहारत हे डोकरा, टुकुर टुकुर ।।
दिन बदलिस, बदल गे मुखिया ।
तइहा के मुखिया बर, टूटहा खटिया ।
खोख खोख खोखी खखारत हे
जागत रहिथे बपरा अधरतिहा ।।
सुनीता शर्मा "नीतू "
डंगनिया रायपुर
छत्तीसगढ़

3-श्री महेन्द्र देवांगन "माटी"

 मुखिया
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मुखिया जइसे होथे घर के
वइसने घर ह चलथे
मुखिया ह कोई बने नइहे त
घर भर ल रोना परथे ।
सब ल देखथे एक समान
भेदभाव नइ करय
घर के ईज्जत बचाय खातिर
कतको दुख ल सहय।
चलथे घर ह सुनता से
जब मुखिया बने राहय
नइ होवे कभू लड़ई झगरा
जब परेम के भाखा काहय ।
आथे घर में लछमी ह
मिलजुल के जब रहिबे
होत बिनास देर नई लागे
लड़ई झगरा जब करबे ।
मुखिया के ये काम हरे
सब ल देखत रहिथे
जेकर जइसे मांग रथे
देख के पूरा करथे ।
महेन्द्र देवांगन "माटी"

4- रोशन पैकरा "मयारू"

जतन करौ मुखिया के
ये जतन करौ जी
जतन करौ सियन्हा के
ये जतन करौ जी
घर के जम्मो मनखे बर
करथे मुखिया काम
छोटे बड़े ला वो नई जानय
सबो झन एक समान
मुखिया हा भूखा रहिके
घर के पेट ला भरथे
मुखिया के बलिदान से
घर के मनखे सवरथे
जब घर में परेशानी आथे
होथे सब परेशान
तब मुखिया के अनुभव से
बन जाथे सब काम
जे घर में मुखिया रइथे
वो घर स्वर्ग समान
जे घर में मुखिया नई हे
उहाँके मनखे हलाकान
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रचनाकार
रोशन पैकरा "मयारू"



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