सोमवार, 12 जून 2017

पागा कलगी -35//2//राम कुमार साहू

आसों मोरो अंगना म, बरस जा रे बादर!
सुक्खा परगे तरिया नदिया,
जर के माटी होगे राखर!!
*टोंटा सुखागे पानी बिना,
चिरई चुरगुन ह रोवत हे!
रूखराई म लू अमागे
असाढ़ म भोंभरा होवत हे!!
गाय गरूआ छेरी मरत हे,कुकरी पंड़की घाघर
आसो मोरो.......
* बूंद बूंद बर सब तरसगे,
पीरा होगे किसान ल!
दुनिया के पेट भरइया ,
अब कब बोहूं मैं धान ल !!
लइका मन के पेट बर बेंचेंव बइला नांगर...
आसों मोरो.........
* ददा के दवा अऊ बेटी के बिहाव,
सेठ के करजा ल कइस करिहौ !
दुकानदार के गारी सुनके,
खातू के.लागा ल कइसे भरिहौं !!
"आत्महत्या"ेके सिवा, अब नइये मोर जांगर
आंसो मोरो .........
..... राम कुमार साहू
सिल्हाटी,स.लोहारा

पागा कलगी -35 //1//नवीन कुमार तिवारी

विषय-‘‘आसो मोरो अँगना म बरस जा रे बादर‘‘
आसो मोरो अंगना में बरस जा रे बादर 
,पावस के करिया बदरी आजा बे मोरो अंगना दुवारी ,
देश बिदेश घुमत हावस,
परदेश मा लुकावत हावस
उमड़ घुमड़ के चमकावत हावस
फेर दू बूंद के पावस तरसावत हावस
खेत खलिहान सुखा गे
झिरिया पोखर अटा गे
किसान के झोखा मढ़ा दे
मोअरो अंगना में बरस जा रे बादर
नवीन कुमार तिवारी

पागा कलगी -34 //4//धनसाय यादव

** विषय- कर ले खेती किसानी के तियारी **
भूईया के भगवान तै किसान 
कर ले बाउग के तियारी,
मेहनत तोर जग के बियारी,
भूईया के भगवान तै किसान ।
चतवार तै खेती,
बीन ले काटाखूंटी,
खान के खनती,
पाट भरका अउ मुंही ।
घुरवा के गोबर खातू,
पाल सब ले आघू,
बीजहा ल फून पछिन,
कोदईला,बदौरी ल बीन ।
नांगर नवा सिरजा,
नवां परचाली लगा,
नाहना जोता बना,
तुतारी कोर्रा बना ।
बीजबोनी बीसा,
कमरा, खुमरी बना,
लोचनी कनिहा ओरमा,
रापा कुदारी ल पजा ।
बस बरसा के अगोरा,
तियार बाउग के घोड़ा,
चाबुक तुतारी कोर्रा,
हरियाही धरती के कोरा ।
होही जब फसल भरपूर,
दुःख दरिदर होती दूर,
बजही चैन के बंसरी,
सुफल होही खेती किसानी के तियारी ।
भूईया के भगवान तै किसान
भूईया के भगवान तै किसान
*** धनसाय यादव, पनगांव-बलौदा बाजार ***

पागा कलगी -34//3//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

गीतिका छंद(जोरा खेती किसानी के)
उठ बिहनिया काम करके,सोझियाबों खेत ला।
कोड़ खंती मेड़ रचबों, पालबों तब पेट ला।
धान होही खेत भीतर,मेड़ मा राहेर जी।
सोन उपजाबोन मिलके,रोज जाँगर पेर जी।
हे किसानी के समय अब,काम ला झट टारबों।
बड़ झरे काँटा झिटी हे,गाँज बिन बिन बारबों।
काँद दूबी हे उगे चल,खेत ला चतवारबों।
जोर के गाड़ा म खातू,खार मा डोहारबों।
काम ला करबोंन डँटके,साँझ अउ मुँधियार ले।
संग मा रहिबोन हरदम,हे मितानी खार ले।
रोज बासी पेज धरके,काम करबों खेत मा।
हे बचे बूता अबड़ गा, काम बइठे चेत मा।
रूख बँभरी के तरी मा,घर असन डेरा हवे।
ए मुड़ा ले ओ मुड़ा बस,मोर बड़ फेरा हवे।
हाथ धर रापा कुदारी,मेड़ के मुँह बाँधबों।
आय पानी रझरझा रझ,फेर नांगर फाँदबों।
जेठ हा बुलकत हवे अब,आत हे आसाड़ हा।
हे चले गर्रा गरेरा ,डोलथे बड़ डार हा।
अब उले दर्रा सबो हा,भर जही जी खेत के।
झट सुनाही ओह तोतो,हे अगोरा नेत के।
धान बोये बर नवा मैं,हँव बिसाये टोकरी।
खेत बर बड़ संग धरथे, मोर नान्हें छोकरी।
कोड़हूँ टोकॉन कहिथे,भात खाहूँ मेड़ मा।
तान चिरई के सुहाथे ,गात रहिथे पेड़ मा।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)

पागा कलगी -34 //2//ज्ञानु'दास' मानिकपुरी

विषय-खेती किसानी के करले तइयारी
विधा-दोहा-चौपाई मा लिखे के प्रयास
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
चिंता मा परगे ददा,आवत देख अषाढ़।
भिड़े हवे दिनरात जी,बूता के हे बाढ़।।
फेंकत हावै खातू कचरा।
पाटतँ हावय डिपरा डबरा।।
काँटा खूँटी बीनत हावै।
छानी परवाँ ला जी छावै।।
नाँगर बख्खर साजत हावै।
जुड़ा नवाँ अउ डाँड़ी लावै।।
लेवत हावै नहना जोता।
सौचै आसो करहूँ बोता।।
बइला हवै एक मरखण्डा।
देखत चमके लउड़ी डण्डा।।
मुश्किल मा होथे जी काबू।
लान पकड़ के बाँधे बाबू।।
करिया धवरा जोड़ी साजे।
दिनभर उंखर बूता बाजे।।
पैरा भूसा काँदी खावै।
पानी पी पी खूब कमावै।।
नाँगर बोहे खाँध मा,धरे तुतारी हाथ।
बाखा चरिहा हा दबे,बइला जावै साथ।।
धान बीजहा आनी बानी।
सिटिर सिटिर जी गिरथे पानी।।
सुग्घर चलत हवै पुरवाई।
करे बाँट बूता मिल भाई।।
कोनो नाँगर हावै फाँदे।
कोनो मेढ़पार ला चाँदे।।
कोनो सींचत हावै खातू।
धान बोय जी कका बरातू।।
बड़े ददा के गोठ सियानी।
नइये काही के अभिमानी।।
एके लउड़ी हाँके सबला।
हाट बजार घुमावँय हमला।।
दाई बासी धरके जावै।
बइठ मेढ़ सब मिलके खावै।।
काकी घरके बूता करथे।
कोदो ल बड़े दाई छरथे।।
सुनता अड़बड़ हे इखर,धरे हाथ मा हाथ।
दुख पीरा रहिथे सहत,मिलके हावै साथ।।
🙏🙏🙏
ज्ञानु'दास' मानिकपुरी
चंदेनी कवर्धा

पागा कलगी -34//1//बालक "निर्मोही

*घनक्छरी छ्न्द*
🌴🌴🌷🌷🌷🌴🌴
जाग न रे बेटा जाग भाग न रे बेरा संग,
करे बर तोर बेटा अबड़ बियारी हे।
नांगर बाखर ल तो सुघर जतन कर,
मन म सरेख ले न कति ब तूतारी हे।
खातू माटी बिजहा के कर ले जुगाड़ बेटा,
खेती अउ किसानी के करना तियारी हे।
पाछु झन रबे तैहा, बादर निहोरै नहीं,
आघू बरकत बेटा पाछु सँगवारी हे।
🌴 *बालक "निर्मोही"*🌴
🌷🌷बिलासपुर🌷🌷

बुधवार, 17 मई 2017

पागा कलगी -33//9//ज्ञानु'दास' मानिकपुरी

कुंडली छंद-देश बर जीबो मरबो
मरना जीना देश बर,करो देश हित काम।
छोड़व स्वारथ के करम,हौवे जग मा नाम।।
हौवे जग मा नाम,देश के सेवा करबो।
बैर कपट ला छोड़,दुःख पीरा ला हरबो।।
जात पाँत ला छोड़,संगमा सबके रहना।
छोड़ राग अउ द्वेष,देश बर जीना मरना।।
ज्ञानु'दास' मानिकपुरी
चंदेनी कवर्धा

पागा कलगी -33 //8//पारितोष धीरेन्द्र

देश के खातिर जीबो
सत सतकरम सुमति के संगी
रद्दा नावा गढ़वइबो !
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो !!
चिचियावत रहे ले बन्दे मातरम
का जन गण मन म उमंग होही !
भाई भाई के बइरी बने हे
कइसे उच्छल जलधि तरंग होही!!
माँ भारती के अँचरा म
रंग पिरीत के भरवइबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो
कुलुप अंधियारी अत्याचार के
घनघोर घटा घोपाये हे
बैरी बिजुरिया अनाचार के
लहक दहक डरवाये हे
चिर हरइया दुश्शासन के
जंघा फेर टोरवईबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो
गरीबी के गोड़हत्थी चुरोके
जात पात के दशकरम कराना हे
छुवाछुत के मइल ल धोके
प्रेम जल म समाज फरियाना हे
गरभ गुमान ल पिण्डा दे के
नावा बिहान करवईबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो
ठूड़गा रूखवा बमरी म
सहिष्णुता के खोंधरा सजाना हे
सोन चिरइया माँ भारती ब
रामराज के मकुट सिरजाना हे
सोनहा धान के सोनहा बाली कस
घर घर म मया बगरईबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो
धधकत हे अगियन छतीयन म
तन मन म भूरी गुंगवावत हे
कोरा के लइका बन नक्सली
उधमा धुर उधम मचावत हे
बन्दुक संदूक छीन छान के
हल अउ कलम धरईबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो
गोख्खी बैरी परोसी अपन
समरथ थोरको नई जानत हे
बाप होथे बाप रे गधहा
ये बात थोरको नई मानत हे
चेमचाली करत करत म बेटा
लाहौर म तिरंगा फहरईबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो 

-पारितोष धीरेन्द्र

पागा कलगी -33//7//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

देस के खातिर जीबों
--------------------------
भाई चारा बाँटबों।
सुनता के डोरी आँटबों।
खोधरा खाई पाटबों।
इरसा द्वेस ला काटबों।
दुख पीरा ला छीबों।
देस के खातिर जीबों।
आँखी बइरी के फोड़बों।
हाड़ा गोड़ा ला टोरबों।
बइरी के गुमान लेस के।
कहलाबों रखवार देस के।
देस बर बिस घलो पीबों।
देस के खातिर जीबों।
जात पात ला छोड़ के।
मया ममता ला ओढ़ के।
देस के मान खातिर।
मोह नइहे जान खातिर।
जय जय भारत कीबों।
देस के खातिर जीबों।
हिमालय मा चढ़के।
माथ मा धूर्रा मढ़के।
सागर समुंद तँउर के।
रखबों लाज मँउर के।
भारत वासी एक रीबों।
देस के खातिर जीबों ।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको( कोरबा)
9981441795

पागा कलगी -33//6//लक्ष्मी नारायण लहरे

देश के खातिर जीबो .....
---
अब जगव ग मोर देश के जवान
देश के खातिर जोबो संगी देश खातिर मरबो
हमर भूईंया के कण कण म बसे हावे प्रान
वन्दे मातरम
जय जवान जय किसान
जय हिन्द के नारा ल लगाबो
छोटे बड़े सबो ल गले लगाबो
जुर मिलके संगी खलिहान म अन्न उपजाबो
मनखे संग भेद भाव हमन झन रखी
सबो धरम के आदरो करी
उंच नीच ल छोड़ी
जुर मिलके साथ चली
सुमंगल होही हामरो
माता पिता के आदर करी
नारी के सम्मान
नोनी बाबू ल पढाके बना दी दयावान
लन लबारी मन म झिन राखो
सुन ल संगवारी ...
ये दुनिया म चार दिन के हे जिंदगानी
सुख दुःख म हंसो रे संगी देश म हे हमर भागीदारी
चलव सुनता के दिया ल जलाबो
पढ़ लिखे हमन संगी देश का नाम जगाबो
एक दुसर के सुख दुःख म अपन हाथ बटाबो ..
अब जगव ग मोर देश के जवान
देश के खातिर जोबो संगी देश खातिर मरबो ...
० लक्ष्मी नारायण लहरे ,साहिल , कोसीर सारंगढ़

पागा कलगी -33//5//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"

देश के खातिर जीबो
विधा:-रोला छंद
भारत माता तोर,चरन के अमरित पीबो।
तन मन धन बल संग,देश के खातिर जीबो।
परन करत हन आज,तोर माटी ला छूके।
लाबो ओ सत् राज,बिना सुसताये रूके।
होही नवा बिहान,राज सुनता के आही।
जिनगी जाँगर चेत,सोझ रद्दा मा जाही।
भरही सबके पेट,सबो झन बने अघाहीं।
करके ओ परियास,सरग धरती मा लाहीं।
लालच भष्टाचार,मूड़ ला तोप लुकाहीं।
अपरिद्धा घूसखोर,आँख ला मूँद लजाहीं।
सत् भाखा सत् काज,सत्य मारग अपनाहीं।
जुग जिनगी के संग,मनुष मन बड़ हरषाहीं।
तोरे अन संतान,भटक गे हन ओ दाई।
होय समझ के फेर ,तभे माते करलाई।
दे दे ओ आशीष,चरन के पँइया लागौं।
अपरिद्धा पन छोड़,तोर सेवा बर जागौं।
रचना:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"
गोरखपुर,कवर्धा
9575582777
15/05/2017

पागा कलगी -33//4//विक्रम सिंह राठौर

देश के खातिर जीबो ।
भारत देश म जनम धरेन देश के सेवा करबो ।
देश के खातिर जीबो अऊ हमन देश के खातिर मरबो ।।
ये माटी मा खेलेन कुदेन ये माटी म सनायेहन ।
जियत भर देश के सेवा करबो ये कसम हमन खायेनहन ।।
हिन्दु मुस्लिम मन झगडा होथे वोला हमन समझाबो ।
हिन्दु मुस्लिम म भेद नई करन संग म कदम बढाहाबो ।।
बड भागी हे हमर चोला छत्तीसगढ़ म जनम मिलिस ।
भारत मां के सेवा करबो जेखर हमला कोरा मिलिस ।।
काम अईसे हमन करबो , देश के नाव बढाहाबो ।
देश के खातिर जीबो अऊ हमन देश के खातिर मरबो ।।
कंधा से कंधा मिलाबो कदम से कदम मिलाबो ।
हमन चलबो एक साथ दुश्मन ल जलाबो ।।
हमर भाई मन ल मारिस हे ओखर बदला ला लेबो ।
शहीद के बलिदान खाली नई जाये ईटा के जवाब पथरा मा देबो ।।

विक्रम सिंह राठौर

पागा कलगी -33 //3//धनसाय यादव

^^देश के खातिर , जीबो ^^
देश के खातिर जीबो , मरबो देश के खातिर।
देश के खातिर तन-मन-धन. जम्मो हे हाजिर ।।
छरियाय अंगरी ल कोनो भी पकड़ टोर मडोरही ।
बंधाय मुठ्ठी म एका होही त दुसमन के पसीना छुटही ।।
सब ले पहिली अपन घर के छरियाय एका ल जोडबो ।
फेर बैरी के छाती चढ़ ओकर घेच मरोड़बो ।।
हम जम्मो जभ्भे हन, जब तक देश हे ।
देश के आघू म, छोटे सबो क्लेस हे ।।
छोटे-बड़े, जात-पात, मजहब-धरम ल छोड़ के ।
चलबो सब संघरा खोरवा लंगड़ा ल अगोर के ।।
न कोई तेलगू , न केरला , न कोई मद्रासी ।
कश्मीर ले कन्याकुमारी हर एक भारतवासी ।।
मास्टर, मजदूर या वकील या होय बेपारी ।
गृहिणी, किसान, जवान सब देश के हे सिपाही ।।
छोटे बड़े सब जुर मिल करबो देस विकास ।
छल-छिद्दर, चोरी, भ्रस्टाचार के करना हे विनास ।।
कायर बैरी घात लगाये ले के दुस्मन के आड़ ।
भारत के हर सैनिक होथे हिमालय कस पहाड़ ।।
प्राण जाई पर बचन न जाई ।
कटे सर न कभू सर झुकाई ।।
पुरखा ले सीखे हन, अउ सबो ल सीखाबो ।
देश के खातिर मरबो अउ देश के खातिर जीबो ।।
*** धनसाय यादव , पनगाव, बलोदाबाजार ***

पागा कलगी -33//1//बालक "निर्मोही

*देस के खातिर जीबो*
🌴🌴🌴🌴🌴🌴
देस के खातिर जीबो संगी,
देस के खातिर मरबो ग।
अब्बड़ होगे मुंह के लाहो,
अब तो चलव कुछु करबो ग।
देस के खातिर.......
घर भितरी अउ बाहिर म,
दिन दिन बईरी बाढ़त हे।
गाजर घांस अउ मोखरा काँटा,
बनके इंहचे जामत हे।
जाही भले परान जी हमरो,
बईरी संग सब लड़बो ग।
देस के खातिर.......
जात-पात के राग ल छोड़व,
एक्केच सुर म गावा जी।
सोन चिरइंय्या सोनहा बिहान,
कहाँ गँवागे? लावा जी।
भारत के नकसा म जुर के,
रंग सुनता के भरबो ग।
देस के खातिर.......
नेता अपन सुवारथ खातिर,
देस ल रखथे बांट के।
तभ्भेच तो आतंकी ले गय,
सहीद के मुड़ी ल काट के।
भभकत आगी हे अंतस म,
भीतरे भीतर काहे जरबो ग।
देस के खातिर.......
जेखर कोरा म उपजेन बाढेन,
महतारी ह रोवत हे।
सुनही कोन बिलखना एखर,
नेता मन सब सोवत हे।
दिहिन हे बईरी दाई ल पीरा,
सरवन बन के हरबो ग।
देस के खातिर.......
🌴 *बालक "निर्मोही"* 🌴
🌷🌷बिलासपुर🌷🌷

पागा कलगी -33//1//रेखा निर्मलकर

देश के खातिर जीबो,,
बंद करबो अब शिक्षा के व्यपार ल,
लइका के जिनगी ल गढ़बो, अब देश के खातिर जीबो,
भ्रष्टाचार अउ रिश्वत ल जड़ ले उखाड फेकबो,
राम राज हमर देश म फेर लाबो, अब देश के खातिर जीबो,,
नशा म डुबे लइका नौजवान सियान ल,
सही रद्दा देखाबो, अब देश के खातिर जीबो,
दाई बहिनी ऊपर होत अत्याचार ल,
दहेज के आगी अऊ बलात्कार के दानव ल मिटाबो, अब देश के खातिर जीबो,
नवा पीढ़ी ल हमर संस्कृति हमर संस्कार के पाठ ल पढ़ाबो,
हमर देश के माटी के महिमा ल बताबो, भरबो नवा जोश अउ बनबो सिपाही जेन नक्सलवादी, आतंकवादी, देशद्रोही, के बनही काल , हमर हे इही ललकार के अब देश के खातिर जीबो, के अब देश के खातिर जीबो, देश के खातिर जीबो,,,,
रेखा निर्मलकर
कन्नेवाडा बालोद,,

बुधवार, 3 मई 2017

पागा कलगी -32//11//*बालक "निर्मोही"*

गरमी म स्कूल
🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴
देख देख..देख .एह्हे....ए दाई......
बरसत आगी असन,
देख तो गुंईया घाम ल,
चमड़ी तो चमड़ी हे,
हांड़ा जर जात हे।
तभो ले तो नोनी बाबू,
पढ़े बर जात हे।
ताते तात गर्रा धूँका,
बिकटे जनावत हे।
मुड़ी ले तरपांवा तक,
पसीना ह बोहावत हे।
हंफरत नोनी बाबू,
मरत पियास हे।
रेंगते रेंगत गुंईया,
कोनो गिर जात हे।
तभो ले तो नोनी बाबू,
पढ़े बर जात हे।
बरफ वाला स्कूल म,
डेरा ल जमाय हे।
मोला दे मोला सबो,
हाथ ल दंताय हे।
चुहकत कुलफी ल,
सपना सजात हे,
कोनो ल तो सरदी हे,
कोनो ह झोरात हे।
तभो ले तो नोनी बाबू,
पढ़े बर जात हे।
बस्ता ल पीठ म तो,
बोझा अस लादे हवय।
एक्की दूक्की कहिके,
कतको तो भागे हवय।
पा जाथे गुरुजी तव,
नंगत ठठात हे।
चमड़ी तो चमड़ी हे,
हांड़ा जर जात हे।
तभो ले तो नोनी बाबू,
पढ़े बर जात हे।
🌴 *बालक "निर्मोही"*✍🌴
🌷🌷बिलासपुर🌷🌷

पागा कलगी -32//10//राजेश कुमार निषाद

।। गरमी म स्कूल ।।
छोटे से लईका संगी जाथे गरमी म स्कूल।
तात तात झांझ चलथे अऊ उड़थे धूल।
गला म अरोय पानी डब्बा पीठ म बस्ता भारी।
स्कूल जाही बेटा कहिके दाई करथे तईयारी।
स्कूल के आंगन म सुंदर सुंदर पेड़ लगे हे।
पेड़ म सर्व शिक्षा अभियान के तख्ता टंगे हे।
स्कूल के तिरे तिर लगे हे सुंदर गेंदा फूल।
छोटे से लईका संगी जाथे गरमी म स्कूल ।
गुरुजी पढ़ावत रहिथे स्कूल के अंदर म।
लईका मन खेलत रहिथे स्कूल के बाहर म।
स्कूल के खेल घलो हावय बड़ा अजब ग।
लईका मन में पढ़े बर उत्साह हे गजब ग।
पढ़ाई लिखाई म लईका मन नई करत हे भूल।
छोटे से लईका संगी जाथे गरमी म स्कूल।
आनी बानी के किताब कॉपी धरके स्कूल जाथे।
स्कूल म पढ़े पाठ ल घर म दाई ददा ल बताथे।
स्कूल म गुरुजी आनी बानी के पाठ पढ़ाथे।
लईका मन के ज्ञान ल ओ हर जादा बढ़ाथे।
नई मानय गुरुजी के बात देखाथे डंडा अऊ रूल।
छोटे से लईका संगी जाथे गरमी म स्कूल।
रचनाकार :- राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद पोस्ट समोदा तहसील आरंग
जिला रायपुर छत्तीसगढ़ 493441
9713872983

पागा कलगी -32//9//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छप्पय छंद(गरमी मा स्कूल)
बस्ता लादे खाँध ,स्कूल लइका मन जाये।
जरत घाम मा स्कूल,मूड़ पीरा बड़ ताये।
तीपे भुँइयाँ खेत,हवै तीपे घर छानी।
रहि रहि जरथे चाम,पियाथे ठंडा पानी।
अइसे मा कइसे भला,पढ़ई लिखई होय जी।
धार पछीना के झरे,लइका मन हा रोय जी।
चलथे हवा गरेर, झाँझ झोला के डर हे।
लू लक्कड़ ले घेर,बरत आगी बन घर हे।
जरथे चारो खूँट,घाम होगे दुख-दाई।
भुँइयाँ के सब जीव , देख फूटे जस लाई।
पेपर होगे क्लास के,कहाँ पढ़े के धून हे।
तभो देख ले स्कूल हा,खुले मई अउ जून हे।
करके पेपर जाँच, बताबे हमला जल्दी।
जावत हवन बिहाव,खेलबों गुरुजी हल्दी।
इती उती ले घूम,ममा के घर हे जाना।
उँहे खेलबों खेल,खाय के बढ़िया खाना।
अब बस अतकी हे आस जी,हो जावन हम पास जी।
गौकिन गरमी मा स्कूल हा, नइ आवत हे रास जी।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

पागा कलगी -32//8//पारितोष धीरेन्द्र

।। गरमी म स्कुल ।।
गरमी म स्कुल सोंचके 
मास्टर खुद सोलहागे 
आगि लगगे बादर म 
सुरुज खुद भुंजागे
लकलक लकलक
करत हे भुंइया
रुख राई अंईलागे
बैसाख के पहली पाख म भइया
जेठ के अगन धरागे
रद्दा चमकय बरफ बदरिया
मृग घलो भरमागे
नवतपा कस सुरुज के तांडव
बियाकुल जी बगियागे
अंश मात्र सृष्टि खुद ब्रम्हा
कमल नाल म समागे
गरमी म स्कुल सोंचके
मास्टर खुद सोलहागे
आगि लगगे बादर म
सुरुज खुद भुंजागे
लकलक लकलक
करत हे भुंइया
रुख राई अंईलागे
चरका भरका खेत दिखत हे
रुख म लाशा लसलसागे
सुकवा ऊवत बाँग देवइया
कुकरा घलो फटफटागे
गोख्खी बैरी सुरुज देव के
कंकालिन रूप धरागे
लाहो लेवय घेरि बेरि
तन उसनाय भुंजाय कस लागे
गर्मी म स्कुल सोंचके
मास्टर के बया भुलागे
आगि लगगे बादर म
सुरुज खुद भुंजागे
लकलक लकलक
करत हे भुंइया
रुख राई अंईलागे
तिपत हे तरुवा जरत हे भोंभरा
पीठ म घमुर्री भदभदागे
चातकी मन स्वाति जल ब
तरस तरस अधियागे
पानी फोटका कस जिनगानी
गिधवा डेना कस हाथ गोड़ तनागे
हाथ नारी जुड़ावत हे अब तो
बटाई कस आँखी बटरागे
गरमी म स्कुल सोंचके
मास्टर के मंता छरियागे
आगि लगगे बादर म
सुरुज खुद भुंजागे
लकलक लकलक
करत हे भुंइया
रुख राई अंईलागे

-पारितोष धीरेन्द्र
कोरबा 7999591957

पागा कलगी -32//7//मिलन मलरिहा

गर्मी मा इसकुल जाके
अड़बड़ मजा पाथन....
गुरुजी सुत भुलाथे ता
कलेचुप भाग-पराथन
भागत भागत सब्बो संगी
आमा बगीचा जाथन
इमली, आमा मार लबेदा
मार मार झोरियाथन
धर-सकेल सुस्ताके छईहा
नून गोद गोद खाथन
अब्बड़ अकन सकलाथे ता
बस्ता भर-भर लाथन
गर्मी मा इसकुल जाके
अड़बड़ मजा पाथन....
.
घाम मुड़ी मा जब चढ़जाथे
तरिया मा तऊर मताथन
तऊरत तऊरत सब मिलके
छू-छूआऊला खेलथन
लहुटत संझवति बेरा मा
गारी दाई के सुनथन
थके-मांधे ओही रतिहा
बिन खाए सुत जाथन
फेर बिहनहे बासी खाके
नून मिरचा कलेचुप धरके
इसकूल बर निकलथन
देखवटी थोकन पढ़के
फेर सुतत ले अगोरथन
गर्मी मा इसकुल जाके
अड़बड़ मजा पाथन....
☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆
.
मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर

पागा कलगी -32//6//दिलीप पटेल बहतरा

// गर्मी म स्कूल//
सर सर सर पवन चलत हे उड़त हवय ग धूल
मोर मयारूक मोर मनमोहना कभू नई करय जी भूल
गर्मी म जाही ओ स्कूल , गर्मी म जाही ओ स्कूल
गरीब ल दूख के नईहे चिंता
न सुख के अभिमान
दाई तो ओकर बूता करईया
ददा हवय ग किसान
सगरो दूख ल हस के सहईया हिरदय के नयना झूल,
पढ जाही चार आखर कहीके जांगर टोर कमावत हव
बेटी के पढहे जाये म मै हर घलो सौख पावत हव
का सर्दी का गर्मी भईया , हासत आवय खूल खूल
न गरीब घर एसी हे न हे कुलर फेन
लक लक ले तिपय जेठ म छानी चूचवावय जब बरसे रैन
कर भी का हम सकत हन ग
हमर तो अतकेच बने असूल
गांव के सरकारी स्कूल , गांव के सरकारी स्कूल ।।
दिलीप पटेल बहतरा , बिलासपुर
मो नं-- 8516850023

पागा कलगी -32//5//एमन दास मानिकपुरी 'अंजोर'

विषय-‘‘ गर्मी मा स्कूल ‘‘
खेलहूं कहिके कहिथंव मय,
बिल्लस अउ पित्तुल।
फेर गुरूजी लगा देहे,
गर्मी मा स्कूल।
लईकुसहा मन मोर मानय नहीं,
हिरदे के पीरा कोनो जानय नहीं।
यहा लाहकत घाम म पढ़े ल जाथन,
पढ़ई तो होवय नहीं भात खाके आथन।
गजब निक लागथे मोला,
झुलना के झुल।
फेर गुरूजी लगा देहे,
गर्मी मा स्कूल।
ममा गांव जाये के साध लागे भारी,
स्कूल के सेती ददा दाई देथे गारी।
पढ़ई लिखई म कथे मन ल लगा,
ननपन के साध जम्मो ल बिसरा।
नंगत ले पढ़ बेटा,
झन कहीं ल भूल।
येदे गुरूजी लगा देहे,
गर्मी मा स्कूल।
—एमन दास मानिकपुरी 'अंजोर'

पागा कलगी -32//4//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"

विषय:-- 'गरमी मा स्कूल'
विधा:-छप्पय छंद
बड़ गरमी मा स्कूल,हमर सरकार लगावै।
दै शिक्षा नि:शुल्क,सँगे मा भात खवावै।
अइसन हे निरदेश,सबो अध्यापक मन ला।
हे शिक्षा अधिकार,सँवारे बर बचपन ला।
परसंसा सरकार के,बार बार अलखात हँव।
बाढ़े बिक्कट घाम हा,छाँव खड़े डर्रात हँव।
लइका मन दू चार,आत हें विद्यालय मा।
बाँकी मन के शोर,नही कोनो आलय मा।
शिक्षक पालक तीर,हाल जानै बालक के।
गरमी संग बिहाव,समस्या हे पालक के।
कोनो मामा गाँव मा,जाके रमड़ीयाय हें।
कतको झन मनके इहाँ,कपड़ा नइ धोवाय हें।
तिरवर तीपत घाम,खोंधरा छूटत नइहे।
मुँह भीतर ले बोल,काखरो फूटत नइहे।
सुग्घर ताते भात,दार हा कहाँ सुहावै।
घर मा बोरे पेज,पसैया बने पियावै।
पोटा काँपत हे गजब,निकले बर गा घाम मा।
रोज ठिठकथे पाँव हा,कहूँ जाय के नाम मा।
आही महिना जेठ,तभे छुट्टी मिल पाही।
बस्ता खूंटी पाय,बने मनभर सुसताही।
लइका मन के रोज,स्कूल हा सुरता करही।
आही सोला जून,फेर ले कक्षा भरही।
बइठे कूलर तीर मा,बिजली ला खिसियात हें।
नाती बूढ़ा संग मा,बात इही बतियात हें।
रचना:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"
गोरखपुर,कवर्धा
9685216602
27/04/2017

पागा कलगी -32 //3//विक्रमसिंह "लाला"

विषय -गर्मी मा स्कूल
गर्मी के मारे लईकामन बिहिनिया ले नहावत हे । 
पढई तो होवत नई हे खाना खाये बर स्कूल जावत हे ।।
तात तात हवा चलत हे झवाये असन लागत हे ।
पानी के खोज मा जीव जन्तु मन गांव डहर आवत ।।
गर्मी ल देख के गुरू जी पंखा ल चलावत हे ।
गरम गरम आगी असन हवा ह बोहावत हे ।।
गर्मी के दिन मा स्कूल मोला बने नई लागत हे ।
आमा अमली पीपर के छांव मोर मन ल बड भावत हे ।।
जगह जगह पानी के कमी तरिया बड अटावत हे ।
स्कूल मा पिये बर पानी नई हे लईका पानी धर के जावत हे ।।
चप्पल कोनो नई पहिरे चट चट भोभरा जरत हे ।
गर्मी के कारण पढाई नई होथे टाइम पास सब करत हे ।।
सरकार ह गर्मी ल देख के बिहिनिया स्कूल लगावत हे ।
पढई तो होये नई खाना खाये बर स्कूल जावत हे ।।
ध्यान से पढे नई हे तेन मन फैल होवत हे ।
पास होगे तेन भर्ती होवत हे ।।
पढाये के मन नई हे गुरू जी के कहानी म कान ल भरत हे ।
तरिया नदियाँ सब सुक्खा होगे जीव जन्तु मरत हे ।।
अतका गर्मी म कईसे पढबो तईसे लागत हे ।
गुरू जी मन बिहिनिया आत हे अउ जल्दी घर भागत हे ।।
गली मा नई निकले सकव मै झांझ चलत हे हरहर हरहर
पंखा बिना नई रहे सकव पसीना बोहाथे मोर तरतर तरतर
पंखा बिना कोनो परानी ल चैन नई आवये ग ।
ठंडा ठंडा फ्रिज के पानी सबके मन भावये ग ।।
विक्रमसिंह "लाला"
मुरता_नवागढ_बेमेतरा
7697308413

पागा कलगी -32//2//धनसाय यादव

‘’** विषय – गरमी मा स्कूल **’’
बड़ दुखदायी गरमी मा स्कूल ... 
बड़ दुखदायी ‘’ गरमी मा स्कूल'' ...
दांवॉ ढिले हे सुरुज ...
अइला जावत हे... मोर अँगना के फूल...
बड़ दुखदायी ''गरमी मा स्कूल '' ...
// 1 //
बिहनिया ले सुरुज देवता, आगी बरसाय।
लइका सियान सबके, जीवरा थर्राय ।।
पेड़-पौधा, जीव-जन्तु सब हे व्याकुल...
बड़ दुखदायी ‘’गरमी मा स्कूल'' ...
// 2 //
मुँह छिन-छिन चिपियाय, पसीना तन लथपथाये ।
नइये पानी के ठिकाना, तरिया कुंआँ अंटाये ।।
सूख्खा पड़े हे कब ले नलकूप ...
बड़ दुखदायी ‘’गरमी मा स्कूल ...’’
// 3 //
नान नान छवना, जैसे उलहवा पान दवना ।
झोला म झंवाये दिखे कउँवा, कोयली, रवना ।।
का के सजा, का हे इंकार भूल ...
बड़ दुखदायी ‘’गरमी मा स्कूल ''...
// 4 //
चवन्नी हे आना, बाकि के नागा ।
मास्टर के घेँच म पढाये के फांदा ।।
पढाये, नई पढ़ाये ओकरे हे सूल ...
बड़ दुखदायी ‘’गरमी मा स्कूल ''...
// 5 //
रिहिन सासक विदेसी, मिलिस सुविधा देसी ।
सुख-दुःख, जुड़-ताप, तीर म जा के देखी ।।
मार्च-परीक्षा, अप्रैल-नतीजा, छुट्टी मई-जून ...
बड़ दुखदायी ‘’गरमी मा स्कूल ''...
// 6 //
अब सासक देसी, कुरिया म लगे एसी ।
नीति बनाये, दुसर के देखा देखी ।।
बस नियम बनाय में हे मसगुल ...
बड़ दुखदायी ‘’गरमी मा स्कूल'' ...
// 7 //
साल के साल, गरमी ह बाढ़ही ।
अलग पसिया, अलग रइही साढ़ही ।।
कागज अउ भुइयाँ, झुलही रैचुल ...
बड़ दुखदायी ‘’गरमी मा स्कूल ''...
// 8 //
जुलाई म सुरु फरवरी म अन्त
सुघ्घर समे हे बरसात ले बसंत
ये बात ल तुम करहु काबुल ...
बड़ दुखदायी ‘’गरमी मा स्कूल ''...
***** धनसाय यादव , पनगाँव *****

पागा कलगी -32//1//राजकिशोर धिरही

*गर्मी मा स्कूल*
उसनत हे गर्मी,नइये कोनो लंग कूल,
चलव पढ़े बर चली, गर्मी मा स्कूल।
दिन भर बेड़ी देवाए हवे, फइरका के,
घाम मा जरत रहिथे गोड़, लइका के।
लादे बस्ता,कान ल झांझ झोरत हे,
स्कूल जाए बर,संगवारी अगोरत हे।
स्कूल मा पढ़त क ख ग मांगत पानी,
गुरु जी टेबल मा उंघत सुना कहानी।
सुरुज उथे,बड़े बिहनहिया झूल झूल,
चलव पढ़े बर चली,गर्मी मा स्कूल।
पसीना हर चुचवावत हे,मुड़ी ले गोड़,
करी प्राथना,स्कूल मा हम हांथ जोड़।
गुरूजी के हवे, गर्मी मा हाल बेहाल,
गर्मी मा पढ़ावत, हांथ मा धर रुमाल।
डंडा पचरंगा,आमा टूकत झन भूल,
चलव पढ़े बर चली,गर्मी मा स्कूल।
राजकिशोर धिरही
ग्राम+पोस्ट-तिलई
जांजगीर-चांपा

सोमवार, 17 अप्रैल 2017

//पागा कलगी-32 के रूपरेखा//


बेरा-दूसर पखवाड़ा अप्रैल 2017
30 अप्रैल 2017 तक
विषय-‘‘ गर्मी मा स्कूल ‘‘
““““““““““““““
मंच संचालक - हेमलाल साहू (सहा0 एडमिन)
निर्णायक - श्री डॉ. अजिज रफिक, वरिष्ठ साहित्यकार मुंगेली
विधा-विधा रहित
““““““““““““““““““““““
निवेदन,
१)) मंच के वरिष्ठ रचनाकार संगी मन ले निवेदन हे ये आयोजन मा नवा रचनाकार भाई बहिनी मन ला जुड़े पर प्रेरित करंय ।
२))‘छत्तीसगढ़ साहित्य मंच के जम्मो रचनाकार भाई मन आप सब से निवेदन हे के कविता कोनो ना कोनो विधा-शिल्प मा निश्चित होथे, ये अलग बात हे के हम ओ विधा-शिल्प ला नई जानत होबो । कुछु विधा मा नई होही त तुकांत विधा मा जरूर होही । यदि आप मन अपन रचना के विधा के घला उल्लेख कर देहू त सोना म सुहागा हो जही ।
३)) रचना छत्तीसगढ़ी भासा मा ही होना चाही।
““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““““
जय जोहार....
जय छत्तीसगढ़....

पागा कलगी -31 //7//जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"

डॉक्टर झोला छाप(दोहा गीत)
देख घूम के गांव मा,पोटा जाही कॉप।
थेभा हवय गरीब के,डॉक्टर झोला छाप।
कहिके अँगठा छाप तैं,जेला दिये भगाय।
ओखर कोनो अउ नहीं,उही सहारा आय।
रहिके हमरे साथ मा,करथे हमर इलाज।
सहै उधारी ला घलो,होय सहुलियत काज।
कलपे रात बिकाल के,घर मा माई बाप।
थेभा हवय गरीब के,डॉक्टर झोला छाप।
जाने दवई देय बर,सूजी पानी आय।
ठीक करै बोखार ला,ओहर डॉक्टर ताय।
सर्दी जर बोखार मा,सहर जाय गा कोन।
बड़ मँहगा हाबय जहाँ,फीसे हा सिरतोन।
सोजबाय बतियाय नइ, बोले आने बोल।
तेहर पीरा ला हमर,कइसे लिही टटोल।
देखब हमला लोटथे,ओखर तन मा साँप।
थेभा हवय गरीब के,डॉक्टर झोला छाप।
झन कोनो ला लूट तैं,हरस तँहू भगवान।
राख मान पद के अपन,गाही सबझन गान।
चलथे टोना टोटका, बइगा हे बर छाँव।
जाही झोला छाप हा,डॉक्टर भेजव गाँव।
फँसे सहर के मोह मा,डॉक्टर नइ तो आय।
सुविधा सब खोजत फिरै,गाँव देख लुलवाय।
कौड़ी कौड़ी हे कीमती ,लूटे लगही पाप।
थेभा हवय गरीब के,डॉक्टर झोला छाप।
जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)

पागा कलगी -31 //6//लाला साहू .(विक्रमसिंह)

विषय - डाॅ झोला छाप
वाह रे सरकार तै
बंद कर देस डाक्टर झोला छाप । 
गांव के गरिब किसान मन
नई करे तोला माफ ।।
गांव मा झोला छाप डाक्टर रहे ले
जल्दी हो जाये ईलाज ।
अब तो सरकारी अस्पताल म
लाईन लगाबे तभो नई होये ईलाज ।।
हाँ ये बात सच हे
झोला छाप डाक्टर फिस ज्यादा लेवत रहीस हे ।
फेर ज्यादा फीस म
डाक्टर ह दवाई अच्छा देवत रहीस हे ।।
लइका ल जाँच करीस ना देखीस
का का दवाई लिख डारिस ।
सरकारी अस्पताल के डाक्टर ह निमोनिया हे
कहिके 3 साल के लइका ल मार डारिस ।।
दाई ह वोला श्राप देवत हे
देवत हावे गारी ।
लइका मोर बाच गे रतिस
कहूँ लाये नई रतेव आस्पताल सरकारी ।।
नानकुन सर्दी खासी बर
दू घंटा लाईन लगाये ल पडथे ।
कहूँ थोकन बीमारी बडे होगे
रोज अस्पताल के चक्कर लगाये ल पडथे ।।
फुके ल आय नहीं आके ल बइठे हे
झोला छाप डाक्टर बिना डिग्री के ।
छोटे छोटे बुखार मा देथे दवाई बड
कहिथे बुखार हे तोला 105 डिग्री के ।।
झोला छाप डाक्टर करत रहीस हे अपन मनमानी ।
साधारण सर्दी जुकाम म गोली देवय आनीबानी ।।
गोली देवय आनीबानी , लेवय मरत ले पईसा ।
छोटे मोटे बुखार म घलो , लगाथे सुजी बइसा ।।
लगाथे सुजी बइसा
पइसा लुटे बाटल ग्लुकोस मा ।
गरिब मन के मेहनत के पईसा
ल डाक्टर भरथे धन कोष मा ।।
डाक्टर भरथे धनकोष मा
बनाये बर पांच तल्ला मकान ।
झोला छाप डाक्टर पईसा पाये बर
जगह जगह खोले हे दुकान ।।
जगह जगह खोले हे दुकान
लुटे बर जनता ला ।
ये झोला छाप डाक्टर ह संगी
भोगा देथे मनता ला ।।
रचना - लाला साहू .(विक्रमसिंह)
ग्राम -मुरता , तहसील -नवागढ ,
जिला बेमेतरा , छत्तीसगढ़
वाट्सअप - 7697308413

पागा कलगी -31//5//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"

विषय:-झोला छाप डाँक्टर
विधा:-रोला छंद
डाँक्टर झोला छाप,दिनो दिन बाढ़त हावय।
शहर नगर अउ गाँव,समस्या ठाढ़त हावय।
कइसे होय इलाज,हवय गंभीर बिमारी।
करय निवारण जेन,दिखै ना जिम्मेवारी।
डिगरी धारी तीर,होय पहुँचे मा देरी।
आथे झोला छाप,गाँव मा घेरी बेरी।
डिगरी वाले खास,ऊँट के मुँह मा जीरा।
कइसे गा दुरिहाय,हमर जनता के पीरा।
कइसे करय मरीज,फीस के चक्कर मारै।
सस्ता महँगा बीच,जान जोखिम मा डारै।
हे बूता के जोर,करत हे लापरवाही।
उल्टा सीधा होय,तहाँ बइठे पछताही।
झोला वाले तीर,सुई पानी लगवावै।
तुक्का मार इलाज,जान के धोखा खावै।
करही कोन सचेत,कोन समझावै ओला।
सस्ता मा झन मार,तोर महँगा हे चोला।
डाँक्टर झोला छाप,कहाँ ले हिम्मत पाथे।
दिलउज्जर गा रोज,घूम के सुई लगाथे।
नइहे बूता काम,बताथे रोना रोथे।
मजबूरी के नाम,इही ला करना होथे।
रचना:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"
गोरखपुर,कवर्धा
9685216602
11/04/2017

पागा कलगी -31//4//ज्ञानु'दास' मानिकपुरी

विषय-झोला झाप डॉक्टर
हा महीं ऑव् डॉक्टर झोला छाप।
-थोड़ा बहुत महूँ हा पढ़े लिखे हँव्
एक दू साल बड़े अस्पताल मा काम सीखे हँव्।
धीरे धीरे सूजी पानी लगावत हँव्
अपन बुद्धि अनुसार करत हँव् ईलाज।
हा महीं ऑव् डॉक्टर झोला झाप।
-सर्दी खाँसी बुखार के करथवँ ईलाज
बीस तीस रुपिया मा करथवँ ईलाज।
उधारी बाढ़ही घला लगावत हँव्
भगवान के करत रहिथवँ जाप।
हा महीं ऑव् डॉक्टर झोला झाप।
मौका परे मा बड़े अस्पताल घला लेगथवँ
बरषा जाड़ा घाम मा कइसे रहिथे मनखे देखथवँ।
नइ आवय गुस्सा पैसा बर नइ तँगावव
मनखे के स्थिति ला लेथवँ गा मैं भाप।
हा महीं ऑव् डॉक्टर झोला झाप।
येला मोर गलती कहवँ या हुशियारी
जहाँ तक बन सके दूर करथवँ बिमारी।
देखत हे ऊपरवाले मोर नोहे कलाकारी
कतको देथे मोला गारी अनाप शनाप।
हा महीं ऑव् डॉक्टर झोला झाप।
ज्ञानु'दास' मानिकपुरी
चंदेनी कवर्धा

पागा कलगी -31//3//कुलदीप कुमार यादव

वाह गा ! हमर झोलाछाप डॉक्टर ।।
बिन डिग्री के इलाज करै,
लगा दवाखाना के पोस्टर ,
वाह गा ! हमर झोलाछाप डॉक्टर ।।
गरीब मरीज के तहि हरस देवता,
बीमराह मन देथे घर आये के नेवता ।
मरत मईनखे ला तहि बचाथस,
झोला में दवई धर दउड़त आथस ।
तोर कर आथे इंजीनियर अउ मास्टर,
वाह गा ! हमर झोलाछाप डॉक्टर ।।
तोर बर नई लागे बेरा ना कुबेरा,
मरीज मन के लगे तोर कर डेरा ।
समारू के होवै जब पेट पिरई,
आधारतिया देवस तै ओला दवई ।
पकड़ाये के हावे अब तोला डर,
वाह गा ! हमर झोलाछाप डॉक्टर ।।
पढ़े नई हे कहिके डाक्टरी बंद करावत हे,
गंवहिया मन ला पीरा भोगवावत हे ।
उपर वाले भगवान हा तो नई दिए दरश,
फेर तहि हमर बर साक्षात् हरश ।।
बुखार धरे ले अब जाये बर परथे शहर,
वाह गा ! हमर झोलाछाप डॉक्टर ।।
रचना
कुलदीप कुमार यादव
ग्राम-खिसोरा,धमतरी
9685868975

पागा कलगी -31 //2//कन्हैया साहू *"अमित"*

🙏�*ताटंक छन्द* मा प्रयास🙏🙏
16-14 मात्रा,अंत मा 3 गुरु अनिवार्य
डाँक्टर भगवन रुप हे जग मा,
देव दूत कस लागे जी।
देख तीर मा डाँक्टर बाबू,
रोग दोस सब भागे जी।1
बिदिया बल ले पाके मउका,
करँय खूब रोगी सेवा।
मिले दुआ बङ सुग्घर सिरतो,
अउ पावँय पइसा मेवा।2
लिख पढ़ सिख के बनथें डाँक्टर,
बिकट पछीना बोहाथें।
जग मा कतको काम परे हे,
सेवा धरम ला जी भाथें।3
जतका जग मा हावय सुबिधा,
संगे संग बिमारी हे।
मानुस तन धर डाँक्टर आए,
दुनिया बर उपकारी हे।4
कोनो डिगरीधारी डाँक्टर,
कखरो छप्पा झोला जी।
डाँक्टर हा डाँक्टर होथे सब,
सब मा सेवा चोला जी।5
सबो सहर मा अस्पताल जी,
बेवसथा बङ चोखा हे।
डाँक्टर झोला छाप गाँव मा,
अब्बङ सुग्घर जोखा हे।6
अस्पताल के फीस जबर हे,
मुरदा के पइसा लेथे।
झोला वाले डाँक्टर साहब,
घर-घर मा सेवा देथे।7
कहाँ गाँव मा बने ढ़ंग के,
रद्दा बिजली पानी हे।
अइसन अलकर अलहन मा जी
बस*"झोला"* जिनगानी हे।8
जिहाँ-जिहाँ सब सरकारी हे,
जिनगी तैं झखमारी जी।
झोला छाप गाँव के डाँक्टर,
अब हमर संगवारी जी।9
***********************************
कन्हैया साहू *"अमित"*
मोतीबाङी,परशुराम वार्ड-भाटापारा
संपर्क~9753322055
वाट्स.9200252055

पागा कलगी -31 //1//धनसाय यादव

// बेरा - पहिली पखवाडा अप्रैल 2017 //
// विषय - झोला छाप डाक्टर //
सृष्टि में जब जीव के होईस हे संचार ।
संगे संग विधाता दिस बीमारी के मार ।।
प्राण खातिर मनवा करिस लाख उदिम ।
पान पतउवा जड़ी बूटी करू कासा ल जिम ।।
परयोग करिस अउ परखिस अपनेच खातिर ।
धीरे धीरे सब ल सोधित अउ होगे माहिर ।।
नाम धराइस हथोई, हाकिम अउ बैद्यराज ।
बिन स्वारथ दुखिया मन के लगे करींन इलाज ।।
बिमरहा अपन्गहा रोवत आवय इनकर द्वार ।
कुलकत हांसत होके चन्गा जावय घरद्वार ।।
भुइयाँ के भगवान डाक्टर, आये जब मरीज ।
2 रुपिया के गोली बर लेवय 200 रू फीस ।।
गरीब मजदूर अतका मंहगा कैसे कराही इलाज ।
सस्ता इलाज खातिर मिले डाक्टर झोला छाप ।।
सच्चा डाक्टर सेवा भाव ले करही जब इलाज ।
तब काबर कोई जाही झोला छाप के पास ।।
दुसर बात हे डाक्टर के शहर में हे अस्पताल ।
बेरा कुबेरा दूर दराज के मरीज कैसे कराही इलाज ।।
सरी जग हे अजरहा, डाक्टर दू ले चार ।
जाऊन मिले तउने मेर कराथे उपचार ।।
झोला छाप नोहय कोनो छूत के बीमारी ।
पडत जेकर छाईहा फैले कोई महमारी ।।
अज्ञानी अधकचरा ज्ञानी झोला छाप के हे बाढ़ ।
धन के लालच म जान से करत हे खिलवाड़ ।।
बिस्तुर झोला छाप बंद हो, न ककरो जान से हो खिलवाड़ ।
लुके छिपे कहू करत इलाज मिले त पड़े जब्बर डॉढ़ ।।
खासी खोखी अपच उल्टी सर्दी हो या दस्त ।
अस्पताल पहुचे के पहिली झन हो पावय असक्त ।।
निरापद अउ असर कारी , 10 – 20 दवाई हो सरकारी ।
प्राथमिक ऊपचार के खातिर पारा मोहल्ला म एक ल दे दव जिम्मेदारी ।।
जैसे हर जन /चोर के पाछू नइ हो सकय पुलिस इंस्पेक्टर ।
वैसे हर मरीज के पाछू समय म नई हो सकय नर्स डाक्टर ।।
धनसाय यादव

बुधवार, 5 अप्रैल 2017

//पागा कलगी 28 के परिणाम//

फरवरी 2017 के पहिली पखवाड़ा मा ‘लमसेना‘ विषय म प्रतियोगिता के आयोजन करे गेइस । येमा 6 रचना प्राप्त होइस । ये आयोजन के निर्णायक आदरणीया शंकुन्तला तरार रहिन । उन्खर निर्णय उन्खरे शब्छ म-
‘‘सब्बो झन के रचना बनई सुन्दर हावय । भावपक्ष, कलापक्ष अउ भाव अभिव्यक्ति ला आधार मान के मैं कविता/गीत के आंकलन करे हंव ।
मोर विचार ले .......
पहिली नं म श्री चोवाराम ‘बादल‘
दूसर नं. म श्री ज्ञानुदास मानिकपुरी
के कविता हवय ।
दूनों विजेता ला गाड़ा-गाड़ा बधाई, मोला ये अवसर दे बर ‘छत्तीसगढ़ी साहित्य मंच के बहुत-बहुत धन्यवाद ।‘‘
छत्तीसगढ़ी साहित्य मंच के डहर ले सबो रचनाकार के संगे-संग विजेता मन ल अंतस ले बधाई


मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

पागा कलगी 30 के परिणाम

मार्च के दूसर पखवाड़ा म ‘गर्मी के छुट्टी मा, जाबो ममा गाँव‘‘ विषय म प्रतियोगिता होइस । जेमा कुल 6 रचना आइस । ‘‘हर प्रतिभागी के रचना ह सुघ्घर हे । नाममात्र सुधार के बाद श्रेष्ठ रचना बन जाही । उनकर सामान्य गलती लय टूटना, गलत तुकान्त, तुकान्तता के अभाव, शब्द के मात्रा बिगाड़ के लिखना हे ।‘‘ प्रतियोगिता म बिना गलती या सबसे कम गलती वाले रचना ल चुने जाथे । ये आधार म ये प्रतियोगिता के परिणाम ये प्रकार हे-
पहिली विजेता- श्री ज्ञानुदास मानिकपुरी
दूसर विजेता- श्री ई.जी. गजानंद पात्रे ‘सत्यबोध‘

दूनों विजेता ला मंच के तरफ ले  अंतस ले बधाई, सबो प्रतिभागी मन के आभार ।

संयोजक
छत्तीसगढ़ी साहित्य मंच