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बुधवार, 30 मार्च 2016

पागा कलगी -6//दिनेश देवांगन "दिव्य"

कुलकत मातत रंग उड़ावत, होरी तिहार आथे !
गली गली नंगारा बाजे, मांदर फाग सुनाथे !!
आसी सैली यस्सु सिवानी, अउ हे सोनू रानी !
लाल हरा अउ पीला धरके, चुपरे रंग जपानी !
कोनो भागय कोनो दौड़े, कोनो हे लूकाये !
कोनो सरसर पिचकारी मा, कोनो रंग सनाये !!
लइका मन के किलकारी ले, रंग घला शरमाथे !
गली गली नंगारा बाजे, मांदर फाग सुनाथे !!
कोनो रावन कोनो मोदी, कोनो बनके भोला !
लइका सजके इतरावत हे, किसम किसम धर चोला !!
सबला बाँटे अपन मया ला, मलके गाल गुलाबी !
भाईचारा के तिहार हे, लगथे सबो नवाबी !!
कतको बैरी ये होली मा, सबला हाथ मिलाथे !
गली गली नंगारा बाजे, मांदर फाग सुनाथे !!
धरती माते अंबर माते, माते सोन चिराई !
आमा माते अमरइया मा, माते गाँव तराई !!
फागुन के संदेशा लेके, आथे अउ पुरवाई !
होली के आगी मा जोरव, मन के सबो बुराई !
रंग बिरंगा बरसा करथे, मया प्रीत बोहाथे !
गली गली नंगारा बाजे, मांदर फाग सुनाथे !!
दिनेश देवांगन "दिव्य"
सारंगढ़ जिला - रायगढ़ ( छत्तीसगढ़ )

शुक्रवार, 25 मार्च 2016

पागा कलगी -6 बर//महेश मलंग

जतका मन के जाला हे चला ओला झार दिन 
होरी के संग मन के कचरा ला बार दिन 
छोड़ाय ले जे मत छुटय अईसन पक्का रंग 
मया औ पिरित के आपस म डार दिन 
हिरदय के टेसू खिलय मन के आमा बौर जाय
फागुन असन बीत जाय जीनगी के चार दिन
नशा नाश के जड़ आय ऐ बात जान के
छोड़के नशा पत्ती घर बार ला संवार दिन


-महेश मलंग

पागा कलगी -6//महेन्द्र देवांगन माटी

फाग गीत
****************
बाढ़गे मंहगाई के दाम जी
कइसे मनावन तिहार जी ...........2
कइसे मनावन तिहार जी
कइसे मनावन तिहार जी
बाढ़गे मंहगाई के दाम जी
कइसे मनावन तिहार जी
नोनी बाबू मन पइसा मांगत हे
पइसा मांगत हे जी पइसा मांगत हे
ले दे मिठाई कहिके मुंहूं ताकत हे
मुंहूं ताकत हे जी मुंहूं ताकत हे
कहां ले पइसा हम लान जी
कइसे मनावन तिहार जी
बाढ़गे मंहगाई के........................
लइका मन भर भर के पिचका मारत हे
पिचका मारत हे जी पिचका मारत हे
डोकरा ह डोकरी में रंगे डारत हे
रंगे डारत हे जी रंगे डारत हे
चढ़हे हे दारु अऊ भांग जी
कइसे मनावन तिहार जी
बाढ़गे मंहगाई के .........................
दारे सिरागे अऊ चांऊर सिरागे
चांऊर सिरागे जी चांऊर सिरागे
तनखा ल जोहत माथा पिरागे
माथा पिरागे जी माथा पिरागे
कइसे चलाबो घर दुवार जी
कइसे मनावन तिहार जी
बाढ़गे मंहगाई के दाम जी
कइसे मनावन तिहार जी
होरी है
*****************************
रचना
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया (कवर्धा)

पागा कलगी -6 //सुनिल शर्मा"नील"

""होली तिहार हरय""
*********************************
होली तिहार हरय पाप ल बारे के
भीतर म बइठे घमंड ल मारे के
मया अउ प्रेम के रंग उड़ाय के
छोटे बड़े सबला गला लगाय के
सियान मनके अशीष पाय के
मीठ बोले अउ मिठ खाय के
कचरा ल बार साफ सफई के
फाग के गीत म मदमस्त नचइ के
देश अउ समाज म मिठास घोरे के
घर घर फइले नशा ल छोरे के
नोहय तिहार एहा अश्लीलता के
चिन्हारी हरे संस्कृति के बिशेषता के|
*********************************
==वन्दे मातरम्===
सुनिल शर्मा"नील"
थान खम्हरिया(छत्तीसगढ़)
७८२८९२७२८४
९७५५५५४४७०
रचना-२५\०३\२०१६
©®

बुधवार, 23 मार्च 2016

पागा कलगी -6 बर//राजेश कुमार निषाद

।। तिहार होली ।।
फागुन के महीना आये हे तिहार होली।
रंग गुलाल लगा के संगी करबो हंसी ठिठोली।
लईका मन खेलय पिचकारी
संगी जहुरिया मन लगाय गुलाल।
दिन भर गली म चहल पहल राहय
गांव लागे बड़ खुशहाल।
गोठियाथे ग सब मया प्रित के बोली।
फागुन के महीना आये हे तिहार होली।
गली गली म बाजे नगाड़ा
गीत होली के गाये।
एक दूसर से बैर छोड़ के
सब ल हाथ मिलाये।
झूम झूम के नाचे सब खाये भांग के गोली।
फागुन के महीना आये हे तिहार होली।
दिन भर खेले रंग गुलाल
सांझकुन पहिने सब नवा कपड़ा।
घर घर रोटी पिठा चुरे
नई होवय कोनो झगड़ा।
आनि बानि के रोटी चुरय
महर महर ममहाय सबके घर के खोली।
फागुन के महिना आये हे तिहार होली।
रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद ( समोदा )
9713872983

पागा कलगी -6//- हेमलाल साहू

होली
फागुन के महिना हरे, तिहार होली आय।
होलिका दहन बाद में, तिहार ल ये मनाय।।
सच के रद्दा मे चलव, होवय नही ग हार।
याद पहलाद के करव, मना लव ये तिहार।।
तिहार होली देख ले, गाव गाव मा छाय।
लिपाय पुताय घर हवे, सुघ्घर रौनक लाय।।
होली हा आगे हवय, उड़य रंग गुलाल।
जगा जगा मा देख ले, बजे नगाड़ा ताल।।
फाग गीत ला गात हे, नाचे झुमके यार।
संगी साथी मिल बने, मनाबो चल तिहार।।
कायर कपट ल छोड़के, बने मना ले यार।
बारह बछर म आय गा, होली हवे तिहार।।
घर घर जाके चल बने, लगाबो गा रंग।
रहे बने आशीष हा, बड़े के हमर संग ।।
मया दया के भाव ले, बने हवे गुलाल।
माय दया के भाव ले, रंग लगाबो लाल।।
मया दया सबके हवे, मया रंग हे लाल ।
माटी के बेटा हमन, रंग लगाबो गाल।।
लइका मन से सीख ले, खेलत रंग गुलाल।
ककरो मेरा बैर नही, लगावय रंग गाल।।
मोरो हावय गा अरज, मानहु तुमन तिहार।
पानी ल खपत मत करहु, तुमन ह गा बेकार।
हेमलाल साहू
ग्राम- गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील- नवागढ़, जिला- बेमेतरा

पागा कलगी -6//आशा देशमुख

मोर गांव के होरी
होरी हे होरी हे होरी ,मोर गांव के होरी
संगी साथी जुल मिल खेले ,अउ खेले सब गोरी |
होरी हे होरी
महुआ परसा फूले हावे ,महकत हे अमरैया |
सरसर सरसर डारा बाजे ,चलत हवे पुरवैया |
गुत्तुर गुत्तर कोयल बोले ,मन भंवरा मतियाये ,
नावा नावा डारा पाता , सबके मन मोहाये |
मिट्ठू मन आमा अमली ला ,ठुंनक ठुनक के फोरी |
होरी हे होरी
कुहुक कुहुक के डंडा नाचे ,टोली गाये गाना ,
मथुरा गोकुल जैसे लागे ,सब्बो झन के हाना |
पखवाड़ा भर बजें नगाड़ा ,भरे रथे चौपाला ,
हाँसी ठट्ठा करथे सब झन ,ख़ुशी बतावव काला
जे पावे ते रंग लगाये ,कोन करे मुँह जोरी |
होरी हे होरी
घर घर दिखथे लीपे पोते ,मुँह ह दिखे पचरंगा ,
का जवान अउ का हे बुढ़वा| ,सब होंगे हे चंगा |
हाँसत खेलत टुरी टुरा मन , मया लुटाए गारी ,
बड़के छोटे जात धरम के ,नइ हे कछु चिन्हारी
रंग गुलाल म सब मिल गेहे , सब्बो छोरा छोरी |
होरी हे होरी हे होरी ,मोर गांव के होरी
-आशा देशमुख

पागा कलगी -6//सोनु नेताम

!!होली तिहार आगे!!
---------------------------------
फागुन मस्त महिना संगी
होली तिहार आवत हे
जुर मिलके होली मनाबो
नंगाड़ा थाप बाजत हे
लकड़ी छेना होलिका जलाय बर
सबो कोई सकेलबो
हरा पिंवरी लाल गुलाबी
मया के होली खेलबो
आनी बानी के तेलहा फुलहा
घरो घर म चुरहि
बरा सोंहारी ठेठरी खुरमी
बांट बिराज के पुरहि
संगी जहुंरिया संगवारी मन
होली खेले बर आहि
ठेठरी खुरमी बरा सोंहारी
हमर घर म खाहि
भांग दारु महुंआ पीके
जवनहा मन बईहाय
कोनो दिखय चितका कबरा
चिन्हे म नजर नी आय
मया पिरित अउ भाईचारा के
होली ल सुग्हर मनाबो
आनी बानी किसिम किसिम के
रंग गुलाल ल लगाबो
गांव के गउंरा गुड़ी म
ड़हकि नंगारा बजाबो
सरा ररा होली हे
फागुन गीत ल गाबो
गांव के पुरखा सियान मन के
सुग्हर आसिरबाद ल पाबो
गांव गलि बिरिजबन कस लागहि
होली परब ल मनाबो!!
सोनु नेताम गोंड़ ठाकुर
(मयारुक छत्तीसगढ़िया)
रुद्री नवागांव,धमतरी

पागा कलगी -6//ललित साहू"जख्मी"

"लईकई होली"
कोनहो उदीम बतातेव 
ता महु लईका बन जातेंव
बिन चिन्हे कोई मईनखे
सबके मुहु मा गुलाल लगातेंव
बारतेंव अंतस के राक्षस ला
अंगरा मे सरपट दंउड लगातेंव
ताहन अलकरहा माततेंव- मतातेंव
अऊ मया पिरित के होरी मनातेंव
बाजत नगाडा के कुदतेंव मे आघु
राहस बर लुगरा पहीर राधा बन जातेंव
ना लालच होतिस ना बैर काकरो ले
सुग्घर भक्त प्रहलाद मै बन जातेंव
नई जानतेंव मेहा ऊंच नीच के भाखा
एकता के जोरदरहा भोंपु बजातेंव
गातेंव फाग संस्कृति, परंपरा के
लगा के खोपडा बैरी बर बघवा बन जातेंव
रंग आनी बानी ये दुनिया के
चारो मुडा मेहा बगरातेंव
मितानी के किरया भांग मे डारके
संगवारी ला जबरहीया खवातेंव
पिचका मे भरतेंव रंग लाली परसा के
अरसा सही बोली मा मिठ पिरोतेंव
होतिस सोनहा नकली चुंदी खिनवा
पारस ब्यवहार सोनहा बर मै बन जातेंव
तिहरहा खजानी खिसा मे भर लातेंव
आधा खातेंव आधा दुसर ला खवातेंव
कोन्हो नई लगातिस ता खुदे रंग लगातेंव
उद्दे नहातेंव उद्दे होरी मा रम जातेंव
लाली, हरियर, पिंयर, कारी, मसयानी
हर रंग खुशियाली के उडीयातेंव
कन्हो मे फेर लईका हो जातेंव
होरी के बहाना तुंहर कोरा ला पातेंव
रचनाकार - ललित साहू"जख्मी"
ग्राम-छुरा / जिला- गरियाबंद(छ.ग.)
9144992879

पागा कलगी -6//देवेन्द्र कुमार ध्रुव

"ऐशो के होरी "
लईका मन तो हरय जी देश के आधार 
देवव ओमन ला बने शिक्षा अउ संस्कार
ऐशो के होरी ला सुघ्घर बनावव जी
लईका मन ऊपर अच्छाई के रंग लगावव जी
ए मन झन गिरय कलंक के दलदल मा
झन फ़ंसय कभु अपराध के कलकल मा
नवा सीख देवव नेकी के पाठ पढ़ावव जी
ऐशो अपन बुराई के होलिका जलावव जी
हरियर बनके धरती ला एमन हरियाही
बनके पिंवरा रंग मया पिरीत बगराही
लाली ताकत चिन्हा भगवा मान बढ़हाही
शांति बर इकर ऊपर सादा रंग लगावव जी
राम लखन कस भाई भीम कस बलशाली
अर्जुन कस कभु निशाना झन जावय खाली
किशन कन्हैया कस मया प्रेम बगरैय्या
लईका मन ला भक्त प्रहलाद बनावव जी
भारत माँ के लाल बन चलय सीना तान के
 बिपत मा रक्षा करेओकरआन बान शान के
हाँसत हाँसत जान लुटा दे जेन देश सेवा बर
लईका मन ला अइसन देशभक्त बनावव जी
अपन सुख जेन हा सबके नाम करय
दूसरा के दुःख मा मिलजुल के काम करय
गले लगा के सबके पीरा ला हर लेवय
सबके मन मा भाईचारा भाव जगावव जी
सिरतोन सबो अपन भाग लिखा के आये हे
मेहनत करके कतकोअपन भाग जगाये हे
सबके काम आये अइसे काम करावव जी
लईका मन ला भला इंसान बनावव जी
लईका मन अपन डगर ले भटकय झन
गलती कर ककरो आँखी मा खटकय झन
उकर जिनगी मा सुघ्घर अंजोर बगरावव
ईमानदारी के सबला रद्दा देखावव जी
लईका मन के सुख के आधार बनव
सपना ला उकर मन के साकार करव
धरके अंगरी ओमनला बने रेंगावव
सबला तरक्की के सीढिया चढ़ावव जी
रचना
देवेन्द्र कुमार ध्रुव (फुटहा करम )
बेलर (फिंगेश्वर)
जिला गरियाबंद 9753524905

पागा कलगी -6//शालिनी साहू

फागुन तिहार आगे रंगो संगवारी
-------
फागुन तिहार आगे रंगो संगवारी
संगी जहुंरिया मन मारय पिचकारी
छोटे बड़े लईका मन देवय किलकारी
फागुन तिहार आगे रंगो संगवारी
ले चल रे सैंया बनारस के खोर में
कुछ भेद नइये रे तोर अउ मोर में
मन के बात ल में कहे नइ सकों
तोर बिना साहू मैं रहे नइ सकों
मन के पीरा मोला हाबय बड़ा भारी
फागुन तिहार आगे रंगो संगवारी
आज हंसा के मोला झन जाबे छोड़ के
चले आहूं तोर घर लुगरा-ला ओढ़ के
रंग के मारे बैरी राधा बोथागे
लुगरा अउ पोलखर नि-रंग हा बोहागे
तैं बने कान्हा मे-हर बने राधा मतवारी
फागुन तिहार आगे रंगो संगवारी
शालिनी साहू
साजा बेमेतरा

सोमवार, 21 मार्च 2016

पागा कलगी -6//देव साहू

होली हे संगी
जम्मो संगी मिलजूल के होली खेलबो
आनी बानी के रंग गुलाल मन ल मिलाबो
येदे फागुन के महिना आगे, तिहार मनाबो
नानपन के संगी संगवारी ल भांग खबाबो
मया के भाखा रंग रंग के बोली गोठियाबो
आगे होरी तिहार रे संगी परसा संहरावत हे
नवा बाई लायेव होरी म घर जाय बर जोजियावत हे
दाई बहिनी किसम किसम के रोटी पिठा बनावत हे
डोकरा बबा रंग रंग के पिचका ल सजावत हे
आमा पान मउरे हे चल संगी तिहार आवत हे
जगा जगा टुरा मन डोरी लमाय होली छेकत हे
अवईया जवईया मन ल होरी टिका लगावत हे
कोनो दुतकारत कोनो रुपिया भर मया ल बगरावत हे
देखव देखव संगी आगे फागुन तिहार
पिचका भर भर मारे नोनी रंग गुलाल
जाड के सिराती, आगे आगे सुग्घर महिना
नाचत गावत हाबय देखव रूख म नवा पिका
डारा पाना उल्हागे हरयागे भुंईया के अचरा
जाड घलो भूलागे अपन जुन्ना रद्दा ल
गरमी ह गोड लमावत जरत हे भोम्भरा
मया के गीत गुनगनाय हबय भोंगर्रा
चलव नाचव संगी बनके बनके गुवाल
झन पिहू संगी पउवा होथे ग बवाल
डारा पाना म रुख लदागे लगे दुल्हिन कस बारी
घर कुरिया चुकचुक ले लगय लिपाय हे दुवारी
पहाती पहाती सुकवा के चेत हरागे गा भैया
जय होवय जय होवय तोर छत्तीसगढ मैया
मंदरस म माछी मगन होके रिझागे गा भैया
आनी के बानी पाटी पारय रिसागे गा सईया
झन मार पिचका भैया दीदी ह डरावत हे
अईठत किंदरत हे कतको पिये भांग के गोला
दीदी बहिनी कहत हे झन रंग गा भैया मोला
एककन के मजा बर बेच झन सांस ला
मछरी कस फसे हे जिनगी लिल झन फास ला
होरी तिहार आवत हे आवत हे रंग अउ गुलाल
कोनो अलहन झन कर झन होवय कोनो मलाल
------------------------------------
देव साहू
गवंईहा संगवारी
कपसदा धरसीवा
9770763599

पागा कलगी -6 //लक्ष्मी नारायण लहरे

-----------------------------------------------
आ रंग लगाहूँ रे पीला -नीला 
______________________
सखी आ खेबोंन होरी 
रंग धरेंहंव पीला नीला
मया के रंग लगाले
मोर संगवारी
काबर मुहु ल फेरत हस
पिचकारी म रंग नइये
काबर डरावत हस
काब्या , तन्नु नाचत हावे
ईशा देख भागत हावे
चल आ
आ रंग लगाहूँ रे पीला -नीला
होरी के हे तिहार
रंग म हावे मोर मया अउ पियार
आ मोर संगवारी
रंग धरेंहंव पीला नीला
मया के रंग लगाले
खुसी के आज दिन आय
छोटे बड़े के भेद ल मिटादी
गले मिलके मन ल मिलाली
आ संगवारी
अपन मया के संदेशा भाई ल बता दी
दाई -ददा के आसिरवाद ले ली
गाँव गली म संगवारी
होरी के बहाना
दुसमनी ल भुलादी
आ रंग लगाहूँ रे पीला -नीला
सखी आ खेबोंन होरी
रंग धरेंहंव पीला नीला
मया के रंग लगाले
मोर संगवारी
० लक्ष्मी नारायण लहरे , 

साहिल, कोसीर सारंगढ़

पागा कलगी -6//मिलन मलरिहा

**अटकू-बटकू, छोटकी-नोनी जऊहर धूम मचाएँ**
""""""""""""""""""""""""""""''''''''''""""""""""""""""""
होली के रंगोली म, हुड़दंग मचे हे भारी
छोटकी-नोनी धरे गुलाल, पोतत संगी-संगवारी
अटकू-बटकू घरले निकले, तानके रे पिचकारी
एकेच पिचका म रंग सिरागे, फेर भागे दूवारी
रंग गवागे बाल्टी ले जईसे कुँआ ले अटागे पानी
पानी के होवत बरबादी, समझगे छोटकी-नोनी
पिचकारी ल फेंक सबोझन, थइली म भरे रंगोली
नांक-गाल म पोत गुलाल, खेलत हे सुक्खा-होली
छिन-छिन बटकू घर म जाके खुर्मी-ठैठरी ल लाएँ
संगे बतासा भजिया सोहारी अऊ पेड़ा ल खाए
अटकू-बटकू, छोटकी-नोनी जऊहर धूम मचाएँ......
-
नंगाड़ा नइ थिरके थोरकुन, बेरा पहागे झटकुन
डनाडन बाजय गमकय, सबके कनिहा मचकुन
मंगलू कहे सुन भाई कोदू, दारु लादे-ग चिटकुन
दूनोंके तमकीक-तमका म सिन्न परगे थोरकुन
झुमा-झटकी म झगरा होगे, पुलिस-दरोगा आगे
दारु-नसा के चक्कर म, किलिल-किल्ला ह छागे
मंगलू, कोदू पुलिस देख, गिरत-हपटत ले भागे
थिरकत नंगाड़ा ह फेर अपन मया-ताल गमकाएँ
अटकू-बटकू, छोटकी-नोनी जऊहर धूम मचाएँ......
-
बादर होगे रंग-गुलाली, सबोजघा हे लाली-लाली
हरियर-लाली रंग पेड़के, जइसे तिरंगा हर डाली
सरग-बरोबर लगे हमर छत्तीसगढ़ अंगना-दूवारी
नसा-तिहार झीन बनावा, मया-परेम बगरावा
छोटकी-छोटकू, नोनी-बाबू ल नसा झिन बतावा
नवा-पीढ़ी ल गोली-भांग, फूहड़ीपन मत सिखावा
भरभर-भरभर जरतहे होली, सत के रद्दा देखाएँ
भगत पहलाद के होलिका फूफू आगी म समाएँ
लईकामन भगवान रुप हे, कपट-छल नई भाएँ
दिनभर दउड़त-नाचत-खेलत जऊहर धूम मचाएँ।


रचना- मिलन मलरिहा
मल्हार, बिलासपुर
9098889904

पागा कलगी -6//सुनील साहू"निर्मोही"

"मया के सतरंगिया होली"
रंग मया के लगा ले संगी,
झन छुटय मया के बंधना।
सात रंग ल बनाके दुलरवा,
तै रंग जा पिरित के रंग मा।
लाल गुलाबी हरा रंग नीला,
जिनगी हरियर हरियर लागे।
सात रंग ह छठा बगराये,
होली सब के मन ल भागे।
फ़ाग गीत अउ नगारा बाजे,
सुनके हिरदय ल बड़ निक लागे।
रंग उड़ावत गले मिल जाथे,
बैरी दुश्मनी सबे भूल जाथे।
पिचकारी अउ मुख़ौटा लगाके,
झूमत हांसत होरी खेलय।
घोर के रंग बाल्टी गंज म,
संगी साथी ल धर के चिभोरे।
भारत भुइयां म रंग बगरे हे,
जइसन,इंद्र धनुष जनगण म।
होली मनके के मिलन बढ़ाते,
अउ मया जगाथे तनमन म।
कका भईया अउ घर के सियान,
हाथ जोड़ मैं रंग लगावव।
दे आशिस सुखी रखे भगवान,
अईसन सुघ्घर होली मनावव।
सुनील साहू"निर्मोही"बिलासपुर
ग्राम- सेलर
जिला- बिलासपुर
मो न.-8085470039

रविवार, 20 मार्च 2016

पागा कलगी -6 बर//जयवीर रात्रे बेनीपलिहा

"मया पिरीत सुग्घर के होरी"
होरी हे होरी हे होरी,
जम्मो कोती हे होरी,
गोरी खेलत हे होरी,
संगी खेलत हे होरी,
मया पिरीत के सुग्घर होरी।
दया मया के सुग्घर होरी,
संगी जम्मो नाचत हे होरी,
जम्मो कोती माते हे होरी,
रंग रंगोली म छाये हे होरी,
मया पिरीत के सुग्घर होरी।
संगी जहुरिया मन मारे पिचकारी,
होली खेलत हन जम्मो संगवारी,
डंडा नाचत हन घर अंगना दुआरी,
होरी के मजा हर आवत हे बड़ भारी,
मया पिरीत के सुग्घर होरी।
लईका मन खेलत हे होरी
जम्मो झन सनायें हे रंगोली,
चिरहा फटहा कुरता पहिरे,
जम्मो संगी मचावत हे होरी,
मया पिरीत के सुग्घर होरी।
मन म सबके मया। पिरीत हे,
बैरी दुश्मन साथ खेलत हे होरी,
गीत गावत हे सबो आनंद म माथे,
संगी सहेली गोरी जम्मो खेले होरी,
मया पिरीत के सुग्घर होरी।
संगी जम्मो खेलत हे होरी।।।
जयवीर रात्रे बेनीपलिहा
थाना- डभरा,जांजगीर चाम्पा,
(छत्तीसगढ़)
Mo. No. 8349323652

पागा कलगी -6 बर//नवीन कुमार तिवारी

लाइकोरी हो या हो कखरो सुुवारिन,
रंगत में छाये केसरिया रंग ,
परसा के फूल हा मचाये हवे बहार ,
संगे झूमत अमुवा के मऊ रा ,
कई से लजावत हमर संगनिया ,
सब्बो डाहर हवे रंगेच्च के बौ छार 
फागुन तिहार आगे संगी ,
रास रंग के बहार आगे संगी ,
नवा नवा कलेवा ले ,
मद मस्त मन के तिहार आगे संगी ,
जहां लुका बे तेन्ह ,
पहुंच जाहि रंग है 
तन बदन हो जाहि ,
रंग ले सराबोर ,
बस मुख दिक्ला जा संगी ,

नवीन कुमार तिवारी

पागा कलगी -6//गरिमा गजेन्द्र

"ये बार होली चल न ऐसने खेलबो"
………………………………………………
ये रंग मे एकन रंग खुशी के ले आवव
सबे के जिनगी म रंग खुशी के घोलव
ये बार होली चल न ऐसने खेलबो
गलती ले कोनो ल दुःख पीरा देय होबो
अपन हर गलती के माफी मांग लेबे हम
नाता मा रंग ऐसन घोलन
सब नाता ल एके धागा म बांध लेबो हम
ये बार होली चल न ऐसने खेलबो
कोन्हो छुट गे होही वहु ल संग म मिला लेबो
कोन्हो रूठ गे होही वहू ल मना लेबो
सब रंग ल अपन रंग म मिला लेबो
ये बार होली चल न ऐसने खेलबो
हर छन बितात हे जे पल ओला अपन
मुट्ठी मा बांध लेबो
नई भुलन ये होली ल
ये पल म जी भर के जी लेबो
ये बार होली चल न ऐसने खेलबो
आतंक के प्रहार ले कांपत हे भुंइया डोली
मया के रंग गुलाल ले चल न खेलबो होली
कम होगे हे धरम करम
कम होवत हे मानवता
अब धरती के कोरा म पलत हे पापी
गवा गे हे हासी ठीठोली
वो ल सहेजबो
ये बार होली चल न ऐसने खेलबो
बिश्वास के भरबो झोली
मिलजुल के खेलबो होली
झन होवय घर कोन्हो बीरान
होवय झन कोन्हो बहिनी के अपमान
झन होवय काकरो मांग सुना
होवय झन कोन्हो लइका अनाथ
गांव गांव होये रंग रोली
ये बार होली चल न ऐसने खेलबो
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रचना - गरिमा गजेन्द्र
सरोना जिला - रायपुर

पागा कलगी -6//सुखन जोगी

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कहत जोगीरा सा रा रा रा....रा...
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ऋतु आइस ऋतुराज आइस
संग फगुनवा होरी लाइस
दुनो परकिति संग होरी रचाई
इक सेमर दुसर टेसु अरग लगाई
गमके लगे फगुनवा जउने रंग बगराये
बारह मासन इक मास होरी मनाये
एक होरी बिरज म दुसर होरी ३६गढ़
खेले कनहइया सब रंग लगाये चढ़ बढ़
तब की होरी पक्का अरग लगाइ
अब की होरी बस तन गमकाइ
अमुना घाट कनहइया खेले
गोपियन संग अबीर गुलाल ले ले
देत हाना -
सब के सजनिया रिंगी चिंगी मोर
सजनिया गोरी राधा रे ..
तन मोर सांवर मन करवं काहे आधा रे...
कहत जोगीरा सारा रा रा रा....
अब के होरी कर ले जतन
अबीर गुलाल ले ले मलन
झन करहू भाई बात अचरज
कर लव ग पानी के बचत
चाही कउनो भेद होय चाही मनमेट
लगावव रंग गर मिल हिरदे टेक
का के भरम का के भेद
ये होरी म सब देवव मेट
कहत जोगी आज मया भाखा ले
सब संगवारी ल होरी मुबारक हे...
हाना- सब के होली भंग मतंगी मोर होली सादा रे
कहे जोगी अबीर गुलाल लेवव मन भर जादा रे....
जोगीरा सा रा रा रा...रा.....
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रचना - सुखन जोगी
ग्राम - डोड़की, बिल्हा (छ. ग.)

पागा कलगी -6//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

"सूरता नान्हेपन के होरी के"
मोला सूरता आथे संगवारी,
नान्हेपन के रंग गुलाल,अउ संगी के गुरतूर गारी।
मोला सूरता आथे संगवारी,
नान्हेपन के होरी,
मोला सूरता आथे---
सूरता आथे मोला गांव के गली के,
खांध जोरे हमर टोली चलई।
मीतानी रंग लगायेला बल्ला अउ बल्ली के,
हांका पार-पार हमजोली बलई।
मोला सूरता आथे संगवारी,
नान्हेपन के निच्छल परेम अउ मया के दुवारी--।
मोला सूरता आथे---
सूरता आथे मोला कुआं के पार,
चार हांथ म पानी लउहा बाल्टी ल डार।
छलकत बाल्टी के पानी ल उतार,
अऊंहा-झऊंहा पुड़िया के रंग ल मतार।
मोला सूरता आथे संगवारी,
बचपन के उज्जर रंग अउ बांस के पिचकारी--।
मोला सूरता आथे---
सूरता आथे मोला गुरूजी के बोली,
दूनी के पाहड़ा अउ एके ठन खोली।
चामटी के भाखा अउ मांड़ी तरी गोली,
मनखे बनाये बर फेर आवथे होली।
मोला सूरता आथे संगवारी,
बचपन के सादामन अउ सपना के रखवारी--।
मोला सूरता आथे---
मोला सूरता आथे संगवारी,
नान्हेपन के होरी मोला सूरता आथे-----
रचना :---सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
शिक्षक पंचायत
गांव - गोरखपुर पोस्ट- पिपरिया
कवर्धा,जिला-कबीरधाम(छग)
मो, 9685216602