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सोमवार, 4 जुलाई 2016

पागा कलगी-12/47/आशा देशमुख

परकिति के गोहार
सुनलव ......रोवत हे कलप कलप के
धरती हा तरवा धरके ,
किंजरत हे अतियाचारी
देवत हे दुख बड़ भारी .....राम हो
कइसे .......पीरा बतावंव मोरे राम हो |
1 पाँच पदारथ हा जुल मिलके
परकिति ला सिरजावय
ये ....परकिति.....
रुखवा राई जीव जनावर
सबो म साँस समावय |
हाँ....सबो....
देखव ......नदिया नरवा ह खिरत हे
भुइँया हा परिया परत हे ,
मनखे हा बन गे आरी
काटय साँसा के नारी (नाड़ी ) राम हो
कइसे ....दुःख ला गिनावंव मोरे राम हो |
रोवत हे कलप कलप के ..........
2.......मोरे सब बिन मुँह के धन के
कोनो नइहे बचईया
टपकत हे आँखी ले आँसू
नइ हे कोनो पोछइया |
देखव ....मरत हे खुरच खुरच के
कसई मन टोंटा मसके
गिधवा के साहूकारी
हंसा के चाम उघारी ..राम हो
कइसे....पीरा बतावंव मोरे राम हो |
रोवत हे कलप कलप के............|
3.........जागव रे सब मनखे मन हा
भरम के तोपना खोलव ,
इहि परकिति मा जिनगी हावे
मया के बोलना बोलव |
माँनव ....रुखवा हे छइहाँ सुख के
संगी अय सबके दुख के ,
आही ग मया के पारी
भरही भुइँया के थारी ....राम हो |
अइसे.....धरती ममहावव मोरे राम हो
सुघ्घर.....धरती लहरावव मोरे राम हो |

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

पागा कलगी-12/46/उमेश श्रीवास,सरल

परियावरन ला बचाबो🌾
।।।।।🌴गीत🌴।।।।। कटगे कतिक रुख-रइया,/ए भइया/
जलगे कतिक रुख-रइया।
रुख लगाए बर जाबो, परियावरन ला बचाबो
ए भइया कटगे कतिक रुख-रइया----
रुख बिन देख बदरिया लुकागे,
खेतखार अउ नरवा सुखागे।
चिरई-चिरगुन बघवा-भालू
फलमूल बिन सबो हावें दुखालू
फलदार रुख लगाबो
परियावरन ला बचाबो
ए भइया कटगे कतिक रुख-रइया----
हवा बिन जग के सांस ह अटके,
बिन पानी जइसे मछरी ह तड़पे।
परदूषित जिनगानी ह होंगे,
अपन करम ला सब कोई भोगे।
सुखी जिनगानी बनाबो
परियावरन ला बचाबो।
ए भइया कटगे कतिक रुख-रइया----
त्रेता में लछिमन मुरछा खाए,
तब हनु संजीवन परान बचाए।
जड़ी-बुटी ला बचाबो
परियावरन ला बचाबो।
ए भइया कटगे कतिक रुख-रइया----
-------------------🌻----------------------
उमेश श्रीवास,सरल,,
रत्नान्चल साहित्य परिषद अमलीपदर,वि.ख.मैनपुर
जिला-गरियाबंद छ.ग
7077219546
9302927785

पागा कलगी-12 /45/दिलीप वर्मा

गीत
झन काटौ रे झन काटव गा
जिनगी के अधार ल झन काटौ रे
जिनगी के अधार ल झन काटौ गा
एकरे देये खाथन संगी
पिथन एकरे देये ला
फर फूल अउ लकड़ी पाथन
पानी एकरे गिराये ला
हवा सुधरथे सुग्घर संगी
एकरे करे कमाल रे
झन काटौ रे झन काटौ गा
भूखा रहिबे चलजही संगी
पियासा रहिबे चलही गा
आज नहीं त काली मिलहि
सबके दिन ह बदलहि गा
बिना हवा के मरना होही
पल म जाहि जान रे
झन काटौ रे झन काटौ गा
एक काटौ त दसे लगावौ
बोवौ ओरी ओरी गा
हर भाठा अउ हर टिकरा म
दिखे लाख कड़ोरी गा
धरती के अछरा ह सुधरही
जिनगी बने खुशहाल रे
झन काटौ रे झन काटौ गा
जिनगी के अधार ल झन काटौ रे
जिनगी के अधार ल झन काटौ गा।
दिलीप वर्मा
बलौदा बाजार

पागा कलगी-12/44/ज्वाला विष्णु कश्यप

झन कर बिगाड़ काट काट के झाड़ ल,
अपन तन ल झन काटव ग आरा म|
रुखुवा के संग चिरई पावत हावय तंग,
आनी बानी के चिरई के बसेरा हे डारा म,
चिरई संगआज तड़फत हावे भालू बाज,
सबो हावय रूख राई के सहारा म||
सुनव ग संगी झन होवव मतंगी,
पेंड.लगावव गांव,बस्ती पारा पारा म ||
अपन पांव झन करव घाव,
रूख ह आए जिनगी के अधार ग|
रूख ले सांस बुतवाथे भूंख पियास,
अही एक ठन जिनगी के सार ग||
देथे जिनगानी गिराथे बड़ पानी,
अपन जिनगी ल झन तैं मार ग||
कर ले जतन पेंड़ आए रतन,
लईका एक झन पेंड़ ल हजार ग||
ज्वाला विष्णु कश्यप
आ.हिं.सा.स.मुंगेली

पागा कलगी-12/43/वसंती वर्मा

पेड़ के गोहार🌹🌿🌳
रोवय पेड़ कहै भुईया ल
कइसे बांचव दाई
ये धरती के मइनसे मन
काटत हें मोर ठाही
मोर छाॅव ले मोर ठाॅव ले
जिनगी जेमन पाइन
काबर होगिन बइरी ओमन
जेमन फर फूल खाइन
मंय हवं ठिहा चिरई चिरगुन के
हाॅवव ओखर घर दुवार
मोला काटत हें बइरी मइनसे
फेर छुटत हे चिरई मन के परान
वसंती वर्मा
बिलासपुर छत्तीसगढ़🌳

पागा कलगी-12/42/सेवक राम साहू""राम""

का सूख पाबे तै घर ला मोर
उजाड़ के।
बिन मुँह के जीव मै काला कहू पुकार के।।
🌴रसता मा छईहां घलऊ नई पाबे रे।
निर्दोष जीव ला कतका सताबे रे।।
🏕अपन बनाये बर मोर घर ला मीझाल देहे।
हरीयर हरीयर रुख राई जम्मो ला काट देहे।।
🏜भीयं के इज्जत रुखे राई ले हे।
स्वर अऊ संगीत तोता मैना चिराई ले हे।।
🕴सबो अपने कस मानव संगी हो।
अपनेच ला अपन झन जानव संगी हो।।
🙏�सेवक राम साहू""राम""🙏
ऊनी (खम्हरीया)
8085719189

पागा कलगी-12/41/श्रवण साहू

काटत हस रूख राई ला,
मानसुन ला अब परघाही कोन?
पेड़ तो कतको जीव के बसेरा
चिरई चिरगुन ला बचाही कोन?
सुरता कर तोर नानपन ला
अमरईया म झुला झुलत रहे।
निक निक सुघर पीपर तरी
मनेमन म अब्बड़ फुलत रहे।
संसो कर ऊही डारा के तैंहा
झुलना तोला अब झुलाही कोन?
पेड़ तो कतको जीव के बसेरा
चिरई चिरगुन ला बचाही कोन??1??
रूख राई देबी देव बरोबर
तैं पांव मा आरी चलावत हस।
डहाके तै काखरो घर डेरा
पाप ला भारी कमावत हस।
राकछत बनत हे मनखे ह ता
मानवता धर्म ला निभाही कोन??2??
आवत जावत तोर संसा के
आवन जावन हा टूट जाही।
माटी कस परे रहिबे माटी मा
देहे ले जीव जब छुट जाही।
बिन लकड़ी के तोर चिता ला
कामा अऊ कईसे जलाही कोन?
पेड़ तो कतको जीव के बसेरा
चिरई चिरगुन ला बचाही कोन??3??
रचना- श्रवण साहू
ग्राम-बरगा, जि.- बेमेतरा

पागा कलगी-12/40/ओमप्रकाश चौहान

हमर जंगल दाई
🌴🌲🌳🍁🍂🌵🌴
रुख राई जंगल दाई 
ये जम्मो हमर परान हे,
झन काटव बयरी कोई
हमर पुरखा येहर निसान हे।
कईसन सुख पाए बर
करे निच्चट उदीम तैय,
निरलज जिव के घर उजार
करदेस मानवता गिरवी तैय।
ये पुरवा अमराई हलधर के
भार भरोसा बर अब कोन हे
करनी निटोरत मानुष के
पकरिती काबर अब मउन हे।
नोहर भुंइयाँ मानुस भर,
गोहार करत 'ओम' जम्मो महान
न तोर ताक बगरय न मोर
करव सबे अइसे जुरमिल निदान।
🌴 ओमप्रकाश चौहान 🌴
🌻बिलासपुर🌻

पागा कलगी-12/39/सुरेश कुमार निर्मलकर'सरल'

रुख राई भुइयाँ के देवता बरोबर
जतन करे ले येकर भइया
करिया बादर लकठियाही,
झिमिर झिमिर पानी बरसाही,
लहर लहर तोर खेत लहराही,
नही त भोगबे लातूर बरोबर
सुक्खा ठाड़े हाहाकार मचाही।
परबूधियई म भुगतावत हे तोला,
परकिती देख चेतावत हे तोला,
बन जा अब तो सुजानिक बेटा
छोड़ टंगिया,आरी अउ बउसला।
भुंइया के देवता ल जौंहर
तै बने संजोवत हस,
आरी चला के रुख म तै
अपनेच जर ल खोदत हस।
जेकरे पुन परताप म तै
सुग्घर जिनगी जियत हस,
रेत रेत आरी म तै
ओकरेच गर ल पूजत हस।
चिरई चिरगुन् जीव परानी के खोंधरा
अपन सुवारथ बर उजारत हस,
पिलवा मन के दुख म
करेजा महतारी के कलपावत हस।
तै कइसे रहिबे रे बुध नासी
चिरई चिरगुन् के घर ल फ़ोरत हस,
रुख राई के संग छोड़त हस,
धरती दाई के सिंगार उजारत
पछताबे तै पाछु परबूधिया
अपने रद्दा तै बिगाड़त हस।
जतन करके संगी जतन करके गा,
संवार दे जिनगी जीव जन्तु रुख राई के,
तोरो जीवन भर के इहि मन अधार ये,
अउ दुनिया म इहू मन ला जिए के अधिकार हे।
🙏🙏🙏
रचना
सुरेश कुमार निर्मलकर'सरल'
वार्ड नं.12 बेरला जि.बेमेतरा
9098413080

पागा कलगी-12/38/तरूण साहू "भाठीगढ़िया"

जान बुझ के टंगिया ल अपन पांव म मारव झन
==========================
जान बुझ के टंगिया ल, अपन पांव म मारव झन ।
अपन घर ल अंजोर करेबर, दूसर घर ल बारव झन ।।
रुखराई अउ जीव जंतु सबो हर हमर मितान हे,
जे हर येला काटथे मारथे वो हर पशु समान हे ।
चिरई चिरगुन जंगल के परानी मनला तुमन मारव झन,
जान बुझ के टंगिया ल अपन पांव म मारव झन ।।
रुखराई ल काटबे त हावा कहाँ ले पाबे तै,
बरषा जब नई होही त पानी कहाँ ले पाबे तै ।
अंकाल अउ दुकाल ल, तुमन हर गोहरव झन,
जान बुझ के टंगिया ल अपन पांव म मारव झन।।
सुरूज अंजोरी म पाना ले रुख हर खाना बनाथे,
हावा ल सुद्ध करथे अउ बरषा घलो बुलाथे ।
जे खांधा म बइठे हो उही खांधा ल काटव झन,
जान बुझ के टंगिया ल अपन पांव म मारव झन।।
धरती के सिंगार करे बर रुखराई ल जगबो,
हरियर परयावरन बनाके परदुसन ल भगाबो।
परयावरन के मरजादा अउ नियम ल बिगारव झन,
जान बूझ के टंगिया ल अपन पांव म मारव झन।।
तरूण साहू "भाठीगढ़िया"
ग्राम भाठीगढ़, ( मैनपुर )
जिला गरियाबन्द ( छ.ग.)
मो.न. 9755570644
9754236521

पागा कलगी-12/37/ज्ञानु मानिकपुरी "दास"

"धरती दाई क गुहार"
~~~~~~~~~~~~
का होही दुनिया म, गुनके हव परशान।
दुनिया मा मनखे कथे, सबले हवव सुजान।
सबले तय हावस रे ज्ञानी। काबर करथस रे नादानी।
दुरिहागे हे अन्न अउ पानी। बिपत म डाले तय जिनगानी।
लगय काबर कखरो पीरा। तोला ऊट के मुहु म जीरा।
कखरो करलई अउ चितकार। फेर काबर नइ सुनय गुहार।
तुहुमन ओखर कोरा म, थके मांदे थिराव।
थोरक स्वारथ म आके, सबला जथव भुलाव।
जग म सबले ज्ञानी कहाई। काबर बन गय फेर कसाई।
रुख राई ल लगा नइ सकव। आरी टनगिया म काटत हव।
चिरई चिरगुन के उजड़े घर। भटके ये डहर ले वो डहर।
भुखे प्यासे उन कहा जाही। पानी बादर कहा लुकाही।
रुख राई जिनगी के, जानलव ग आधार।
करव पेड़ के तुम जतन, इही तोर बर सार।
लकड़ी जड़ी बुटी अउ फल फुल। सबला प्राणवायु देथे कुल।
धरती माँ के सिंगार आवय। देथे छाँव बरषा बलावय।
चिरई,नदी,अउ रुखराई। अउ मनखे सब भाई- भाई।
मिलके सब तोर करथे जतन। "ज्ञानु" कर सन्कल्प उखर कर जतन।
नदी,रुखराई, जंगल, के मिल करलव मान।
धरती के गुहार ल सुन,इखर ले तोर जान।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
ज्ञानु मानिकपुरी "दास"
चंदेनी कवर्धा
9993240143

पागा कलगी-12/36/सुनिल शर्मा"नील"

"झन काटव जी रूख ल"
(विधा-दोहा)
*********************************
होके अंधरा स्वार्थ म,कइसे तोरे
काम
काटे सइघो रूख ला,तँय बिकास के
नाम
जीयत भर तो रूख हा,देथे तोला
सांस
देथे ममता दाइ कस ,करथस ओखर
नास
जरी-बूटि,फल-फूल के,देथे वो
उपहार
रेंगावत आरा हवस,सुने बिना
गोहार
गावत झूलय झूलना,बइठ चिरइमन
साख
खोंदरा उखर उजारके,दिए काट
तँय पाँख
तड़फत सब्बो जीवमन ,देवत हवय
सराप
करही तोरे नाश रे,मनखे तोरे
पाप
गरमी लगही जाड़ कस,सावन पानी
ताक
रौरव नरक ल भोगबे,मिल जाबे तैं
खाक
घूरही जिनगी म जहर,परदूसन के
मार
भोगेबर करनी के फल ,रह मनखे
तइयार
भुइयां नोहय तोर भर,सबके हे
अधिकार
जीयन दे सबो जीव ल,सबला
दे ग पियार
रूख बिना हे काय रे,मनखे तोर
औकात
रुख हवय त तय हवस,सार इही
हे बात
झन काटव जी रूख ल,"नील"
कहत करजोर
रुख लगा हरियर करव
बारी,अगना,खोर|
********************************
सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया,बेमेतरा(छ.ग.)
7828927284
24/06/2016
copyright

पागा कलगी-12/35/चैतन्य जितेन्द्र तिवारी

विषय =चित्र अधारित
""""""""""""""""""""""""
हरियर हरियर रुख ला काटत हन
हाँथ म धरे बसूला टंगिया अउ आरी
नई बांचत हे कटई ले कोनो जगह
खेतखार गाँव घर जंगल अउ झारी
पेड़ हर देवत हे बिन मांगे सब कुछ
जरीबूटी फरफूल हवा निरमल पानी
दुनिया म जीवन के आधार हरे रुख
इही परकिति के पहिली पहल निशानी
जब लगा अउ उगा नइ सकन रुख ल
त आखिर हम कोन होत हन कटइया
हमन सब जानत हन सब देखत हन
तभो ले हमन कोनो नइ हन बोलइया
उजाड़ घर सब जीव-चिरईयन के
घर अपन कतका सुग्घर बसावत हन
बिचार करव अपन काम ल साधे बर
दूसर के ला हम कतका बिगाड़त हन
एक डहर परकिति ला बिगाड़त हन
करत हन जीव हत्या बनके मांसाहारी
दूसर म कहिलाए बर परकिति परेमी
रचत हन बड़ कविता बनके कलमधारी
जियव अउ जीयन दव के सन्देश ला
चलव जम्मो जुरमिल के अब अपनाथन
नइ काटन रुख ला नइ करन जीव हत्या
चलव परकिति ले मया ला अब बढ़ाथन
CR
चैतन्य जितेन्द्र तिवारी
थान खम्हरिया(बेमेतरा)

पागा कलगी-12/34/ सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

छत्तीसगढ़ी लोकगीत पंथी ह सरल भाषा म
संदेश परधान गीत होथे,ए चित्र आधारित रचना
ल पंथी गीत के तरज देयके परियास करे हंव।
देखव सुनव गा मितान,
लोग लईका सियान।
पेड़ के कलपना डाहर,
देवव गा धियान।
चिरई के तलफना डाहर,
देवव गा धियान।
मनखे के आरा ह,
पेड़ ऊपर चलथे-2
चिरई के खोंदरा ह,
टुट कर गिरथे-2
चिरई होगे हलाकान,
छुट जाही का परान।
पेड़ के कलपना........।
चिरई के तलफना.......।
पेड़ के महत्व ला ,
सबो देखत जानत हे-2
लालच मे अंधरा,
देखके नई मानत हे-2
कइसे जीबो गा सियान,
बिरथा हो जाही गियान।
पेड़ के कलपना......।
चिरई के तलफना.....।
बिरवा लगाये के,
किरिया गा खाना हे-2
सबो जीवजंत के,
घरौंदा बनाना हे-2
नवा होवय गा बिहान,
सुख पावय भगवान।
पेड़ के कलपना.....।
चिरई के तलफना.....।
रचना:-- सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर,कवर्धा
9685216602

पागा कलगी-12/33/लक्ष्मी नारायण लहरे

झन काटव ग रुख- राई ल जिनगी के अधार आय 
______________
झन काटव ग रुख- राई ल जिनगी के अधार आय 
बर- पीपल, नीम के छाँव म जी ल जुडाबो
सुघ्घर सीतल छाँव म बईठ के मया के गोठ बतियाबो
नान नान नोनी बाबु मन छैईयाँ म खेलहिं भंवरा -बांटी
दोपहरी के बेरा म पनिहारिन बईठ के छैहैहि
सखी -सहेली मन बईठ के करहीं ठठ्ठा - मुसकरी
खेत - खार ल थके हारे किसान ह बईठ बासी खाही
चिराई - चुरगुन मन बईठ के चहचहाही
कुकुर - बिलाई ह घलो छैईयाँ म सुसताही
सुघ्घर ,सीतल हवा मिलही
बरसा होही खूब
सुरुज के नखरा नी चलैय
सुर सुर हवा मिलही
जिनगी के अधार आय रुख- राई ....
झन काटव ग रुख- राई ल जिनगी के अधार आय
० लक्ष्मी नारायण लहरे , साहिल, युवा साहित्यकार पत्रकार
कोसीर रायगढ़ - ०९७५२३१९३९५

पागा कलगी-12/32/हेमलाल साहू

@ हावे रुख राई मा जिनगी @
हावे रुख राई मा जिनगी, झन काटव ग परानी।
हवे सबो के डेरा संगी, झन करव ग मनमानी।
सबो जीव के ठउर ठिकाना, हावे रूख राई हा।
जंगल रहिथें बघवा भलुआ, पेड़ म रहै चिरई हा।।
हमर सवारथ मा सबके जी, उजरत हावे डेरा।
चिरई चुरगुन रोवत हावे, कहा करीन बसेरा।।
दिया बुझाये जिनगी के गा, जलय कहाँ अब बाती।
रुख राई हा कटगे संगी, जरथे भुंइया छाती।।
नई मिलै निरमल पुरवाई , खोज लवा तुम सासी।
बून्द बून्द पानी बर तरसे, जिनगी होगे फाँसी।।
सोचव समझव आवौ संगी, लगावौ रुख राई ला।
बाग बगइचा खूब लगावौ, बहाव पुरवाई ला।।
सुघ्घर धरती ह सम्भरे जी, पहिरे हरियर लुगरा।
मान रखव परिकरिती के जी, करव कभू झन उघरा।।
अपन बना ले बेटा संगी, तैहा रुख राई ला।
जिनगी भर तोर संग देही, लाही पुरवाई ला।।
जंगल झाड़ी रुख राई हा, हमार तो जिनगानी।
चिरई चुरगुन जम्मो हावे, इहि तो हमर निसानी।।
संगी मानव बात हेम के, करलव मया जगत ला।
सबके जिनगी अपने समझव, राखव मया भगत ला।।
-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़ जिला बेमेतरा
मो. नम्बर 9977831273

पागा कलगी-12/31/टीकाराम देशमुख "करिया"

"झन कांटव रुख-राई ल"
झन कांटव रुख-राई ल........
सुन लव मोर भाई ग..
1. जिनगी के अधार हावे ,जम्मों रुख-राई
नि रही भुईयाँ मं , हो जाही ग करलाई
राखव सम्हार.....2 , परकिति दाई ल....
सुन लव मोर भाई ग
झन कांटव ..............
2.रुख-राई कांट के, बनाये तैंहा डेरा
चिरगुन मन के तैँ , उझारे रे बसेरा
सुख के देवैय्या.....2 ,रुख सुखदायी ग....
सुन लव मोर भाई ग
झन कांटव..........
3. फूल,फर,कठवा ; झन अतके तैँ जान
चलत हे सुंवांसा सबके , एकर (रुख) सेती मान
चलन दे तैं संगी....2, सुग्घर पुरवाई ल .....
सुन लव मोर भाई ग
झन कांटव रुख-राई ल.....
सुन लव मोर भाई ग
@ टीकाराम देशमुख "करिया"
स्टेशन चौक कुम्हारी,जिला _दुर्ग
मो. 94063 24096

शनिवार, 25 जून 2016

पागा कलगी-12/30/शालिनी साहू

परयावरण बचाबो
------------------------------
हरियर हरियर रुख लगाबो
सुग्घर सितल छंईहा पाबो
करत रहव तुमन अइसनहे कटाई
फेर झिन कहू कइसे बिपदा आई
परयावरण ले छेडछाड करहू
अपने डोंगा म खुदे छेद करहू
करत रहव जंगल परबत के छटाई
फेर झिन कहू कइसे बिपदा आई
परकिरिती ल रुष्ट करहू
जीनगी भर कष्ट सइहू
चिरइ चिरगुन के संख्या घटाहू
सितल हवा काहा पाहू
शेर भालू के दहाड कइसे आही
जंगल नइ रिही त जम्मो गाव डहर आही
परदुषन ल दुरिहा भगाहू
जीनगानी ल खुशहाली बनाहू
जेन ए बात ल नइ समझिस
तब देखव कइसे घोर बिपदा मातिस।
--------------------------------
शालिनी साहू
अमली पारा कुरुद

पागा कलगी-12/29/ललित वर्मा

बिकास के आरी चलावथे
देखव जिनगी के नारी जुडावथे
अपन डेरा के सिरजन खातिर
चिरई के खोंधरा गिरावथे
कटथे पेंड अउ चीखत हाबय
सुन मूरख इनसान
सुक्खा अकाल ह परत हाबय
काबर गुन पहिचान
महल अटारी बनाये के खातिर
बिनास के बारी बोवावथे
बिकास के आरी चलावथे
देखव जिनगी के नारी जुडावथे
रोवथे चिरई तडफत हाबे
छूटत हे जी परान
अतेक निरदई कईसे होगे
देवता सरिक इनसान
निज-स्वारथ ल साधे खातिर
करम के लेख बिगाडथे
बिकास के आरी चलावथे
देखव जिनगी के नारी जुडावथे
घपटथे परदूसन के बादर
करनी म तोर इनसान
भूख-बिमारी के बाजथे मांदर
नाचथे जम भगवान
परयावरन ल बचाये खातिर
पागाकलगी ह सबला जगावथे
बिकास के आरी चलावथे
देखव जिनगी के नारी जुडावथे
अपन डेरा के सिरजन खातिर
चिरई के खोंधरा गिरावथे
---------------------------------------------
रचना -ललित वर्मा छुरा गरियाबंद

पागा कलगी-12/28/देव साहू

रो रो के गोहरावत हव
---------------------------
लहू के हर कतरा ले भिज गे हव
टंगिया ले अब झन मारव मोला
आगास के बादर ले पूछलव
मोला कइसे लइका सरिक पोसे हे
~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मउसम ह खुन पसिना ले सिचे हे
माटी तको बरबसी झाडे हे
फुरफुर पुरवाही हवा ले पूछलव
जेन मया के झुलना म झुलाय हे
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हर पल मोर खियाल रखे हे
तभे अंतस ले बिजा मोर जागे हे
तय सुखा ये भुंइया म
रुखराई के एक बगिचा बना लव
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रो रो के गोहरावत हव मितान
मोला जमिन ले झन उखाडव
मेहा हर जिनगी के सांस हरव
मोर मयारु सगी मोला झन काटव
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ए भुंइया के सुग्घर छंइहा
रुखराई चिरइ चिरगुन ले बने हे
फुरफुर पुरवाई के ए हवा
अमरित बन के चलत हे
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हमरे नत्ता हे जम्मो जीव ले
जेन ए भुंइहा म संगी आही
हमरे ले रिस्ता ह मनखे मनखे के
जेन ए भुंइया म संगी जाही
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हवा गरेर ले डारा खांधा टूटगे
जगे जगाए रुख ल चुलहा म झन डारव
रो रो के गोहरावत हव
मोला जमिन ले झन उखाडव
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कतको फल फलहरी ल हमन देथन
तभो ले अजनबी सरिक पडे हन
धरे टंगिया हाथ म हमला ताक झन
जवाब देवव काबर मुरदा सन खडे हन
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हमरे ले सुग्घर जिनगी मिले हे तोला
पारत हव गोहार झन काटव मोला
बुरा नजर मोर उपर म झन डारव
तुहर मया के छंइहा ले झन मारव
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रो रो के गोहरावत हव मितान
मोला भुंइया ले झन उखाडव
मेहा हर जिनगी के सांस हरव
मोर मयारु मितान मोला झन काटव
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कहू जमिन म नई रिही रुख राई
तुहर जिनगी हो जाही एक दिन दुखदाई
तराही तराही मनखे मनखे ल होही
दुनिया म हाहाकार तको मच जाही
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तभे पछताहू तुमन ह गा संगी
हमन एला काबर बिगाडे हन
हमर ले जब घर कुरिया बनथे
दु बखत के भरपेट चाउर चुरथे
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हर घर म खडे किवाड हे
गली गली म रुख लगावव
जम्मो मनखे म आस जगावव
सुग्घर मया के रुख लगावव
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रो रो के गोहरावत हव मितान
मोला भुंइया ले झन उखाडव
मेहा हर जिनगी के सांस हरव
मोर मयारु मितान मोला झन काटव
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देव साहू
गवंइहा संगवारी
कपसदा धरसीवा