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रविवार, 3 जनवरी 2016

"छत्तीसगढ के पागा " क्र 7/विषय - "गुरू घासीदास के संदेश"

 के एकजाई रचना
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"छत्तीसगढ के पागा" क्र-7 छत्तीसगढी कविता के प्रतियोगिता के विषय हे- "गुरू घासीदास के संदेश" ये विषय मा  आये रचना अइसन हे -
1- ।। जय सतनाम ।।
सतनाम के बाबा मोर
करत हावंव पूजा तोर।
18 दिसंबर के बाबा
मनाथन तोर जयंती ल।
करत हावंव पूजा तोर
सुन ले मोर विनती ल।
सादा के धोती बाबा
सादा के डंडा।
सादा के खंभा बाबा
सादा के झंडा।
ये दे जग म नाम चले तोर।
सतनाम के बाबा मोर
करत हावंव पूजा तोर।
महंगू के बेटा अमरौतिन लाला।
फैलाये जग म तै सत के प्रकाश ल।
छाता पहाड़ म तै ह विराजे
अमृत कुण्ड म नहाये।
सत के रद्दा देखइया बाबा
सफरा माता ल तै ह जियाये।
भक्त मन जाये बाबा दरस बर तोर।
सतनाम के बाबा मोर
करत हावंव पूजा तोर
-राजेश निषाद
2-॥रचना-मिलन मलरिहा॥
************************************
सत्रहवि सदि आये बबा, बन महगू के लाल।
गिरौदपुरि के माटि मा, बसाए सत के ढाल।।
हे सतपुरुस गुरू बबा, धराए तय सतनाम।
मूरख रहि चोला हमर, बसाये सत गियान।।
सतखोजन करे तय तप, छोड़के मोह-काम।
छाता-पहड़ रमाय धुनि, गिरौदपुरि के धाम।।
सबो मनखे कहे एके, सब जिव कहे समान।
परनारी माता सही, नारी घर के मान।।
घरघर फइले चीखला, नसा-दारु हे भाइ।
मदिरा-माँस ल छोड़के , कर सतबीज बुआइ।।
जूवा तास हे अपजस , ओ धन काम न आय।
चोरी-लुट ले दूर रइ, पुरही तोर कमाय।।
देव रहिथे सबोजघा , त काबर कहू जाय।
अपन घर सुमरले ग तै, उहेच दरसन पाय।।
सब धरम एक बरोबर ग, माता पिता समान।
ककरो चुगली झिन कर ग, इही गुरु के गियान।।
जैत खम्भा मान हमर, झन्डा हे अभिमान।
सादा-सत के चीनहा , सत के हे परमान।।
छुवाछूत जग रोवत ल, करे बबा सनहार।
सबगलि हहाकार रहिच, कर देहे परहार।।
धरति रोए कापे सुरज , रहीच मनुबीचार।
सतनामे परकास रख, करदेहे उजियार।।
आसिस दे महुला बबा, जयजय हे सतनाम।
मलरिहा परनाम करय , बाबा के परमान।।

-मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर
3-बाबा जी ल परनाम हे
********************
सत के जेहा रसता देखाइस
मानव मानव ल एक बताइस
छुआछूत के भेद मेटाइस
पूरा जीवन तप में लगाइस
गिरौदपुरी जेकर धाम हे
अइसन बाबा ल माटी के परनाम हे।
छाता पहाड़ में धुनी रमाइस
दुनिया भर में गियान बगराइस
मांस मदिरा अऊ नशा छोड़ाइस
सादा जीवन जीना सीखाइस
दुनिया भर में जेकर नाम हे
अइसन बाबा ल माटी के परनाम हे।
सत के सादा झंडा फहराइस
लहर लहर जग में लहराइस
जीवन अपन सफल बनाइस
जग में अपन नाम कमाइस
घासीदास बाबा जेकर नाम हे
अइसन बाबा ल माटी के परनाम हे।
-महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया
4-नानमुन दोहा:
भारत दाई तोर वो, नइ कर सकन बखान।
ज्ञानी ध्यानी संत जन, जनमे तैं संतान।।
कबिरा राम रहीम अउ, किसन भगत रसखान।
बाढ़िस इंखर काम ले, मोर दाइ के मान।।
जात पात के भेद मा, माचिस खींचातान।
छुआ छूत के जाल मा, फंद के मरिन मितान।।
माह दिसंबर ताय जी, अट्ठारा तारीख।
सन सतरा सौ छप्पने, दे बर आइन सीख।।
होय कुरीत के खात्मा, जागिस मन मा आस।
अमरउतिन के कोंख ले जन्मिन घांसीदास।।
मंतर उंखर सात ठन, जीवन राह देखाय।
मनखे मनखे एक के, सुंदर भाव जगाय।।
महिमा तो सतनाम के, सुघ्घर करिन बखान।
पर मनखे के सोच हा बदलिस नही सियान।।
संत सबो के मंत्र ह, होथे एक समान।
बाबा घासीदास ला, बारंबार प्रनाम।।
जय जोहार....
-सूर्यकांत गुप्ता
1009, सिंधिया नगर
दुर्ग.....
5-।।बाबा के संदेशा।।
घासीदास बाबा मोरे
जग म महान हे।
छत्तीसगढ म जनम धरे
गिरौदपुरी धाम हे।।
सत के संदेशा बाबा
तोरे अमरीत बानी।
संदेशा तौर गठियाके
धरबो सबो परानी।।
मास मदिरा ले दुरिहा रहू
रसता ल बताये हँस।
सत अउ अहिंसा के मारग
छुआ छूत मिटाये हस।।
जीव हत्या बंद करव
दुनिया ल सिखाए हस।
मनखे मनखे एक समान
नारा ल गुंजाए हस।।
जब तक सुरुज चंदा रही
अमर रही तोरे नाम।
अमरौतीन मंहगू के लाला
घेरी बैरी तोला परनाम।।
-अशोक साहु, भानसोज
6-बाबा गुरु घासीदास जी ल नमन , रचना
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बबा के मिले असीस ,
बबा देदे हमु ल सिख ,
सत संग में मिले सीस ,
सत रहे जीवन परान,
छाता पहाड़ के पटौनी,
सत खम्ब बतावत एक कहानी ,
देवत सिख सब्बो मितान ल ,
मानव धरम में सत मिले सब्बो मितान ल ,
मिल के बांटो सब्बो मनखे ,
जीवन के दुख दर्द ल ,
मेहनत के सुफल मिलते ,
सत के रद्दा में सुफल मिलते ,
बनावो अइसन रद्दा के,
न मिले कोनो मानुस ल
दुःख के कांटा कूची ,
अमरौतीन माता के मिले असीस ,
सत्य के मिले सिख ,
धवल वसन धवल श्वेत काया ,
ये हवे गुरुघासी दास बबा के माया ,
मेहनत झेखर भगवान रिहिस
वहीच्चा हा सत के पुजारी रिहिस
सदा सत के गुन गाये
सदा सत के रद्दा बताये
सदा कथन सत के ,
सदा वचन सत के ,
-नवीन कुमार तिवारी ,
एल आई जी ,१४/२
नेहरू नगर भिलाई
7-छ.ग. के महान संत हवे जी, ये बबा गुरूघासीदास।
ये माता अमरौतिन हावे, ददा हावे गा महगूॅ दास।।
घासीदास जनम लिये हवे, गिरौदपुरी गॉव ला जान।
सन् सतरा सौ छप्पन हावे, अठारह दिसम्बर ला मान।।
छ.ग. भुईयॉ ह पावन होगे, गिरौदपुरी बनगे ग धाम।
बबा सत्य के पुजारी रहे, बोले गा जय हो सतनाम।।
अड़हा बईला ल सिखाये, बबा गुणकारी हवे मान।
सॉप कॉटे बुधारू जीये, बबा चमत्कारी हे जान।।
छाता पहाड़ म ये बइठके, बबा तैय धुनी ला रमाय।
सत्य रद्दा मा तैय चलके, जग म सत्य नाम ल फैलाय।।
अवरा धवरा पेड़ बइठके, बबा तैय ज्ञान ला पाय।
मानव मानव समान हावे, कहीके छुवा छुत ला मिटाय।।
जैतखाम हा प्रतीक हावे, सादा झण्डा ल फहराय।
अठारह दिसम्बर हा आगे, बबा के जयंती ल मनाय।।
-हेमलाल साहू

छत्तीसगढ के पागा क्र -6/ काव्यांश आधारित




ये दोहा के आधार मा कविता लिखना रहिस-

मुखिया मुख सो चाहिये, खान पान को एक ।
पालय पोषय सकल अंग, तुलसी सहित विवेक ।।
-गोस्वामी तुलसीदास
विधा- तुकांत कविता
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 प्राप्त रचना अइसन हे -

 1-श्री सूर्यकांत गुप्ता


छत्तीसगढ़ के पागा क्रमांक - 6 बर चार आखर....

मुखिया जानौ आज के, अपने मुख के दास।
खा खा जानै स्वाद के, मरम बियंजन खास।।
मुखिया काया मान लौ, परजा ओकर अंग।
मुख समान पोसै नही, करत रथे अतलंग।।
मर मर हाड़ा टोर के, जउन उपजावै अन्न।
खुद ल करजा म बोर के, कइसे रहय प्रसन्न।।
चिंता हाल अकाल के, वाजिब आय मितान।
जिनगी ले जी हार के, मरते जात किसान।।
काबर मुखिया मौन हे, देख दुरदसा आज।
बखत म काकर कौन हे, जानै देस समाज।।
पीरा परजा के हरै, बन मुखिया भगवान।
बनै सरग दुनिया जहां, बाढ़ै सबके सान।।
जय जोहार....
सूर्यकांत गुप्ता
1009, "लता प्रकाश"
वार्ड नं 21 सिंधिया नगर
दुर्ग (छ. ग.)
9977356340



2-सुनीता शर्मा "नीतू "



विषय - तुलसीदास जी का दोहा " मुखिया " पर आधारित ।

मुखिया के गोड़ म , परे हे छाला ।
लइका मन बर , जुगाड़य निवाला ।
लतियावत हे ,दूर दूर कहिके लइका
कइसे रिसावय , जनम देने वाला ।।
अपन लांघन रहिके ददा ह ,
लईका के जिनगी संवारथे ।
छाती पथरा हो जथे संगी जब
बाढ़ के उही लईका ह दूतकारथे ।।
काल तक रिहिस मुखिया फेर
आज देहरी के बन गे हे कुकुर ।
एक मुठा खाय बर दुनो जुआर
निहारत हे डोकरा, टुकुर टुकुर ।।
दिन बदलिस, बदल गे मुखिया ।
तइहा के मुखिया बर, टूटहा खटिया ।
खोख खोख खोखी खखारत हे
जागत रहिथे बपरा अधरतिहा ।।
सुनीता शर्मा "नीतू "
डंगनिया रायपुर
छत्तीसगढ़

3-श्री महेन्द्र देवांगन "माटी"

 मुखिया
************
मुखिया जइसे होथे घर के
वइसने घर ह चलथे
मुखिया ह कोई बने नइहे त
घर भर ल रोना परथे ।
सब ल देखथे एक समान
भेदभाव नइ करय
घर के ईज्जत बचाय खातिर
कतको दुख ल सहय।
चलथे घर ह सुनता से
जब मुखिया बने राहय
नइ होवे कभू लड़ई झगरा
जब परेम के भाखा काहय ।
आथे घर में लछमी ह
मिलजुल के जब रहिबे
होत बिनास देर नई लागे
लड़ई झगरा जब करबे ।
मुखिया के ये काम हरे
सब ल देखत रहिथे
जेकर जइसे मांग रथे
देख के पूरा करथे ।
महेन्द्र देवांगन "माटी"

4- रोशन पैकरा "मयारू"

जतन करौ मुखिया के
ये जतन करौ जी
जतन करौ सियन्हा के
ये जतन करौ जी
घर के जम्मो मनखे बर
करथे मुखिया काम
छोटे बड़े ला वो नई जानय
सबो झन एक समान
मुखिया हा भूखा रहिके
घर के पेट ला भरथे
मुखिया के बलिदान से
घर के मनखे सवरथे
जब घर में परेशानी आथे
होथे सब परेशान
तब मुखिया के अनुभव से
बन जाथे सब काम
जे घर में मुखिया रइथे
वो घर स्वर्ग समान
जे घर में मुखिया नई हे
उहाँके मनखे हलाकान
=================================
रचनाकार
रोशन पैकरा "मयारू"



"छत्तीसगढ के पागा" क्र 5 / विषय-डोकरा


1- डोकरा के बने जतन करो ग -श्री नवीन कुमार तिवारी

डोकरा के बने जतन करो ग ,,
डोकरा के सन्मान करो ग ,
डोकरा होते विरासत समाज के ,
डोकरा होते सियनहा गवई समाज के ,
डोकरा के घु डकना बिदकना
अलहन बद्दी ले बचाये के रद्दा
डोकरा के खुसुर खासर में
होते कारन कुछु समझाये के
डोकरा होते बुढुवा सियान गांव घर के ,
जइसे होवतगोठन के बुदुवारुख राई के ,
बरगद पीपर आम नीम के ,
झेखर छाहिन्या में खेलत जम्मो लइका गवाई के ,
पोसवाते सब्बो समाज गवाई के
डोकरा होते इतिहास पुरुष समाज के
पोटट होवत नियाय ओखर
जानत रहिथे नीति नियम समाज के
नाव होवत गांव सियनहा के
डोकरा के बताये गियान ले सीखो ग,
डोकरा के बताये नियाय ल परखो ग,
डोकरा के बताये रद्दा ल जानो ग,
डोकरा के बताये अपन इतिहास ल जानो ग,
अपन समाज ,गवई, देश के,
पहिचान ल बगराना हवे तो ,
दिन दुनिया समाज ले ,
अपन बानी ल मनवाना हवे तो ,
जम्मो परदेश में अपन बयार बहाना हवे तो ,
जम्मो डोकरा सियान के
करना है सन्मान जी ,
उहिच्च ले मांगना हवे ,
अग्घु जाये के रद्दा बातही,
दिही विकास बर बुधि अवु गियान ,

-नवीन कुमार तिवारी ,
एल आई जी १४/२
नेहरू नगर पूर्व
भिलाई नगर जिला दुर्ग
छत्तीसगढ़ ४९००२०
९४७९२२७२१३। .

2-नवीन कुमार तिवारी

डोकरा ददा के रवानी बने हवे,,
सब्बो झन भरत पानी हवे,,
सियान के झोखा मढ़ाले संगी ,
डोकरा ददा के सिरतोन खियाल कर ले संगी ,
,बिसराहु तो होही जी अलहन ,,
हमर गवाईमेनि चले वृद्धाश्रम संगी \
सियान सियनिन के करबों सुग्घर जतन संगी
उंखर मिलहि आशिस संगी ,
ये बेईमानी के गोठ नई ये संगी
सियान मनखे के शराफ़े ले होते,
अब्बर कल्लई संगी ,
जैसे देवता धानी के शराफ हा संगी
अपन सियान डोकरा के करो जतन
बुड़वा मनखे के हालत होते
चुटकुन नानकुन लइका समान
छुटकुन में जैसे धरते रोग राई जियादा
वइसने डोकरा कम्जोरिह के भी होते सजा
ठंड के झोखा , लइका बुढवा दुनू बार सजा
बारिश पानी हा दुनू बर मजा
जैसे छुटकुन में दाई ददा हा ,
हमनल पाले पोस के सुग्घर बनायिस संगी ,
अपन हिस्सा के साग रोटी
बचा के खवाइस संगी
तभभेबने हावन पोटट संगी
अपन अध पेट खाके करइस हमर जतन संगी
\तेखर करजा कइसे उतरही संगी ,

नवीन कुमार तिवारी ,,,,८.१२.१५

3- देखहू उपर बईठे हे भगवान-शालिनी साहू

अपने जमाना के गोठ ल गोठियाही
नाती पंतो कहिके मया के बात बताही
सही करम ल करे बर चार आखर ल सिखाही
सुग्घर जिनगी नियाव के पाठ ल बताही
कतको हसी ठिठोली करले नतनिन कहिके बलाही
राजा रानी दुनिया दारी के कहानी सबला सुनाही
चार आना बचाय बर बताही
अपने जमाना के गोठ ल गोठियाही
संझा बिहनिया खोख खोख खासत हे
चोंगी पीयत गोरसी ल तापत हे
एको बिजा दात नईये चना मुर्रा ल सोरियावत हे
नाती नतनिन बहू सब डोकरा ल खिसयावत हे
जब ले आईस बुढापा कोनो नई भावत हे
अब खटिया म बईठे प्रभु के आस लगावत हे
काम बुता बनि भुती म जीनगी पहागे
आखी कान नई दिखत धरसा म बोजागे
सबके करनी ल देखत हे उपर बईठे हे भगवान
आज ओकर पारी हे कल हमरो ओसरी हे मितान
जम्मो लईका माई पिला ल देवय सही परख के गियान
सुमरन करव अपन बढापा ल, कर लव अतित के धियान
सब झन ल लेगही देखहू उपर बईठे हे भगवान
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
शालिनी साहू
कुरुद साजा
बेमेतरा छत्तीसगढ

4-  डोकरा सियान के सममान करव -श्रीअशोक साहू

पेड़ ह चाहे कतको बुढावय
फेर देथे छांव ल सुग्घर।
सियान ह कतको डोकरा हो जाय
फेर बड संसो घर परवार बर।।
जियत भर ले बेटा नाती बर
दरर दरर के कमाथे।
उमर खसलिस ताहन बेटा बहु ह
डोकरा ल तिरियाथे।।
डोकरा के हर गोठ म
ओकर जीनगी के अनुभव समाय हे
ओकरे गियान के गोठ ल धरबो
हमला दुनिया उही देखाय हे।।
ओकरे पांव के चिनहा म चलके
जिनगी अपन संवारबो।
नई तरसावन डोकरा के मन ल
मान ल एकर बढाबो।।
सियान बिना गियान नई मिलय
बने नई चलय परवार के गाड़ी।
डोकरा सियान के सममान करव
झन बनावव ओला कबाडी।।
अशोक साहु , भानसोज

5-डोकरा ......श्रीलक्ष्मीनारायण लहरे

घर के टूटहा परछी ल धुरीहा ल देख के मुचमुचावत गुनत हावे
नोनी बाबु के किलकारी ल धुरीहा ल सुनत हावे
मन म अबड पीरा भरे हे लाठी म टूटहा परछी ल सुधारत हावे
जांगर रहिस त डोकरा झुझुलहा ल सबो काम करके सुसतावे
अब चिंता धरेहे मन म नोनी बाबु के किलकारी ल धुरीहा ल सुनत हावे
बेटा मोबाईल वाला बहु ल काम ल फुरसत निये
सबो ल सोच के डोकरा मने मन गुनत हावे
कोनो नी सुनत समझत हावे डोकरा के मन के गोठ
बेटा ल खोजत हावे ओखर संगवारी
डोकरा सबो ल समझ के मने मन मुचमुचावत गुनत हावे ....
#लक्ष्मी नारायण लहरे

6-श्री मिलन मलरिहा

1-  
उठ बिहनिया कोंघरे कनिहा
खोखोर खोखोर खासत हे
संझा बिहनिया डोकरा बबा
खटिया तरी गोरसी ल तापत हे
ठेठरी खुर्मी सोहारी बरा भजिया
मुह म नई चबावत हे
मन के साग भाजी नइ चूरय
त दिनभर चिल्लावत हे
बेटा बेटी नाती पत्तो साबों
ओला देख तिरयावत हे
अब का करय डोकरा बबा
कोनोच नइ ओला भावत हे
जब ले आइच बुढ़ापा भईया
घर के बईला न घाट के
जग हसाई ओकर होगे
प्रभु के होगे ओला आस
कुकर बिलाई कस जिनगी होगे
जल्दी बुलाले मोला अपन पास
आखी हर झुकझुकावत हे
अउ कान ह बोजागे
काम बुता बनि भूति
करत करत जिनगी ह पहागे
अब का करही डोकरा बबा
कोनोच नइ ओला भावत हे
अब कारर मेर लगाही गोहार
सबझन ओला बिदारत हे
दाई—ददा ल झन तरसावा संगी
सबके करनी ल देखत हे भगवान
पारी आज डोकरा बबा के हावय
पाछू तोर हेवय मितान
जम्मो लईका जवान,डोकरा सियान
सबला ले जाही एकदिन भगवान


मिलन मलरिहा मल्हार बिलासपुर
7-

# डोकरा#@दोहा@गीत
"""""""""""""''''""""""""""""""""""""""""
रचना-मिलन मलरिहा
///////////////////////////////////
जेन आथे इहा भाइ, एकदिन माटि समाय।
नसवर हे सनसार जी, डोकरा बनत जाय।।
छोड़के जाना सबला, काहे गरभ दिखाय।
तन हे ठूड़गा बमरी, चुल्हा ले जोराय।।
सबला जाना इहा ले, खालि हाथ सकलाय।
नसवर हे ..........................................।।
फेर का बात के मोह, का बात के दुखाय।
का बात गरभ डोकरा, मोला नई बताय।।
पारी तोर हवय आज, पाछु मोला बलाय।
नसवर हे ..........................................।।
जावत बेरा अकेल्ला, कोनो संग न आय।
बने बने म सब तोला, चूस चूस के खाय।।
घिलरगे जेनदीन तन, ओदिन जी फेकाय।
नसवर हे ..........................................।।
दात सब झरगे ओकर, अब कछु नई चबाय।
दुख होगे बड़ बबा के, सुमरय जलदि उठाय।।
फेसन म बेटा-पत्तो, सब दुरिहा हट जाय।
नसवर हे ............................................।।

।।
मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर


8-
~~~~~~~~~~ डोकरा ~~~~~~रोशन पैकरा "मयारू"
लइका पन मा खेले कूदे
मया म भुलाये जवानी
अब जिन्दगी पहा गे डोकरा
धर डरे हस गोटानि
बड़े बिहिनिया उठ के डोकरा
खोरोर खोरोर ते ख़ासे
बीड़ी ला पियत हस फुकुर फुकुर
बाद में कुकरा बांके
चहा बर जी ललचाये हे
बहू आगी नई बारे हे
खटर-पटर करत हे डोकरा ह
चूल्हा में मुँहू ताके हे
नहाये बर देखो डोकरा ह
तिपोय पानी ला मांगत हे
अब बड़बड़ाये तोर बहु ह
पानी बर गारी खाये हे
साग में मिर्चा जादा होंगे
डोकरा ल नई मिठाये हे
जम्मो दांत पहली के गिरगे
अब दिन पानी पी के पहाये हे
सुरता करत हाबय डोकरा
अपन डोकरी के मया ला
मया लगा के खवावय डोकरी
खीर सोहारी अउ बरा ला
घर ले निकलिस घुमे बर डोकरा
संगी मन सो बतियावत हे
छोड़ के जम्मो दुःख पीरा ला
संगवारी करा सुख पावत हे
संझिया कुन घर आ के डोकरा
अपन कुरिया म बइठे हे
नाती नतरा मन टीवी देखत हे
अउ बहू के मुँह ह अइठे हे
रतिहा कुन खा पी के डोकरा
सोये दसना म सुते हे
अउ अपन मन में सोचत हे
मोर दिन कब पुरे हे मोर दिन कब पुरे हे
================================
रचनाकार
रोशन पैकरा "मयारू"

9- श्री राजेश कुमार निषाद
।। बुढ़वा होगे जवान रे ।।
आज कल के लईका बुढ़वा होगे
अऊ बुढ़वा होगे जवान रे।
नान नान टुरा मन के चुंदि पाक गे
देवव सब ध्यान रे।
घर के मुखिया डोकरा बने हे
देवय सब ल ताना रे।
घर अईसन बनाय हे संगी
जइसे लगत हे रजघराना रे।
जिन्स शर्ट पहिर के गली गली घुमय
देवय सब ल ज्ञान रे।
आज कल के लईका बुढ़वा होगे
अऊ बुढ़वा होगे जवान रे।
बीड़ी पिये बर छोड़त नई हे
खेसेर खेसेर खाँसत हे।
एकर टेस मरई ल देख के
गाँव के टुरा मन हाँसत हे।
मिठ बोले बर तो आय नही
निकले हमेशा कड़वा जुबान रे।
आज के लईका बुढ़वा होगे
अऊ बुढ़वा होगे जवान रे।
बहू बेटा ल नई समझत हे
अपन बुढ़ापा के सहारा।
अईसन टेसिया तो डोकरा हे
अपन आप ल मानत हे कुंवारा।
एकर चरित्तर ल देख के
बहू बेटा होगे परेशान रे।
आज कल के लईका बुढ़वा होगे
अऊ बुढ़वा होगे जवान रे।
धोती बंगाली ह नदागे
जीन्स शर्ट के जमाना आगे।
पाके चुंदि म करिया डाई लगाय
अईसन ये बहाना आगे।
फेर ये डोकरा नई माने अपन आप ल सियान रे।
एकरे सतिन काहत हव संगी
आज कल के लईका बुढ़वा होगे
अऊ बुढ़वा होगे जवान रे।

रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद ( समोदा )

10-हेमलाल साहू
दात ला देख हालत हावे।
चुॅदी, मेछा डाड़ही पाके।।
लउठी ल धरके बबा रेगे।
देखले कनिहा नवे हावे।।
आॅखी ह कमजोरहा होगे।
देखव बबा डोकरा होगे।।
जाड़ के दिन गोरसी तापे।
गरमी म घाम अड़बड़ लागे।।
आनी बानी गोठ बताथे।
बबा के गोठ सुघ्घर लागे।।
चोगी पीयत रद्दा रेगे।
होत बिहनीया गाव जावे।।
पहीरे पाव भदई हावे।
रेगय डोकरा लउठी धरके।।
दसरू बबा नाव के हावे।
देख बबा ह डोकरा होगे।।

हेमलाल साहू
ग्राम गिधवापो. नगधा,
तह.नवागढ़ जिला बेमेतरा छ.ग.





छत्तीसगढ के पागा" क्र 4/ काव्यांश अधारित

 छत्तीसगढ कविता के ये प्रतियोगिता मा नीचे दे गे मुक्त के आधार मा अपन रचना पोस्ट करना रहिस-

जिनगी के तार ल जोर के तो देख
माटी संग मया ल घोर के तो देख
गुरतुर हो जाही संगी भाखा ह तोरो
छत्तीसगढ़ी म थोकिन बोलके तो देख|
-श्री राजकमल राजपूत
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आज तक प्राप्त रचना

1  तोर बोली तोर भाखा-शालिनी साहू
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तोर बोली तोर भाखा रे भईया
लरई झगरा के काहे काम।
सबले गुरतुर हमर बोली रे भईया
सुग्घर हबय एकरो नाम।
जे ठन देश ते ठन भाखा
हर जिला के अपन साखा।
छत्तीसगढी म गोठिया ले रे भईया
छत्तीसगढ महतारी के लाज राखा।
छत्तीसगढ के लईका हरन
गोठिया ले अपन भाखा जग म होही नाम।
हिन्दु भाई ल करव जय जोहार
मुसलिम भाई ल पारव सलाम के गोहार।
तोर बोली तोर भाखा रे भईया
धरती बर तो सबो बरोबर हे
का बेटा का बेटी रे भईया
फूले हे चंदैनी गोंदा के सुग्घर फुंदरा
जिनगी बचाय रे भईया टुटहा कुंदरा।
तोर बोली तोर भाखा रे भईया
लरई झगरा के काहे काम
गोठिया ले अपन भाखा जग होही नाम।
गाव देहात के लईका रे भईया
नई हन अडहा अडही तय जान
तोर बोली तोर भाखा रे भईया
अपन बोली के भाव बढाबो बढही हमरो मान।
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शालिनि साहू
साजा बेमेतरा
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2 हमर गांव के माटी- श्री नवीन तिवारी
हमर गांव के माटी के महमहाना
खेती बपरी ल देख के ,
किसान के ओतके मट मताना,
रतन गर्भा देवत हीरा मोती ,
अइसन हवे हमर छत्तीसगढ़ महतारी
एखर भाखा अतका मयारुक
माई पिला के रखत घलो ख़याल
डोकरी दाई ल कहे ममा दाई वो
बुडी दाई ल कहे कका दाई वो
भांचा मने कौशल्या बहिनी के लइका राम
नोनी कहेले हो जाते माता कौशल्या के ध्यान ,
रावण राज के बड़का द्वार पाल
कहत लगे खरदूषण के राज
खरौद हवे आजहो चिन्हारी
लक्षमणेस्वर महादेव जिन्हा विराजे
माता शबरी के पियार देखो
तो भूले बर आवो शिवरीनारायण
जिन्हे विराजत नर नारायण भगवान
फेर शबरी महिमा दिखत हवे आजहो जी
शबरी मैय्या के आशीष पाये
बोइर खाए के दोना बनाये कृष्ण वट
जेमा बने हवे बोइर रखे के चीन्हा
मितान संग मितानिन के चलन
फूल गेंदा ,ले बदत हवे सखी सहेली
अइसन मिट्ट भाखा कहा मिलहि संगवारी
जैसे फुलवारी में मधरस चुसत दतैय्या
वइसनेच्च दिल्ली में बैठ के सोचत मुखिया ,,
सब्बो संगी जुड़ के करो जी एक परन
बाहिर हो या घर में,
सियान संग हो या लइका मन
सब्बो जुड़ के गोठियावो
गुरतुर भाखा छत्तीसगढ़ी म
नवीन कुमार तिवारी ,,
3-।।हमर भाखा।।- श्री अशोक साहू
मयारु माटी मोर गांव के
महतारी कस मया बरसाय।
बोली बरतस मोर गुरतुर लागे
मिसरी जईसन मौला सुहाय।।
मान बढाबो ईही माटी के
करबो निस दिन पूजा।
हमर भाखा छत्तीसगढी कस
नईहे कोनो दुजा।।
मया के अडबड रिसता नाता
लागथे जईसे घर परवार।
अपन भाखा म बतियाय ले
मन ह बंधाथे एके तार।।
नई भुलन कभु हमर भाखा
एकरे ले हमर पहिचान।
जनम धरे हन ईही माटी म
बेटा बन करबो सनमान।।
अशोक साहु , भानसोज

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4-मोर भुईयाँ- श्रीओमप्रकाश चौहान


मोर भुईयाँ म संगी
एकमई जभे हो तेय हं जाबे,
तब कहुँ जाके रे संगी
चंदन कस तेय हं मम्हाबे,,
मोर बोली भाखा म संगी
मधुरस ल कहुँ तेय हं जानबे,
तब कहुँ जाके रे संगी
मया भुईयाँ के तेय हं पाबे,,
दया मया के छाँव म संगी
पीरा कखरो तेय हं समझबे,
तब कहुँ जाके रे संगी
गवंई गाँव म तेहुँ हं बस जाबे,,
मोर भुईयाँ हे चारो धाम संगी
नून ऐखर जभे तेय ह धरबे,
तब कहुँ जाके रे संगी
छत्तीसगढ़िया हमर कहाबे,
मोर भुईयाँ म संगी
एकमई जभे हो तेय ..........,,

ओमप्रकाश चौहान

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5-मोर गंवई गांव-श्री महेन्द्र देवांगन "माटी"
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मोर सुघ्घर गंवई के गांव
जेमे हाबे पीपर के छांव
बर चंउरा में बैइठ के गोठियाथे
नइ करे कोनों चांव चांव ।
होत बिहनिया कूकरा बासत
सब झन ह उठ जाथे
धरती दाई के पांव परके
काम बूता में लग जाथे
खेती किसानी नांगर बइला
छोड़ के मय कहां जांव
मोर सुघ्घर गवंई के गांव
जेमें हाबे पीपर के छांव ।
नता रिसता के मया बोली
सबला बने सुहाथे
तीज तिहार के बेरा में सबझन
एके जगा सकलाथे
सुघ्घर रीति रिवाज इंहा के
"माटी" परत हे पांव
मोर सुघ्घर गवंई के गांव
जेमे हाबे पीपर के छांव ।
माटी के सेवा करे खातिर
जांगर टोर कमाथे
धरती दाई के सेवा करके
धान पान उपजाथे
बड़ मेहनती इंहा के किसान हे
दुनिया में हे जेकर नांव
मोर सुघ्घर गवंई के गांव
जेमे हाबे पीपर के छांव ।
छत्तीसगढ़ के भाखा बोली
सबला बने सुहाथे
गुरतुर गुरतुर भाखा सुनके
दुनिया मोहा जाथे
बड़ सीधवा हे इंहा के मनखे
जिंहा मया पिरीत के छांव
मोर सुघ्घर गवंई के गांव
जेमे हाबे पीपर के छांव
रचना
महेन्द्र देवांगन "माटी"
पंडरिया
8602407353

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6-।। मोर छत्तीसगढ़ीन दाई ।। -श्री राजेश कुमार निषाद
मोर छत्तीसगढ़ीन दाई
तोर कइसे करंव बढ़ाई।
पारत हंव मैं गोहार
कर पानी के तै बौछार ।
बोहवय नदिया के धार
जय होवय तोर छत्तीसगढ़ के बनिहार।
जुरमिल के कमावव रे मोर किसान भाई
मोर छत्तीसगढ़ीन दाई
तोर कइसे करंव बढ़ाई।
तोर माटी म उगाथन सोनहा धान
ये तोर माटी हावय महान।
धान उगाथन बोरा बोरा
तोला कहिथे धान कटोरा।
मोर दुख पीरा हरईया दाई
तोर कइसे करंव बढ़ाई।
महर महर महके तोर माटी
जेमा खेलथन भऊरा बांटी।
ढब ढब बाजे गरुवा के घाटी
जइसे पारे हे धरती परपाटी।
तोला छोड़ के कोनो नई जाई
मोर छत्तीसगढ़ीन दाई
तोर कइसे करंव बढ़ाई।
रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद ( समोदा )
9713872983
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7-।। महर महर महकाबो जी ।। -श्री राजेश कुमार निषाद

छत्तीसगढ़ के भुईयां ल महर महर महकाबो जी।
मिलजुल के करबो साफ सफाई स्वच्छता हमन लाबो जी।
गाँव गली अऊ चौराहा ल जमके करबो सफाई।
स्वच्छ गली खोर घर घर खुशियाँ आई।
जेन हर फैलाहि गन्दगी वोला ठेंगा देखाबो जी।
छत्तीसगढ़ के भुईयां ल महर महर महकाबो जी।
न जाने ये गन्दगी ले कईसन प्रदूषण के कहर बरसत हे।
हाथ म हाथ धरे सब रहिगे आनि बानि बीमारी बर ये जहर पोरसत हे।
जब तक नई होहि साफ सफाई हमन आगू कदम बढ़ाबो जी।
छत्तीसगढ़ के भुईयां ल महर महर महकाबो जी।
घर के कचरा ल घर के दुवारी म नई फेकना हे।
गन्दगी फैलाय ले हमन ल खुद बचना हे।
गाँव के बाहिर म गड्ढा खनव।
कचरा ल ले जाके वोमा फेकव।
गाँव गाँव म जाके अईसन स्वच्छता अभियान चलाबो जी ।
छत्तीसगढ़ के भुईयां ल महर महर महकाबो जी।
साफ सफाई म हावे सबके भलाई।
हमर स्वस्थ जीवन के इहि दवाई।
मिलजूल के स्वच्छता के गीत गाबो जी।
छत्तीसगढ़ के भुईयां ल महर महर महकाबो जी।
रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद ( समोदा )
9713872983
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8                          *रचना--मिलन मलरिहा।
** साहेब छत्तीसगढ़ी गोठिया ले **
''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
मया पीरा ल जान ले संगी
बोली-भाखा ल पहिचान ले
छत्तीसगढ़ी हे महतारी-भाखा
बचकानी के दिन बीचार ले
गाँव गलि के चिखला माटी
पैरा म सब खेलन उलानबाटी
छू-छुवाउल गिल्ली-डनडा
अउ खेलन संगे लुका-छिपी
मया पीरा के भाखा सोरिया ले
साहेब छत्तीसगढ़ी गोठिया ले.......
/
अड़बड़ खाए अंगाकर रोटी
चिला ठेठरी अइरसा खुरमी
इडली डोसा के चक्कर परके
फरा अइरसा ल भूला डारे
चूल्हा गोरसी के आगी छोड़के
सुखसूबीधा के पागा बांधडारे
छत्तीसगढ़ी खटिया ल टोर
हिनदी ल पलंग बना डारे
मया पीरा के भाखा सोरिया ले
साहेब छत्तीसगढ़ी गोठिया ले.......
/
काटागड़थे त दाई गोहराथन
छत्तीसगढ़ी म आसू गिराथन
सपनाघलो ओही म सपनाथन
दूख-दरद के गोठ बतियाथन
बरा सोहारी ओही म मानथन
पंडवानी करमा पंथी गाथन
नाचा ददरिया म दिन पहाथन
हिनदी ल महतारी कइसे मानले
मया पीरा के भाखा सोरिया ले
साहेब छत्तीसगढ़ी गोठिया ले.......
/
मया पीरा ल जान ले संगी
बोली-भाखा ल पहिचान ले
छत्तीसगढ़ी हे महतारी-भाखा
बचकानी के दिन बीचार ले
साहेब छत्तीसगढ़ी गोठिया ले.......
साहेब छत्तीसगढ़ी गोठिया ले.......
-
-
रचना--मिलन मलरिहा
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"छत्तीसगढ के पागा" क्र 3/ चित्र अधारित


ये प्रतियोगिता मा संलगन चित्र दे गे रहिस जेमा रचनाकार भाई मन अपन रचना रखिन-
1 मिलन मलहरिया
"छत्तीसगढ के पागा" क्र0.3
छत्तीसगढी कविता के प्रतियोगिता
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चला रे संगी चला रे साथी
घरोघर बहरी निकालबो रे
गाँव गलि ल सुवक्छ बहारके
छत्तीसगढ़ ल महकाबो रे
महतारी के ओनहा चिखलागे
खचवा डबरा ल पाटबो रे
जूरमिल सुवक्छ्ता गीत गाबो रे
चला रे संगी ....................
जोंगईया सबो करईया हे कोन
नेता बस बहरी धरईया रे
अधिकारी पाछू चलईया संगी
मिलजूल फोटू खिचवईया रे
आवत जावत देखावा करथे
कोनो नई हावय करईया रे
अपन गलि-घर खूद जतनबो रे
चला रे संगी .......................
हमी ल हे रहना गाँव-शहर म
त हमीच ल हावय सजाना रे
आवा निकला घरघर ले संगी
सफाई अभयान ढोल बजावा रे
सबो जघा ल सुघ्घर चमकाके
छत्तीसगढ़ ल सरग बनाबो रे
सुवक्छता नारा मन म बसाबो रे
चला रे संगी ...........................
कचरा—कुबुध्दी ल टमरके-धरके
सड़क गलि-समाज ले निकालबो रे
मन-बीचार म बईठे दवेस जलन ल
निकालके सबझन फेकबो रे
जाति-पाति भेद राक्छस ल बिदारके
एकेसंग रहिबो जीबो-मरबो रे
सरग जईसन छत्तीसगढ़ बसाबो रे
चला रे संगी ...............................
चला रे संगी चला रे साथी
घरोघर बहरी निकालबो रे
गाँव गलि ल सुवक्छ बहारके
छत्तीसगढ़ ल महकाबो रे


मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर
मिलन मलरिहा रचना (2)
विषय-चित्र अधारित।
घर के कुड़ा सकेल के , घुरवा ले के डार।
खातू बनही काम के, नई लगही उधार।।
जेबीक खातू छिच के, खेत ल बने सवार।
कीटनासक ल छोड़के , घरके दार बघार।।
जग म कचरा बिखरे हे, बनजर होवत खार।
झोला धरे बजार जा, झिल्लि पन्नि बीदार।।
मन के कचरा ल पहली , फेर फेक आने ल।
कुड़ाकरकट बहारके, धर सकेल अपने ल।।
खुद तही सुधर ग लहरी, सनसार सुधर जाय।
सबो जीव सुयम एक हे, नइ लगय कछु उपाय।।
जेन ल देख तेन भाइ, फोटु खिचाए ल आय।
जोंगय ओहा सबो ल, अपन नेता कहाय।।
बड़हत परदूसन धरा, दिनदिन पानि भगाय।
किसान रोवय किसानी, काला दूख बताय।।
आवा मिलके टुट पड़ा, कचरा राक्छस ताय।
झउहा झउहा फेकदे, खचवा तरि कुड़हाय।।
सुवक्छता बर परन करा, कचरा रख सकलाय।
कुड़ादान म रखबो जी, चाहे घुरवा जाय।।


मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर
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2 महेन्द्र देवागन "माटी"
साफ - सफाई
*****************
घर ल अपन साफ करके
बाहिर में कचरा फेंकत हे
सड़ गल के जब बदबू मारत
नाक दबा के रेंगत हे ।
जगा जगा झिल्ली के थैली
नाली में फेंकावत हे
पानी ह सब रुक गेहे
नाली ह बज बजावत हे ।
कतको मच्छर पनपत हाबे
डेंगू पांव पसारत हे
अस्पताल में भीड़ लगे हे
डाक्टर के पांव पखारत हे ।
जगा जगा फेंकाहे झिल्ली
गाय गरु मन खावत हे
बिन मारे के मारे ओमन
मउत के मुहूं में जावत हे ।
गंदगी हे सबके बिमारी
आदमी एला जानत हे
भासन देथे बड़े बड़े फेर
कोनो ह नइ मानत हे ।
पेड़ पउधा परयावरन
सबला नुकसान पहुंचावत हे
शुद्ध हवा ल पाये खातिर
पेड़ ल नइ लगावत हे ।
जागो रे मोर भाई बहिनी
कचरा झन फइलावव
जिनगी ल बचाये खातिर
एकेक पेड़ लगावव ।
एकेक पेड़ लगावव
एकेक पेड़ लगावव ।
रचनाकार
महेन्द्र देवांगन "माटी"
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला - कबीरधाम ( छ. ग.)
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3
शालिनी साहू
कुरुद साजा
पागा तीन बर कविता
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साफ सफई
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गाव गाव डगर डगर म चलत हे,
सफई के अभियान।
चारो मुडा बगरे हे कचरा,
मिलत हे एकर परमान।।
कका बबा सब मिलजुल के,
साफ सफई म हे बियस्थ।
गाव गली पारा परोस म,
सब मनखे हे सुवस्थ।।
ईही हरय सुवस्थ,
जिनगी के पतवार।
लोग लईका निरोग,
खुश हे परिवार।।
एकर झोला म भराय,
नरवा नदिया हे सराय।
गली खोर ल साफ रखव,
बिकट कचरा हे भराय।।
नरवा नदिया तरिया के सफई,
परदुसन के होवत हे निवारन।
वातावरन के सरंक्षन होवत हे,
लगावत हे वृक्षारोपन।।
इन्द्रावती शिवनाथ के पबरित धार,
दिखही छ.ग के गली खोर अउ पार।
सरगुजा बस्तर के संकरी गली खार,
मिलही निरमल पानी के धार।।
साथ सुथरा निरमल बहाव,
दिखही तिरबेनी के संगम।
अरपा पईरी महानदी के मिलन,
अविरल होही सुग्घर सुगम।।
जेकर बोहावत धार म हे,
जिवनदायिनी के बरदान।
छत्तीसगढ तोर गुन ल कतका गावव,
देवत हस अन्नदान।।
चुकचुक ले गली खोर दिखही,
हरियर हरियर रुख राई।
डबरी तरिया म ढेस खोखमा खेलही,
नई पनकय दुख के लाई।।
किसन के बांसरी बाजही,
मगन होके मोर मटमटही बेटी नाचही।।
पडकी परेवना के चुचु गीत सुनाही,
तक धिना धिन मंदरिहा बजाही।।
दिही सबला सुख समृद्धी,
सुवस्थ जिनगी के मिलही बधाई।
हैजा पिलिया चिकनगुनिया के
छत्तीसगढ ले धाय धाय होही बिदाई।।
छत्तीसगढ राज म लक्छमी दाई आही,
सुपा सुपा यश बगराही।
अपन घर के दुवारी ल हमन बहारबो,
चाउर पिसान के चउक पुराही।।
गोटी माटी कचरा ल घुरवा गांगर म डालव,
हमर करम इही म तरही।
छत्तीसगढ महतारी के सेवा करव,
हमर झोला खुशी से भरही।।
शालिनी साहू
कुरुद साजा
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4 श्री सूर्यकांत गुप्त
छत्तीसगढ़ के पागा क्रमांक तीन बर
तागा म थोरकिन शब्द गूंथे के प्रयास...
तन मन दूनो साफ रख, रखौ सहर तुम साफ।
चलै नही देखावटी, नइ करही जन माफ।।
ऊँच नीच छोटे बड़े, भेद भाव झन पाल।
घर बाहिर रख साफ तैं, कटै रोग जंजाल।।
मुखिया के अभियान ला, सफल बनावौ आज।
पहिरावौ जी देस ला, स्वच्छ मुलुक के ताज।।
-सूर्यकांत गुप्ता
छत्तीसगढ़ के पागा क्रमांक तीन बर मोर आखर गुंथाये दूसर तागा....
चुक चुक उज्जर कपड़ा पहिरे, उठाये हें बीड़ा सफाई के।
मिसाल बनै एकजुटता के, हिंदु मुस्लिम सिक्ख इसाई के।।
चिंता हे डबरा ल पाटे के, ऊँच नीच के खाई के।
खाइ कसम कभू हौवै न कम सन्मान हमर धरती माई के।।
-सूर्यकांत गुप्ता
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5 श्री महेश मनु
पागा क्रमांक colonthree इमोटिकॉन स्वच्छता अभियान
नेता आइस
मीडिया ला बलाइस
कलफ लगे कुर्था ल
बाँहि तक चढ़ा इस
अलग अलग एंगल ले
फोटो ला खिंचाइस
चैनल म खबर चालिस
पेपर म फ़ोटो छपगे
नेता के दार भात चुरगे
औ स्वच्छता अभियान पुरगै ।।
_ महेश पाण्डेय "मनु"
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"छत्तीसगढ के पागा" क्र 3 दिनांक 23/11/15 से 30/11/15
6- श्री नवीन कुमार तिवारी
"छत्तीसगढ के पागा" क्र 3 दिनांक 23/11/15 से 30/11/15
अन देखना ,
एति देखि के ओती देखि ,,
गवई गांव देखि के शहर देखि
देख के होवत हम हलकान जी ,
सब्बो सुघ्घर, माई पीला मनखे ,
करात एक उदीम जी ,
कखरो हाथ में झावुँहा ,बुहारी
कखरो हाथ रापा कुदारी जी
पंच संग सरपंचीन हवे
जमींदार संग कलेक्टर जी ,
नौकर चाकर घलो हवे फेर
ये मन हा काबर पकड़हिं बुहारी ल जी
ये कइसे अलकरहां दिन आगे ,,
झेन ये बुहारी पकढ़िन बड़का साहेब जी
पकड़ के बुहारी कैसे मुस्कियावत हवे
फोटु घलो खिचवावत हवे
माइक पकड़े सिटिर पिटिर
ये का गोटियावत हवे ,
जेती देखले के समाचार में देखले
बस बुहारी संग फोटु दीखलावत जी
हम हा माथा पकड़ सोचत हवन ,
अपन सुवारिन संग गुनत हवन ,
ये सब्बो डहर का होवत जी ,
जम्मों मनखे अक बका गे जी
अध पगला फरमान के आघू
सब्बो शीश नवात जी
दिखावा करके इनाम पाये के
ये मन करत उदीम जी
हाथ में बुहारी के बू नहीं आवै
अइसे करात जतन जी
पाउडर इतर लगा के संगी ,
सोचहू कैसे होही सफाई जी ?
लबरा मन के लबरा काम
करत हवे सफाई के नौटंकी जी
बापू के करात जग हंसाई
फोटू खीच के प्रदर्शनी दिखावत
,का एहि सोच बापू के जी ,
नवीन कुमार तिवारी 22.11.2015
एल आई जी १४/२
मोतीलाल नेहरू नगर ईस्ट
भिलाई नगर जिला दुर्ग
छत्तीस गढ़,,,490020
छत्तीसगढ के पागा क्रमांक ३ बर मोर दुसरिहा रचना ,,
लबरा गोठ,
मोर बिचार तोर बिचार ,
ये हवे काखर बिचार
अच्छा दिन आहि ,
सब्बो सस्ता हो जाहि ,
दिखावत हवे अज्झो ,,
मुंधियार आँखि के सपना ,
जागत हवे लुटवाना,
लबरा बोली मिठवा मिठवा
दुलौरिन के भाखा मिठवा,
हवे मन के बात ,
सोच रमन के गोठ,
दुलरत हवे के पुचकारत हवे
लाल लाल आँखि घलो दिखावत हवे
मेछरा गे हवे सत्ता में आके ,
तभी तो आनी बानी गठियावात हवे
जैसे संगी होवत हवे
खाए के दूसर ,दिखाए के दूसर
गजराज के ,दांत
रोकथाम के ढकोसला देखावत
करात हवे कमीशन खाए के इंतजाम
कभू पलास्टिक तो कभू गुटखा में,
लगावत हवे कानून के रोक ,
फेर रोक हा रोक होते ,
साहेब बाबू के शौक होते
लेवत हवे ,कहावत हवे
गावत हवे गुण गान
चमचा बन करात हवे
अपन अपन दोगलई के काम
स्वछता के घलो दिखावा ,
बगरा के कचरा ,
सफाई के खिचवावत हवे
फोटु साँझा बिहनिया ,
सोज्झे होतिस सफाई हा संगी
तो सोच काबर होतिस रोग राई संगी
तो झेन करना हो दिखावा बंद संगी ,
करो दिल से काम संगी ,,
नवीन कुमार तिवारी 23.11.2015,
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शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

छत्तीसगढ के पागा क्र-2, विषय- आतंकवादी

फेस बुक के "छत्तीसगढी मंच" मा "छत्तीसगढ के पागा" नाम से छत्तीसगढी कविता के प्रतियोगिता चलत हे । ऐखर दूसरा  प्रतियोगिता जउन दिनांक 17/11/15 ले 24/11/15 तक  "आतंकवादी" विषय मा आयोजित होइस ओखर जम्मा रचना अइसन हे-


1 श्री नवीन कुमार तिवारी

पहिली रचना

आतंक वादी

पेपर अखबार में देखेव
ब्रेकिंग न्यूज़ में देखेव
आयना में देखेव ,
पानी में घलो धो के देखेव ,\
ऊपर डहीर ले देखेव \
बाहिर जाके देखेव
न लाल ,न हरिहर ,नहीं पिउरी दिखिस
मनखे दिखिस,
सिरतोन बानी,\
हमरेच्च गांव के मनखे दिखिस ,
लोक तंत्र ले भटके दिखिस ,
अपन सोच में जमके दिखिस ,
धरम के गियान ले दूर दिखिस ,
भुलवारे वाले इंसान दिखिस ,
मन भेद के शिकार दिखिस ,
नशा मद में मद मस्त दिखिस
अपन ताकत में मद मस्त दिखिस ,
फेर वो हरे हुए इंसान दिखिस ,
इंसान के वेश म शैतान दिखिस ,
अधपगला होइके भान दिखिस
हिरदय में ओखर हार के डर दिखिस
इकहरे कारन आतंक वादी धिखिस,
आखिर में एक भटके इंसान दिखिस 

नवीन कुमार तिवारी ,, 16.11.2015

दूसरइया रचना
आतंकवादी,

आतंक वादी के चरित्तर,
लेवत जी परान बिन गोत बात के
देवत घलो अपन जी प्राण धमाका करिके
कैसे कहिबे तेन्ह गति होए खजरी कुकुर के ,
एला जो देवत हवे पश्रय ?
एला पालत हवे कुकुर बना के
एखर करात बिन बात गौरव गान ,
एला बतावत निर्दोष ,संग सिधवा गतर के
मौत बाँट दहशत फैलात,
अपन गियान ल बड़का बतावत
शांत चमन के नासूर बनावत
पेट के आग ल हथियार बनावत
अध गियान बाँट धरम के दोष बनावत
सिधवा ह्रदय ल कलुषित करावत
अपन सत्ता मोह ल ,
पासा के मोहरा बनावत
वहीच्चा हवे असली दानव राक्षस आतंक वादी
जेखर नई होवत दिन ईमान कुछु खास धरम के
वहीच्च हवे गद्दार देश के ,
वहीच्च हवे अधपगला विचार के ,
एखर नी हवे कुछु ख़ास धरम जी ,
बस ये हा होते आतंक वादी 

नवीन कुमार तिवारी ,,,,18.11.2015
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2 श्री मिलन मलरिहा
पहिली रचना
****आतंकवाद****
** ((दोहा))**
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नकसली के बड़ेददा, होथे आतंकवाद।
देसपरदेस ल जाके, करदेथे बरबाद।।
आतंकवाद के पुजारि, दाउद हवय फरार।
छोटा राजन आए अभि, पुलीस के दूवार।।
पाकिसतान पोसत हे, भारत झेलय मार।
नकसली ल बंदुक बाटे, करय ग अतियाचार।।
छत्तीसगढ़ महतारी ल, घेरे नकसलवाद।
नकसली करे काटमार, सिखाए आतंकवाद।।
बीजापुर के कनिहा म, मचाथे ग उतपात।
कोनटा अउ कानकेर, रोवय नवाए माथ।।
अगोरा रहिच दाई ल, सहीद होगे लाल ।
देस-माई बर परान, देहीस बीन-काल ।।
कोख ह उजरगे दाई, घर सून्ना होगे ग।
आखी ह अब सूखागे, आसु सबो ढरगे ग।।
खून छलकत माटि म, जानेकब रुकही ग।
महतारी बर बली अब, कतेक लाल दिही ग।।
आतंकवाद जरि जमाए, भारत माटि म आए।
राकछस इहि नवा जूग, कोन संहार कराए।।

-मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर

3 श्री ओमप्रकाश चंदेल

पहिली रचना
कोनों धरम ल नइ जानत हें आतंकवादी।
कोनो भगवान ल नइ मानत हें आतंकवादी।
राजनेता मन संग सांठगांठ करत हें आतंकवादी
नफरत बगरा के राजपाठ करत हें आतंकवादी।
बसे बसाये मनखे ल बेघर करत हें आतंकवादी।
सभ्य समाज ल जतर-कतर करत हें आतंकवादी।
पेरिस, लंदन मा कत्लेआम करत हें आतंकवादी
काश्मीर ल घलो बरबाद करत हें आतंकवादी।
बहत्तर हूर के गोठ बात करत हें आतंकवादी।
नारी अस्मिता ल तारतार करत हें आतंकवादी ।
मानवता ल मेटाये के काम करत हें आतंकवादी।
मुसलमान मन ल बदनाम करत हें आतंकवादी।
isis के झण्डा ल सलाम करत हें आतंकवादी।
भारत ल तको हलाकान करत हें आतंकवादी।
दुनिया बर सैतान के काम करत हें आतंकवादी ।

ओमप्रकाश चन्देल
विनोबा नगर रायगढ

4 श्री राजेश कुमार निषाद

आतंक वादी राज ।।
आतंक वादी मन के दिन हावय भईया
आतंक वादियों के हावय राज।
येकरे सेतिन काहत हंव भईया
आगे हावे आतंकी राज।
कोनो जगर बम फुटत हे
त कोनो जगर होवत हे गोलाबारी।
आज पराये मन मरत हावे
कल आही हमर बारी।
मने मन म गुनत हावंव
कइसे बचाहूँ छत्तीसगढ़ महतारी के लाज।
अत्याचारी बाढ़ गेहे आतंकी मन के आज।
छत्तीसगढ़ के कोना कोना म आतंकवादी मन के भरमार हे।
न जाने येकर मन करा का का हथियार हे।
हमर राज्य के तो कोनो ल फिकर नईये
काबर मंत्री मन चैन से सोवत हे।
तेकरे कारन ये आतंकवादी मन
भ्रष्टाचार के बीज ल बोवत हे।
दिनों दिन बिगड़त हावय सबके काम काज।
काबर आये हावय आतंकवादी मन के राज।
मोरो सपना हावय की एकदिन
मैं राज्य के सिपाही बनहूँ।
अऊ ये आतंकवादी मन ल मार गिराहूँ ।
सब ल रहि मोर ऊपर नाज।
जब मिटा देहूँ मैं आतंकवादी राज।
रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद( समोदा )
9713872983

5 श्री सुनिल शर्मा
""""आतंकवाद"""
आतंकवाद के सेती देखव भुइया लाल होत हे
एखर सेती मनखेपन सुसक-सुसक के रोत हे
नाननान लईका ल लुढहार आतँकी बनात हे
कोंवर-कोंवर हाथ म मउत के समान धरात हे
अ,आ,इ के जघा लईकामन जेहाद सीखत हे
खेले खाय के उमर म आँखी म लहू दिखत हे
७० हूर ,जन्नत के लालच म आतंकी बनजात हे
बिन बिचारे दूसर ल मारे बर खुद ल उड़ात हे
बगदादी,दाऊद,हाफिज इखर आका के नाव हे
कतको दाई के कोरा म इखर पाप के दे घाव हे
दाई ले बेटा,बहिनी ले भाई,लईका ले बाप लूटत हे
दुनियाभर म इखर चेला मउत बाँटत घूमत हे
जाने कहा ले पाथे पइसा आतंक फइलायबर
सिधवा मनखे ल मास के लोथड़ा बनाय बर
जम्मों आँखी म डर हे मनखे निकले म डर्रात हे
फटाका घलो फुटत हे तेन म सब काँप जात हे
आतंकवाद हरय अमरबेल पोसइया ल खात हे
पाकिस्तान, सीरिया सांप पोस के पछतात हे
इस्लाम ल घलो हत्यारा मन बदनाम करत हे
दुनियाभर म मजहबी दंगा के जहर ल घोरतहे
अब समय आगेहे सब मिलके कमर कसबो
हत्यारामन के नास करेबर मिलके आघु बढ़बो
कुलूप अंधियार हारही जब सुरूज कस बरबो
चैन के सांस नइलन एखर जड़मूल नास करबो|
सुनिल शर्मा "नील"
थान खम्हरिया,बेमेतरा

6 श्री देव हीरा लहरी

छत्तीसगढ़ी हाईकु - आतंकवाद
1) प्रतियोगिता
छत्तीसगढ़ी मंच
करे सम्मान
2) छत्तीसगढ़
भुईयां बनत हे
नक्सल गढ़
3) मोर बस्तर
लहु बहे नदिया
अऊ तरिया
4) रोज मरथे
मोर कका भईया
रोथे मईया
5) परदेस म
होत हे घोर निंदा
मारय जिंदा
6) देस प्रदेश
लगाये हवे घात
दिन व रात
7) आगु आवव
उठा तलवार
कर संहार
8) न कोनो जात
पापी अत्याचारी के
मारव लात
9) बनो बघुवा
आतंकवाद मिटा
होके अगुवा
10) निकाल डंडा
बनाव तुम सेना
नई सहेना

देस बिदेस परदेस म
होवत हवय घोर निंदा
ये सारा पापी हत्यारा मन
मारत काटत हवय जिंदा
▪▪▪▪▪▪▪▪
रचना - देव हीरा लहरी
चंदखुरी फार्म रायपुर
मोबा :- 9770330338

//"छत्तीसगए के पागा" क्र -1 // विषय-"देवारी"


फेस बुक के "छत्तीसगढी मंच" मा "छत्तीसगढ के पागा" नाम से छत्तीसगढी कविता के प्रतियोगिता चलत हे । ऐखर पहिली  प्रतियोगिता जउन दिनांक 7/11/15 ले 15/11/15 तक  "देवारी" विषय मा आयोजित होइस ओखर जम्मा रचना अइसन हे-

1-" ए देवारी कुछ अइसन मनाबो"
ए देवारी ल कुछ अइसन मनाबो
कोनो गरीब के अंधियारी हटाबो
रोवत ल देबो मुसकान चल संगी
जिनगी म ओखर अंजोर बगराबो
दूसर के घर करथे पोतके पररी
खुदके घर ह रहिथे छररी-दररी
चिरहा फटहा पहीनथे लईकामन
उखर लईकाबर कपड़ा बिसाबो
रद्दा म जरे फटाका ल उठाथे
हर बछर कतको मनेमन ललाथे
पछताथे अपन गरीबी के ऊपर
अइसन लईका ल फटाका देवाबो
चाइना लाइट म कइसन तिहार
जा के देख बाट जोहतहे कुम्हार
नइ करन मोल अउ भाव ओखरकर
परन लव माटी के दीयना जलाबो
छत्तीसगढ़िया के हक ल देवाबो
छत्तीसगढ़ी म बोलबो-गोठियाबो
तब मनही सबझन के सुग्घर देवारी
छत्तीसगढ़ के संस्कीरति ल बगराबो
तिहार उही जेन सबला मिलाथे
घर-घर म जेन खुसी ल फ़इलाथे
पत्ती ल झन बाटव तुमन जुवा के
दुःख बाँट कखरो मनखे कहाबो|
सुनिल शर्मा नील
थान खम्हरिया,बेमेतरा
7828927284
09/11/2015
2- छ.ग. पागा रचना प्रतियोगिता बर मोर रचना धन, धान्य भंडार हे, लक्ष्मी दाई साथ| तोर नाम जिनगी कटय, मन म मत रहय आश|| देवारी आगे हवय, माटी दिया जलाय| घर मा रऊक छाय हवय, लक्ष्मी पुजा मनाय||
-हेमलाल साहू
3-^ छत्तीसगढ़ के पागा क्रमांक १ ^
देवारी तिहार हो ,
फटाखा के बहार हो ,
मातर तिहार हो ,
तव सब्बो मताए हो ,
फेर काखर होवत निचत कमी संगी ?
रूप के रानी हवे,
बावन सियानी हवे ,
तीन पतिया के रवानी हवे
दांव के नजराना हवे ,\
खीसा में रूपया हवे
हारे जीत के हुंकार हवे
फेर काखर होवत निचत कमी संगी ?
चश्मा पहिने पहटिया हो ,
लाल लाल लंगोटिया हो
दुनू हाथ में लौड़ी भांजत हो ,
मुह में ललीहा लाली पान के हो ,
पारा में हांका पारत हो ,
दोहा के नवा रंगत हो
होरी के बेटवा हीरो झन हो ,
राधा किशन संग नाचत हो
बस गोवर्धन के पूजा हो ,,,
-नवीन कुमार तिवारी
4"छत्तीसगढ़ के पागा"
"देवारी के दीया "
**************************
चल संगी देवारी में, जुर मिल दीया जलाबो
अंधियारी ल दूर भगाके, जीवन में अंजोर लाबो।
कतको भटकत अंधियार में, वोला रसता देखाबो
भूखन पियासे हाबे वोला, रोटी हम खवाबो
मत राहे कोनो अढ़हा, सबला हम पढ़ाबों
चल संगी देवारी में, जुर मिल दीया जलाबो।
छोड़ो रंग बिरंगी झालर, माटी के दीया जलाबो
भूख मरे मत कोनो भाई, सबला रोजगार देवाबो
लड़ई झगरा छोड़के संगी, मिलबांट के खाबो
चल संगी देवारी में,जुर मिल दीया जलाबो।।
घर दुवार ल लीप पोत के, गली खोर ल बहारबो
नइ होवन देन बीमारी,साफ सुथरा राखबो
जीवन हे अनमोल संगी, एला सबला बताबो
चल संगी देवारी में, जुर मिल दीया जलाबो।।
पियासे ल हम पानी देबोन, भूखे ल खवाबो
जाड़ में कांपत लोगन ल,कंबल हम ओढ़ाबो
भेद भाव ल छोड़के,हाथ में हाथ मिलाबो
चल संगी देवारी में, जुर मिल दीया जलाबो।।
रचना
महेन्द्र देवांगन "माटी"
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला - कबीरधाम ( छ ग )
8602407353
5"छग के पागा बर"
मोरो घर दीया बरही
आंसो के देवारी म,
मोरो पुरखा मन तरही,
आंसो के देवारी म,
जग होही अंजोर,
आंसो के देवारी म,
महरही गली-खोर,
आंसो के देवारी म,
भरही सबके पेट,
आंसो के देवारी म,
मिलही अड़बड़ भेंट,
आंसो के देवारी म,
मया के फोरहूं खुरहोरी,
आंसो के देवारी म,
खुषी मिलही कोरी-कोरी,
आंसो के देवारी म....
मनोज कुमार श्रीवास्तव
6छत्तीसगढी "पागा" परतियोगता बर रचना >> (1)
**गरीब बर का देवारी**
दिया बरत हे जगमक जगमक
फूटहा हे कोठी टूटहा हे दुवारी
लईका रोए छुरछुरी ला कहीके
महगाई म गरीब बर का देवारी
धनतेरस म खीर मिठाई घरघर
सूख्खा रोटी नई हावय हमरबर
बम फटाखा कहा पाबो संगवारी
महगाई म गरीब बर का देवारी
लछमी ल लछमीवाला ह बिसाथे
मातरानी सोन के कलस म आथे
माटी कलस म तेल अटागे भारी
महगाई म गरीब बर का देवारी
सुरकदीस मिरचा बुझागे बम
अनारदाना नईहे टीकली हे कम
खाए बर तेल नईए बड़ दूखभारी
महगाई म गरीब बर का देवारी
भात कम पेज हवय ग अड़बड़
पताल थोरहा मिरचा के कलबल
दिया भूतागे अब कहाके फुलवारी
महगाई म गरीब बर का देवारी
सबो घर दमकत हे अंगना बारी
लिपाय पोताय कहरय जी छुहारी
धान लुवाएबर बाचे नईहे बनिहारी
महगाई म गरीब बर का देवारी ।
मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर
7 ^छत्तीसगढ़ के पागा सप्ताह १ ^ दिनांक ७/११/१५ से १५/११/१५ ,,,
देवारी तिहार ,....2...............
गरीबहा के कइसन तिहार बार
झेन दिन मिलत संगी
अमीरहा के जूठन,
वहीच्च दिन हो जाते देवारी तिहार ,
अमिरहा के उतरन पहनावा ,
मिल जाहि तो होते तिहार
अमिरहा के फूटे फटाखे
वहीच्च कचरा म मिळत बम बड़का,
गरीबहा के हो जाते किस्मत बड़का
अमिरहा के कोठी में जलत चकमकी
ओखरे धुन्धहाँ रोशनी ,म
चमकत बिन दुवारी के झोपड़ी ,
अमिरहा के पकवान फ़ेकत उच्छ रत
गरीबहा के कचरा में खोजत पकवान
अमिरहा के लइका अलवा जलवा
बिन बदरी करत फिसिर फिसिर
गरीबहा के लइका पुष्ट पहलवान
कथरी ओढे हांसत मिसिर मिसिर
बिन पइसा कइसे तिहार
अमिरहा के होते दीवारी तिहार
अमिरहा के जूठन, गरीबहा के तिहार ,
गरीबहा के झोपड़ी बिन दुवारी,
गरीबहा सोचत झन आतिस देवारी तिहार,,,
नवीन कुमार तिवारी 13.11.15.
8 छ.ग.पागा रचना बर नानकुन प्रस्तुति...
देवारी आरी चलै, फाटै छाती तोर।
मंहगाई के मार मा, दिया जरै ना खोर।।
हाय गरीबी मारथे, मानै नही तिहार।
संगी मन जुरियाइ के, देवन दुखड़ा टार।।
बात एक ठन कोसथे, बने रथें लाचार।
भागैं मेहनत ले सदा, जीथें भीख अधार।।
बिनती लछमी दाइ से, बदलै मनुख बिचार।
मेहनत से नाता जुरै, मानय बने तिहार।।
जय जोहार भाई मन ला...
-सूर्यकांत गुप्ता
9 ** दिया जलाए भरले का होही ? **
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जखम म ककरो मलहम कभु लगाए नही
अंतस के पीरा ककरो तारे सवारे नही
घर-देहरी म दिया जलाए भरले का होही ?
दाई ददा ल बुढहतबेरा म घरले निकाले
दारु जूवा म पइसा खेती बारी ल बेच डारे
गरीब मनखे डोकरी-डोकरा ल ताना मारे
महतारी दूखियारी के पीरा कभु नइ जाने
देवारी रतिहा लछमी पूजापाठ ले का होही
घर-देहरी म दिया जलाए भरले का होही ?
मनखे ल मनखे सही कभु तो तय नई जाने
डोकरा सियनहा के कहना ल नई तो माने
अपनेच सही दूसर के ईज्जत ल नई समझे
गिरे परे मनखे के दरद ल कभु नई पहिचाने
देखावा करे अउ गलती ल तोपे ले का होही
घर-देहरी म दिया जलाए भरले का होही ?
रंग-रंगोली टीमीक टामक बर दीया जलाए
सतमारग परकास दिखईया दीया नई लाए
लछमी बम कटरिना छुरछुरी मुरगा मनभाए
छानही म चढ़के राकेट म आगी तय धराए
सत के रद्दा रेंग ग कोदू जीनगी सवर जाही
घर-देहरी म दिया जलाए भरले का होही ?
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मिलन मलरिहा