बुधवार, 22 मार्च 2017

पागा कलगी-30//2//देवेन्द्र कुमार ध्रुव

गरमी के छुट्टी मा जाबो ममा गाँव...
रोज गिन गिन के बेरा ला मैहर पहांथव,
मन होगे हे अधिरहा,बेरा ले देके बिताथव,
गुनथो ऐ परिक्छा ला होवन तो दे एक घांव,
गरमी के छुट्टी मा हमन जाबो ममा गाँव....
आहूँ केहे ममा हा हमन ला लेगे बर,
अपन बहिनी अऊ दमांद ला देखे बर,
घेरी बेरी आरो पाके खोर कोती जांव,
जाना हे गाँव कहिके अब्बड़ मटमटांव....
गरमी के छुट्टी...
सबो झिन खुस रही,हमनला आही कहिके,
हांसी ठिठोली करही,भारी गदबदाही कहिके,
आवत हमनला जान,सबो हमरआरो लिही,
छानी मा बइठे कागा,जब करही काँव काँव..
गरमी के छुट्टी...
ममादाई बइठे होही हमर अगोरा मा,
नाना किस्सा सुनाही बईठार कोरा मा,
मौसी हा पुचकारही,ममा हा दुलारही,
अऊ मामी हा पानी देके,परही हमर पाँव...
गरमी के छुट्टी ....
आमा डार मा,कोयली कुक सुनावत होही,
फरगे चार,पाके तेन्दू सबो खावत होही,
बर मा डंडा पचरंगा खेलत,झुलबो लाहा मा,
बइठ सुरताये बर हे,सुघ्घर नीम के छांव...
गरमी के छुट्टी ...
रंग रंग के जीनिस ममादाई घर चुरथे,
खंगय नही कभू सबो झन ला पुरथे,
सबो मोला अपन अपन हाथ मा खवाये,
मन कथे,काला खाव अऊ काला मे बचाव..
गरमी के छुट्टी...
मोर बर नवा कुरता पैंठ लेवाहू,
अऊ मोर बहिनी बर नवा सांटी,
खेलबो दिनभर नंगत भंवरा अऊ बांटी,
चलही घेरी बेरी तिरी पासा के दांव...
गरमी के छुट्टी...
बाढ़हे गरमी ताहन तरिया मा कूदना,
रतिहा खटिया जठाये दुवार मा सूतना,
कतका मजा आथे तेला अऊ का बताव,
ममा गाँव के सुरता ला मे कभू नई भुलाव...
गरमी के छुट्टी...
लहुटे के बेरा मोर आंसू हा डबडबाही,
तीर मा बला के ममादाई,छाती ले लगाही,
फेर आबे बेटा कहिके,ओ पइसा धराही,
घर आवत आवत मे सबो ला सोरियाव...
गरमी के छुट्टी....
रचना
देवेन्द्र कुमार ध्रुव
फुटहा करम बेलर
जिला गरियाबंद (छ ग)

पागा कलगी-30//1//​ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*

विषय - गर्मी छुट्टी मा जाबो ममा गाँव
विधा - सार छंद।।
छुट्टी गरमी आगे भाई,ममा गाँव जी जाबो।
आनी बानी खाइ खजाना,दूध मलाई खाबो।।१
अमली पेड़ झूलना बँधही,झूले बर झूलेना।
बीच ताल मा तउड़त जाबो,तोड़े पान पुरेना।।२
पीपर पाना तुतरी बजही,खाली टीपा बाजा।
सगली भतली संग खेलबो,बनके रानी राजा।।३
कान पकड़ के ममा खीचही,करबो जब शैतानी।
हासी ठठ्ठा मामी सइही,करबो जी मनमानी।।४
सुने ममा दाई के लोरी,रतिहा रतिहा जगबो।
बढ़िया बढ़िया बात बताही,बांधे गठरी धरबो।।५
✍​ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*
बिलासपुर (छ.ग.) 8889747888

पागा कलगी-29//11//अनिल कुमार पाली

विषय-होली हे
*************************************
रंग हे गुलाल हे
रंग हे गुलाल हे आगे फागुन के तिहार हे।
रंग म मोर रंग जा गोरी तोर बर मया अउ दुलार हे।
लाल-लाल रंगे गोरी तोर गाल हे।
दिखे राधा रानी कस तै तो कमाल हे।
रंग म अपन तै रंग ले मोला गोरी
आये हे सुग्घर फागुन के तिहार हे।
मीठ हे अउ रंग के बने मिठास हे।
तोर अंगना म मोर बंधे बढ़ आस हे।
नवा खवाई के घर म नवा-नवा स्वाद हे।
रंग के तिहार हे गोरी मया अउ दुलार हे।
लाईक खेले रंग अउ बुढ़वा दिखे जवान हे।
होली के तिहार हे माते रंग अउ गुलाल हे।
सब संगवारी मिल के मनात होली के तिहार हे।
रंग म तै आ रंग जा मोर ।
आये होली फागुन के तिहार हे।
कविता रचना:-
अनिल कुमार पाली तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़
आईटीआई मगरलोड धमतरी।

पागा कलगी-29//10//ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*

विषय - होली
विधा - सरसी छंद
नइ तो अब मन रंगय होली,फीका होगे रंग।
गली खोर अब सुन्ना लागे,छुटगे साथी संग।।
संग फाग नंगाड़ा बाजय,उड़य रंग गुलाल।
अब तो फूहड़ गाना बजथे,होथे गांव बवाल।।
छोड़ शहर ला दौड़त जाँवव,माने होली गाँव।
मया पिरित मैं सुघ्घर पाँवव,संग फगुनवा छांव।।
कहाँ नदाँगे ठेठरी खुरमी,चौसेला पकवान।
अब तो दारू मुरगा चढ़थे,पथरा के भगवान।।
राधा तरसे मुरली खाती,मीरा तरसे रंग।
प्रेम बिना अब होली तरसे,खेलिन काकर संग।।
आवव मिलके होली खेलिन,जंगल-पानी थाम।
प्रकृति हे जिनगी के संगी,इही कृष्ण अउ राम।।
कहाँ गवाँ गे पुरखा गहना,सोचव मानुष जात।
लावव भाईचारा के रद्दा,गजानंद के बात।।
✍​ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*
बिलासपुर -8889747888

पागा कलगी-29 //9//अमित चन्द्रवंशी "सुपा"

होरी आगे हवय....
ब्रज म खेले हवय होरी,
राधा अउ कृष्ण ह।
उड़े गुलाल चारों कोति,
माया के रंग बिखरे।
आनी बानी के रंग आगे,
एक-दूसर मनके चेहरा म लगाये।
आनी बानी ढंग ले खेलही मनखे मन
भज डरहिं मनखे मन फागुन के गोठ ल।
एकदिन होरी आजही
होरे जलाये बर जाहि गांव के मुखिया ह,
सुभमुहर्त म जलाये बर जाहि मनखे मन।
चारो कोति उड़ाही रंग,
आगे हवय होरी तिहार
फागुन के महीना जाढ़ बुझा गे।
आगे हवय होरी तिहार,
मिल जुल के रंग लगाये
सबके घर म बने गढ़ कलेवा
अपन अपन ले बधाई देवय।
-अमित चन्द्रवंशी "सुपा"
उम्र-17•11वर्ष 'विद्यार्थी'

पागा कलगी-29 //8//संतोष फरिकार(मयारू)

***होली हे***
संगी गांव आय हे तीहार मनबो होली हे
खेलबोन रंग गुलाल होली तीहार आय हे
गुड़ी चौक जाबोन नगाड़ा ल बजाबोन
फाग गीत गाबोन जमो संगी सकलाय हे
बरसे रंग अउ गुलाल,बरसे रंग अउ गुलाल,
आगे फागुन तिहार संगी उडाबोन रंग लाल
जिनगी हे चार दिन के मनाबो होली तीहार
महुआ के रस पीए जमो झन भकवाय हे
बाजत हे ढोल नगारा उड़त हे रंग गुलाल
पीहव झन मंउहा रस तीहार हो जहय बेकार
दिन के पीचकारी संझा कुन खेलबोन गुलाल
चौक चौक म संगी मन एक साथ जुरियाय हे
*******************************
संतोष फरिकार(मयारू)
देवरी भाटापारा

पागा कलगी-29//7//कु. रेखा निर्मलकर

"होली"
मया के रंग घोलें होली
मया के बोली बोलें होली।
-तन मन ला रंगले सुग्घर
बैर-कपट छोड़ करले उज्जर।
मनखे ला मनखे संग जोड़े होली
मया के बोली...
2-रंगी बिरंगी उड़त गुलाल हे
लाली गुलाबी सबके गाल हे।
भेदभाव ऊँचनीच ला तोड़े होली
मया के बोली...
3-रंग भरके मारे पिचकारी
लइकामन मिल मारे किलकारी
तन मन संगे संग डोले होली
मया के बोली....
4-बजे नँगारा अउ फाग गावय
संगी जहूँरिया मिलके नाचय
दुःख सुख ला बाँटे होली
मया के बोली....
कु. रेखा निर्मलकर
कन्नेवाड़ा बालोद(छः ग)

पागा कलगी-29//6//चोवाराम बादल

विषय----होली।
-------------------------------
सम्माननीय मंच के सम्मुख एक ठन *गीत* प्रस्तुत हे।
अब तो होली खेले मा डर लागे सँगवारी,
अब तो होरी खेले मा डर लागे ।।
नेम प्रेम मोर गांव गँवई के,
कोन कोती जी गँवागे ।। अब तो--
(1)
काला रंग गुलाल लगाबे, कइसे हँसी गोठियाबे।
गाँव के गाँव बूड़े मंद मउहाँ, खोजे आरुग नइ पाबे।
मनखे के अंतस घपटे अँधियारी,मरी मसान समागे।
अब तो होली खेले मा डर लागे-------
(2)
बात बात मा चाक़ू छुरी, मुँह बंदूक गारी के गोली ।
नइये राधा नइये गोपी,सोंच समझ के करबे ठिठोली ।
हिरनाकश्यप के निसचर सेना, गली गली मा ढिलागे ।
अब तो होली खेले मा डर लागे-------
(3)
कोन गाही फाग कोन बजाही नंगारा,सुकालु दुकालू बुढ़ागे ।
का पिचकारी का रंग कटोरा, लइका लोग भूलागे ।
ठेठरी खुरमी के नाँव बुतागे, मछरी कुकरा पउलागे।
अब तो होली खेले मा डर लागे-----
(4)
गांव लहुटगे घोड़ा करायेत,आधा शहर आधा बस्ती।
सिधवा मन होगे घर खुसरा ,नंगरा लुच्चा के चलती।
पुरखा मन के जी पुरखौती,छईहाँ कस दुरिहागे ।
अब तो होली खेले मा डर लागे ।
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-चोवाराम बादल

पागा कलगी-29//5//विक्रमसिंह " लाला "



विषय ~ होली
गांव गली खोर मा नगाडा बाजे ।
देख संगी फागुन तिहार आगे ।।
पिचका ला धर के ,
राधा बर श्याम भागे ।
रंग कटोरा ला धर के ,
सीता बर राम भागे ।।
कोनो बनाथे बरा सोहारी,
कोनो बनाथे पापड ।
देख के रंग लगाबे संगी ,
झन खाबे झापड ।।
कोनो मेरा संगी ,
डी जे घलो बाजत हे ।
दरूहा टूरा मन दारू पिके ,
बईहा बरोबर नाचत हे ।।
जगह जगह होली बारे,
हरियर रूख ला काटत हे ।
झन काटव रे मानव येला ,
येही हमला तारत हे ।।
बारना हे त अपन आस पास के
कचरा ल बार कर दे सफाई ।
हरियर हरियर बने दिखत हे
झन काट तय ओला भाई ।।
कोनो पिही आधा पाव ,
कोनो पउव्वा चडाही ।
दारू पिके ये दरूहा मन
गांव गदर मचाही ।।
आगे हे होली तिहार ,
रंग गुलाल उडाही ।
लइका सियान सबो
झन दारु मा नहाही ।।
साल मा एक बार आथे होली,
बने बने मनाहूं ।
लइका सियान सबो के मा
रंग गुलाल लगाहूं ।।
होली तिहार मा संगी ,
बने बने रोटी बनाहूं ।
सबो लडाइ झगड़ा ल ,
भुला के बैरी ला गले लगाहूं ।।
#लाला कहे होली मा ,
झन पिहूं दारू ।
नशा अडबड होही संगी ,
पर रहीहूं उतारूं ।।
गांव मा रात कन बाजत हे नगाड़ा ।
आप सबो ल होली बधाई हे गाडा गाडा ।।
विक्रमसिंह " लाला "
मुरता , नवागढ , बेमेतरा
7697308413 .8120957083
दिनांक --> 11/03/2017

पागा कलगी-29 //4//ललित टिकरिहा

 💃🏻💃🏻होली हर आवत हे💃🏻💃🏻
🖍🖍🖍🖍🖍🖍🖍
🙋🏻🙋🏻🙋🏻🙋🏻🙋🏻
फागुन भदरावत हे,
फाग ह सुनावत हे,
झूम लौ सबो झन ,
होली हर आवत हे।
पुरुवा सरसरावत हे,
बसन्त ह सुहावत हे,
मन ला गुदगुदाए बर,
मीत मन ह आवत हे।
भंग ल चढ़ावत हे,
मन्द मुसकावत हे,
मद में मोहाय देखव,
लोगन लहरावत हे।
पिरित मन म जागत हे,
निक सुग्घर लागत हे,
सजनी के देखे बदन,
रंग घलो ललचावत हे।
मन मोर गोहरावत हे,
रंग घलो तरसावत हे,
अपन रंग म रंगे बर,
होली हर आवत हे।
फागुन भदरावत हे,
फाग ह सुनावत हे,
झूम लौ सबे झन,
होली हर आवत हे।
👯👯👯👯👯
गांव जगमगावत हे,
मन ल महकावत हे,
एक होके जम्मो झन,
जुर मिल सकलावत हे।
मन ल अबड़ भावत हे,
गोकुल कस लागत हे,
गोप ग्वाल मन ल देखव,
एक दूसर ल लुभावत हे।
कन्हैया ह गावत हे,
बंसी ला बजावत हे,
सुन के धुन पिरित के
राधा रानी लजावत हे।
फाग सुग्घर गावत हे,
नंगारा निक बजावत हे,
दिन ह लखठियावत हे,
होली हर आवत हे।
फागुन भदरावत हे,
फाग ह सुनावत हे,
झूम लौ सबो झन,
होली हर आवत हे।
👯👯👯👯👯
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
संगवारी होली तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई ।
💐💐💐💐💐💐
☝🏻☝🏻रंग रचइया........✍
📖
🙏✏ललित टिकरिहा✏🙏

पागा कलगी-29 //3//ज्ञानु'दास' मानिकपुरी

विषय-होली हे
विधा-दोहा मा लिखे के प्रयास
~~~~~~~~~~~~~~~~~
सरसों माते खेत मा,मउहाँ हा ममहाय।
झूमत हे हरियर ग़हूँ,देखत मन हरषाय।।
आमा डारा कोयली,बइठे छेड़े तान।
आत फगुनवाँ देखके,टेसू मारे शान।।
होली हे होली भई,कहत हवे सब आज।
गॉव गली के चौक मा,सजे फाग के साज़।।
लइका पिचकारी धरे,संगे रंग गुलाल।
नीला पीला लाल मा,रंगे हावय गाल।।
गॉव गॉव बाजत हवे,झाँझ नगाड़ा ढोल।
देवत हे संदेश ला,मीठा बानी बोल।।
मया प्रीत के रंग मा,रंगव सबला आज।
बैर कपट ला छोड़ दव,होवय झन नाराज।।
सुग्घर मिलके सब रहय,छोड़ राग अउ द्वेष।
दया मया ला बाँट लव,देवत हे संदेश।।
खेलत कूदत हे सबो,संगी साथी मस्त।
दारू गाँजा पी बबा,होंगे हावय पस्त।।
देवर भौजी के हँसी,गुँजत हवे चहुँओर।
लाज शरम ला छोड़के,किंजरय गली खोर।।
दुश्मन मौका खोजथे,करथे जी हुड़दंग।
देख ताक के खेलहूँ,होली सबके संग।।
दया मया पाबे कहाँ,जबरन डाले रंग।
कखरो झन होवय बुरा,होली के हुड़दंग।।
माते होली रंग मा,संगी साथी संग।
फुँकत हवे कोनों चिलम,दारू गाँजा भंग।।
सोहारी भजिया बरा,घर घर चुरथे आज।
दाई हा भीड़े हवे,दिन भर करथे काज।।
मिलके होली खेलबो,संगी साथी साथ।
छोटे ला देबो मया,बड़े नवाबो माथ।।
ज्ञानु'दास' मानिकपुरी
चंदेनी कवर्धा

पागा कलगी-29//2//तोषण कुमार चुरेन्द्र

होली हे
पुरब पसचिम उत्तर म, ढंग के मनइस ग होली 
छत्तीसगढ के दकछिन म, जब चले दनादन गोली
घर खात रेहेन रोटी पीठा, जवान खावत रिहिन गोली
रंग बिरंग गुलाल लगाएंन त, मांथ लगाए लाल रोली
कुरबानी ऊँखर बिरथा मत होए, एखर करव जतन
गोहार थोरकिन सुन लेतेव ,परदेस के मुखिया रमन
काखरो भिंजे कपडा लत्ता, काखरो भिंजे चोली हे
जम्मो दु:ख ल भुलाके काहत हों,संगी मन ला होली हे.
तोषण कुमार चुरेन्द्र
९६१७५८९६६७

पागा कलगी-29//1//जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

विषय मा छोटकन प्रयास--
💐💐होली हे(गीत)💐💐
--------------------------------------
महकत रंधनी खोली हे।
मुँह मा मीठ मीठ बोली हे।
फागुन मस्त महिना आये,
नाचो - गावो होली हे।
नेवता हेवे झारा - झारा।
सइमो - सइमो करै पारा।
बाजत हवे ढोल नँगाड़ा।
नाचत हे भांटो अउ सारा।
अंग मा रंग,रचे हे भारी।
दिखै लाली पिंवरी कारी।
अबीर माड़े भर-भर थारी।
सर्राये मारे पिचकारी।
घूम - घूम के रंग रंगे,
लइका-सियान के टोली हे।
झरे मउर,धरे आमा फर।
धरे राग,कोइली गाये बड़।
उल्हवा दिखे,डारा - पाना।
चना गंहू धरे हे दाना।
चार तेंदू लिटलिट फरे।
रहि - रहि मउहा झरे।
बोइर अमली झूले डार मा।
सेम्हर परसा फूले खार मा।
घर - दुवार, गली - खोर,
नाचत डोंगरी डोली हे।
बरजे बाबू, बोले सियान।
नइ देत हे,कोनो धियान।
मगन होगे नाचत हे।
दया - मया बाँटत हे।
होरी देय संदेस सत के।
मया रंग मा, रबे रचके।
परसा सेम्हर आमा लचके।
दुल्हिन कस खड़े हे सजके।
मया रंग रचे लाली- हँरियर,
धरती दाई के ओली हे।
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981442795

पागा कलगी 27 के परिणाम


फरवरी के पहिली पखवाड़ा म ‘बसंत‘ विषय म प्रतियोगिता होइस । जेमा कुल 7 रचना आइस । ये आयोजन के निर्णायक श्रीमती शकंतला तरार रहिन । तरारजी के अनुसार-‘‘हर प्रतिभागी के रचना ह सुघ्घर हे । नाममात्र सुधार के बाद श्रेष्ठ रचना बन जाही । उनकर सामान्य गलती लय टूटना, गलत तुकान्त, तुकान्तता के अभाव, शब्द के मात्रा बिगाड़ के लिखना हे ।‘‘ प्रतियोगिता म बिना गलती या सबसे कम गलती वाले रचना ल चुने जाथे । ये आधार म ये प्रतियोगिता के परिणाम ये प्रकार हे-
पहिली विजेता- श्रीमती आशा देशमुख
दूसर विजेता- श्री ज्ञानु दास देशमुख

दूनों विजेता मंच के तरफ ले  अंतस ले बधाई, सबो प्रतिभागी मन के आभार ।

संयोजक
छत्तीसगढ़ी साहित्य मंच



शनिवार, 4 मार्च 2017

पागा कलगी -28 //6//ज्ञानु'दास' मानिकपुरी

जइसे कटगे हमर पाँखी देना।
वाह रे बेटा तय लमसेना।
1-मोर चारी चुगली होवत हे गली खोर।
बिहनिया ले संझा सुन लेवत हव बटोर।
कतको मोला ताना मारे,कतको गारी देथे
कतको सुनाथे एला लाज नइये थोर।
जइसे खाय ला परथे इही मनला देना।
वाह रे बेटा तय लमसेना।
2-मोरो दाई ददा हे,मोरों घर द्वार हे।
थोडा बहुत हावय घला खेतीखार हे।
संगमा पढ़त लिखत होंगे आँखी चार
मय का जानव एखर अइसन पियार हे।
मोर बर का रोना अउ हँसना।
वाह रे बेटा तय लमसेना।
3-मोर अंतस के पीरा कोन ला बतावव।
मोर जिनगी के कथा कोन ला सुनावव।
का मय अइसन गुनाह कर डारेव 'ज्ञानु'
नदी मा रहिके कइसे मगर ले दुश्मनी निभावव।
होगेव जइसे मय पोसवा परेवना।
वाह रे बेटा तय लमसेना।
ज्ञानु'दास' मानिकपुरी
चंदेनी कवर्धा

पागा कलगी -28//5//ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*

विषय - लमसेना
विधा - तुकबंदी
*लमसेना*
बनके जी मैं लमसेना।
थोपत हँवव गोबर छेना।।
सोचे रहेंव खूब मजा पाहूँ,
सुखे सुख म जिनगी पहाहूँ,
फेर धंधागेव पिंजरा कस मैना।
बनके जी मैं लमसेना।
थोपत हँवव गोबर छेना।।
सोचेंव कथरी ओढ़ घीव खाहूँ,
सास ससुर के गुन ल गाहूँ।
फेर मैं अढ़हा का जानव संगी,
कि सुवारी के गोड़ ल दबाहूँ।।
रात दिन रोवावत हे फूलकैना
बनके जी मैं लमसेना।
थोपत हँवव गोबर छेना।।
सारी नइ हे न सारा नइ हे,
दुख पीरा के सुनइया नइ हे।
घुट घुट के जिनगी जीयत हँव ,
आँसू के कोनो पोछइया नइ हे।
छूटगे दाई ददा से लेना देना।
बनके जी मैं लमसेना।
थोपत हँवव गोबर छेना।।
मोह माया म मैं ह धंधायेंव,
घानी कस बइला मैं ह पेरायेंव।
गंगू तेली हवय मोर ससुरार,
अठ्ठनी रुपया बर मैं लुलवायेंव।।
सुवारी बुलावय खींच के डेना।
बनके जी मैं लमसेना।
थोपत हँवव गोबर छेना।।
ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*
बिलासपुर -8889747888

पागा कलगी -28 //4//चोवा राम " बादल"

लमसेना (आल्हा छंद में)
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पाँच साल बर मँय लमसेना, हावँव भाई गोंड़ गरीब।
पानी रहिके प्यासा रहिथँव, अइसे हावय मोर नसीब।।1।।
हालत मोर समझ लव संगी,खेत ससुर के करथँव काम।
जोता थँव बइला भँइसा कस, नइये आठों पहर अराम ।।2।।
दिन भर मोर परीक्षा होथे, जाँचत रहिथे दाई सास।
नम्बर कोनो नइ देखावय, पता नहीं कब होहूँ पास ।।3।।
मँय तो अभी कहे भर के हँव, पाछू बनहूँ असल दमाँद ।
मन चातक के प्यास बुझाही, उही शरद पुन्नी के चाँद ।।4।।
पढ़े लिखे तो नइ अन संगी, जुन्ना हमरो रीत रिवाज।
लमसेना बस्तर के घोंटुल, पुरखौती मानत हन आज।।5।।
नारी के हम इज्जत करथन, होथे नारी हमर सियान।
का अच्छा का गिनहा होथे, नइये हमला जादा ग्यान ।।6।।
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चोवा राम " बादल"
हथबंद
23/02/2017

पागा कलगी -28//3//जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"

दोहा(लमसेना)
1
बेटा के जी आस में,बढ़ जाये परिवार।
बोहे लमसेना घलो,सास ससुर के भार।
2
बेटी के दाई ददा, सेवा बर लुलवाय।
लमसेना हर हाल के,एक आसरा ताय।
3
लमसेना के रीत ला, पुरखा हवे बनाय।
जेखर बेटा नइ रहय,वो लमसेना लाय।
4
छोटे रख परिवार ला,बेटा बेटी काय?
बेटी पा झन दुख मना,घर लमसेना आय।
5
बस बेटी भर के बिदा, हमर हरे का रीत?
कखरो जिनगी सुख बिना,जाये जी झन बीत।
6
बाबू पथरा लाद के,बेटी करे पराय।
उसने बेटा के ददा,लमसेना ल पठाय।
7
दाई बाबू झन छुटय, झन जाबे तैं भूल।
बनके लमसेना रबे,दूनो कुलबर फूल।
8
लमसेना बन बेटवा, बेटी के घर जाय।
करम करय घर जान के,जग में नाम कमाय।
9
बेटी बर हे दू ठिहा,मइके अउ ससुरार।
बेटी कस बेटा घलो,सबके बने अधार।
10
बेटी परघर जाय के,लेवय सबला जीत।
बेटा लमसेना बनय, बढ़े मया अउ मीत।
11
सेवा बर जाये भले,कखरो धन झन गने।
लमसेना लालच करे, नोहे एहा बने।
12
लमसेना ला लेय के, होवे कतको बात।
पइसा वाला पाय के,लालच मा हे जात।
13
जतका ठिन भेजा हवे,ततका ठिन हे गोठ।
बेटी कस सेवा बजा,नाम काम कर पोठ।
जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981442795

पागा कलगी -28//2//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर 'अंजोर '

विषय:-- लमसेना
विधा:-- सार छंद
बेटा तयँ जिनगी के थेघा,आवच पाँखी डेना।
कइसे हमला छोड़ अकेला,बनगे तयँ लमसेना।
जे दिन थकजाही जांगर हा,का खाबो का पीबो।
अउ का बाँच जही जिनगी मा,जेखर बर हम जीबो।
पाय मया कइसन ससुरे मा,हमर भुलागे कोरा।
का हमरे कस उँखरो आँखी,करथे तोर अगोरा?
मनके बात बतावत नइहच,अइसे काबर लगथे?
जइसे हमरे करम उपर मा,बइठे हमला ठगथे।
कान फुसारी गोठ सुने हन,सँच काहे अलखादे?
सास ससुर अउ हमर बहू के,हाल हवाल बतादे।
सुने हवन मन पथरा करके,थोपत रहिथच छेना।
कइसे हमला छोड़ अकेला,बनगे तयँ लमसेना।
जे मनखे के हमर दरद मा,नइये आना जाना।
तेनो कुलकत हाँसत हावै,जइसे पाय खजाना।
गुन अंतस आंसू ढरकावै, देख ददा के आँखी।
दाई के मन पसतावत हे,काबर नइहे पाँखी?
अबतो एके आस हवै गा,कोरा पावन नाती।
नाचन गावन ओखर सनमा,तभे जुड़ावै छाती।
जिनगी के अँधियार मिटाके,धर लाही उजियारा।
अतके लालच मा जीयत हन,बाकी राम सहारा।
जाँवर जोंड़ी जेन बनाथे,ओही पार लगाही।
मालिक मा बिश्वास हवै अब,रद्दा खोज धराही।
हमर दरद मा ये दुनिया ला,का लेना का देना।
कइसे हमला छोड़ अकेला,बनगे तयँ लमसेना।
रचना:- सुखदेव सिंह अहिलेश्वर 'अंजोर '
शिक्षक,गोरखपुर,कवर्धा
9685216602
26/02/2017

पागा कलगी -28//1//असकरन दास जोगी "अतनु"*

*लमसेना*
बबा गो डोकरी दाई ओ, मोला पठो दव लमसेना !
ददा गो दाई ओ, मैं जाहूँ लमसेना !!
होवइया ससुर सास, बड़ा हे पइसा वाला !
नानमुन घर नही, लेंट्टर हे तीन तल्ला !!
लोख्खन के ओकर बेटी, हावय एेके झन !
जबले देखे हवँ, आगे हावय मोरो मन !!
सब अढ़वा ले करहवँ, अउ थोपहवँ भले छेना !
ददा गो दाई ओ, मैं जाहूँ लमसेना !!......(१)
दस इक्कड़ खेत हे, पाहूँ मैं अकेल्ला !
जाँगर पेर नाँगर जोंतहूँ, उहाँ नइ राहवँ निठल्ला !!
सुंदरी हावय होवइया बाई, मन लागे रइही !
ससुरार मँ रइहूँ, भले मोला मेंड़वा कइहीं !!
मान जा बबा गो, अब तो भेज दे ना !
ददा गो दाई ओ, मैं जाहूँ लमसेना !!....(२)
लमसेना ला मिलहऊर, घलो कइथैं !
सब जात बर, ससुरार के आसरा मँ रइथैं !!
गोसईन के सबे, नखरा ला उठाथे !
भात साग रंधना, अउ साड़ी घलो ला धोवाथे !!
सब टेमटेमा ल सइहूँ, डोकरी दाई मान ले ना !
ददा गो दाई ओ, मैं जाहूँ लमसेना !!.....(३)
कोठा मँ भरे हे गरुआ, दूध दही के खान हे !
कोठी डोली बोरा, अलमल भरे धान हे !!
अँगना मँ तुलसी, चँवरा मँ गोंदा !
सब बात ऊँकर सुनहूं, बनके रइहूँ कोंदा !!
मोला तुमन जावन दव, मोर अऊ भाई इहाँ तो हे ना !
ददा गो दाई ओ, मैं जाहूँ लमसेना !!.....(४)
ससुर सास के सेवा, करहवँ दिन रात !
गोसईन सो मया, अउ करहवँ मिठ बात !!
कथरी ओंढ़ के, मैं तो घीवँ खाहवँ !
लमसेना जाये ले, धन्य हो जाहवँ !!
मान जातेव ददा-दाई, मोला अब पठो देना !
ददा गो दाई ओ, मैं जाहूँ लमसेना !!........(५)
*असकरन दास जोगी "अतनु"*
ग्राम-डोंड़की,पोस्ट-बिल्हा,तह-बिलासपुर ,छत्तीसगढ़
मो. 8120477077