रविवार, 3 जनवरी 2016

छत्तीसगढ के पागा" क्र 4/ काव्यांश अधारित

 छत्तीसगढ कविता के ये प्रतियोगिता मा नीचे दे गे मुक्त के आधार मा अपन रचना पोस्ट करना रहिस-

जिनगी के तार ल जोर के तो देख
माटी संग मया ल घोर के तो देख
गुरतुर हो जाही संगी भाखा ह तोरो
छत्तीसगढ़ी म थोकिन बोलके तो देख|
-श्री राजकमल राजपूत
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आज तक प्राप्त रचना

1  तोर बोली तोर भाखा-शालिनी साहू
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तोर बोली तोर भाखा रे भईया
लरई झगरा के काहे काम।
सबले गुरतुर हमर बोली रे भईया
सुग्घर हबय एकरो नाम।
जे ठन देश ते ठन भाखा
हर जिला के अपन साखा।
छत्तीसगढी म गोठिया ले रे भईया
छत्तीसगढ महतारी के लाज राखा।
छत्तीसगढ के लईका हरन
गोठिया ले अपन भाखा जग म होही नाम।
हिन्दु भाई ल करव जय जोहार
मुसलिम भाई ल पारव सलाम के गोहार।
तोर बोली तोर भाखा रे भईया
धरती बर तो सबो बरोबर हे
का बेटा का बेटी रे भईया
फूले हे चंदैनी गोंदा के सुग्घर फुंदरा
जिनगी बचाय रे भईया टुटहा कुंदरा।
तोर बोली तोर भाखा रे भईया
लरई झगरा के काहे काम
गोठिया ले अपन भाखा जग होही नाम।
गाव देहात के लईका रे भईया
नई हन अडहा अडही तय जान
तोर बोली तोर भाखा रे भईया
अपन बोली के भाव बढाबो बढही हमरो मान।
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शालिनि साहू
साजा बेमेतरा
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2 हमर गांव के माटी- श्री नवीन तिवारी
हमर गांव के माटी के महमहाना
खेती बपरी ल देख के ,
किसान के ओतके मट मताना,
रतन गर्भा देवत हीरा मोती ,
अइसन हवे हमर छत्तीसगढ़ महतारी
एखर भाखा अतका मयारुक
माई पिला के रखत घलो ख़याल
डोकरी दाई ल कहे ममा दाई वो
बुडी दाई ल कहे कका दाई वो
भांचा मने कौशल्या बहिनी के लइका राम
नोनी कहेले हो जाते माता कौशल्या के ध्यान ,
रावण राज के बड़का द्वार पाल
कहत लगे खरदूषण के राज
खरौद हवे आजहो चिन्हारी
लक्षमणेस्वर महादेव जिन्हा विराजे
माता शबरी के पियार देखो
तो भूले बर आवो शिवरीनारायण
जिन्हे विराजत नर नारायण भगवान
फेर शबरी महिमा दिखत हवे आजहो जी
शबरी मैय्या के आशीष पाये
बोइर खाए के दोना बनाये कृष्ण वट
जेमा बने हवे बोइर रखे के चीन्हा
मितान संग मितानिन के चलन
फूल गेंदा ,ले बदत हवे सखी सहेली
अइसन मिट्ट भाखा कहा मिलहि संगवारी
जैसे फुलवारी में मधरस चुसत दतैय्या
वइसनेच्च दिल्ली में बैठ के सोचत मुखिया ,,
सब्बो संगी जुड़ के करो जी एक परन
बाहिर हो या घर में,
सियान संग हो या लइका मन
सब्बो जुड़ के गोठियावो
गुरतुर भाखा छत्तीसगढ़ी म
नवीन कुमार तिवारी ,,
3-।।हमर भाखा।।- श्री अशोक साहू
मयारु माटी मोर गांव के
महतारी कस मया बरसाय।
बोली बरतस मोर गुरतुर लागे
मिसरी जईसन मौला सुहाय।।
मान बढाबो ईही माटी के
करबो निस दिन पूजा।
हमर भाखा छत्तीसगढी कस
नईहे कोनो दुजा।।
मया के अडबड रिसता नाता
लागथे जईसे घर परवार।
अपन भाखा म बतियाय ले
मन ह बंधाथे एके तार।।
नई भुलन कभु हमर भाखा
एकरे ले हमर पहिचान।
जनम धरे हन ईही माटी म
बेटा बन करबो सनमान।।
अशोक साहु , भानसोज

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4-मोर भुईयाँ- श्रीओमप्रकाश चौहान


मोर भुईयाँ म संगी
एकमई जभे हो तेय हं जाबे,
तब कहुँ जाके रे संगी
चंदन कस तेय हं मम्हाबे,,
मोर बोली भाखा म संगी
मधुरस ल कहुँ तेय हं जानबे,
तब कहुँ जाके रे संगी
मया भुईयाँ के तेय हं पाबे,,
दया मया के छाँव म संगी
पीरा कखरो तेय हं समझबे,
तब कहुँ जाके रे संगी
गवंई गाँव म तेहुँ हं बस जाबे,,
मोर भुईयाँ हे चारो धाम संगी
नून ऐखर जभे तेय ह धरबे,
तब कहुँ जाके रे संगी
छत्तीसगढ़िया हमर कहाबे,
मोर भुईयाँ म संगी
एकमई जभे हो तेय ..........,,

ओमप्रकाश चौहान

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5-मोर गंवई गांव-श्री महेन्द्र देवांगन "माटी"
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मोर सुघ्घर गंवई के गांव
जेमे हाबे पीपर के छांव
बर चंउरा में बैइठ के गोठियाथे
नइ करे कोनों चांव चांव ।
होत बिहनिया कूकरा बासत
सब झन ह उठ जाथे
धरती दाई के पांव परके
काम बूता में लग जाथे
खेती किसानी नांगर बइला
छोड़ के मय कहां जांव
मोर सुघ्घर गवंई के गांव
जेमें हाबे पीपर के छांव ।
नता रिसता के मया बोली
सबला बने सुहाथे
तीज तिहार के बेरा में सबझन
एके जगा सकलाथे
सुघ्घर रीति रिवाज इंहा के
"माटी" परत हे पांव
मोर सुघ्घर गवंई के गांव
जेमे हाबे पीपर के छांव ।
माटी के सेवा करे खातिर
जांगर टोर कमाथे
धरती दाई के सेवा करके
धान पान उपजाथे
बड़ मेहनती इंहा के किसान हे
दुनिया में हे जेकर नांव
मोर सुघ्घर गवंई के गांव
जेमे हाबे पीपर के छांव ।
छत्तीसगढ़ के भाखा बोली
सबला बने सुहाथे
गुरतुर गुरतुर भाखा सुनके
दुनिया मोहा जाथे
बड़ सीधवा हे इंहा के मनखे
जिंहा मया पिरीत के छांव
मोर सुघ्घर गवंई के गांव
जेमे हाबे पीपर के छांव
रचना
महेन्द्र देवांगन "माटी"
पंडरिया
8602407353

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6-।। मोर छत्तीसगढ़ीन दाई ।। -श्री राजेश कुमार निषाद
मोर छत्तीसगढ़ीन दाई
तोर कइसे करंव बढ़ाई।
पारत हंव मैं गोहार
कर पानी के तै बौछार ।
बोहवय नदिया के धार
जय होवय तोर छत्तीसगढ़ के बनिहार।
जुरमिल के कमावव रे मोर किसान भाई
मोर छत्तीसगढ़ीन दाई
तोर कइसे करंव बढ़ाई।
तोर माटी म उगाथन सोनहा धान
ये तोर माटी हावय महान।
धान उगाथन बोरा बोरा
तोला कहिथे धान कटोरा।
मोर दुख पीरा हरईया दाई
तोर कइसे करंव बढ़ाई।
महर महर महके तोर माटी
जेमा खेलथन भऊरा बांटी।
ढब ढब बाजे गरुवा के घाटी
जइसे पारे हे धरती परपाटी।
तोला छोड़ के कोनो नई जाई
मोर छत्तीसगढ़ीन दाई
तोर कइसे करंव बढ़ाई।
रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद ( समोदा )
9713872983
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7-।। महर महर महकाबो जी ।। -श्री राजेश कुमार निषाद

छत्तीसगढ़ के भुईयां ल महर महर महकाबो जी।
मिलजुल के करबो साफ सफाई स्वच्छता हमन लाबो जी।
गाँव गली अऊ चौराहा ल जमके करबो सफाई।
स्वच्छ गली खोर घर घर खुशियाँ आई।
जेन हर फैलाहि गन्दगी वोला ठेंगा देखाबो जी।
छत्तीसगढ़ के भुईयां ल महर महर महकाबो जी।
न जाने ये गन्दगी ले कईसन प्रदूषण के कहर बरसत हे।
हाथ म हाथ धरे सब रहिगे आनि बानि बीमारी बर ये जहर पोरसत हे।
जब तक नई होहि साफ सफाई हमन आगू कदम बढ़ाबो जी।
छत्तीसगढ़ के भुईयां ल महर महर महकाबो जी।
घर के कचरा ल घर के दुवारी म नई फेकना हे।
गन्दगी फैलाय ले हमन ल खुद बचना हे।
गाँव के बाहिर म गड्ढा खनव।
कचरा ल ले जाके वोमा फेकव।
गाँव गाँव म जाके अईसन स्वच्छता अभियान चलाबो जी ।
छत्तीसगढ़ के भुईयां ल महर महर महकाबो जी।
साफ सफाई म हावे सबके भलाई।
हमर स्वस्थ जीवन के इहि दवाई।
मिलजूल के स्वच्छता के गीत गाबो जी।
छत्तीसगढ़ के भुईयां ल महर महर महकाबो जी।
रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद ( समोदा )
9713872983
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8                          *रचना--मिलन मलरिहा।
** साहेब छत्तीसगढ़ी गोठिया ले **
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मया पीरा ल जान ले संगी
बोली-भाखा ल पहिचान ले
छत्तीसगढ़ी हे महतारी-भाखा
बचकानी के दिन बीचार ले
गाँव गलि के चिखला माटी
पैरा म सब खेलन उलानबाटी
छू-छुवाउल गिल्ली-डनडा
अउ खेलन संगे लुका-छिपी
मया पीरा के भाखा सोरिया ले
साहेब छत्तीसगढ़ी गोठिया ले.......
/
अड़बड़ खाए अंगाकर रोटी
चिला ठेठरी अइरसा खुरमी
इडली डोसा के चक्कर परके
फरा अइरसा ल भूला डारे
चूल्हा गोरसी के आगी छोड़के
सुखसूबीधा के पागा बांधडारे
छत्तीसगढ़ी खटिया ल टोर
हिनदी ल पलंग बना डारे
मया पीरा के भाखा सोरिया ले
साहेब छत्तीसगढ़ी गोठिया ले.......
/
काटागड़थे त दाई गोहराथन
छत्तीसगढ़ी म आसू गिराथन
सपनाघलो ओही म सपनाथन
दूख-दरद के गोठ बतियाथन
बरा सोहारी ओही म मानथन
पंडवानी करमा पंथी गाथन
नाचा ददरिया म दिन पहाथन
हिनदी ल महतारी कइसे मानले
मया पीरा के भाखा सोरिया ले
साहेब छत्तीसगढ़ी गोठिया ले.......
/
मया पीरा ल जान ले संगी
बोली-भाखा ल पहिचान ले
छत्तीसगढ़ी हे महतारी-भाखा
बचकानी के दिन बीचार ले
साहेब छत्तीसगढ़ी गोठिया ले.......
साहेब छत्तीसगढ़ी गोठिया ले.......
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रचना--मिलन मलरिहा
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