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सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

पागा कलगी.2// ओम प्रकाश चैहान

🌻 बड़ अभागा हे मोर जिनगी🌻
करम म अईसे लिखे का ओ बिधाता मोर
तमासा होगे नानहेपन के सुग्घर जिनगी मोर
नाता ये जम्मो हमर पराया होगे,
जेन मया सकलावय कभू काबर कोसो दुर होगे।
मेहनत हमर संगी अउ बुता बनय हमर खेल
बचपन के ये पावन बेला लागय कस जेल ।
ममता बर तरस गेंव,
जम्मो मया बर अइसे तरस गेंव।
काखर बर जोरबो , अब सकेलबो काखर बर,
मिले हे ये जिनगी जब दिन चार बर।
मया के गोठ गोठियालव कुछु हमरो ले,
निचट अभागा आंन हम जनम ले।
सब बादर कस अइसे बदर गे,
सुग्घर खोंदरा कस ये जिनगी उजड़ गे।
महूं निकलगे ये जिनगी ल सुग्घर संवारे बर,
ये पापी पेट के आगी ल थोरीक जाने बर।
करम ल अइसे लिखे का बिधाता मोर,
तमासा होगे नानहेपन के.........................।

🌻 ओम 🌻
🌻🌻बिलासपुर🌻🌻

रविवार, 31 जनवरी 2016

पागा कलगी-2//दिनेश देवांगन "दिव्य"

मैय छत्तीसगढ़ के लइका अव, निकले हव भाग सँवारे !
अउ ओला देवत हव सिक्छा, जो जिनगी ले हे हारे !!
जाड़ महीना सुत बिहनिया, नहाथव ठरत पानी मा !
सुरपुट खाथव चटनी बासी, मिरचा आमा चानी मा !!
मुख इसकुल के नई देखेंव, का जानव ए बी सी डी !
पान बनाथव मस्त मगन मय, खाथे जग हैरानी मा !!
आत जात मनखे मन मोला, आँखी ला फार निहारे !
मैय छत्तीसगढ़ के लइका अव, निकले हव भाग सँवारे !!
अउ ओला देवत हव सिक्छा, जो जिनगी ले हे हारे !!
घोर गरीबी घर मा हावय, नई महीनत ले डरथव !
डाहर मा कतको हे बाधा, डाहक डाहक मय बड़थव !!
अँधवा मोर दाई ददा के, मय हव एक श्रवण बेटा !
हसी खुसी दुनिया के जम्मो, ओखर गोड़ तरी धरथव !!
कतका गहला हावय पानी, नई सोचव तरीया पारे !
मैय छत्तीसगढ़ के लइका अव, निकले हव भाग सँवारे !
अउ ओला देवत हव सिक्छा, जो जिनगी ले हे हारे !!
बहिनी मोर जिगर के टुकरा, ऐखर भाग सजाना हे !
काँटा हावय जो जिनगी हा, ओमा फूल खिलाना हे !
तयबेटी अस बेटा बनके, कुल के नाव ला बढ़ाबे !
मोर भरोसा पक्का हावय, देखी काल जमाना हे !
तोर मया बर ऐ जिनगी के, जम्मो सुख ला मय वारे !!
मैय छत्तीसगढ़ के लइका अव, निकले हव भाग सँवारे !
अउ ओला देवत हव सिक्छा, जो जिनगी ले हे हारे !!
दिनेश देवांगन "दिव्य"
सारंगढ़ जिला - रायगढ़ ( छत्तीसगढ़ )

पागा कलगी-2// ललित टिकरिहा

""कुलुप अंधियारी रात"""
कुलुप अंधियारी रात
मोर जिनगी म होगे,
झन होवय ककरो साथ
मोर जिनगी म होगे।
सरबस मोर अभी ले लूट गे,
मन के जम्मो सपना टूट गे,
करम ह अइसन मोरो फुट गे,
दाई ददा के कोरा छुट गे,
तरसे बर दिन अउ रात
मोर जिनगी म होगे,
झन होवय ककरो साथ
मोर जिनगी म होगे।
उंच नीच के रद्दा ल बतइया,
नई हे कोनो अब संग देवइया,
कहाँ पाबो मया दुलार भइया,
नई हे कोनो अधार अइसन,
दुःख के पीरा के बरसात
मोर जिनगी म होगे,
झन होवय ककरो साथ
मोर जिनगी म होगे।
बन के मै अब पान बेचइया,
बहिनी तोर करम लिखइया,
मै दुख पीरा के सहइया,
नई होवन दव निरधार
मोर जिनगी म होगे
झन होवय ककरो साथ
मोर जिनगी म होगे।
पीठ ल अपन मै पलना बनाहु,
घाम पियास भले मै पाहू,
तोर बर मै छइंहा बन जाहु,
नई परन दव थोरको आंछ
जेन मोर जिनगी म होगे,
झन होवय ककरो साथ
मोर जिनगी म होगे।
मेहनत हा ये दिन लहुटाहि,
बहिनी तोर सपना ल रचाहि,
मोर पान बरोबर रंग लाही,
तोर ले दुरिहा करिहंव हर बात
जेन मोर जिनगी म होगे,
झन होवय ककरो साथ
मोर जिनगी म होगे।
तोला सजा के सोला श्रृंगार,
मै खोज लाहु तोर राजकुमार,
जे भरहि तोर जिनगी म चमकार,
थोरको नई होवन दय अंधियार
जेन मोर जिनगी म होगे,
झन होवय ककरो साथ
मोर जिनगी म होगे।
कुलुप अंधियारी रात
मोर जिनगी म होगे,
झन होवय ककरो साथ
मोर जिनगी म होगे।
🌑🌑🌑🌑🌑🌑
🌑गीत रचना.....✍🌑
🌑🌑🌑🌑🌑🌑

🙏संगवारी🙏
🙏✏ललित टिकरिहा✏🙏
29-01-16

पागा कलगी-2//हितेश तिवारी

"इनसानियत शरमिनदा फेर उम्मीद हे जिन्दा "
करम म पाहाड़ फूट गे,फेर स्वाभिमान जिन्दा हे
खुशि अउ किस्मत के डोर छूट गय,
फेर ईमान जिन्दा हे
कोन ला काहओ जिम्मेदार,
अउ कोन ला बखानव
दुख दरद अउ मया पिरा ला काखर मेर गोठियावाव
जिनगी के बिरा उठाये बर
बिरा के धंधा हे
दु जुअर के रोटी घलो तो नई मिलय
फेर उम्मीद जिन्दा हे
लोगन देखथे ,पुछथे अउ
हास के निकल जाथे
कोनो तरस खाथे ,फेर कैईथे ये आज कल धंधा ए
कोन ल नई लागाये ,सुघर घुमे खाए के सऊख
फेर ये करम के फंदा ए
जिनगी म गाज गिर गय
फेर उम्मीद जिन्दा हे
मजबुरी के बादल ,अऊ दुख के बिछओना हे
अऊ ए छोटे आखी ला
एक ठान अगोरा हे
जम्मो पुजा पाठ मा पान लेगथे लोगन
एको ठन तो भगवान ला मिठा जय
अऊ मोरो किस्मत चमक ही ,
ए ही उम्मीद मा ठाडे मोर दुनिया हे
इन्सानियत शरमिन्दा फेर उम्मीद जिन्दा हे
हितेश तिवारी
धरोहर साहित्य समाज लोरमी (मुगेली)

सोमवार, 25 जनवरी 2016

पागा कलगी 2//मिलन मलहरिया

***जिनगी के बोझा***
नोनी बहनी नोहय ग, जिनगी के रे बोझ !
टूरा मनतो  मारथे, निकलय नही ग सोझ !!
बदला बिचार खूदके,  बेटा बड़ाहि कूल !
अबके लइका टांगथे, दाई ददा ल सूल !!
बोझ असल ओहीच हे, देत बुढ़ापा छोड़ !
भारी होथे दुख दरद, खसलत जिनगी मोड़ !!
कपूत आके मेटथे, घर कुरिया अउ खेत !
गुनले तैहा जीवन म , बने लगाके चेत !!
बड़े अमर-बेले जरी, दुसर खून चूसाय !
असल बोझ सनसारके, जेन लूट के खाय !!
तूही सोचा बोझ हे, कोन सकल संसार !
ओही जाने बोझ ला, भोगय दूख अपार !!


मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर

रविवार, 24 जनवरी 2016

पागा कलगी क 2// रामेश्वर शांडिल्य

जिनगी के बोझा
मासूम मुंह म गरीबी झलकत हे।
पेट के खातीर सडक म भटकत हे।
भीख नहीं कुछ करके पेट भरथे।
जिनगी पहार ये त येला चघथे।
नरी म डोरी पेट म पटरा थामे  हे।
छोटे भाई ल पीठ म बांध लादे हे।
पीठ म भार पेट  म भार
कैइसे होही जिनगी पार।
रामेश्वर शांडिल्य
हरदीबाजार कोरबा
8085426597

मंगलवार, 19 जनवरी 2016

पागा कलगी-2// देवेन्द्र ध्रुव

छत्तीसगढ के पागा "कलगी क्र..02"
छत्तीसगढी कविता के प्रतियोगिता बर रचना.....
विषय -दे गे चित्र के भाव ला अपन शब्द मा गढना..
"मेहनत मोला मंजुर"
काम मा लगे हावव मैहर ननपन ले..
बचपना नंदागे जी मोर बचपन ले..
मोला तो अब मेहनत हावय मंजूर..
भले गरीबी मा जीये बर हावव मजबुर..
रोज दिन बेरा के मार सहिथव..
नानकुन भाई ला पोटारे रहिथव..
दुख पवई ला भाग मा लिखा के लाने हव..
सुख के छईहां ले  हावव अबडे दुर..
मोला दुनो झन के भविष्य  ला सोचना हे..
कमई करके दुनो के पेट ला पोसना हे..
कभुं तो हमरो दिन बहुरही..
ऊपरवाला प्रार्थना ला करही मंजुर..
पईसा डोला देथे सबके ईमान सुने हो..
भीख मांगे ले बढिया मैहर काम चुने हो ..
कामयाबी के सपना मैहर बुने हो..
भरोसा हे  मोला मेहनत रंग लाही जरुर..
आज ऐ दुनिया आंखी देखाथे..
रोज रोज कतको आंसु रोवाथे..
पता नही कोन कसुर के सजा पावत हो..
मैंहर अबोध लईका हावव बेकसुर..
दुनिया अइसने गरीब के मजाक उडाथे.. असल बेरा मा सब हाथ छोडाथे..
मतलब के संसार मा कोनो पुछईय्या ऩईहे..
दुसर के दुख मा हंसना हे दुनिया के दस्तुर..
लईका ला देश के भविष्य  कहवईय्या हो..
ओकर हक के बात करईय्या हो..
जब बचपन अइसने गुजरही ता काली के का..
सब ऐ बात ला ध्यान से सोचहुं जरुर.....
        रचना
----------
देवेन्द्र  कुमार ध्रुव
(फुटहा करम )बेलर (फिंगेश्वर )
जिला- गरियाबंद (छ.ग.) 9753524905

पागा कलगी-2//असकरन दास

छत्तीसगढ़ के पागा कलगी क्र.2 बर रचना
करम मोला गढ़ना हे
गढ़िस बिधाता मोर भाग ल,
करम मोला गढ़ना हे !
मोला पढ़े लिखे ल नई मिलत हे ,
मोर बहिनी ल तो पढ़ाना हे !!
ददा निकले मंदहा ,
ओकर नईहे कोनो ठिकाना !
छत्तीसगढ़ मंद म मोहाये , 
सरकार ल कोनो तव बताना !!
पढ़बो त आघु बढ़ो ,
इसकुल के भिथिया म लिखाये !
कतको जगा अभी ले छत्तीसगढ़ म ,
बाल मजदूरी के महुरा घोराये !
फेर मोला नईहे संसो ,
बिन हिचके ये अढ़वा करना हे !
गढ़िस बिधाता मोर भाग ल ,
करम मोला गढ़ना हे !!१!!
चोरी करे नक्सली बने ले ,
बढ़िया पान बेंचाई !
मया के ददरिया गा के ,
होथे सबके मुंह रंगाई !!
आ जाथे दू पईसा पापी पेट ल भरे बर !
भुड़भुड़िया घलो म डारथौं , मोर बहिनी के पढ़े बर !!
कोनो तव बतावव सरकार ले ,
नक्सली बने छाती के अघौना !
हमर धान कटोरा भुंईया के  ,
जगा जगा निमस होत हे येहू ल तो जनना !!
एकर आघु म मोर पिरा नानकुन ,
करेजा मोर छटपटात हे !
गढ़िस बिधाता मोर भाग ल ,
करम मोला गढ़ना हे !!२!!
संगी जहुंरिया जाथें पढ़े ल ,
मैं आथवं अपन भभिस गढ़े ल !
दाई के दुलार बर तरसथन ,
खावत खानी भात ल हिचकथन !!
जाड़ म ओढ़थन सुरता के ओढ़ना !
बादर के छानी बने गली घोर  म होथे रहना !!
काबर नई आ जवय हमर महतारी सरग घलो ल फांद के !
मोर बहिनी दूध पिये बर लुलवाथे चुलुक के गठरी ल बांध के !!
आँखी के धार नई रूकय ,
तभो मोला धिरज नई छोड़ना हे !
गढ़िस बिधाता मोर भाग ल ,
करम मोला गढ़ना हे !!३!!
टुटहा चप्पल मईलहा कुरथा बनगे मोर निशानी !
करियागे देंह नई होवय अबिरथा
हमर ये जिनगानी !!
चारो मुड़ा रिक्सा के ठिनिन- ठानन ,
गाड़ी मोटर के पोंप पोंप !
आरो परदूसन म जियत हन ,
कान म कपसा ल डार के तोप !!
बड़े-बड़े महल अटारी नईहे दया धरम ग !
मुंह ल देख के अईंठ लेथैं नईहे एको मया मरम ग !!
हमला ककरो सोक पिरा नई चाही ,
हमला अपन बल म जिना हे !
गढ़िस बिधाता मोर भाग ल ,
करम मोला गढ़ना हे !!४!!
नानकुन जीव ल पिठ म लादे ,
फेरी मारत गिंजरत रईथवं पान ल बिसाले !
कथ्था कपुरी बंगला पान लऊंग लईची डरवाले ,
तैं नई खावच त बाबू ,
अपन गड़ी ल खवादे !!
बड़ मयारू हमर छत्तीसगढ़ ,
पागा कलगी ल बंधवाले !
समरपन करे नकसली के बिहाव करिन पुलिस ,
अर ओहू म नचवाले !!
हम छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया ,
सब जगा मया के संदेस फईलाना हे !
गढ़िस बिधाता मोर भाग ल ,
करम मोला गढ़ना हे !!५!!
( जय जोहार , जय छत्तीसगढ़ )
✍असकरन दास " अतनुजोगी "
ग्राम : डोंड़की ( बिल्हा ) बिलासपुर ( छग )
मो.नं. : 9770591174
Gmail : atnujogi@gmail.com

सोमवार, 18 जनवरी 2016

पागा कलगी-2\\ श्री सुखन जोगी

छत्तीसगढ़ के पागा कलगी क्र. २  बर मिले रचना
"इच्छा हे मोरो पढ़हे के "-श्री सुखन जोगी
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
इच्छा हे मोरो पढ़हे के ,
सिच्छा के रद्दा म चले के !
ददा गय सरग सिधार ,
दाई हे घर म बिमार !
ठाने हंव करम करे बर ,
नानचुन दु कंवरा के पेट भरे बर....१
इच्छा हे मोरो पढ़हे के ,
पिठ म बस्ता धरे के !
तेखरे सेति पान बेंचथंव ,
ननपन के अपन जान बेंचथंव !
कुसियार कस तन ल पेरथंव ,
जांगर के रसा हेरथंव...............२
इच्छा हे मोरो पढहे के ,
जुता, मोजा, कुरता पहिरे के ,
संगी संग जाये के ,
पढ़ के इस्कूल ले आये के ,
फेर , गरीबी ह मार डारथे !
त मन ह काम डहर जाथे .............३
इच्छा हे मोरो पढहे के ,
पढ़के गुरूजी बने के !
बरबाद झन होय कोनो लईकन ,
अईसन जीवन गढ़हे के !
सपना हे मोरो ,
जीवन म आगु बढ़हे के................४
इच्छा हे मोरो पढहे के ,
इस्कूल के होमबर्क करे के !
गिनती ल लिखे के ,
पहाड़ा ल सिखे के !
फेर कुरता बर तरसथंव ,
एक रूपिया बर भटकथंव............५
इच्छा हे मोरो पढ़हे के ,
सिढ़ही नवा चढ़हे के !
नोनी ल पीठ म धरे हंव ,
घर के बोझा ल बोहे हंव !
फेर कर सकहूं के नही सोंचे हंव ,
करबेच्च करहूं जांघ ल ठोके हंव.....६
इच्छा हे मोरो पढहे के ,
सिच्छा के रद्दा चले के ...........
       " सुखन जोगी "
ग्राम - डोड़की (बिल्हा) जिला - बिलासपुर मो. 8717918364