पागा कलगी -33 बर रचना लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
पागा कलगी -33 बर रचना लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 17 मई 2017

पागा कलगी -33//9//ज्ञानु'दास' मानिकपुरी

कुंडली छंद-देश बर जीबो मरबो
मरना जीना देश बर,करो देश हित काम।
छोड़व स्वारथ के करम,हौवे जग मा नाम।।
हौवे जग मा नाम,देश के सेवा करबो।
बैर कपट ला छोड़,दुःख पीरा ला हरबो।।
जात पाँत ला छोड़,संगमा सबके रहना।
छोड़ राग अउ द्वेष,देश बर जीना मरना।।
ज्ञानु'दास' मानिकपुरी
चंदेनी कवर्धा

पागा कलगी -33 //8//पारितोष धीरेन्द्र

देश के खातिर जीबो
सत सतकरम सुमति के संगी
रद्दा नावा गढ़वइबो !
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो !!
चिचियावत रहे ले बन्दे मातरम
का जन गण मन म उमंग होही !
भाई भाई के बइरी बने हे
कइसे उच्छल जलधि तरंग होही!!
माँ भारती के अँचरा म
रंग पिरीत के भरवइबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो
कुलुप अंधियारी अत्याचार के
घनघोर घटा घोपाये हे
बैरी बिजुरिया अनाचार के
लहक दहक डरवाये हे
चिर हरइया दुश्शासन के
जंघा फेर टोरवईबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो
गरीबी के गोड़हत्थी चुरोके
जात पात के दशकरम कराना हे
छुवाछुत के मइल ल धोके
प्रेम जल म समाज फरियाना हे
गरभ गुमान ल पिण्डा दे के
नावा बिहान करवईबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो
ठूड़गा रूखवा बमरी म
सहिष्णुता के खोंधरा सजाना हे
सोन चिरइया माँ भारती ब
रामराज के मकुट सिरजाना हे
सोनहा धान के सोनहा बाली कस
घर घर म मया बगरईबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो
धधकत हे अगियन छतीयन म
तन मन म भूरी गुंगवावत हे
कोरा के लइका बन नक्सली
उधमा धुर उधम मचावत हे
बन्दुक संदूक छीन छान के
हल अउ कलम धरईबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो
गोख्खी बैरी परोसी अपन
समरथ थोरको नई जानत हे
बाप होथे बाप रे गधहा
ये बात थोरको नई मानत हे
चेमचाली करत करत म बेटा
लाहौर म तिरंगा फहरईबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो 

-पारितोष धीरेन्द्र

पागा कलगी -33//7//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

देस के खातिर जीबों
--------------------------
भाई चारा बाँटबों।
सुनता के डोरी आँटबों।
खोधरा खाई पाटबों।
इरसा द्वेस ला काटबों।
दुख पीरा ला छीबों।
देस के खातिर जीबों।
आँखी बइरी के फोड़बों।
हाड़ा गोड़ा ला टोरबों।
बइरी के गुमान लेस के।
कहलाबों रखवार देस के।
देस बर बिस घलो पीबों।
देस के खातिर जीबों।
जात पात ला छोड़ के।
मया ममता ला ओढ़ के।
देस के मान खातिर।
मोह नइहे जान खातिर।
जय जय भारत कीबों।
देस के खातिर जीबों।
हिमालय मा चढ़के।
माथ मा धूर्रा मढ़के।
सागर समुंद तँउर के।
रखबों लाज मँउर के।
भारत वासी एक रीबों।
देस के खातिर जीबों ।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको( कोरबा)
9981441795

पागा कलगी -33//6//लक्ष्मी नारायण लहरे

देश के खातिर जीबो .....
---
अब जगव ग मोर देश के जवान
देश के खातिर जोबो संगी देश खातिर मरबो
हमर भूईंया के कण कण म बसे हावे प्रान
वन्दे मातरम
जय जवान जय किसान
जय हिन्द के नारा ल लगाबो
छोटे बड़े सबो ल गले लगाबो
जुर मिलके संगी खलिहान म अन्न उपजाबो
मनखे संग भेद भाव हमन झन रखी
सबो धरम के आदरो करी
उंच नीच ल छोड़ी
जुर मिलके साथ चली
सुमंगल होही हामरो
माता पिता के आदर करी
नारी के सम्मान
नोनी बाबू ल पढाके बना दी दयावान
लन लबारी मन म झिन राखो
सुन ल संगवारी ...
ये दुनिया म चार दिन के हे जिंदगानी
सुख दुःख म हंसो रे संगी देश म हे हमर भागीदारी
चलव सुनता के दिया ल जलाबो
पढ़ लिखे हमन संगी देश का नाम जगाबो
एक दुसर के सुख दुःख म अपन हाथ बटाबो ..
अब जगव ग मोर देश के जवान
देश के खातिर जोबो संगी देश खातिर मरबो ...
० लक्ष्मी नारायण लहरे ,साहिल , कोसीर सारंगढ़

पागा कलगी -33//5//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"

देश के खातिर जीबो
विधा:-रोला छंद
भारत माता तोर,चरन के अमरित पीबो।
तन मन धन बल संग,देश के खातिर जीबो।
परन करत हन आज,तोर माटी ला छूके।
लाबो ओ सत् राज,बिना सुसताये रूके।
होही नवा बिहान,राज सुनता के आही।
जिनगी जाँगर चेत,सोझ रद्दा मा जाही।
भरही सबके पेट,सबो झन बने अघाहीं।
करके ओ परियास,सरग धरती मा लाहीं।
लालच भष्टाचार,मूड़ ला तोप लुकाहीं।
अपरिद्धा घूसखोर,आँख ला मूँद लजाहीं।
सत् भाखा सत् काज,सत्य मारग अपनाहीं।
जुग जिनगी के संग,मनुष मन बड़ हरषाहीं।
तोरे अन संतान,भटक गे हन ओ दाई।
होय समझ के फेर ,तभे माते करलाई।
दे दे ओ आशीष,चरन के पँइया लागौं।
अपरिद्धा पन छोड़,तोर सेवा बर जागौं।
रचना:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"
गोरखपुर,कवर्धा
9575582777
15/05/2017

पागा कलगी -33//4//विक्रम सिंह राठौर

देश के खातिर जीबो ।
भारत देश म जनम धरेन देश के सेवा करबो ।
देश के खातिर जीबो अऊ हमन देश के खातिर मरबो ।।
ये माटी मा खेलेन कुदेन ये माटी म सनायेहन ।
जियत भर देश के सेवा करबो ये कसम हमन खायेनहन ।।
हिन्दु मुस्लिम मन झगडा होथे वोला हमन समझाबो ।
हिन्दु मुस्लिम म भेद नई करन संग म कदम बढाहाबो ।।
बड भागी हे हमर चोला छत्तीसगढ़ म जनम मिलिस ।
भारत मां के सेवा करबो जेखर हमला कोरा मिलिस ।।
काम अईसे हमन करबो , देश के नाव बढाहाबो ।
देश के खातिर जीबो अऊ हमन देश के खातिर मरबो ।।
कंधा से कंधा मिलाबो कदम से कदम मिलाबो ।
हमन चलबो एक साथ दुश्मन ल जलाबो ।।
हमर भाई मन ल मारिस हे ओखर बदला ला लेबो ।
शहीद के बलिदान खाली नई जाये ईटा के जवाब पथरा मा देबो ।।

विक्रम सिंह राठौर

पागा कलगी -33 //3//धनसाय यादव

^^देश के खातिर , जीबो ^^
देश के खातिर जीबो , मरबो देश के खातिर।
देश के खातिर तन-मन-धन. जम्मो हे हाजिर ।।
छरियाय अंगरी ल कोनो भी पकड़ टोर मडोरही ।
बंधाय मुठ्ठी म एका होही त दुसमन के पसीना छुटही ।।
सब ले पहिली अपन घर के छरियाय एका ल जोडबो ।
फेर बैरी के छाती चढ़ ओकर घेच मरोड़बो ।।
हम जम्मो जभ्भे हन, जब तक देश हे ।
देश के आघू म, छोटे सबो क्लेस हे ।।
छोटे-बड़े, जात-पात, मजहब-धरम ल छोड़ के ।
चलबो सब संघरा खोरवा लंगड़ा ल अगोर के ।।
न कोई तेलगू , न केरला , न कोई मद्रासी ।
कश्मीर ले कन्याकुमारी हर एक भारतवासी ।।
मास्टर, मजदूर या वकील या होय बेपारी ।
गृहिणी, किसान, जवान सब देश के हे सिपाही ।।
छोटे बड़े सब जुर मिल करबो देस विकास ।
छल-छिद्दर, चोरी, भ्रस्टाचार के करना हे विनास ।।
कायर बैरी घात लगाये ले के दुस्मन के आड़ ।
भारत के हर सैनिक होथे हिमालय कस पहाड़ ।।
प्राण जाई पर बचन न जाई ।
कटे सर न कभू सर झुकाई ।।
पुरखा ले सीखे हन, अउ सबो ल सीखाबो ।
देश के खातिर मरबो अउ देश के खातिर जीबो ।।
*** धनसाय यादव , पनगाव, बलोदाबाजार ***

पागा कलगी -33//1//बालक "निर्मोही

*देस के खातिर जीबो*
🌴🌴🌴🌴🌴🌴
देस के खातिर जीबो संगी,
देस के खातिर मरबो ग।
अब्बड़ होगे मुंह के लाहो,
अब तो चलव कुछु करबो ग।
देस के खातिर.......
घर भितरी अउ बाहिर म,
दिन दिन बईरी बाढ़त हे।
गाजर घांस अउ मोखरा काँटा,
बनके इंहचे जामत हे।
जाही भले परान जी हमरो,
बईरी संग सब लड़बो ग।
देस के खातिर.......
जात-पात के राग ल छोड़व,
एक्केच सुर म गावा जी।
सोन चिरइंय्या सोनहा बिहान,
कहाँ गँवागे? लावा जी।
भारत के नकसा म जुर के,
रंग सुनता के भरबो ग।
देस के खातिर.......
नेता अपन सुवारथ खातिर,
देस ल रखथे बांट के।
तभ्भेच तो आतंकी ले गय,
सहीद के मुड़ी ल काट के।
भभकत आगी हे अंतस म,
भीतरे भीतर काहे जरबो ग।
देस के खातिर.......
जेखर कोरा म उपजेन बाढेन,
महतारी ह रोवत हे।
सुनही कोन बिलखना एखर,
नेता मन सब सोवत हे।
दिहिन हे बईरी दाई ल पीरा,
सरवन बन के हरबो ग।
देस के खातिर.......
🌴 *बालक "निर्मोही"* 🌴
🌷🌷बिलासपुर🌷🌷