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शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

पागा कलगी-13/43/ओमप्रकाश चौहान

🌻 माटी के मितान 🌻
""""""""""""""""""""""""""""""""""""
नांगर बइला हे संग
मोहनी बाते हे बरंग,
खुमरी साजे रे परिधान
तहीं माटी के मितान।2।
सुग्घर खेतीखारे हे संग
सोनहा बाली के हे रंग,
बोझा लादे रे महान
तहीं माटी के मितान।2।
भूख पियास के हे संग
सावन भर हे तोर मन,
सुग्घर माटी के रे तन
तहीं माटी के मितान ।2।
सबले पोख्खा श्रमदान
का भगमानी करे किसान
जग बंदन करय महान,
तहीं माटी के मितान ।2।
सुकुवा चलय संगे संग
तय मुंधरहा के सुग्घर उमंग,
तोर देस म हे बड़ मान
तहीं माटी के मितान ।2।
🌻ओमप्रकाश चौहान 🌻
🌴 बिलासपुर 🌴

पागा कलगी-13 /42/डॉ.अशोक आकाश

" माटी के मितान तोला करत हौं नमन "
मोर माटी के मितान तोला करत हौं नमन ,
छत्तीसगढिया किसान तोला करत हौं नमन ।
सोर तोर बगरे हे भैया ,
चारो डाहन...
मोर माटी के मितान तोला करत हौं नमन......
(१)
बैसाख जेठ जब आसमान ले बरसथे अंगारा ।
सांप डेढहू चिरई चिरगुन के उसना जथे हाडा ।।
तबले तैहा झौंहा गैंती धर के गोदी कोडे ।
उफनत उबलत तन के पसीना माटी ले नाता जोडे।।
सोना असन धान उपजारे तोर ये बदन..
मोर माटी के मितान तोला करत हौं नमन...
(२)
अषाढ सावन झोर झोर के एकथइ पानी बरसे ।
टेटका घिरिया रुख खोंडरा में
सपटे जाड में कपसे ।।
तब ले तैहा कमरा खुमरी ओढे नांगर फांदे ।
हांत गोड में पलपलाए केंदवा में मेहंदी आंजे ।।
पानी में आगी बगराथस ओढ के कफन....
मोर माटी के मितान तोला करत हौ नमन.......
(३)
कातिक अग्घन दिन रात काला कहिथे नई जाने ।
तब ले दुनियां एकर मेहनत के किम्मत नई माने ।।
उपजारल अन्न साहूकार के करजा में चुक जाथे ।
बैला नांगर खेती जांगर सब एक दिन बिक जाथे ।।
अउ निकल जथे जी कमाय खाय बर छोड के वतन.....
मोर माटी के मितान तोला करत हौं नमन....
(४)
पहिरे जुनहा चटनी बासी , खाके दिन ला पहाथे ।
कब सुरताथे रोज कमाथे ,
जग में सोर बोहाथे ।।
कथे अशोक आकाश एकर सुध , कोन हा जग में करथे ।
ये सिधवा तो अभाव गरीबी ,
संग जीथे अउ मरथे ।।
कभू तो सिपचही एकर मन मे लगे हे अगन.....
मोर माटी के मितान तोला करत हौं नमन........

डॉ.अशोक आकाश बालोद
मो.नं.७८९८९७७५४५
०९७५५८८९१९९
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पागा कलगी-13/41/ज्योति गेवल

🍂माटी के मितान 🍂
माटी हमर महतारी -
तै हस ओकर मितान -
सुन ले कमईया किसान -
अब आगे नावा जुग -
नागर बाईला ला सुरतावन दे..
🚜टेकटर मा झट से जुतावा ले..
जतन करले तै भुइयॉ के मितान..
बूंदी -बूंदी पछीना ला चुचवाय..
दया -मया करूना तोर मा हावे-
ओ माटी के मितान...
एकाईसवी सदी ह आगे -
नावा पीड़ी के नावा जुग आगे -
खेती -किसानी करेबर..
नावा -नावा खेती के सामान आगे
खेती के विधि बताये -
कृषि कालेज ह आगे..
अपन देश माटी के...
सेवा करे खातीर
नावा तौर -तरिका ला
तै जिंनगी घलो बनाले..
ओ माटी के मितान..
ओ कमइया किसान. .
🍂 Jyoti gavel 🍂
SECL KORBA

पागा कलगी-13 /40/तरूण साहू " भाठीगढ़िया "

मोर माटी के मितान, तै हावस भुइँया के भगवान।
जय हो जय हो रे किसान, तै हावस भुइँया के भगवान ।
सूत उठ के खेत म नांगर धरके जाथस,
जांगर ल टोर के तै भुइँया ल सजाथस।
खोंचका डिपरा ल घलो, करथस समान,
जय हो जय हो रे किसान, तै हावस भुइँया के भगवान।
पेट ले बचाके तै बिजहा ल बोथस,
लहू अउ पछिना ले भुइँया ल पलोथस ।
माटी म मिल जाथस तै, माटी के समान,
जय हो जय हो रे किसान, तै हावस भुइँया के भगवान।
जुड़ अउ घाम म घलो बरोबर कमाथस,
धरती ल चीरके तै अन्न ल उपजाथस।
बंजर ल घलो करथस, सरग समान,
जय हो जय हो रे किसान, तै हावस भुइँया के भगवान।।
सबोझन के पेट भरके तै हर भूखे रहिथस,
दुनिया भरके दुख पीरा ल तै हर सहिथस।
खेते म लगे रहिथस तै हर संझा अउ बिहान,
जय हो जय हो रे किसान,तै हावस भुइँया के भगवान।।
संसो झन करिबे तै माटी के लाल,
कभू झन करिबे तोर जीव के काल।
करजा ल छूट डारबे तै हावस बलवान,
जय हो जय हो रे किसान, तै हावस भुइँया के भगवान।।
करम ले तोर हाथ पारस बन जाथे,
माटी घलो छीथस त सोना बन जाथे।
खेत ल बनाथस तै सोना के खदान,
जय हो जय हो रे किसान, तै हावस भुइँया के भगवान।
मोती बन जाहि जिहां आँसू तोर गिरही,
चंदैनी कस तोर जस धरती म बिगरही।
तोर मेहनत म होवत हे सोनहा बिहान,
जय हो जय हो रे किसान, तै हावस भुइँया के भगवान।
तरूण साहू " भाठीगढ़िया "
ग्राम - भाठीगढ़
तहसील - मैनपुर
जिला - गरियाबंद ( छत्तीसगढ़)
पिन नं. 493888
मो. नं. 9755570644
9754236521

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

पागा कलगी-13/39/अमन चतुर्वेदी *अटल*

माटी के मितान मोर नंगरिहा किसान
=================================
जम के बरस रे करिया बादर
नंगरिहा ह धर के निकलगे नांगर
काबर तै तरसावत हस रे पानी
सुन्ना हो जाही हमर जिनगानी
जम्मो खेत खार ह अगोरत हे
नंगरिहा मन तोर बाठ जोहत हे
कब आबे रे मोर जिनगी के आस
अगोरत हे संगी मोर जिनगी के साँस
मोर लइका ह तरसत हे बादर
चिखला माटी मे खेले बर
मोरो मन अकताये हे बादर
मोंगहा पार ला खोले बर
सब संगी मन निकलत हवय
धर के बासी अउ चटनी ला
दु हरिया जोत लेतेन डोली ला
खेल के चिखला के होली ला
मोर पिपराही के खार अगोरत हे
आमा डोली हर बाठ जोहत हे
ओहो तोतो के बोली सुने बर
मोर मितान बइला मन रोवत हे
ये आषाढ़ के महीना नाहकत हे
देख के मोर जिउरा कलपत हे
जल्दी बरस जा मोर करिया बादर
संगी मन निकलगे अब धर के नांगर
दु टिपका हुम जग ला पा लेतेव
मोर धरती महतारी ला मना लेतेंव
कब बरसाबे तोर सुख के गागर
संगी मन निकलगे अब धर के नांगर
संगी मन निकलगे अब धर के नांगर
�अमन चतुर्वेदी *अटल*
बड़गांव डौंडी लोहारा
बालोद छत्तीसगढ़
09730458396

पागा कलगी-13/38/पवन नेताम 'श्रीबासु'

विसय - माटी के मितान
---------------------------------------------------------
छत्तीसगढ़िया रे किसान, हमर माटी के मितान।।
खेती करव रे किसान, हमर भुईंया के भगवान।।
धरव नांगर धरव तुतारी, खेत डाहर जावव।
धरती दाई ल रिझा के, हरियर लुगरा पहिरावव।।
धरौ मन म धियान, तुमन हरव ग सुजान,
छत्तीसगढ़िया रे किसान........
आनी बानी पेड़ लगाव, हमर माटी ल सुंदरावव।
आक्सीजन ल बुलाके,परदूसन ल भगावव।।
चलौ करव रे श्रमदान,तभे मिलही रे बरदान
छत्तीसगढ़िया रे किसान........
विदेशी खातू छोड़के, सवदेशी ल अपनावव।
माटी ह बिमार होवतहे,ईलाज ल करावव।
बढ़िया उगही जावा धान,आहि नवा रे बिहान
छत्तीसगढ़िया रे किसान..........
तुहर किसानी करे ले भैया,जग संसार ह पाथे।
तुहरे ल खाके नेता, अऊ तोही ल गुरराथे।
देखावव अपन स्वाभिमान, बाढ़ही तुहर सम्मान
छत्तीसगढ़िया रे किसान........
हमर माटी के मितान.........
---------------------------------------------------------
रचना - पवन नेताम 'श्रीबासु'
ग्राम - सिल्हाटी स/लोहारा
जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ी बचाव उदिम
महतारी भाखा म 

पागा कलगी-13 /37/ललित साहू "जख्मी"

धनाक्षरी विषय
"माटी के मितान"
सऊंहत अवतारे
ईहां के भगवान तैं
भुईयां सिरजईया
माटी के मितान तैं
मेहनत करईया
जऊंहर किसान तैं
अन्न के उपजईया
माटी के मितान तैं
दाई के तैं दुलरवा
तप के पहिचान तैं
बासी पेंच खवईया
माटी के मितान तैं
दुनिया के पोसईया
परानी मे महान तैं
दुख पीरा सहईया
माटी के मितान तैं
ललित साहू "जख्मी"
ग्राम- छुरा
जिला- गरियाबंद (छ.ग.)
9993841525

पागा कलगी-13/21/पी0पी0 अंचल

माटी के मितान
एकर सही हकदार हे भुइंया के किसान
जेन हां लगादिस अपन पूरा दिलो जान
तभे एकर नाम धराईस माती के मितान
मुड़ म पागा खांध म नांगर
हासत कूदत एक मन आगर
माटी के सिंगार के कारन
भईया किसान पेरथे जांगर
सेवा करत संझा बिहान।
इही ल तो कथय भईया माटी के मितान
रापा कुदारी गागर तुतारी
बसूला बिंधना रमदा आरी
करके राखे जमो तियारी
किसिम किसिम के फसल ओन्हारी
अगोरा म पानी के बईठे भाई
टकटकी लगाए किसान।
इही ल कहिथे भइया माती के मितान।।
माटी के जबड़ हितवा
बन गए तैय जनम के मितवा
माती तोरे ओढ़ना बिछौना
माटी के बने हावय खिलौना
माती के भाग सहरिया
माटी म सोना उपजइया
पाए तैं एतका कन कहा ले गियान।
इही ल तो कहिथे संगी माटी के मितान।
तहीं खाके पेज बासी
तोला आए दिन भर हासी
आठो अंग म सेवा बसे हे
पूजा खातिर किसान सजे हे
जेकर पसीना माटी पाइस
पाके अपन भाग सहराईस
वापिस आहि इही माटी में
आसमान के उड़त बिमान।
इही ल तो कहिथें संगी माटी के मितान।
माटी के मितान ,माटी के मितान,
माटी के मितान,.................
रचना-
पी0पी0 अंचल
हरदी बाज़ार कोरबा (छ0ग0)
९७५२५३७८९९

पागा कलगी-13/36/नोख सिंह चंद्राकर "नुकीला"

//माटी के मितान गा//
तता तता बईला रेंगे
पीछू पीछू किसान गा
ये नोहे अलवा जलवा
हरे माटी के मितान गा
घाम पानी ल ये ह सहीथे
अउ सहीथे जाड़ ल
चिखला माटी ल चुपरे भईया
भोंभरा जरे पाँव गा
ये नोहे अलवा जलवा, हरे माटी के........
ये नई खावे हलवा पूड़ी
ये नई पीये कोला पेप्सी
बोरे बासी ल खाय भईया
पसिया पीये तान गा
ये नोहे अलवा जलवा, हरे माटी के.......
नई ये एखर महल अटारी
नई ये एखर पलंग पियरी
एखर टुटहा खुन्दरा भईया
झोरका खटिया बिछाय गा
ये नोहे अलवा जलवा, हरे माटी के.......
नांगर जोतथे हरिया धरथे
खेत म ये ह बिजहा बोथे
पेट ल सबके भरईया भईया
अपन रहिथे भूखाय गा
ये नोहे अलवा जलवा, हरे माटी के......
एखर धान के मोल नई हे
एखर पियाज के तोल नई हे
करजा म बोजागे भईया
माटी म मिलगे मितान गा
ये नोहे अलवा जलवा, हरे माटी के....
माटी एखर भाई बहिनी
माटी एखर दाई भौजी
माटी एखर ददा भईया
माटी एखर परान गा
ये नोहे अलवा जलवा, हरे माटी के......
ये ह देस के डाड़ी आय
ये ह देस के धोखर आय
ये ह देस के चक्का भईया
इहि ह गाड़ीवान गा
ये नोहे अलवा जलवा, हरे माटी के......
देस ह आज कहाँ बढ़गे
देस ह आज मंगल म चढ़गे
ये निसयनी के बनईया भईया
आज घलो पछवाय गा
ये नोहे अलवा जलवा, हरे माटी के....
ये ह हमर देस के नायक
ये ह हमर देस के तारक
ये ह अन के देवईया भईया
येला "नुकीला" के परनाम गा
ये नोहे अलवा जलवा, हरे माटी के.....
@नोख सिंह चंद्राकर "नुकीला"
ग्राम-लोहरसी,पोस्ट-तर्रा,
तह.-पाटन,जिला-दुर्ग(छ.ग.)
पिन-491111.

पागा कलगी-13/35/लोकेन्द्र"आलोक"

शीर्षक - माटी के मितान
___________________
भुईहा के छाती चीर
धान मय जगाये हव
भुईहा ला हरियाये बर
पसीना मय बोहाये हव
दुनिया भर के मनखे मन
कहिथे मोला किसान
हव मही हर हरव
ये माटी के मितान
झिमिर झिमिर बरसत पानी मा
नांगर मय चलाये हव
बइल्ला के संगे संग महू हा
जांगर चलत ले कमाये हव
माटी ले भाग अपन लिखथव
तहु हर येला ले जान
हव मही हर हरव
ये माटी के मितान
धान मिंजे बर दउरी फांदेव
बइल्ला ला तो तो तो चिल्लाये हव
धान जगा दुनिया के
भूख मय मिटाये हव
थके हारे जब मेड़ माँ बईठथव
तब सोन कस दिखथे धान
हव मही हर हरव
ये माटी के मितान
...............................................
------×------×------×------×------
कवि - लोकेन्द्र"आलोक"
ग्राम - अरमरीकला
तहसील - गुरुर
जिला - बालोद
मोबाईल नंबर - 9522663949
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टिप्पणी

पागा कलगी-13/34/ज्ञानु मानिकपुरी "दास"

"माटी के मितान"
~~~~~~~~~
ये भुईया म लाना हे नवा बिहान।
हम सब ल बनना हे "माटी के मितान"
1-इहि माटी म सबो जनम लेन
खेलेंन,कुदेन्, बाढ़ेँन,लिखेन,पढ़ेंन।
कोनो डाकटर,मास्टर,कोनो हे मजदूर किसान
कोनो चोर उचक्का,वकील कोनो हे पुलिस जवान।
ऊच नींच के खाई पाटव हम सब भुईया के लाल।
हम सब ल.......
2-देखत हव मितानी निभावत किसान हे
मोर देश के मजदूर मन महान हे।
"सादर सत् सत् नमन वो शहादत ल"
भुईया के रक्षा करे बर बेटा गवात परान हे।
इही मन भुईया के सिरजईया देवव ग सम्मान।
हम सब ल......
3-काबर आत्महत्या करत किसान हे।
मजदूर के काबर नइये मकान हे।
भाजी पाला कस मुड़ी कटात जवान हे
माटी के संग माटी के रंग, माटी बर जिनगी दान हे।
सब कुछ जान के सरकार फेर काबर हे अनजान।
हम सब ल.......
4-हम सब ल अपन फरज निभाना हे।
'ये भुईया ल सरग बनाना हे'।
हम सब ल हाथ में हाथ देना हे
कोनो झन छूटय संगी संगे संग चलना हे।
अपन अपन जगह"ज्ञानु" सब हावय ग महान।
हम सब ल ......
जय जोहार
ज्ञानु मानिकपुरी "दास"
चंदेनी कवर्धा 9993240143

पागा कलगी-13/33/ललित वर्मा

सिरसक - माटी के मितान
---------------------------------------------------------------
जांगर पेरईया तैहां माटी के मितान जी
लहरिया किसान जी नंगरिहा किसान जी
सुत उठ के बडे बिहनिया ले खेत कमायबर जाथस जी
डबरा-खोचका-डिपरा-परिया ल एक बरोबर बनाथस जी
पथरा ले पानी ओगराथस-२
मिहनत तोर पहिचान जी
लहरिया किसान जी नंगरिहा किसान जी
डोरसा मटासी कन्हार भर्री भांठा के तै सुजान जी
कामा कब धन बरसा होही तोला रहिथे गियान जी
धरती ले सोना उपजाथस-२
भुंईया के भगवान जी
लहरिया किसान जी नंगरिहा किसान जी
माटी म जनमे माटी म बाढे माटी हरे तोर दुनिया जी
माटी-माटी-माटी जिनगी तैं माटी के गुनिया जी
माटी म तैं सपना सिरजाथस-२
सिरजन तोर निसान जी
लहरिया किसान जी नंगरिहा किसान जी
मुड म पागा कमर म गमछा तन म धोती कुरता जी
पांव म भंदई हांथ म बरछा कांध कुदारी-रांपा जी
गार पछीना अन उपजाथस-२
करम हे तोर महान जी
लहरिया किसान जी नंगरिहा किसान जी
जांगर पेरईया तैंहा माटी के मितान जी
लहरिया किसान जी नंगरिहा किसान जी
-----------------------------------------------------------------------
रचना - ललित वर्मा ,
छुरा जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़ी बचाव उदिम
महतारी भाखा म
पढ़बो लिखबो बोलबो

बुधवार, 13 जुलाई 2016

पागा कलगी-13/32/एमन दास मानिकपुरी 'अंजोर'

छत्तीसगढ़ के पागा कलगी 13 बर रचना
विषय शिर्षक— 'माटी के मितान'
बीता भर पेट खातिर विधाता,
गढ़ दिस तोला किसान।
माटी मिहनत तोर संवागा,
तय भुइंया के भगवान।
चल चल संगी,
माटी के मितान,
धरे तुतारी कतको हरिया ल,
अइसने रेंगत लांघ के,
बिझहा धान धरके मुठा म,
नांगर म बइला ल फांद के,
सवनाही म धारो धार,
चल जीनगी ल सिरजान।
चल चल संगी,
माटी के मितान,
हरियर हरियर खेती खार तोर,
हरियर हे जीनगानी रे,
धरती माता के दुलरवा झन,
होय एखर हिनमानी रे,
तोर जांगर के कमइ म,
होथे सोनहा बिहान,
चल चल संगी,
माटी के मितान,
गीताकार
एमन दास मानिकपुरी 'अंजोर'
औंरी, भिलाई—3, जिला—दुरूग
मो. 7828953811

पागा कलगी-13/31/महेश मलंग

पागा कलगी 13 बर मोर प्रविश्टि
जेठ के चाहे गरमी होवय .
के अघ्घन पूस के जाडा
तरतर -तरतर चूहय पसीना
के मोर कापय हाडा .
कभू बैठेव थक हार के
मिहनत करथव बारो महीना
अन्न धन्न उपजाये बर
गारत रहिथव अपन पसीना
ए भुईया भगवान आय मोर
खेती करना जप तप ध्यान.
मै भारत के औ किसान
मै औ माटी के मितान .||
नागर जोत के बोथव बीजा
जब वो हा अंखुवाथे
देख के बीजा बने जमे हे
मन मोर हरसा जाथे
मन हरियाथे फ़सल देख के
लहर लहर लहराथे .
जब सोन कस बाली आथे
मन सोनहा हो जाथे .
जब घर आथे मा अनपुन्ना
घर म उछाह छा जाथे .
कोनो से मोला नै हे सिकायत
खुद पे मोला हे अभिमान .
मैं भारत के औ सान
मै औ माटी के मितान
महेश मलंग pandariya Kabirdham

पागा कलगी-13/30/ लक्ष्मी नारायण लहरे ,साहिल

पागा कलगी १३ बर रचना
विषय~ माटी के मितान
____________________
माटी के मितान ! जय हो तोर छत्तीसगढ़ीया किसान 
____________________
माटी के मितान !
जय हो तोर छत्तीसगढ़ीया किसान
छत्तीसगढ़ महतारी के दुलरवा
खेत - खलिहान के मितान
जय हो तोर छत्तीसगढ़ीया किसान
नागर बैला हे तोर संग संगवारी
हाँथ म तुतारी
मुड़ म पागा
खान्द म नागर
फभे हे तोला
सुग्घर हावे तोर बानी
बैला - भैंसा समझथे तोर मीठा जुबानी
छत्तीसगढ़ महतारी के दुलरवा
माटी के मितान !
जय हो तोर छत्तीसगढ़ीया किसान
घाम पियास ,भूख दुःख ल सह के
झक्कर- झांझ म नागर चलाके
तोर जांगर म मितान
परिया भूईंया म फसल लहलहाथे
तोर बखान मै का करहु
तोर बहा म उपजत हे भूईंया म सोना
धन हे हमर भाग
छत्तीसगढ़ महतारी के दुलरवा
माटी के मितान !
जय हो तोर छत्तीसगढ़ीया किसान
धरती के तेहि ह भगवान्
अन्नदाता तोर कतका करों बखान
खेतिहर माटी के मितान
छत्तीसगढ़ महतारी के दुलरवा
खेत - खलिहान के मितान
जय हो तोर छत्तीसगढ़ीया किसान
नागर बैला हे तोर संग संगवारी
जय हो तोर छत्तीसगढ़ीया किसान
माटी के मितान ! ,,,,
० लक्ष्मी नारायण लहरे ,साहिल ,
युवा साहित्यकार पत्रकार
कोसीर सारंगढ़ जिला रायगढ़
मो० ९७५२३१९३९

पागा कलगी-13/29/चैतन्य जितेन्द्र तिवारी

"माटी के मितान"
---------+++++++--------------
खांध म नांगर बांधे पागा अउ हाथ धरे तुतारी
संग म नारी टुकनी बोहे अउ हाथ धरे कुदारी
खेती माटी तोर जिन्दिगानि तै माटी के मितान
मेहनत के पछीना बोहइया तै माटी के किसान
भुइया ले तै अन्न उगाए तै भुइया के भगवान
नांगर फांद दौड़ाए बइला तै जांगर के धनवान
माटी अउ किसान के पिरिति चन्दा के चकोरा
उपजे मया के फसल काहिलाए धान के कटोरा
माटी कहे अउ करे पुकार सुनव गा मोर मितान
झन करव तुम आतमहत्या सुनव गा मोर किसान
डोलबे झन समय करवट्टी लेहि बांधव मन आस
सबे दिन नइ होवय एक जइसे राखौ मन बिश्वास
सोन कस फसल उगाइया करन का तोर बखान
हमन दाना चुगइया नइ चुकाए सकन तोर लगान
CR
चैतन्य जितेन्द्र तिवारी
थानखम्हरिया(बेमेतरा)

पागा कलगी-13 /28/मिलन मलरिहा

*******माटी के मितान*********(गीत)
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
नांगर के जोतईया, तय किसान मोर भईया
धान के बोंवईया संगी, मेढ़ के बंधईया
नईहे कोनो अनजान, खेत-खार तोर परान
खरही के गंजईया, तही "माटी के मितान"....
'
मेहनत के करईया, चटनी-बासी के खवईया
गाड़ा के चघईय, अर्र-तता के कहईया
पैरा के सकलईया, नांगर बईला तोर पहिचान
नईहे कोनो अनजान................................
'
खातु के छिंचईया तय, बन-दुबी के निंदईया
खेत के जतनईया संगी, कोपर म सिंघवईया
पसीना के बोहवईया जी मेहनत तोर ईमान
नईहे कोनो अनजान................................
'
बीड़ा करपा के जोरईया, कोठारे के सुतईया
दऊरी-बेलन मिसईया तय कलारी के खोवईया
कुरोकाठा नपईया, बाड़ही के देवईया रे सियान
नईहे कोनो अनजान................................
'
टेड़ा के डुमईया तही, पानी के पलोईया
बारी-बखरी बनईया, भाटा पताल के जगईया
माईपिल्ला माटी सेवा म, देवत दिनभर धियान
नईहे कोनो अनजान, खेत-खार तोर परान
तुतारी के धरईया , तही "माटी के मितान"......
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मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर

मंगलवार, 12 जुलाई 2016

पागा कलगी-13 /27/अशोक साहू

।।माटी मोर मितान।।
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सब जीव खातिर अन उपजईया
मै हा नंगरिहा किसान।
धरती दाई के सेवा बजईया
माटी मोर मितान।।
जांगर टुटत मै खेती कमाथंव
बेरा लागय न कुबेरा।
होत बिहनिया बासी धर जाथंव
संझाती आथंव अपन डेरा।।
जियत किसानी मरत किसानी
मोर करम हे सत ईमान
धरती दाई के सेवा बजईया.........
नांगर बईला हे मोर संगवारी
अरा तता कईथंव धर तुतारी।
हरियर हरियर खेती खार मोर
धान कटोरा मोर महतारी।।
भाखा बोली मोर छत्तीसगढी
चटनी बासी मोर खान पान।।
धरती दाई के सेवा बजईया
माटी मोर मितान।।
अशोक साहू, गांव भानसोज
तह. आरंग, जि. रायपुर

पागा कलगी-13/26/अश्वनी सिन्हा

* मोर मयारु माटी*
मोर मयारु माटी, मोर मयारु माटी
तिहि मोर संगी अउ तिहि मोर साथी
मोर मयारु मोर माटी.................
*अब जागो रे संगी, खेती ल करौ
माटी के खातिर जिऔ मरौ।
धरम करम के बिजहा छीतौ,
मया दुलार ले मन ल जीतौ।
आज खेती करत हे-2 ,बहु बेटा अउ नाती
मोर मयारु मोर माटी.............
*कारी बदरिया गरज के बरसे,टुटे मन ह अब नई तरसे।
बंजर भुइंया अब हरियागे,सरग बनाये बर आस जागे।
छत्तीसगढ महतारी के,ये धरती महतारी के आज जुडागे छाती
मोर मयारु मोर माटी.........
*महर महर महके माटी,बड मेहनत करय साथी
माटी के उपज माटी म बाढबो,मर के माटी म मिल जाबो
माटी के मितान"अश्वनी ",जलाये प्रेम के बाती
मोर मयारु मोर माटी,मोर मयारु मोर माटी
मोर मयार माटी,मोर..................
अश्वनी सिन्हा(परसोदा)

पागा कलगी-13/25/रामेश्वर शांडिल्य

माटी के मितान
माटी म उपजेन माटी म बाढ़ें न
माटी के काया धर् हमन बाडेन
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माटी हमर महतारी आय
माटी हमर चिन्हारी आय
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ये माटी ल छोड़ कहा जाहाँ ग येकर कस मयारू कहा पाहा ग
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ये माटी हे अनमोल संगी
येला मितान झन् बोल संगी
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ये माटी म जन्मिन कतका भगवान ।
धरम करम सस्कृति हमर पहचान।
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हम भारत भुईया के संतान
येखर खातिर दे देबो जान
***********************माटी दाई मितान बाबू कौन?
तेला नई बताये हे।
मै अन्नपूर्णा हव ओला हमला
सुनाये हे।
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देश के माटी माथा के चदंन हे
माटी महतारी ल सादर वंदन हे
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रामेश्वर शांडिल्य
हरदी बाजार कोरबा