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सोमवार, 1 अगस्त 2016

पागा कलगी-14 /25/डां अशोक आकाश

मैंरखू ला ढेंकी थुरथे.....
धान ला कुट के चाऊंर बनाथे , मैरखू ला ढेंकी थुरथे ।
कब तक लद्दी में बोजाय रहिबे , घुरुवा के दिन बहुरथे ।।
लात में मारथे नाली में फेंकथे , तेन ला लछमी फुरथे ..........
मैरखू ला ढेंकी थुरथे .......
पोसन नी सके तेकर घर होय , लैका झोरफा-झोरफा ।
लैका बर तरसथे तेकर घर में , होथे धन के बरसा ।।
ये दुनिया में अन्न उपजैय्या , किसान हा भूखों मरथे ........
कब तक लद्दी मे बोजाय रहिबे ,घुरुवा के दिन बहुरथे ।
मैरखू ला ढेंकी थुरथेे.........
तेली के घर में डबका चुरथे , सोनकर मरार घर सरहा जुरहा ।
गुरूजी के लैका गदहा निकलथे , पुलिस के लैका चोरहा ।।
साधू सज्जन मैनखे देख के , उलटा छूरा मुडथे ।।
कब तक लद्दी में बोजाय रहिबे , घुरुवा के दिन बहुरथे ।
मैरखू ला ढेंकी थुरथे .......
कपड़ा बेचैया के लैका मन हा , नी पहिने गा जुनहा ।
अन्न उपजैय्या किसान ला होथे , एकक दाना सोनहा ।।
एकर तन ला खाय पसीना , पथरा हा नून में घुरथे ।।
कब तक लद्दी में बोजाय रहिबे , घुरुवा के दिन बहुरथे ।
मैरखू ला ढेंकी थुरथे .......
दर्जी के लैका उघरा गिंजरथे , डांक्टर के लैका घौहा ।
जेन ला हम पांच साल बर चुनथन , तेकर नै हे दौहा ।।
घी हा सीधा में नै निकले , टेंडगा अंगरी निकलथे ।
जरे के पहिली मरे सांप हा , घलो ठाढ उछलथे ।।
बडे - बडे बाम्हन के घर में , कुकरा मछरी चुरथे ।
ये दुनिया के रीत हे उलटा , गुन - गुन के मन घुरथे ।।
कब तक लद्दी में बोजाय रहिबे , घुरुवा के दिन बहुरथे ।
मैरखू ला ढेंकी थुरथे .........
डां अशोक आकाश
ग्राम कोहंगाटोला बालोद
जिला बालोद (छ.

रविवार, 31 जुलाई 2016

पागा कलगी-14/13/देवेन्द्र कुमार ध्रुव

शीर्षक -ढेकी बर दोहा
दोहा कही पारे हो गलती ला आप जरूर बताहू
ऐहा थाती ऐ हमर,पुरखा के सिरजाय।
ऐमा अनाज ला कुटय,तब सब जेवन पाय ।।
आरो ढेकी के सुनय,दाई मन सब आय।
सुख दुख के जी गोठ, संगे मा चल जाय।।
घर घर मड़िया हा चुरय,कोदो कुटकी खाय।
ढेकी हा जेला दरय,सबला अबड़े भाय।।
पाटा लकड़ी के झुलय,थुनिहा घला गड़ाय।
ढेकी हा बाजत रहय,जइसे गाना गाय।।
मसीन के दुनिया हरय, आनी बानी ताय।
बेरा के जी संग मा,बदलत सब हा जाय।।
ढेकी कुरिया कोति अब,कोनो नइतो जाय।
काही नइये अब जतन,जावत हे नंदाय।।
कोनो उदीम अब करव,दुरिहा ऐ झन जाय।
सुरता ऐकर मत भुलय,मन मा ऐ
बस जाय।।
रचना
देवेन्द्र कुमार ध्रुव (डी आर)
फुटहा करम बेलर
जिला गरियाबंद *छग*

पागा कलगी-14 /24/हीरालाल गुरुजी"समय"

एक दिन अपन आजी गांव म
नोनी एक कुरिया म गिस
उहां रखाय छै फुट के गोला
अकबका गे जब वो दिखिस
अपन आजी ध पूछिस
कुरिया म रखाय जिनीस काये बतादे
हमर जिनगी म का काम आथे सिखादे
आजी बतईस ये गोला नोहय बेटी,
ये हमर अनपूरना माता हरे ,ढेकी
आगू म रथे मूसर पाछू रथे पाई
पाई ल गोड़ म चपकबे तब
आगू मुड़ी उठाही
गोड़ ल उठाबे तब
बाहना म फेर जाही
घेरी बेरी अईसने करबे ,तब
मेरखू ह कुटाही
ढेकी के अड़बड़ महत्तम हे
ढेकी देथे अड़बड़ गियान हे
ढेकी सिखाथे परभू धियान हे
ढेकी म छिपे बिगयान हे
ढेकी म अऊ का करथे
मोला तैं बतादे आजी
संउहत करके ओमे काम
मोला आज देखादे आजी
ढेकी म मेरखू छरे जाथे
जेखर ले धान चउंर हो जाथे
कोदो कुटकी ल कुटथे
तब खायबर दाना फूटथे
अइसने अड़बड़ जिनीस ल कुटे के काम आथे
कुटइया ह तब खाय के दाना पाथे
नोनी के मन गावत हे
अऊ सुने बर भावत हे
आजी भगवान के
धियान के गोठ बतादे
मोर असुसी ल बुतादे
गोठ बात करत करत
धान ल छरत छरत
दुखीसुखी गोठियात
लइका ल पियात खवात
मेरखू ल खोवत हों
धियान देके सुन बेटी
गियान के बात सिखोवत हों
सब काम करत करत
ढेकी के मूसर के रथे धियान
वइसने ये माया म जिनगी काटत
भगवान में मन ल टेकान
ढेंकी के कतका करों बखान
ढेंकी सिखाथे प्रभु के धियान
रचना - हीरालाल गुरुजी"समय"
नगर - छुरा गरियाबंद

पागा कलगी-14/23/पी0 पी0 अंचल

@ ढेंकी कूटे के साध @
पहिली घरोघर आट परछी कुरिया म,
ढेकी गाड़े रहय।
परती दिन कोहूँ न कोहूँ कुरिया म,
कूटइया ठाढ़े रहय।।
एक दिन नवा बछर के चम्पा ह ,
ढेकी कूटत देखिच।
अबड़ साध लागे ओहू नोनी ल,
अपनों कूटे बर सरेखिच।।
देखिच कूटत पिसत सीता गीता ल.
रतिहा के फिलोय चाउर।
जानिस इहि ल धनकुत्ति ढ़ेकी कहिथे
कूटे पिसे के इहि ठउर।।
टुकुर टुकुर देखत हावय मगन माते,
ओमन के खोवाई आउ कुटाई।
लालच बड़ लागे चम्पा ल मन में सोचे,
बनाही आज कछु न कछु मिठाई।।
का का कुटथे पिस्थे एमा कहिके,
चम्पा ओमन ले पुछिस।
सबो मंत्रा सिखगे चम्पा बेटी,
जानिच के पीछू घुचिस।।
बताइन ओला एला ढेकी कहीथे ,
आज के हालर मिल।
दुनो के तुलना ल सुनके चम्पा ,
हासे खिल खिल खिल।।
पइसा कवड़ी लगे नही ढेकी म,
ए गरिबहा मन के देवता हे।
काली मोरो ल कूटे पिसे बर,
आइहा कहे चम्पा नेवता हे।।
ढेकी के बनइया तोर जय हो।
धान ,मेरखु ,पिसान के पिसइया,
गेहूं कोदो के कुटइया तोर जय हो।।
पी0 पी0 अंचल
9752537899
हरदीबाज़ार कोरबा छ0ग0

शनिवार, 30 जुलाई 2016

पागा कलगी-14/23/ओमप्रकाश चौहान

हमर ढेंकी नंदागे
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
बटवारा के जाल म,
आधुनिकता के आड़ म।
कलमुहा कलयुग जबले आगे,
छितका कुरिया अउ परछी के हमर ढेंकी नंदागे।
आनी बानी के गोठ बात,
माइपिला के साठगांठ।
सास के करकस सासन अटागे,
छितका कुरिया अउ परछी के हमर ढेंकी नंदागे।
भले ऐखर ओखर चारि चुगरि होवय,
फेर कइसनो करके धांन ल बने कुटय।
देवरानी जेठानी अउ छोटकी बड़की कति लुकागे,
छितका कुरिया अउ परछी के हमर ढेंकी नंदागे।
ढेंकी बुता काम म देंह सवस्थय रहय,
ओ बखत म घरे योग साला अउ औसधालय बनय।
बहु बेटी अउ ओ घर के सुग्घर जचकी लुकागे,
छितका कुरिया अउ परछी के हमर ढेंकी नंदागे।

🌻 ओमप्रकाश चौहान 🌻
🌴 बिलासपुर 🌴

पागा कलगी-14/22/मिलन मलरिहा

****बेरा के महत्ब बताथे ढेकी***
______________________________________
आगे हरेली तिहार, चल ढेकी ल बईठार
कुटबो चाऊर सोहारी बर, बहना झार बहार
दाई चिल्लावय अड़बड़ मोला, ढेकी ल सवार
मुसर के बंधनी लोहा ढिलयागे, ठोकदे ग चिपार
कहाँपाबे अईरसा खुरमी, बिन ढेकी घर-दुवार
ठुकुस ठुकुस बाजे ढेकी, तिरयागे तीजा तिहार ।।
-
काकी कुटय भौजी ओईरय, दाई लउहा निकालय
एकता के एके सुरताल म, ढेकी सबला बाँधय
बेरा के महत्ब बताथे ढेकी, एकेसंग सबला रेंगाथे
नई साधय जेन बेरा ल संगी, हाथ ओकरे खँचाथे
जईसे मुसर के मार परे ले, धान चाऊर हो जाथे
जीनगी दुख-आँच सेकाके, मनखे इनसान कहाथे ।।
-
तईहा के मनखे सुवस्थ रहय, सुद्ध सादा खावय
अपन हाथ म मही-मथके, घी के लेवना बनावय
धान कुटके चाऊर बनाके अउ जाता दार दरावय
ढेकी-जाता किसानी बुता, दिनभर योग करावय
अनुलोम-विलोम आसन म रोज चाऊर पछिनावय
ठुकुस-ठुकुस उठक-बईठक, प्राणायाम होईजावय।।
-
ढेकी कुटई सुवास्थ के संगी, दुन्ना फाइदा पावव
काम बुता संग योग साधके, पसीना घलो बोहावव
आनिबानी के उदिम छोड़, ढेकी के गीत ल गावव
मसीन ले परियारण बिगड़त, धियान इहु ल देवव
आलस के संगी बिमारी हवय, पेट झीन बड़हावव
लुकात हे हमर संसकिरति, ढेकी-जाता ल बचावव ।।
________________________________________
-
मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर

गुरुवार, 28 जुलाई 2016

पागा कलगी-14/21/ललित वर्मा,छुरा

बिसय:- चित्र अधारित
धनाक्षरी छन्द
***********
ढेकी देखव चलथे
चाऊंर बने छरथे
सास-बहु दुनो मिल
पिरीत ल गढथे
ननंद चुप्पे सुनथे
दीवाल ओधे गुनथे
ढेकी के संगीत संग
सीख-नीक बुनथे
ढेकी हूत करावथे
दीदी ल सोरियावथे
अंगना म आव कहि
मीठ गाना गावथे
ननंद ह बतावथे
जम्मो बहिनी आवथे
ढेकी संग नाचौ कहि
झूम-झूम गावथे
ढेकी आज नंदावथे
मेल-जोल गंवावथे
बिकास के कटारी म
चिन्हारी कटावथे
रचना:- ललित वर्मा,छुरा

पागा कलगी-14 /20/आशा देशमुख

विषय ...ढेंकी (चित्र आधारित )
वइसे तो छंद विधा नई आवय पर थोकिन परयास करे हव ,गलती होही त माफ़ी देहु आपमन|
दोहा अउ आल्हा छंद के हिसाब से ये रचना हे
दोहा 13 ,11के मात्रा
आल्हा 16 ,15 के मात्रा ,अंत गुरु लघु |
ढेंकी
दोहा...हमरो छत्तीसगढ़ के ,सरग म होय बखान ,
अनपुरना सँउहत खड़े ,धरे कटोरा धान |
नांगर धरे किसान गा ,हे येकर पहिचान ,
घर घर मा कोठी भरे ,ढेंकी कूटय धान|
आल्हा ....
बड़े बिहनिया ढेंकी बाजय ,मया सुवाद सबो सकलाय |
घूम घूम के जांता नाचय ,मूसर बहना ताल मिलाय |
गड़य रहय जे घर मा ढेंकी ,वो घर के होवय गा मान |
दाई माई हँसी ठिठोली ,दया मया के बसय परान |
जात बिजात न जानय ढेंकी ,बस जानय वो गुत्तुर गोठ |
हाँथ गोड़ के सुनता देखय ,चउर छरावय पोठे पोठ |
कहाँ गवांगे मूसर बहना ,कहाँ गवागे ढेंकी मोर |
मोला अइसन लागय भइया , लेगे हवे समे के चोर |
जब ले गेहे ढेंकी घर ले ,धनकुट्टी के बाजय शोर |
जांगर लेलिस छुट्टी सबके ,रोग बिमारी धरलिस जोर |
ढेंकी के कुरिया हे सुन्ना ,जॉता के फुटगे हे माथ |
घर घर मा अब मिक्सी बइठे ,सिललोढ़हा के टुट्य हाँथ |
चलव सबो जुरियावव भाई ,मिलके परन करव गा आज |
अपन जुन्ना संसकिरती के ,अउ गा लाबो नावा राज |
****************************
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा (छ .ग )

मंगलवार, 26 जुलाई 2016

पागा कलगी-14/19/जगदीश "हीरा" साहू

* ढेकी *
आज सब घर ले ढेकी नदागे ।
मिल के पाछु सबझन मोहागे।।
पहिली सब मिलजुल के, धान कुटे जावय ।
अंतस के गोठ, एक दूसर ले गोठियावय ।।
अब तो सब मनखे, एक दूसर ले दुरिहागे।
आज सब घर ले, कइसे ढेकी नदागे ।।
मिलजुल के एक संग, करय सब काम ।
नई लागे जिम जाये बर, तन ला हे अराम ।।
आज माढ़े ढेकी ला, सौहें घुना खागे ।
आज सब घर ले, कइसे ढेकी नदागे ।।
मनटोरा धान कूटय, मंगलीन हा खोवय ।
सुकवारा नोनी हा खड़े-खड़े देखय ।।
मन भारी कुलकत हे, दुःख सब भुलागे ।
आज सब घर ले, कइसे ढेकी नदागे ।।
जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा) ,9009128538

पागा कलगी-14 /18/अशोक साहू , भानसोज

ढेंकी।।
========
ढेंकी बाजय ठकरस ठकरस
सुर ताल ह बने सुहावय।
कतको धान ल कूट कूट के
दाईं ह हमर मढावय।।
घर म नईये ढेकी बाहना
त पडोसीन घर जुरियावय।
गोठियावत अपन सुख दुःख ल
लउहा धान कुटावय।।
ढेंकी चांउर के भात म
सुवाद अबड राहय भाई।
तन ह घलो बने राहय
नई आवय रोग अउ राई।।
कहां पाबे अब घर म ढेकी
ढेकी के दिन ह पहागे।
मनखे घला अलाल होगे
बात बात म मशीन ह आगे।।


अशोक साहू , भानसोज
तह. आरंग , जि. रायपुर

रविवार, 24 जुलाई 2016

पागा कलगी-14/17/सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

"ढेकी"
घर मे राहय एक ढेकी,
सियान मन के धनकूट्टी।
कठवा के एकठन डांड़ी,
कठवा के एकठन कांड़ी।
डांड़ी के तरी मूसरी,
पहिरे लोहा के मुंदरी।
डाड़ी ला बोहे थुनिहा,
काबर बोहे हे गुनिहा।
मचाय ढेकी एकधुनिहा,
तभो नई धरही कनिहा।
हांथ म धरके डंगनी ला,
गोड़ चलावव ढेकी मा।
ढेकी मचय हमर काकी,
खोवय धान हमर दाई।
भुकरुस भुक ढेकी बाजे,
ककादाई छुमुक नाचे।
ओदर गे धान फोकला,
का पुछबे तहां गोठला।
भूंसा चंऊर अलगावा,
अउ खिचरी रांधव खावा।
कयिसे पेज मिठाइस हे,
अहिलेश्वर ल लिख बतावा।
रचना:--सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर,कवर्धा

पागा कलगी-14/16/जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

नंदागे ढेंकी
------------------------------------------
भुकुर - भुकुर बाजे ढेंकी।
भिड़े राहय सास-बहू अउ बेटी।
उप्पर धरे बर राहय हवन डोर।
तरी म राहय दू ठन छोर।
एक कोती लकर-लकर हाथ चले,
त एक कोती सरलग चले गोड़।
दिखे मेहनत दाई-महतारी के।
जघा राहय कहनी किस्सा चारी के।
सास के बहू संग बन जाय,
भउजी के बने ननन्द संग।
जब संकलाय ढेंकी तीर,
मया बाढ़े संग संग।
कुटे कोदो-कुटकी चांउर-दार,
हरदी-मिर्चा धनिया-मेथी।
भुकुर-भुकुुर बाजे ढेंकी।
भिड़े राहय सास-बहू अउ बेटी।
धान के फोकला ओदर गे,
पड़े ले ढेंकी के मार ।
फुंने निमारे अउ अलहोरे,
सिधोय चांउर दार।
पारा-परोसी घलो आय,
धान कोदो धरके।
सिधोके रॉधे दार-भात,
अउ तीन परोसा झड़के।
मिठाय गईंज रांधे गढ़े ह,
मिन्झरे राहय मेहनत अउ नेकी।
भुकुर - भुकुर बाजे ढेंकी ।
भिड़े राहय सास-बहू अउ बेटी।
फेर अब;न जांता के घर-घर सुनाय,
न ढेंकी के ठक-ठक।
सिध्धो बुता सब ला सुहाय,
मूसर-बाहना ढेंकी लगे फट फट।
नवा जुग के पांव म दबगे ढेंकी।
चूल्हा के आगी म खपगे ढेंकी।
किस्सा कहनी म सजगे ढेंकी।
फोटु बन ऐती-ओती चिपकगे ढेंकी।
पुरखा ल कूट कूट खवईस,
अब धनकुट्टी मारत हे सेखी।
भुकुर-भुकुर बाजे ढेंकी।
भिड़े राहय सास-बहू अउ बेटी।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
9981441795

पागा कलगी-14/15/शुभम् वैष्णव

दिन ह तो उहि हे,
फेर अब ओ परमपरा नई हे
जब चार झन महिला
संग म एक दूसर के
संग देवत देवत
ढेकी म धान कुटय।
ढेकी के कुटे धान के
चाँउंर ह अब्बड़ मिठावय
फेर ओतका नहीं, जतना
कुटत कुटत उमन मन हा
मीठ मीठ गोठ करय,
बुता के संगे संग
सुख दुःख के गोठ
अउ हंसी ठिठोली
घलो करय
अउ अपन एकता के
परिचय देवय।
अइसे लगथे जइसे
तरक्की के दानव ह
ऊंखर ए परंपरा ल
लील डारिस
अउ
ऊंखर ए रिसता ल घलो।
-शुभम् वैष्णव
नवागढ़, जिला-बेमेतरा

शुक्रवार, 22 जुलाई 2016

पागा कलगी-14/14/ जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

नंदागे ढेंकी
------------------------------------------
भुकुर - भुकुर बाजे ढेंकी।
भिड़े राहय सास-बहू अउ बेटी।
उप्पर धरे बर राहय हवन डोर।
तरी म राहय दू ठन छोर।
एक कोती लकर-लकर हाथ चले,
त एक कोती सरलग चले गोड़।
दिखे मेहनत दाई-महतारी के।
जघा राहय कहनी किस्सा चारी के।
सास के बहू संग बन जाय,
भउजी के बने ननन्द संग।
जब संकलाय ढेंकी तीर,
मया बाढ़े संग संग।
कुटे कोदो-कुटकी चांउर-दार,
हरदी-मिर्चा धनिया-मेथी।
भुकुर-भुकुुर बाजे ढेंकी।
भिड़े राहय सास-बहू अउ बेटी।
धान के फोकला ओदर गे,
पड़े ले ढेंकी के मार ।
फुंने निमारे अउ अलहोरे,
सिधोय चांउर दार।
पारा-परोसी घलो आय,
धान कोदो धरके।
सिधोके रॉधे दार-भात,
अउ तीन परोसा झड़के।
मिठाय गईंज रांधे गढ़े ह,
मिन्झरे राहय मेहनत अउ नेकी।
भुकुर - भुकुर बाजे ढेंकी ।
भिड़े राहय सास-बहू अउ बेटी।
फेर अब;न जांता के घर-घर सुनाय,
न ढेंकी के ठक-ठक।
सिध्धो बुता सब ला सुहाय,
मूसर-बाहना ढेंकी लगे फट फट।
नवा जुग के पांव म दबगे ढेंकी।
चूल्हा के आगी म खपगे ढेंकी।
किस्सा कहनी म सजगे ढेंकी।
फोटु बन ऐती-ओती चिपकगे ढेंकी।
पुरखा ल कूट कूट खवईस,
अब धनकुट्टी मारत हे सेखी।
भुकुर-भुकुर बाजे ढेंकी।
भिड़े राहय सास-बहू अउ बेटी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
9981441795

पागा कलगी-14/12/नोख सिंह चंद्राकर "नुकीला"

"कुंडलियां" 
((१))
सात फीट के गोला ल, अईसन तैं ह छोल।
पिछू डहर पातर रहे, आघू डहर ह मोठ।।
आघू डहर ह मोठ, ओखर एक ठन दाँत गा ।
ले बर ओखर काम,त पिछू ल मार लात गा।।
कहत "नुकीला" राम, खवाहूँ भईया भात ।
झटकुन ते हा सोच, काय होथे फीट सात।।
((२))
ढेंकी ह नंदागे गा, आगे हबे मसीन ।
घर म नई कूटत हबे,सब झन जावत मील।।
सब झन जावत मील, लोगन येला भुलागे।
छत्तीसगढ़ी यंत्र, अपने राज म लुकागे।।
कहत "नुकीला" राम, नवा जमाना ह आगे।
मनखे करत बिकास, अउ ढेंकी ह नंदागे।।
((३))
धान कूटय गा ढेंकी,होवत बड़े बिहान ।
दाई ह खूंदन दाबे, फूफू डारय धान ।।
फूफू डारय धान,मार खमोस खमोस के।
धान ह गजब छराय, मार दमोर दमोर के।।
कहत "नुकीला" राम, ढेंकी के गावव गान।
दाई रांधे भात, ढेंकी म कूट के धान।।
@नोख सिंह चंद्राकर "नुकीला"
गाँव- लोहरसी, पो.- तर्रा,
तह.-पाटन,जिला-दुरुग(छ.ग.)
पिन-४९११११

पागा कलगी-14/11/हेमलाल साहू

@ढेकी@
कूटय सुतउठ धान ला, करै जाँगरे मा काम ला।
भुकरुस भुकरुस ले बजै, सुन ले ढेकी तान ला।।

धन कुट्टी मशीन रहय, ढेकी पुरखा के हमर।
कतको कूटय धान ला, रहै जबर जाँगर उकर ।।

एकझन कूटय धान ला, एक झन खोवय घान।
जिनगी हा सुघ्घर रहै, कसरत करय बिहान।।

पइसा न कौउड़ी लगय, रखै समय के मांग ला।
घर घर मा ढेकी रखय, चाउर बढ़ाय स्वाद ला।।

लगे रहय बहना, थरा, डाड़ी, मुसरी, बैसकी।
धुरा रखै टेकाय बर, नई निकलय गा कनकी।।

आज नदागे देख ले, सुरता बनगे जान ले।
धान कुटे मशीन हवे, दूसर घर के मान ले।।

ढेकी के सुरता रहै, पुरखा के चिन्हा हमर।
बनके कबिता मा रहै, जगत संग मा अमर।।
-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा
छत्तीसगढ़, मो.-9977831273

पागा कलगी-14/10/मूलचंद साहू

"धान कुटेल जाबोन"
चलो बहिनी चलो दीदी, धान कुटेल जाबोन।
ढेकी बाहना मुसर, सबला करदे ते तैयार,
कुकरा बासत धान कुटबो, बडे बिहनिया रहीबे तैयार।
चलो बहिन चलो......
खेती किसानी के दिन आगे,चाऊर दार ल करदे तैयार।
कोदो कुटकी घलो कुटबो,बैला बर दाना करदे तैयार।।
चलो बहिनी चलो......
नागर जोते बर नगरिहा जाहि,बासी लेगेबर मे तैयार।
टोकान कोड़े बर तेहा जाबे,बासी खाके होजा तैयार।।
चलो बहिनी चलो.....
खेत खार हरियर होगे,आगे अब हरेली तिहार।
गाय बैला बर लोदी अऊ, नागर देवता चिला रोटी तैयार।।
चलो बहिनी चलो दीदी ,धान कुटेल जाबोन।
मूलचंद साहू
गाँव चंदनबिरही,गुण्डरदेही
जिला बालोद छ.ग.
९६१२८९५६५३

पागा कलगी-14/9/रामेश्वर शाडिल्य

ढेकी बाजे
भकडदम भकड़ दम दम ढेकी बजे।
पयरि चुरी के संग मा डगसी हा नाचे।

नवा बहुरिया धान कूटे झूल झूल के।
आगी मागे पारा म बूल बूल के।
डोकरी दाई हाथ ल काबर् खाँचे।
सुपा बोले त बोले चलनी का बोले।
ननद गोठ करे मन के राज खोले।
ननद भोजाई खूल खूल खूल हासे।
चाउर निमारे हाथ गोड तान के।
बासी खाथे नूनं मिरचा सान के।
चारी चुगली करत नई लागे लाजे।
धन कुट्टी के आये ले ढेकी नदागे।
माई लोगन के मया पिरीत गवागे।
खरर खरर सास हर खासे।
पयरि चूरी के संग मा डगसी हा नाचे।
भकड़दम भकड़ दम दम ढेकी बजे।
रामेश्वर शाडिल्य
हरदी बाजार कोरबा

गुरुवार, 21 जुलाई 2016

पागा कलगी-14 /8/दिलीप कुमार वर्मा

चला-चला बहिनी धाने कूटे जइबो ,
चला-चला बहिनी धाने कूटे जइबो।
कूटि-कूटि चाऊर बनई देबो न, 
कूटि-कूटि चाऊर बनई देबो न।।
परोसी के घर म, लगे हाबै ढेंकी
परोसी के घर म लगे हाबै ढेंकी।
ढेंकी कूटत मजा पइबोन न ,
ढेंकी कूटत मजा पइबोन न।।
एक ठन लकड़ी के ,ढेंकी तै बनई ले,
एक ठन लकड़ी के, ढेंकी तै बनई ले ।
आगू कोति मूसर दई देहु न,
आगू कोति मूसर दई देहु न।।
दुइ थुनिहा म ओला रे मढ़ई दे,
दुइ थुनिहा म ओला रे मढ़ई दे।
आगु कोति बाहना बनई देहु न,
आगु कोति बाहना बनई देहु न।।
तेंहा बहिनी कुटबे मेहा खोई देहूं,
तेंहा बहिनी कुटबे, मेहा खोई देहूं।
मिल जुल धान कुटई जहि न,
मिल जुल धान कुटई जहि न।।
फुन-फुन कोड़हा ओकर उड़इबो,
फुन-फुन कोड़हा ओकर उड़इबो।
कनकी ल घलो अलिगयइबोन न,
कनकी ल घलो अलिगयइबोन न।।
भुकरुस भुकरुस ढेंकी ह करत हे,
भुकरुस भुकरुस ढेंकी ह करत हे ।
धीरे-धीरे धान कुटय जईहे न,
धिरे-धिरे धान कुटय जईहे न।।
ये ढेंकी के अड़बड़ कामे,
ये ढेंकी के अड़बड़ कामे।
आनि-बानि चीज कुट जइथे न,
आनि-बानि चीज कुट जइथे न।।
मिरचा कूटत ले मुंह लाल होवय,
मिरचा कूटत ले मुंह लाल होवय।
हरदी कूटत पिवरा होइ जथे न,
हरदी कूटत पिवरा होइ जथे न।।
कूट -कूट चाऊर साठ बनइले,
कूट-कूट चाऊर साठ बनइले।
साठे के अइरसा बनई लेबो न,
साठे के अइरसा बनई लेबो न।।
चल बहिनी दुःख-सुख उहें गोठियइबो,
चल बहिनी दुःख-सुख उहें गोठियइबो।
कूटी-कूटी धान चल अइबोन न,
कूटि-कूटि धान चल अइबोन न।।
दिलीप कुमार वर्मा
बलौदा बाज़ार

पागा कलगी-14/7/ज्ञानु मानिकपुरी "दास"

कोन ल बतावव मय ढेकी के बात।
पारा पड़ोस दाई दीदी मनके नेकी के बात।
मिलजुल के बुता करय नंगाके हाथ।
ढेकी म धान कूटत गावय करमा ददरिया के राग।
कोदई ,कुटकी कूटे के मशीन।
सुघ्घर धान कूटे के मशीन।
अबके टुरी मन बुता छोड़ जाथे जिम।
पहली समे के कहिले जिम के मशीन।
धान कूटत डोकरी दाई के सिखौनी बात।
होनी ल टारे बर अनहोनी बात।
नतनींन मन बर मसखरी बात।
बेटी, बहू बर खोटी खरी बात।
अबतो धान बोवे बर टेक्टर।
धान लुवे मींजे बर हारवेस्टर।
धान कुटेबर धनकुट्टी लगगे,
रांधे बर घला आगे गैस सिलेंडर।
जबले मशीन आये हे लाचारी अमावत हे।
कखरो बीपी,गैस,शक्कर बिमारी बाढ़त हे।
जांगर चलय नही मनखे जांगरचोट्टा होवत हे।
हमर पुरखा के धरोहर ह नंदावत हे।
अब कहा पाबे संगी ,नेकी अउ ढेकी नंदावत हे।
पढ़े लिखे पाबे फेर संस्कारी बहु ,बेटी नंदावत हे।
अबके लइका मनबर ये सब किस्सा होंगे।
अबतो "ज्ञानु"हाय-हाय जिनगी के हिस्सा होंगे।
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ज्ञानु मानिकपुरी "दास"
चंदेनी कवर्धा