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शनिवार, 30 अप्रैल 2016

पागा कलगी -8//संतोष फरिकार "मयारू"

"पानी ल बचाना हे"
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पानी ल बचाना हवय
सबो ल बताना हवय
पानी बर तरसत भुंईया
बुंद बुंद पानी बर भंईया
गरमी के दिन हर आगे
सबो पानी बर फिफियागे
सब बोर ल खोदवावत हे
पानी तरी कोती जावत हे
पानी ल बचाना हवय
सबो ल बताना हवय
नरवा नदिया हर सुखा गे
जीव जानवर पानी कहां ले पाय
गांव के तरीया हर अटावत हे
पानी ल सब चिखला मतावत हे
पानी ल बचाना हवय
सबो ल जगाना हवय
पानी पीए बर खोदीच झीरीया
नहाय बर आदमी कहां कहां जाय
गरमी के दिन हर आगे हवय
गांव के तरीया हसुखा गे हवय
पानी ल बचाना हवय
सबो ल जगाना हवय
गांव के कुआ अटावत हे
पानी बर दुरीया जात हे
पानी के मोल अब समझ म आवत हवय
गरमी के आतेच सब पानी बर फिफियावत हवय
पानी ल बचाना हवय
सबो ल समझाना हवय
----------------------------------------
रचना - संतोष फरिकार "मयारू"
देवरी भाटापारा बलौदाबाजार
मोबा,- 09926113995
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शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

पागा कलगी -8 //आशा देशमुख

बिन पानी नइ हे ज़िंदगानी
पानी रे पानी रे पानी ,सब खोजत हे पानी
तोर बिना सब सुक्खा परगे ,तड़फत हे परानी |
रुखवा राई ठाड़ सुखावय ,दहकत हावय परिया
नदिया नरवा सुख्खा रेती ,दर्रा उलगे तरिया
सूरूज घलो बरसे लागय ,जइसेआगी गोला
चिरई चुरगुन बोलत हावय ,कहाँ बचाबो चोला
बिकत हवय बाटल म पानी ,कतको करे दुकानी
पानी रे पानी रे पानी ,सब खोजत हे पानी |
जब ले आइस बोर जमाना ,पानी ह अउ अटागे
छेके नई पानी ल कउनो ,कती कती बोहागे
बून्द बून्द बस टपकत हावय ,जम्मों नल के टोटी
झगरा माते गली गली मा ,खींचे बेनी चोटी |
भसकत कुआँ ह सोचन लागय ,मोरो रिहिस जवानी
पानी रे पानी रे पानी ,सब खोजत हे पानी |
पानी के सब मोल समझही ,तभे कछू तो होही
एक बून्द पानी बर नइ तो ,ये दुनियाँ हा रोही ,
गाँव नगर शहर डगर मा ,चलिन ग हाँका पारी
छेड़े मुहीम सबो डहर मा ,मिल के नर अउ नारी |
पानी बिन नइ बाँचे जग मे ,कउनो के जिनगानी ,
पानी रे पानी रे पानी ,सब खोजत हे पानी |
-आशा देशमुख

पागा कलगी -8//कुलदीप कुमार यादव

******पानी******
जेकर रहे ले दुनिया मा,
सबके चलत हे सांस ।
पानी के एक एक बूँद ले,
हावै जीवन के आस ।।
पानी के कमी ले सुखावत तरिया-डबरी,
तरफत आनी-बानी जीव अउ मछरी ।
आवत बेंदरा भालू गांव डहर,
तरसत हे घलो अब गांव के नहर ।
चिरई मन घलो मरत हे पियास,
पानी के एक एक बूँद ले,
हावै जीवन के आस ।।
हरियर पेड़ घलो सुखावत हे,
पानी के दुकाल हा अब जनावत हे ।
गिल्ला भुइंया मा दर्रा परगे,
खेत के खड़े धान हा घलो जरगे ।
ऐ सब ला देख के किसान हा होगे निराश,
पानी के एक एक बूँद ले,
हावै जीवन के आस ।।
रुख-राई हा पानी के आकरशक हे,
भोगत देखत मनखे ला,
परकिति बने अब दरशक हे ।
काटे के कारण ऐ सब,
करे हबन जेन घात बिस्वास ।
पानी के एक एक बूँद ले,
हावै जीवन के आस ।।
रचना--कुलदीप कुमार यादव,खिसोरा
मो.न.--9685868975

पागा कलगी -8//नवीन कुमार तिवारी

बिहनिया के राम राम ,
आ ही , आ ही मिथ लबरा आ ही ,
दो रूपया चा वूर देके ,ग्राम सुराज लाही
लइका मन ला लेपटॉप, टेबलेट, साइकिल देके भरमात हैवे,
फेर शिक्षा के गीरत स्तर ल आ वो गिरावट हैवे ,
विकास संग सुराज के दिखावा ,अपन जय जय कर करावत हैवे,
अधिकारी ,कर्मचारी संग अपन फोटो घलो खिचववत हैवे,
विकास के संसो भुलवारे, घामे घाम कोलकी कोलकी तीपे भोमरा मेफीरवावत हैवे ,,,
पानी सीरा गए ,नदिया तरिआ झिरया घलो गो सुखागे,
संगे संग ,माई पीला जानवर पक्षी के टोटा घलो सोखा गे ,,
आई पी एल ,के नचकरहा नचकरहिं बर ,,
सट्टा जूवना खिलाए के साध ,,,
सोच कैसे कांडी ल हरियवत हैवे ,
घेरी बेरी पनि सींचत कैसे
आँखि ल मत कावट हैवे ,
पानी सिट्टा कर के पानी बचाव अभियान चलावत हैवे,,
फेर पानी के बदला में ,सस्ता दारू बोहावत हैवे ,
तेखर बर गांव गांव चौपाल चौपाल दारू दूकान खोलवावत हैवे,
निर्धन कन्या ला आशीष देबर देख कैसे मुस्कियावत हैवे,
बिहाव होते एक बेर ,,,,,फेर दहेज़ खातिर,,लक्ष्य बनाए ,
डुबेर हाथ पिवुरा करवावत हैवे,,,
फेर जोँहर हुए एक तन गोत सुनो ,
लैकोर हीं के घलो हाथ ल कैसे रंगववत हावी,,
आशीष देबर देख ऐसे मच मचावत हैवे,
लइका महतारी के स्वास्थ सुधारे ,
देख कैसे अलकरहा जतन करे हैवे
माखी भिनभिनाहट किउ रा पड़े ,
करु होवत पोषण आहार खवा वत हैवे ,,
अरहर ,बटकर,गुड शकककर संग देख शाग भाजी,
कइसे मट मटा वत भागतहैवे,
महंगाई के सांसो भुला देख कैसे ग्राम सुराज लावत हैवे,
कभु लोक सुराज , कभु ग्रामशहर नगर सुराज के झांसा ,,
कभु जनसमस्या निवारण के दिखावा ,
तो कभु करावत अपन संग अधिकारी के दर्शन जी ,
जैमा लेवत दरख्वास्त ऊपर दरख्वास्त जी ,
खाल्हे तरी ऊपर गंजए कतका दरख्वास्त जी ?
विकास के चोचला ये दरख्वास्त जी ,
का होते का होते ,,ये दरख्वास्त के जी ,,?
अधिकारी कर्मचारी मन के करम जाग जथे,
दरखास्त के टोकना हा रद्दी के भाव बिक जाथे,
दारु संग चखना के घलो जुगाड़ हो जथे,
आ वु सबो समस्या ,
समस्या बने गरियावत रहिथे
कागज में विकास नजर आते ,
अधिकारी कर्मचारी के प्रमोशन हो जाथे
धुर्रा खाये के सेती ,,
गोल्ड मैडल ले सम्मान घलो करावा लेते
नवीन कुमार तिवारी ,,,,२८.४.२०१६

गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

पागा कलगी -8 //चैतन्य जितेन्द्र तिवारी

"जल हे त कल हे"
"""""""""""""""""""""""
पानी हर अटावत हे
भुंइया हर सुखावत हे
बिन पानी तरसत हे किसान
मनखे घूमत हे होके परिसान ।1।
भुंइया हर रिसावत हे
रुख राई हर सुखावत हे
जीव जंतु मरत हे पियास
न जतन हे न कुछु परियास ।2।
सरकार कुछु करय नई
सुध काखरो लेवय नई
खुद कुछ करन नई देवन नई धियान
आँखि मूँदें बइठे हन बनके अनजान।3।
नल चलत हे बिन टोटी के
बोर दउड़त हे बिन खेती के
मनखे सुते हे गोड़ हाँथ लादे तान...
दांव में लगे हे सब जीव के परान ।4।
जल हे त कल हे
नभ हे अउ थल हे
बड़ सुग्घर कहे हमर मनखे सियान
जल बिन सब सुन ए बात ला जान।5।
चलो पेड़ लगाबोन
पानी ला बचाबोन
मनखे किसान के सुसि ला बुतान
जीव-जंतु हमर भुंइया ला बचान...।6।
-चैतन्य जितेन्द्र तिवारी

सोमवार, 25 अप्रैल 2016

पागा कलगी -8//आचार्य तोषण

"जल-जीवन":::::::
:::::::~~~~~~~::::::::
चइत बइसाख महिना मा
भुंइया ह तिपत जात हे।
चिरई-चिरगून रूखराई संग
मनखे तन हा अइलात हे।
****************
भरे घाम के दिन ह आगे
टोटा घलोक सुखात हे।
कुंआ बावली बोरिंग नल ले
पानी थोरकुन नइ आत हे।
****************
नरवा ढोरगा तरिया डबरा
नल के पानी सिरात हे।
बिन पानी सुन्ना जिनगानी
काबर समझ नइ पात हे।
***************
एकेक बुंद पानी बर हम
संचय गुन ल भरबो गा।
पानी ल बचाय बर हममन
कलयुगी भगीरथ बनबो गा ।
****************
जमदरहा पानी बरस ही
पेंड़ जगाबे जब भुंइया म।
पानी जतके बरस ही संगी
ओतकी रिसाही भुंइया म।
****************
भुंइया के पानी गंगा असन
निकले कुंआ बोरिंग नल ले।
गाय गरूवा नारी परानी सब
पियास बुझाय खल खल ले।
*****************
सब्बे कहिथे जल जीवन हे
कोलिहा सही हुंआ कहिथे।
एला बचाए बर भैय्या मोर
कतको सबले पाछू रहिथे ।
****************
कहिथे आचार्य तोषण ह
सबझन पानी बचाईंगे।
पानी बांचही जिनगी नांचही
अपन भाग संहराईंगे।
~~~~~~~~~~~~~~~~
आचार्य तोषण
गांव -धनगांव
डौंडीलोहारा
बालोद(छ. ग.)

पागा कलगी -8//लक्ष्मी नारायण लहरे

पानी जीवन के रंग आय .....
----------------------------
पानी तरिया नरवा के सुखा जाथे
कुँआ बावली के पानी बससा जाथे
जब गाँव सहर म नल जल बिछा जाथे
मीठा पानी तो सबो हर आय
महानदी , इन्द्रावती के पानी
कहाँ लुकावत हे
बस्तर म झरिया के पानी मिठावत हे
पानी जीवन के रंग आय
पानी ल मंगलू कुआं बावली म भर
तरिया -नरवा के कर मान
नदी -नाला ह जीवन के आधार आय
बरसा के पानी ल सकेलव् जी
जीवन ल पानी कस जियव् जी
पानी हे गुरु बानी
पानी बिना जीवन अबिरथा
पानी के मान ल जानव जी
पानी जीवन के रंग आय ..... 


०लक्ष्मी नारायण लहरे ,

साहिल, कोसीर सारंगढ़ रायगढ़

पागा कलगी -8//महेन्द्र देवांगन माटी

पानी ल बचावव
*****************
दिनों दिन गरमी ह बाढ़त, तरिया नदियां सुखावत हे
कुंवा बोरिंग सुक्खा परगे, पानी घलो लुकावत हे
बूंद बूंद अनमोल होगे , अब समझ में आवत हे
एक कोस में पानी भरे बर, नवा बहुरिया जावत हे
चिरई चिरगुन के मरना होगे, पियास में फड़फड़ावत हे
गाय गरुवा मन भूख पियास में, भारी हड़बड़ावत हे
पेड़ पौधा के पत्ता झरगे, खड़े ठाड़ सुखावत हे
धरती दाई पियासे हाबे, पानी कहां लुकावत हे ।
जल हाबे त जीवन हाबे, एला तुम बचावव
बिना पेड़ के पानी नइ गिरे, एला सब समझावव ।
पानी बिना जग हे सुना , बात ल तुमन मानव
एक एक पेड़ लगाके संगी, सबके जीव बचावव ।
रचना
महेन्द्र देवांगन माटी
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला - कबीरधाम ( छ. ग. )

पागा कलगी -8//मिलन मलरिहा

छत्तीसगढ़ के पागा कलगी 8 बर मोर रचना--
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मोर बहरा खार म, रोवत हे रुख-राई
पानी-पानी कहिके, कलपत हे सबोचिराई
जंगल-झाड़ी जरत हे, माते हे करलाई
पड़की कहे मैना ले, काला दुख सुनाई
नान नान नोनी-बाबू कहाँ घर बसाई
आगी बरसत, ए घाम म कहाँमेर जाई
मनखे जंगल उजारके, गरमी ल परघाई
कुंआ, नरवा-तरिया के अधाधून हे अटाई
मोर बहरा खार म...................................
-
मैना कहे सुन दीदी पड़की, चला सबो गोहार लगाई
हे भगवान! मनखे ले परे एक अलगे जग बनाई
जिहा नान-नान जीव-जनतु पियास बुझाई
नदिया नरवा कलकल छलछल मया बरसाई
अमृत-जलधार बसय जिहा,अइसे जग पिरोई
सुना गोहार कलपत जीवके, कहूँतो जुगत मढ़ाई
मोर बहरा खार म........................................
-
भगवान कहिच, हे मैना ! दुनिया भोजन-सृंखला हे
मौसम आना जाना हे, जीनगी म जिना-मरना हे
सबजीव एके संग करमबद्ध-सृन्खला म रहना हे
मनखे सरेस्ट जीव संसारके, ओला ए समझना हे
पानी हे अनमोल रतन, बिन पानी सब सुन्ना हे
प्रकरिति ल बिगाड़ीच ओहा, सनसार होगे दुखदाई
अपन घर बसाए बर, मनखे करत हे जंगल कटाई
मोर बहरा खार म..........................................
-
पानी ले जीवन बने अउ उपजे पेड़-पवन-पुरवाई
बचावा संगी परियावरण, पानी सोरोत गहिलाई
थोरकन पानी बाचे कुआँ म, कई बाल्टी होत डुमाई
पेलिक-पेला, झूमा-झटकी ले मार-काट मच जाई
मनखे तरिया पाटके जघा-जघा घर-खेत सजाई
सब ओखरे परिनाम हे, पानी खसलत दूरिहाई
मनखे तो भोगत करनी, गहूँ संग कीरा दूसर रगड़ाई
मोर बहरा खार म..........................................
-
आवा संगी पेड़ जगाके, कुआँ-तरिया घलो बनवाई
मिलजुल सब परन करके, भबिस्य बर पानी बचाई
मोर बहरा खार म, रोवत हे रुख-राई
पानी-पानी कहिके, कलपत हे सबो चिराई
जंगल-झाड़ी जरत हे, माते हे करलाई ।।
-
मिलन मलरिहा
मल्हार-बिलासपुर
छत्तीसगढ़

रविवार, 24 अप्रैल 2016

पागा कलगी -8//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

बड़ किमती ये पानी हे।
एकरे ले जिनगानी हे।
पानी ले बिहान होवत हे।
पानी ले स्नान होवत हे।
पानी ले तोर धियान होवत हे।
पानी ले बिज्ञान होवत हे।
पानी ले तइयार तोर,
खाय पीये के समान होवत हे।
पानी ल बरबाद कहुं करबे,
तंय रोबे तोर परान रोहि।
लइकन संग म सियान रोहि।
सरहद ले बीर जवान रोहि।
खेती के तीर किसान रोहि।
गांव के चतुरा कंतरी रोहि।
घुम-घुम के मंतरी रोहि।
माते गंजहा दरुहा रोहि।
कोठा ले गाय गरुवा रोहि।
उड़त-उड़त पुरवाई रोहि।
खड़े-खड़े रूखराई रोहि।
मंदीर ले पुजारी रोहि।
बिन लिपाय घरद्वारी रोहि।
कांदा मुराई संग बारी रोहि।
चपरासी संग करमचारी रोहि।
पानी बंचाय बर करिहो लाचारी।
एक-दुसर संग ईसगापारी।
नंदा जहि सब दुनियादारी।
फेर काकर करिहो रखवारी।
पानी के बरबादी ल रोकव।
जतेक जरूरत ओतकेच झोंकव।
बिछा जहि तोर सपना हीरा।
उघर जहि अंतस के पीरा।
जब रिसाजहि जलदेवति नीरा।
बोहा जहि कहुं भाग ले पानी।
हांथ ले बिहांथ होजहि जिनगानी।
किरिया खावन पानी बचायके,
पानी बचायबर उदीम रचायके।
बड़ किमती ये पानी हे।
एकरे ले जिनगानी हे।
रचना:---सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
शिक्षक पंचायत
गांव-गोरखपुर,कवर्धा

शनिवार, 23 अप्रैल 2016

पागा कलगी -8 //हेमंतकुमार मानिकपुरी

पानी बूंद अमोल हे.....
विधा-------दोहा
पानी बूंद अमोल हे, राखव एखरे मान।
बूंद बूंद बचावव जल, बात समझलव जान॥
खरचा कर देव पानी, जनम जनम भरमान।
अब धरती ले पानी ह, कति ले आवय जान॥
पानी रहत खूब करे ,छकल छकल तंय जान।
भर भर लोटा नहाये, अब अंजली असनान॥
कपड़ा लत्ता बरतन ल,छिन छिन मांजय सान।
पानी बऊरे अइसे, जइसे पर घर जान॥
टेड़ा नल झुख्खा हवय,नल बन गे हे बांझ।
माथा धर पछतात हे,गुनव ज्ञानी सुजान॥
सब रूख रई काटेव, आंखी मूंद नदान।
जीव जंगल नंदागे हे, तब फरकत हे कान॥
रूख लगावव कोरि त हे, तभे धरा के जान।
अभी ले समझव बात ल, झन बनव ग नादान॥
रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

पागा कलगी -8//राजेश कुमार निषाद

 पानी हे जिनगानी ।।
 पानी हे अनमोल भईया फोक्कट म झन गंवाबे ग। 
पानी के जब होहि किल्लत बड़ तै पछताबे ग। 
पानी म तै कपड़ा धोबे अऊ पानी म ही नहाबे ग। 
पानी ल सकेल संगी फोक्कट झन बोहाबे ग। 
पानी हे अनमोल भईया फोक्कट म झन गंवाबे ग।। 
पानी बिन सोच ले संगी बड़ दुख तै पाबे ग। 
जगह जगह म झगड़ा होही झगड़ालू तै कहाबे ग। 
पानी म हे जिनगानी भईया जीवन के आधार बनाबे ग। 
पानी ल बचा के भईया सबके भाग जगाबे ग। 
पानी हे अनमोल भईया फोक्कट म झन गंवाबे ग। 
पानी बचाय बर बनाव सुघ्घर योजना बाद में ओकर लाभ उठाबे ग। 
पानी ल तै सकेल ले भईया बड़ नाम तै एक दिन कमाबे ग। 
पानी हे अनमोल भईया फोक्कट म झन गंवाबे ग।

 रचनाकार÷ राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद

पागा कलगी -8//-हेमलाल साहू

‪#‎पानी‬ #
एक एक बूँद जल बर, तरसत हावे लोग।
देखव पानी के बिना, जिनगी भोगत भोग।।

चिरई जल खोजत हवे, लगे हवे गा प्यास।
कोनो मेरन जल नही, जीये के न आस।।

जगह जगह तंगी हवे, खाये जल बर मार।
एक एक बून्द जल बर, मचगे हाहाकार।।

तरिया नदिया सूखगे, कुँआ दे हवे पाट।
रुख रई ला काटके, सहर बनत इसमाट।।

अबूझ मनखे तैय हा, रखले जल के मान।
एक एक बूँद जल मा, जिनगी हावे जान।।

राखव जल संयोज के, जल के बोली बोल।
जल चिंतन करव गा, जल हावे अनमोल।।
जगह जगह मा जल रहे, लगाबोन चल रुख।
धरती हा गिल्ला रहे, झन जावय गा सूख।।
-हेमलाल साहू

पागा कलगी -8//रामेशवर शांडिलय

पानी बचाई
नल के टोटी ले बूंद बूंद
पानी टपकत हे।
टूरा मुहं लगा के एक एक
बूंद गटकत हे।
= = = =
शहर के तलाव कुआं पटागे
गांव के तलाव कुआं अटागे
तरिया नदिया म नहाई नदागे
सरकार के पानी टंकी नठागे
= = = =
पथरा पथरा के सुनदर शहर होगे।
साफ पानी के नाली डगर होगे।
भूइया कइसे सोखे गटर होगे
पानी बर हाहाकार नगर होगे।
= = = =
मनसे के देखा बाढत अबादी,
पानी के देखा इहां बरबादी।
तीसरा युध होही पानी बर,
पानी बचाई जिनगानी बर।
= = = =
चला हम सब कसम खाई,
बुंद बुंद पानी बचाबो।
जेतका जरूरत होही,
ओतके म काम चलाबो।
= = = =
रामेशवर शांडिलय
हरदीबाजार कोरबा

पागा कलगी -8//सुनिल शर्मा"नील"

"पानी जिनगानी हरय"
(मनहर घनाक्षरी)
*********************************
बूँद-बूँद पानी बर होवत हे मारामारी
कहना हे मोर अब तो चेत जावव जी
तड़फत सबो जीव देवत हे तालाबेली
पानी जिनगानी हरय एला बचाव जी|
पाटव झन कभू रे कुआँ अउ तरिया ल
तहुमन पुरखा कस पेड़ लगाव जी
रहीके पियासी खुद तोला कहा दय पानी
जुरमिल भुइयां के पियास बुताव जी
कई कोस रेंग पानी एक गुंडी पाथे जेन
थोकुन उखरोबर सोग तो देखाव जी
दुए घूंट पीना अउ गिलास भर फेकना
बेवकूफी कर तुम झन इतराव जी|
ताक झन मुहु पहली खुद ला सुधाररे
नाननान बात ले बदलाव लावव जी
बउरव वतके कि जतका जरूरत हो
सदउपयोग के आदत ल डारव जी|
परकिरती हे तब तक मनखे घलो हे
जीयो-जीयन दव के मंत्र अपनाव जी
दयाबिन मनखे के जीना तो अभिरथा हे
रहवास कखरो झन तो उजारव जी
करनी के फल ले तो सुनामी-भूकम होथे
परकिरती देबी ल झन रिसवावव जी
कल के सुराज बर छोरबो सुवारथ ल
गाँव-गाँव ए संदेशा ल बगरावव जी|
*********************************
सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया(छ.ग.)
7828927284
रचना-18/04/2016
copyright

पागा कलगी -8//सुनील साहू"निर्मोही"

"बस एक बूंद के आस हे"
पियास पानी के नहीं आस के हे।
हमर भरोसा अउ बिस्वास के हे।
कोनो पियास म मर जाथे।
तव कोनो पी के तर जाथे।
तरसत इंहा एक बूंद पानी बर।
तव आखी म आंसू के धार भर जाथे।
दुनिया उलझे बिकास करे म।
फेर का फायदा बिस्वास करे म।
नीत बनईया मीत भुलागे।
एती गरीब मनके टोटा सुखागे।
रुख राई इंहा सोझ्झे झर जाथे।
नेता पारटी अपन म लड़ जाथे।
भूख ले बांचे तव पियास म मरगे।
बइठे बइठे एती आस म मरगे।
अब काला सियान बनावव जी।
मैं कोन भागीरथी ल बलावव जी।
सुनील साहू"निर्मोही"
ग्राम -सेलर
जिला-बिलासपुर
मो.न. 8085470039

सोमवार, 18 अप्रैल 2016

पागा कलगी -8//ललित साहू "जख्मी"

"कोनहो जुगत लगाव"
पानी बर सब तरसत हे
घाम मे थरथरावत हे
कोनहो कोनटा मे छंईहा नई हे
झांझ मे अलकरहा लेसावत हे
कांक्रीट के जंगल बर
कांच्चा रूख ला काटे हे
पम्प मे गरभ ला चुहक के
कुंआ बावली ला पाटे हे
अब नल मे मुहु टेंका के
एक-एक बुंद ला चांटत हे
अऊ थोकन मछरी के लालच मे
तरीया डबरी ला आंटत हे
एक ठोमा महुआ अऊ तेंदु पान बर
सफ्फा जंगल ला सुलगावत हे
कभु खेल कभु कातिक नहाय बर
बांधा के पानी ला उरकावत हे
रद्दा तिरन के फुहारा मे
हांस के फोटु तिरवावत हे
अऊ भटके चिरई चिरगुन ला
दाना पानी बर तरसावत हे
जंगल उजार के घर सजाथन
अऊ गाना हरियाली के गावत हे
गरीबहा तरसे पीये के पानी बर
हमन स्वीमिंग पुल मे नहावत हे
गाडी धोत हन पाईप लगा के
कुकुर ला रगड के नवहावत हे
अऊ मोहाटी के गाय भंईस ला
डंडा मार के हकालत हे
भुंईया सोखे रुख संजोये पानी
बरखा के नियम ला भुलावत हे
सोंखता बोर खनाय बर जियान परथे
सिरमिट मे सरबस ला बरंडावत हे
कईसे सोखही पानी ये भुंईया
का कोनो जुगत लगावत हे
मोला तो लागथे संगवारी हो
सब अपने घमंड मे मर जावत हे
हमर पानी के बोहई ला देख के
भगवान घलो हा थर्रावत हे
सतयुग ले बोहात नरवा झरना मन
आज कलियुग मे सुखावत हे
रचनाकार - ललित साहू "जख्मी"
ग्राम - छुरा
जिला - गरियाबंद (छ.ग.)
मो. नं. - 9144992879

पागा कलगी -8//महेश पांडेय मलंग

तरिया सुखा गे कुंवा भठा गे नदिया के सब सिरागे पानी .
पानी बिन करलई होवत हे ; का मनखे का पसु परानी l
सावन भादो के बादर ह घलो ए बछर लबरा हो गे .
करम छाड़ गय सब किसान के ; ना जाने काय दोखहा हो गे l
रुख राइ ला काट काट के जंगल ला नंगरा कर डारेन ,
एखरे खातिर मउसम घलो ह ;
अनठेरहा अलकरहा हो गे l
अपन गोड़ म पथरा कचार के
हमन करत हवन नदानी l1l
मरे पियास के तरुवा सुखागे ;
बुंद बुंद बर सब तरसत हे l
चिरई चुरगुन मन तलफत हे
गाय गोरु मन लहकत हे l
बिन पानी के फाटत हावय
धरती महतारी के छाती l
जल जीवन ए सिरतोन संगी
ये नारा मोला सच लागत हे l
जल संरछन करबो अब औ
रोक के रखबो बरखा के पानी l2एल
महेश पांडेय मलंग
पंडरिया जिला कबीरधाम

रविवार, 17 अप्रैल 2016

पागा कलगी -8//ज्ञानु मानिकपुरी

~छत्तीसगढ़ के पागा कलगी-8 बर रचना~
- पानी बिना नइये जिन्दगानी
झन करना तै नादानी
फोकट म बोहके पानी। रे संगवारी....
1 तेल बिना दिया बाती,पानी बिना जिनगी।
चारो कोती दिखय अंधियारी।
इहि सही ऐ नइ कहत हव लबारी।
झन करना तै बेईमानी।
फोकट म बोहाके पानी। रे संगवारी....
2 एक-एक बूँद अमृत आय, इहि मया के गीत आय।
तै सुन लेना बनवाली।
बिन पानी नइ होवय खेती-किसानी।
फोकट म बोहाके पानी।रे संगवारी. .
3 नदी,नरवा,तरिया ह अटागे।
कुआँ, बोरिंग घला सुखागे।
पानी बिन चिरई-चिरगुन् तरसत हे।
गाय-गरवा खार-खार भटकत हे।
जल हे त कल हे, पानी अनमोल हे।
झनकर मानुष तै मनमानी
फोकट म बोहाके पानी।रे संगवारी....
4 जिनगी के तै आधार पानी।
सगा-सोगर बर मया-दुलार पानी।
मनखे- मनखे बर घर परिवार पानी।
पानी के पीरा ल सुन लइका, बूढ़वा जवानी।
तै झन कर न अभिमानी ।
फोकट म बोहाके पानी ।रे संगवारी....
नानकुन प्रयाश करे हव
आप मनके छोटे भाई
ज्ञानु मानिकपुरी 9993240143
चंदेनी कवर्धा (छः ग)