बुधवार, 3 मई 2017

पागा कलगी -32//9//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छप्पय छंद(गरमी मा स्कूल)
बस्ता लादे खाँध ,स्कूल लइका मन जाये।
जरत घाम मा स्कूल,मूड़ पीरा बड़ ताये।
तीपे भुँइयाँ खेत,हवै तीपे घर छानी।
रहि रहि जरथे चाम,पियाथे ठंडा पानी।
अइसे मा कइसे भला,पढ़ई लिखई होय जी।
धार पछीना के झरे,लइका मन हा रोय जी।
चलथे हवा गरेर, झाँझ झोला के डर हे।
लू लक्कड़ ले घेर,बरत आगी बन घर हे।
जरथे चारो खूँट,घाम होगे दुख-दाई।
भुँइयाँ के सब जीव , देख फूटे जस लाई।
पेपर होगे क्लास के,कहाँ पढ़े के धून हे।
तभो देख ले स्कूल हा,खुले मई अउ जून हे।
करके पेपर जाँच, बताबे हमला जल्दी।
जावत हवन बिहाव,खेलबों गुरुजी हल्दी।
इती उती ले घूम,ममा के घर हे जाना।
उँहे खेलबों खेल,खाय के बढ़िया खाना।
अब बस अतकी हे आस जी,हो जावन हम पास जी।
गौकिन गरमी मा स्कूल हा, नइ आवत हे रास जी।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

पागा कलगी -32//8//पारितोष धीरेन्द्र

।। गरमी म स्कुल ।।
गरमी म स्कुल सोंचके 
मास्टर खुद सोलहागे 
आगि लगगे बादर म 
सुरुज खुद भुंजागे
लकलक लकलक
करत हे भुंइया
रुख राई अंईलागे
बैसाख के पहली पाख म भइया
जेठ के अगन धरागे
रद्दा चमकय बरफ बदरिया
मृग घलो भरमागे
नवतपा कस सुरुज के तांडव
बियाकुल जी बगियागे
अंश मात्र सृष्टि खुद ब्रम्हा
कमल नाल म समागे
गरमी म स्कुल सोंचके
मास्टर खुद सोलहागे
आगि लगगे बादर म
सुरुज खुद भुंजागे
लकलक लकलक
करत हे भुंइया
रुख राई अंईलागे
चरका भरका खेत दिखत हे
रुख म लाशा लसलसागे
सुकवा ऊवत बाँग देवइया
कुकरा घलो फटफटागे
गोख्खी बैरी सुरुज देव के
कंकालिन रूप धरागे
लाहो लेवय घेरि बेरि
तन उसनाय भुंजाय कस लागे
गर्मी म स्कुल सोंचके
मास्टर के बया भुलागे
आगि लगगे बादर म
सुरुज खुद भुंजागे
लकलक लकलक
करत हे भुंइया
रुख राई अंईलागे
तिपत हे तरुवा जरत हे भोंभरा
पीठ म घमुर्री भदभदागे
चातकी मन स्वाति जल ब
तरस तरस अधियागे
पानी फोटका कस जिनगानी
गिधवा डेना कस हाथ गोड़ तनागे
हाथ नारी जुड़ावत हे अब तो
बटाई कस आँखी बटरागे
गरमी म स्कुल सोंचके
मास्टर के मंता छरियागे
आगि लगगे बादर म
सुरुज खुद भुंजागे
लकलक लकलक
करत हे भुंइया
रुख राई अंईलागे

-पारितोष धीरेन्द्र
कोरबा 7999591957

पागा कलगी -32//7//मिलन मलरिहा

गर्मी मा इसकुल जाके
अड़बड़ मजा पाथन....
गुरुजी सुत भुलाथे ता
कलेचुप भाग-पराथन
भागत भागत सब्बो संगी
आमा बगीचा जाथन
इमली, आमा मार लबेदा
मार मार झोरियाथन
धर-सकेल सुस्ताके छईहा
नून गोद गोद खाथन
अब्बड़ अकन सकलाथे ता
बस्ता भर-भर लाथन
गर्मी मा इसकुल जाके
अड़बड़ मजा पाथन....
.
घाम मुड़ी मा जब चढ़जाथे
तरिया मा तऊर मताथन
तऊरत तऊरत सब मिलके
छू-छूआऊला खेलथन
लहुटत संझवति बेरा मा
गारी दाई के सुनथन
थके-मांधे ओही रतिहा
बिन खाए सुत जाथन
फेर बिहनहे बासी खाके
नून मिरचा कलेचुप धरके
इसकूल बर निकलथन
देखवटी थोकन पढ़के
फेर सुतत ले अगोरथन
गर्मी मा इसकुल जाके
अड़बड़ मजा पाथन....
☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆
.
मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर

पागा कलगी -32//6//दिलीप पटेल बहतरा

// गर्मी म स्कूल//
सर सर सर पवन चलत हे उड़त हवय ग धूल
मोर मयारूक मोर मनमोहना कभू नई करय जी भूल
गर्मी म जाही ओ स्कूल , गर्मी म जाही ओ स्कूल
गरीब ल दूख के नईहे चिंता
न सुख के अभिमान
दाई तो ओकर बूता करईया
ददा हवय ग किसान
सगरो दूख ल हस के सहईया हिरदय के नयना झूल,
पढ जाही चार आखर कहीके जांगर टोर कमावत हव
बेटी के पढहे जाये म मै हर घलो सौख पावत हव
का सर्दी का गर्मी भईया , हासत आवय खूल खूल
न गरीब घर एसी हे न हे कुलर फेन
लक लक ले तिपय जेठ म छानी चूचवावय जब बरसे रैन
कर भी का हम सकत हन ग
हमर तो अतकेच बने असूल
गांव के सरकारी स्कूल , गांव के सरकारी स्कूल ।।
दिलीप पटेल बहतरा , बिलासपुर
मो नं-- 8516850023

पागा कलगी -32//5//एमन दास मानिकपुरी 'अंजोर'

विषय-‘‘ गर्मी मा स्कूल ‘‘
खेलहूं कहिके कहिथंव मय,
बिल्लस अउ पित्तुल।
फेर गुरूजी लगा देहे,
गर्मी मा स्कूल।
लईकुसहा मन मोर मानय नहीं,
हिरदे के पीरा कोनो जानय नहीं।
यहा लाहकत घाम म पढ़े ल जाथन,
पढ़ई तो होवय नहीं भात खाके आथन।
गजब निक लागथे मोला,
झुलना के झुल।
फेर गुरूजी लगा देहे,
गर्मी मा स्कूल।
ममा गांव जाये के साध लागे भारी,
स्कूल के सेती ददा दाई देथे गारी।
पढ़ई लिखई म कथे मन ल लगा,
ननपन के साध जम्मो ल बिसरा।
नंगत ले पढ़ बेटा,
झन कहीं ल भूल।
येदे गुरूजी लगा देहे,
गर्मी मा स्कूल।
—एमन दास मानिकपुरी 'अंजोर'

पागा कलगी -32//4//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"

विषय:-- 'गरमी मा स्कूल'
विधा:-छप्पय छंद
बड़ गरमी मा स्कूल,हमर सरकार लगावै।
दै शिक्षा नि:शुल्क,सँगे मा भात खवावै।
अइसन हे निरदेश,सबो अध्यापक मन ला।
हे शिक्षा अधिकार,सँवारे बर बचपन ला।
परसंसा सरकार के,बार बार अलखात हँव।
बाढ़े बिक्कट घाम हा,छाँव खड़े डर्रात हँव।
लइका मन दू चार,आत हें विद्यालय मा।
बाँकी मन के शोर,नही कोनो आलय मा।
शिक्षक पालक तीर,हाल जानै बालक के।
गरमी संग बिहाव,समस्या हे पालक के।
कोनो मामा गाँव मा,जाके रमड़ीयाय हें।
कतको झन मनके इहाँ,कपड़ा नइ धोवाय हें।
तिरवर तीपत घाम,खोंधरा छूटत नइहे।
मुँह भीतर ले बोल,काखरो फूटत नइहे।
सुग्घर ताते भात,दार हा कहाँ सुहावै।
घर मा बोरे पेज,पसैया बने पियावै।
पोटा काँपत हे गजब,निकले बर गा घाम मा।
रोज ठिठकथे पाँव हा,कहूँ जाय के नाम मा।
आही महिना जेठ,तभे छुट्टी मिल पाही।
बस्ता खूंटी पाय,बने मनभर सुसताही।
लइका मन के रोज,स्कूल हा सुरता करही।
आही सोला जून,फेर ले कक्षा भरही।
बइठे कूलर तीर मा,बिजली ला खिसियात हें।
नाती बूढ़ा संग मा,बात इही बतियात हें।
रचना:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"
गोरखपुर,कवर्धा
9685216602
27/04/2017

पागा कलगी -32 //3//विक्रमसिंह "लाला"

विषय -गर्मी मा स्कूल
गर्मी के मारे लईकामन बिहिनिया ले नहावत हे । 
पढई तो होवत नई हे खाना खाये बर स्कूल जावत हे ।।
तात तात हवा चलत हे झवाये असन लागत हे ।
पानी के खोज मा जीव जन्तु मन गांव डहर आवत ।।
गर्मी ल देख के गुरू जी पंखा ल चलावत हे ।
गरम गरम आगी असन हवा ह बोहावत हे ।।
गर्मी के दिन मा स्कूल मोला बने नई लागत हे ।
आमा अमली पीपर के छांव मोर मन ल बड भावत हे ।।
जगह जगह पानी के कमी तरिया बड अटावत हे ।
स्कूल मा पिये बर पानी नई हे लईका पानी धर के जावत हे ।।
चप्पल कोनो नई पहिरे चट चट भोभरा जरत हे ।
गर्मी के कारण पढाई नई होथे टाइम पास सब करत हे ।।
सरकार ह गर्मी ल देख के बिहिनिया स्कूल लगावत हे ।
पढई तो होये नई खाना खाये बर स्कूल जावत हे ।।
ध्यान से पढे नई हे तेन मन फैल होवत हे ।
पास होगे तेन भर्ती होवत हे ।।
पढाये के मन नई हे गुरू जी के कहानी म कान ल भरत हे ।
तरिया नदियाँ सब सुक्खा होगे जीव जन्तु मरत हे ।।
अतका गर्मी म कईसे पढबो तईसे लागत हे ।
गुरू जी मन बिहिनिया आत हे अउ जल्दी घर भागत हे ।।
गली मा नई निकले सकव मै झांझ चलत हे हरहर हरहर
पंखा बिना नई रहे सकव पसीना बोहाथे मोर तरतर तरतर
पंखा बिना कोनो परानी ल चैन नई आवये ग ।
ठंडा ठंडा फ्रिज के पानी सबके मन भावये ग ।।
विक्रमसिंह "लाला"
मुरता_नवागढ_बेमेतरा
7697308413