मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

पागा कलगी-30/6/जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

दाई!जाहूँ ममा घर।
गरमी के छुट्टी लग गे,
होगे पढ़ई लिखई।
हर साल कस रद्दा,
देखत होही ममा दई।
तँउरे बर मंझनिया,
तरिया नरवा बलात हे।
ममा गाँव के सुरता,
तरवा मा छात हे।
झूलना झूलाही,
आमा बर पीपर।
दाई !जाहूँ ,ममा घर।
दाई !जाहूँ ,ममा घर।
ममा के पीठ मा,
चढ़हूँ पिठँइया ।
ममा दाउ के आघू,
नाचहूँ ताता थैया।
मामी खवाही,
बरा सोंहारी।
खाबोन पेउस,
जमने होही गाय कारी।
दू जोड़ी पेंट,
कुरथा ला धर।
दाई !जाहूँ ,ममा घर।
दाई !जाहूँ ,ममा घर।
हप्ता हप्ता हाट लगथे।
चना गुपचुप चाँट लगथे।
बड़ भाथे कोला बारी हा।
ममा दाऊ के खांसर गाड़ी हा।
थपट के सुताही ममा दई।
कहिनी किस्सा सुनाही ममा दई।
बिहना ले संझा ,
खेलबोन मन भर।
दाई !जाहूँ ,ममा घर।
दाई !जाहूँ ,ममा घर।
गड़गड़ी बॉटी ,
गिल्ली भसकोल।
बर पीपर पाना ला,
घुमाबोंन गोल गोल।
झिल्ली कागत के,
पतंग उड़ाबोंन।
खइरखा डाँड़ मा,
मजा मतंग उड़ाबोंन।
संगी सब मिल बाजा बजाबोंन।
भरे मंझनिया खूब नहाबोंन।
नइ धरे बोखर जर।
दाई !जाहूँ ,ममा घर।
दाई !जाहूँ ,ममा घर।
मामी संग पानी लान लगहूँ।
ममा दाऊ संग छानी छान लगहूँ।
ममा संग भईंस्सा धोहूँ।
ममा दाई मनाही,कतको रोहूँ।
जाके ममा गाँव,
बचपना ला लेतेंव गढ़।
दाई !जाहूँ ,ममा घर।
दाई !जाहूँ ,ममा घर।
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

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