सोमवार, 17 अप्रैल 2017

पागा कलगी -31//4//ज्ञानु'दास' मानिकपुरी

विषय-झोला झाप डॉक्टर
हा महीं ऑव् डॉक्टर झोला छाप।
-थोड़ा बहुत महूँ हा पढ़े लिखे हँव्
एक दू साल बड़े अस्पताल मा काम सीखे हँव्।
धीरे धीरे सूजी पानी लगावत हँव्
अपन बुद्धि अनुसार करत हँव् ईलाज।
हा महीं ऑव् डॉक्टर झोला झाप।
-सर्दी खाँसी बुखार के करथवँ ईलाज
बीस तीस रुपिया मा करथवँ ईलाज।
उधारी बाढ़ही घला लगावत हँव्
भगवान के करत रहिथवँ जाप।
हा महीं ऑव् डॉक्टर झोला झाप।
मौका परे मा बड़े अस्पताल घला लेगथवँ
बरषा जाड़ा घाम मा कइसे रहिथे मनखे देखथवँ।
नइ आवय गुस्सा पैसा बर नइ तँगावव
मनखे के स्थिति ला लेथवँ गा मैं भाप।
हा महीं ऑव् डॉक्टर झोला झाप।
येला मोर गलती कहवँ या हुशियारी
जहाँ तक बन सके दूर करथवँ बिमारी।
देखत हे ऊपरवाले मोर नोहे कलाकारी
कतको देथे मोला गारी अनाप शनाप।
हा महीं ऑव् डॉक्टर झोला झाप।
ज्ञानु'दास' मानिकपुरी
चंदेनी कवर्धा

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