सोमवार, 17 अप्रैल 2017

पागा कलगी -31 //1//धनसाय यादव

// बेरा - पहिली पखवाडा अप्रैल 2017 //
// विषय - झोला छाप डाक्टर //
सृष्टि में जब जीव के होईस हे संचार ।
संगे संग विधाता दिस बीमारी के मार ।।
प्राण खातिर मनवा करिस लाख उदिम ।
पान पतउवा जड़ी बूटी करू कासा ल जिम ।।
परयोग करिस अउ परखिस अपनेच खातिर ।
धीरे धीरे सब ल सोधित अउ होगे माहिर ।।
नाम धराइस हथोई, हाकिम अउ बैद्यराज ।
बिन स्वारथ दुखिया मन के लगे करींन इलाज ।।
बिमरहा अपन्गहा रोवत आवय इनकर द्वार ।
कुलकत हांसत होके चन्गा जावय घरद्वार ।।
भुइयाँ के भगवान डाक्टर, आये जब मरीज ।
2 रुपिया के गोली बर लेवय 200 रू फीस ।।
गरीब मजदूर अतका मंहगा कैसे कराही इलाज ।
सस्ता इलाज खातिर मिले डाक्टर झोला छाप ।।
सच्चा डाक्टर सेवा भाव ले करही जब इलाज ।
तब काबर कोई जाही झोला छाप के पास ।।
दुसर बात हे डाक्टर के शहर में हे अस्पताल ।
बेरा कुबेरा दूर दराज के मरीज कैसे कराही इलाज ।।
सरी जग हे अजरहा, डाक्टर दू ले चार ।
जाऊन मिले तउने मेर कराथे उपचार ।।
झोला छाप नोहय कोनो छूत के बीमारी ।
पडत जेकर छाईहा फैले कोई महमारी ।।
अज्ञानी अधकचरा ज्ञानी झोला छाप के हे बाढ़ ।
धन के लालच म जान से करत हे खिलवाड़ ।।
बिस्तुर झोला छाप बंद हो, न ककरो जान से हो खिलवाड़ ।
लुके छिपे कहू करत इलाज मिले त पड़े जब्बर डॉढ़ ।।
खासी खोखी अपच उल्टी सर्दी हो या दस्त ।
अस्पताल पहुचे के पहिली झन हो पावय असक्त ।।
निरापद अउ असर कारी , 10 – 20 दवाई हो सरकारी ।
प्राथमिक ऊपचार के खातिर पारा मोहल्ला म एक ल दे दव जिम्मेदारी ।।
जैसे हर जन /चोर के पाछू नइ हो सकय पुलिस इंस्पेक्टर ।
वैसे हर मरीज के पाछू समय म नई हो सकय नर्स डाक्टर ।।
धनसाय यादव

1 टिप्पणी:

  1. पागा कलगी 31 बर टिप्पणी
    1 . जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया के रचना –
    गाँव गवई म जिहा काही सुविधा नाइये तैइसे में सुविधा भोगी सरकारी डा. कइसे गाँव जाही अईसे म आम जनता के दुःख दरद ल कोन हरही . डिग्रीधारी मिलय नही , प्राण ल बचाना हे त सउहत भगवान् कस दुःख ल हरे बर झोला छाप ह आ जाथे. वर्मा जी के कहना वाजिब हे कि डा ह बरोबर गोठियाय तक नही ऐसे में हमर बीमारी ल कहा तमड़ पाही . छंद म सब्द के सुघ्घर मिश्रण करे हे . रचना बड सुघ्घर बन पड़े हे .

    2 ज्ञानुदास मानिकपुरी के रचना –
    समे म जाऊन म आथे उही सच्चा संगी ये . विपत म जउन काम आथे उही भगवान बरोबर . डा झोलाछाप नान मुन बीमारी के इलाज करथे. अतका पैसा के लोभी नई होवय कि पैसा के खातिर ककरो जान से खेल करही . तेकरे सेती बड़े रोग बर सहर के डा मेर ले जाय म ममद करथे . बहुत जगह देखे म मिलथे ये सच्ची बात ल मानिकपुरी जी अपन रचना म पिरो हे, एक सच्चा सेवक कस मरीज मन के सेवा घला करथे . बड तीर ले जनता अउ झोलाछाप के रिश्ता ल देखे अउ महसूस करके रचना गढ़ए हे रचना बढ़िया हे .
    धनसाय यादव

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