शनिवार, 25 जून 2016

पागा कलगी-12/29/ललित वर्मा

बिकास के आरी चलावथे
देखव जिनगी के नारी जुडावथे
अपन डेरा के सिरजन खातिर
चिरई के खोंधरा गिरावथे
कटथे पेंड अउ चीखत हाबय
सुन मूरख इनसान
सुक्खा अकाल ह परत हाबय
काबर गुन पहिचान
महल अटारी बनाये के खातिर
बिनास के बारी बोवावथे
बिकास के आरी चलावथे
देखव जिनगी के नारी जुडावथे
रोवथे चिरई तडफत हाबे
छूटत हे जी परान
अतेक निरदई कईसे होगे
देवता सरिक इनसान
निज-स्वारथ ल साधे खातिर
करम के लेख बिगाडथे
बिकास के आरी चलावथे
देखव जिनगी के नारी जुडावथे
घपटथे परदूसन के बादर
करनी म तोर इनसान
भूख-बिमारी के बाजथे मांदर
नाचथे जम भगवान
परयावरन ल बचाये खातिर
पागाकलगी ह सबला जगावथे
बिकास के आरी चलावथे
देखव जिनगी के नारी जुडावथे
अपन डेरा के सिरजन खातिर
चिरई के खोंधरा गिरावथे
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रचना -ललित वर्मा छुरा गरियाबंद

पागा कलगी-12/28/देव साहू

रो रो के गोहरावत हव
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लहू के हर कतरा ले भिज गे हव
टंगिया ले अब झन मारव मोला
आगास के बादर ले पूछलव
मोला कइसे लइका सरिक पोसे हे
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मउसम ह खुन पसिना ले सिचे हे
माटी तको बरबसी झाडे हे
फुरफुर पुरवाही हवा ले पूछलव
जेन मया के झुलना म झुलाय हे
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हर पल मोर खियाल रखे हे
तभे अंतस ले बिजा मोर जागे हे
तय सुखा ये भुंइया म
रुखराई के एक बगिचा बना लव
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रो रो के गोहरावत हव मितान
मोला जमिन ले झन उखाडव
मेहा हर जिनगी के सांस हरव
मोर मयारु सगी मोला झन काटव
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ए भुंइया के सुग्घर छंइहा
रुखराई चिरइ चिरगुन ले बने हे
फुरफुर पुरवाई के ए हवा
अमरित बन के चलत हे
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हमरे नत्ता हे जम्मो जीव ले
जेन ए भुंइहा म संगी आही
हमरे ले रिस्ता ह मनखे मनखे के
जेन ए भुंइया म संगी जाही
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हवा गरेर ले डारा खांधा टूटगे
जगे जगाए रुख ल चुलहा म झन डारव
रो रो के गोहरावत हव
मोला जमिन ले झन उखाडव
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कतको फल फलहरी ल हमन देथन
तभो ले अजनबी सरिक पडे हन
धरे टंगिया हाथ म हमला ताक झन
जवाब देवव काबर मुरदा सन खडे हन
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हमरे ले सुग्घर जिनगी मिले हे तोला
पारत हव गोहार झन काटव मोला
बुरा नजर मोर उपर म झन डारव
तुहर मया के छंइहा ले झन मारव
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रो रो के गोहरावत हव मितान
मोला भुंइया ले झन उखाडव
मेहा हर जिनगी के सांस हरव
मोर मयारु मितान मोला झन काटव
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कहू जमिन म नई रिही रुख राई
तुहर जिनगी हो जाही एक दिन दुखदाई
तराही तराही मनखे मनखे ल होही
दुनिया म हाहाकार तको मच जाही
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तभे पछताहू तुमन ह गा संगी
हमन एला काबर बिगाडे हन
हमर ले जब घर कुरिया बनथे
दु बखत के भरपेट चाउर चुरथे
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हर घर म खडे किवाड हे
गली गली म रुख लगावव
जम्मो मनखे म आस जगावव
सुग्घर मया के रुख लगावव
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रो रो के गोहरावत हव मितान
मोला भुंइया ले झन उखाडव
मेहा हर जिनगी के सांस हरव
मोर मयारु मितान मोला झन काटव
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देव साहू
गवंइहा संगवारी
कपसदा धरसीवा

पागा कलगी-12/27/सुशील यादव

का नफा नुकसान हे भाई
तुहर अलग भगवान हे भाई
रुख राई ला काट मढ़ाएव
गाव उही पहिचान हे भाई
तरिया पार पीपर हवा में
बर्नी भर अथान हे भाई
चिरइ चिरगुन के बसेरा में
बिहिनिया के अजान हे भाई
एके पेड़ ऐ जनम उगा लो
इहि म जम्मो ज्ञान हे भाई
सुशील यादव 

शुक्रवार, 24 जून 2016

पागा कलगी-12/26/लक्ष्मी करियारे

रूख रई झन काटव ग भइया
एकरे से हमर जिनगानी हे..
पीरा ल समझव चिरई चुरगुन के 
जम्मो के एके कहानी हे...
जिनगी के सब रस सकेले अपन अँचरा मं
मिलथे जीवन एकर एक एक सँथरा मं
लेवय नही कछु हमर से
देते रइथे जइसे राजा दानी हे..
रूख रई झन काटव ग...
कहाँ नाचे मंजूर कहाँ झूम के कोईली गाही
बन ल बचाव नही त सब ये नंदा जाही
हरियर रहय दाई के अँचरा ह
सुआ पाखी लुगरा ये धानी हे..
रूख रई झन काटव ग...
पुरवा घुमर के करिया बादर बलाथे
डारा पाना बन म मया के गीत गाथे
ए ही जीवन के गीत ये संगी
अटकन बटकन मुनि घानी हे..
रूख रई झन काटव ग...
जुरमिल बैर भाव के खचवा ल पाटव
सुघ्घर सुमत के नवा बीझा लगावव
चलव लगाबो पेड भइया
ए ही हमर परवा कुरिया छानी हे..
रूख रई झन काटव ग....
रूख रई झन काटव ग भइया
एकरे से हमर जिनगानी हे..
पीरा ल समझाव चिरई चुरगुन के
जम्मो के एके कहानी हे...
एकरे से हमर जिनगानी हे....
लक्ष्मी करियारे 
जाँजगीर
छत्तीसगढ़
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गुरुवार, 23 जून 2016

पागा कलगी-12/25/महेन्द्र देवांगन माटी

रुख ल झन काटो
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रुख राई ल झन काटो,जिनगी के अधार हरे 
एकर बिना जीव जंतु, अऊ पुरखा हमर नइ तरे 
इही पेड़ ह फल देथे, जेला सब झन खाथन
मिलथे बिटामिन सरीर ल, जिनगी के मजा पाथन
सुक्खा लकड़ी बीने बर , जंगल झाड़ी जाथन
थक जाथन जब रेंगत रेंगत, छांव में सुरताथन
सबो पेड़ ह कटा जाही त, कहां ले छांव पाहू
बढ़ जाही परदूसन ह, कहां ले फल फूल खाहू
चिरई चिरगुन जीव जंतु मन, पेड़ में घर बनाथे
थके हारे घूम के आथे, पेड़ में सब सुरताथे
झन उजारो एकर घर ल, अपन मितान बनावो
सबके जीव बचाये खातिर, एक एक पेड़ लगावो
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रचना
महेन्द्र देवांगन माटी
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला - कबीरधाम (छ ग )
8602407353

पागा कलगी-12/24//आचार्य तोषण

॥चिरई के दरद दुख॥
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चिरई कहिथे मनखे ला
झन काटव गा रूख ला
का तुंहर ले देखे नी जाय
हमर मन के दरद दुख ला
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सुवारथ बर अपन तैहर
जंगल ला उजारत हस
रूख राई म बसे चिरई
जिते जियत तै माराथस
देवतहस हमला दुख त
कहां ले पाबे तै सुख ला
का तुंहर ले देखे नी जाय
हमर मन के दरद दुख ला
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तहूं जीव तइसने हमूं जीव
सबला गढ़य भगवान गा
नइ बन सकस इंसान त
झन बन तै शैतान गा
पाप करेबर छोड़ दे तै
यमराज देखही तोर मुख ला
का तुंहर ले देखे नी जाय
हमर मन के दरद दुख ला
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चिरई कहिथे सुनरे मनखे
जिए के हमला अधिकार हे
जंगल झाड़ी के दाना पानी
इही मा हमर संसार हे
सच्चा मनखे विही हरे
समझे सबके सुख दुख ला
का तुंहर ले देखे नी जाय
हमर मन के दरद दुख ला
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आचार्य तोषण
धनगांव डौंडीलोहारा
बालोद छत्तीसगढ़

पागा कलगी-12 /12/संतोष फरिकार

*झन उजाड़व*
डोगरी पहाड़ परवत के 
पेड़ ल झन काटव गा
नान नान चिरंई चिरगुन के
बसे बसाए घर ल झन उजाड़ गा
मांई नान नान पीला ल धर के काहा जही
पेड़ ह नई रही अपन बर खोधरा काहा बनाही
गरमी के दीन पेड़ लहकत रहिथे
नान नान पीला कतका सुघ्घर चहकत रहिथे
कोनो जगा के पेड़ ल झन काटव
बरसात म एक ठन पेड़ लगावव
चिरंई चिरगुन के जीव ल बचावव
बसे बसाए घर ल झन उजाड़व
जिए के एक बहाना हरय
पेड़ ह जिनगी के सहारा हरय
हवा पानी ले बचे के बहाना हरय
पानी बरसात म लुकाय के सहारा हरय
पेड़ ल झन काटव गा
कखरो घर ल झन उजाड़व गा
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रचना संतोष फरिकार
देवरी भाटापारा
9926113995