शुक्रवार, 24 जून 2016

पागा कलगी-12/26/लक्ष्मी करियारे

रूख रई झन काटव ग भइया
एकरे से हमर जिनगानी हे..
पीरा ल समझव चिरई चुरगुन के 
जम्मो के एके कहानी हे...
जिनगी के सब रस सकेले अपन अँचरा मं
मिलथे जीवन एकर एक एक सँथरा मं
लेवय नही कछु हमर से
देते रइथे जइसे राजा दानी हे..
रूख रई झन काटव ग...
कहाँ नाचे मंजूर कहाँ झूम के कोईली गाही
बन ल बचाव नही त सब ये नंदा जाही
हरियर रहय दाई के अँचरा ह
सुआ पाखी लुगरा ये धानी हे..
रूख रई झन काटव ग...
पुरवा घुमर के करिया बादर बलाथे
डारा पाना बन म मया के गीत गाथे
ए ही जीवन के गीत ये संगी
अटकन बटकन मुनि घानी हे..
रूख रई झन काटव ग...
जुरमिल बैर भाव के खचवा ल पाटव
सुघ्घर सुमत के नवा बीझा लगावव
चलव लगाबो पेड भइया
ए ही हमर परवा कुरिया छानी हे..
रूख रई झन काटव ग....
रूख रई झन काटव ग भइया
एकरे से हमर जिनगानी हे..
पीरा ल समझाव चिरई चुरगुन के
जम्मो के एके कहानी हे...
एकरे से हमर जिनगानी हे....
लक्ष्मी करियारे 
जाँजगीर
छत्तीसगढ़
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गुरुवार, 23 जून 2016

पागा कलगी-12/25/महेन्द्र देवांगन माटी

रुख ल झन काटो
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रुख राई ल झन काटो,जिनगी के अधार हरे 
एकर बिना जीव जंतु, अऊ पुरखा हमर नइ तरे 
इही पेड़ ह फल देथे, जेला सब झन खाथन
मिलथे बिटामिन सरीर ल, जिनगी के मजा पाथन
सुक्खा लकड़ी बीने बर , जंगल झाड़ी जाथन
थक जाथन जब रेंगत रेंगत, छांव में सुरताथन
सबो पेड़ ह कटा जाही त, कहां ले छांव पाहू
बढ़ जाही परदूसन ह, कहां ले फल फूल खाहू
चिरई चिरगुन जीव जंतु मन, पेड़ में घर बनाथे
थके हारे घूम के आथे, पेड़ में सब सुरताथे
झन उजारो एकर घर ल, अपन मितान बनावो
सबके जीव बचाये खातिर, एक एक पेड़ लगावो
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रचना
महेन्द्र देवांगन माटी
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला - कबीरधाम (छ ग )
8602407353

पागा कलगी-12/24//आचार्य तोषण

॥चिरई के दरद दुख॥
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चिरई कहिथे मनखे ला
झन काटव गा रूख ला
का तुंहर ले देखे नी जाय
हमर मन के दरद दुख ला
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सुवारथ बर अपन तैहर
जंगल ला उजारत हस
रूख राई म बसे चिरई
जिते जियत तै माराथस
देवतहस हमला दुख त
कहां ले पाबे तै सुख ला
का तुंहर ले देखे नी जाय
हमर मन के दरद दुख ला
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तहूं जीव तइसने हमूं जीव
सबला गढ़य भगवान गा
नइ बन सकस इंसान त
झन बन तै शैतान गा
पाप करेबर छोड़ दे तै
यमराज देखही तोर मुख ला
का तुंहर ले देखे नी जाय
हमर मन के दरद दुख ला
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चिरई कहिथे सुनरे मनखे
जिए के हमला अधिकार हे
जंगल झाड़ी के दाना पानी
इही मा हमर संसार हे
सच्चा मनखे विही हरे
समझे सबके सुख दुख ला
का तुंहर ले देखे नी जाय
हमर मन के दरद दुख ला
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आचार्य तोषण
धनगांव डौंडीलोहारा
बालोद छत्तीसगढ़

पागा कलगी-12 /12/संतोष फरिकार

*झन उजाड़व*
डोगरी पहाड़ परवत के 
पेड़ ल झन काटव गा
नान नान चिरंई चिरगुन के
बसे बसाए घर ल झन उजाड़ गा
मांई नान नान पीला ल धर के काहा जही
पेड़ ह नई रही अपन बर खोधरा काहा बनाही
गरमी के दीन पेड़ लहकत रहिथे
नान नान पीला कतका सुघ्घर चहकत रहिथे
कोनो जगा के पेड़ ल झन काटव
बरसात म एक ठन पेड़ लगावव
चिरंई चिरगुन के जीव ल बचावव
बसे बसाए घर ल झन उजाड़व
जिए के एक बहाना हरय
पेड़ ह जिनगी के सहारा हरय
हवा पानी ले बचे के बहाना हरय
पानी बरसात म लुकाय के सहारा हरय
पेड़ ल झन काटव गा
कखरो घर ल झन उजाड़व गा
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रचना संतोष फरिकार
देवरी भाटापारा
9926113995

पागा कलगी-12/23/कन्हैया साहू "अमित"

आवव,
परकीति के पयलगी पखार लन।
धरती ल चुकचुक ले सिंगार दन।
परकीति के पयलगी पखार लन।।
धरती ल चुकचुक ले सिंगार दन।।।
रुख-राई फूल-फल देथे,
सुख-सांति सकल सहेजे।
सरी संसार सवारथ के,,
परमारथ असल देते।।
धरती के दुलरवा ला दुलार लन।
जीयत जागत जतन जोहार लन।।
परकीति के पयलगी पखार लन।।१
रुख-राई संग संगवारी,
जग बर बङ उपकारी।
अन-जल के भंडार भरै,
बसंदर के बने अटारी।।
मत कभु टंगिया,आरी,कटार बन।
घर कुरिया ल कखरो उजार झन।।
धरती ल चुकचुक ले सिंगार दन।।२
रुख-राई ल देख बादर,
बरसथे भुइंया आगर।
बिन जल जग जल जाही,
देवधामी जस हे आदर।।
संरक्छन के सुग्घर संसार दन।
परियावरन के तैं रखवार बन।।
परकीति के पयलगी पखार लन।।३
रुख-राई ल बचाव संगी,
पेङ परिहा बनाव संगी।
चिहुर चिरई चिरगुन,
सिरतोन सिरजाव संगी।।
बिनास ल बेवहार म उतार झन।
पर हित 'अमित' पालनहार बन।।
धरती ल चुकचुक ले सिंगार दन।।४
परकीति के पयलगी पखार लन।।।।
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@ v @
हथनीपारा~भाटापारा
जिला~बलौदाबाजार (छग)
पिनकोड~493118
संपर्क~9753322055
WAP~9200252055
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@ लगाव रुख~कमाव सुख@

बुधवार, 22 जून 2016

पागा कलगी-12/22/अमित चन्द्रवंशी"सुपा"

का होंगे आज मनखे मन ला दुनिया ला बरबाद करे बर तुले हवय,
दुनिया ला उजाड़े बर पेड़ पौधा ला काटे बर मनखे मन तुले हवय।
पेड़ ही नई होहिय ता शुद्ध-शुद्ध ताजा-ताजा वायु कहा ले पहु,
दुनिया मा जीना हवय ता पड़े पौधा ला कटाव नही ओला उगहु।।
उजड़त हवय जंगल हा जमीन होवत हवय रुखासुखा,
उजड़त हवय जंगल हा पशु पक्षी दुनिया ले जावत हवय।
पानी सुखागे पेड़ झाड़ हा दुःखे बरोबर दिखात हवय,
पर्यावरण ला बरबाद करे बर मनखे मन तुले हवय।।
कबहु-कबहु जंगल मा आगी लगथे,
पुरा पशु-पक्षी मन जल के मर जाथे।
का होंगे मनखे मन ला पेड़ ला कटथे,
ट्रेन दौड़ाय बर जंगल ला उजड़त हे।।
वर्षो बाद जंगल धरती में धस के नवा-नवा कोयला देथे,
कबहु-कबहु प्रकृतिक आपदा ले जंगल ह बचावत हवय।
हर साल नवा-नवा फूल-फल सुन्दर हवा देवत हवय,
तभो मनखे मन दुनिया ला उजड़े बर पेड़ काटत हवय।।
-अमित चन्द्रवंशी"सुपा"
रामनगर कवर्धा
8085686829

पागा कलगी-12/21/चोवाराम वर्मा

"झन काटव पगला"
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झन काटव पगला रुख राई ल
कलपावव मत धरती दाई ल।
रुख राई,जंगल झाड़ी म
जीव जन्तु के बसेरा हे।
सुवा,मैना,पड़की,कठखोलवा
नाना पंछी के डेरा हे।
बड़ मयारू होथे बिरवा
दाई ददा कस कोरा हे।
समझावव बहिनी भाई ल।
झन काटव पगला रुख राईल
देख तो नान नान पिलवा,
कइसन छटपटावत हे।
तोर चलाये आरा आरी
चिर करेजा खावत हे।
बिन छंईहाँ घाम पियास म
कतको झन मर जावत हे।
करम के फल भुगते ल परही
तोर पाप घईला भरावत हे।
सरग म बईठे चन्द्रगुप्त ह
घाटे घाटा चढ़ावत हे।
झन खन गिरे बर खाई ल।
झन काटव पगला रुख राई ल
नई रइहि जंगल झाड़ी
हवा बिना मर जाबे।
बंजर हो जहि भुँइया के कोंख
अन्न पानी कंहाँ ले पाबे।
डार के चुके बेंदरा कस
मुड़ धर पाछू पछताबे ।
अपने टंगिया म अपने गोड़ ल
काट रोबे चिल्लाबे।
झन रिसवावव"बादल"भाईल
(रचनाकार---चोवाराम वर्मा "बादल"ग्राम पोस्ट हथबंध )