बुधवार, 22 जून 2016

पागा कलगी-12/21/चोवाराम वर्मा

"झन काटव पगला"
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झन काटव पगला रुख राई ल
कलपावव मत धरती दाई ल।
रुख राई,जंगल झाड़ी म
जीव जन्तु के बसेरा हे।
सुवा,मैना,पड़की,कठखोलवा
नाना पंछी के डेरा हे।
बड़ मयारू होथे बिरवा
दाई ददा कस कोरा हे।
समझावव बहिनी भाई ल।
झन काटव पगला रुख राईल
देख तो नान नान पिलवा,
कइसन छटपटावत हे।
तोर चलाये आरा आरी
चिर करेजा खावत हे।
बिन छंईहाँ घाम पियास म
कतको झन मर जावत हे।
करम के फल भुगते ल परही
तोर पाप घईला भरावत हे।
सरग म बईठे चन्द्रगुप्त ह
घाटे घाटा चढ़ावत हे।
झन खन गिरे बर खाई ल।
झन काटव पगला रुख राई ल
नई रइहि जंगल झाड़ी
हवा बिना मर जाबे।
बंजर हो जहि भुँइया के कोंख
अन्न पानी कंहाँ ले पाबे।
डार के चुके बेंदरा कस
मुड़ धर पाछू पछताबे ।
अपने टंगिया म अपने गोड़ ल
काट रोबे चिल्लाबे।
झन रिसवावव"बादल"भाईल
(रचनाकार---चोवाराम वर्मा "बादल"ग्राम पोस्ट हथबंध )

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