बुधवार, 22 मार्च 2017

पागा कलगी-29//2//तोषण कुमार चुरेन्द्र

होली हे
पुरब पसचिम उत्तर म, ढंग के मनइस ग होली 
छत्तीसगढ के दकछिन म, जब चले दनादन गोली
घर खात रेहेन रोटी पीठा, जवान खावत रिहिन गोली
रंग बिरंग गुलाल लगाएंन त, मांथ लगाए लाल रोली
कुरबानी ऊँखर बिरथा मत होए, एखर करव जतन
गोहार थोरकिन सुन लेतेव ,परदेस के मुखिया रमन
काखरो भिंजे कपडा लत्ता, काखरो भिंजे चोली हे
जम्मो दु:ख ल भुलाके काहत हों,संगी मन ला होली हे.
तोषण कुमार चुरेन्द्र
९६१७५८९६६७

पागा कलगी-29//1//जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

विषय मा छोटकन प्रयास--
💐💐होली हे(गीत)💐💐
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महकत रंधनी खोली हे।
मुँह मा मीठ मीठ बोली हे।
फागुन मस्त महिना आये,
नाचो - गावो होली हे।
नेवता हेवे झारा - झारा।
सइमो - सइमो करै पारा।
बाजत हवे ढोल नँगाड़ा।
नाचत हे भांटो अउ सारा।
अंग मा रंग,रचे हे भारी।
दिखै लाली पिंवरी कारी।
अबीर माड़े भर-भर थारी।
सर्राये मारे पिचकारी।
घूम - घूम के रंग रंगे,
लइका-सियान के टोली हे।
झरे मउर,धरे आमा फर।
धरे राग,कोइली गाये बड़।
उल्हवा दिखे,डारा - पाना।
चना गंहू धरे हे दाना।
चार तेंदू लिटलिट फरे।
रहि - रहि मउहा झरे।
बोइर अमली झूले डार मा।
सेम्हर परसा फूले खार मा।
घर - दुवार, गली - खोर,
नाचत डोंगरी डोली हे।
बरजे बाबू, बोले सियान।
नइ देत हे,कोनो धियान।
मगन होगे नाचत हे।
दया - मया बाँटत हे।
होरी देय संदेस सत के।
मया रंग मा, रबे रचके।
परसा सेम्हर आमा लचके।
दुल्हिन कस खड़े हे सजके।
मया रंग रचे लाली- हँरियर,
धरती दाई के ओली हे।
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981442795

पागा कलगी 27 के परिणाम


फरवरी के पहिली पखवाड़ा म ‘बसंत‘ विषय म प्रतियोगिता होइस । जेमा कुल 7 रचना आइस । ये आयोजन के निर्णायक श्रीमती शकंतला तरार रहिन । तरारजी के अनुसार-‘‘हर प्रतिभागी के रचना ह सुघ्घर हे । नाममात्र सुधार के बाद श्रेष्ठ रचना बन जाही । उनकर सामान्य गलती लय टूटना, गलत तुकान्त, तुकान्तता के अभाव, शब्द के मात्रा बिगाड़ के लिखना हे ।‘‘ प्रतियोगिता म बिना गलती या सबसे कम गलती वाले रचना ल चुने जाथे । ये आधार म ये प्रतियोगिता के परिणाम ये प्रकार हे-
पहिली विजेता- श्रीमती आशा देशमुख
दूसर विजेता- श्री ज्ञानु दास देशमुख

दूनों विजेता मंच के तरफ ले  अंतस ले बधाई, सबो प्रतिभागी मन के आभार ।

संयोजक
छत्तीसगढ़ी साहित्य मंच



शनिवार, 4 मार्च 2017

पागा कलगी -28 //6//ज्ञानु'दास' मानिकपुरी

जइसे कटगे हमर पाँखी देना।
वाह रे बेटा तय लमसेना।
1-मोर चारी चुगली होवत हे गली खोर।
बिहनिया ले संझा सुन लेवत हव बटोर।
कतको मोला ताना मारे,कतको गारी देथे
कतको सुनाथे एला लाज नइये थोर।
जइसे खाय ला परथे इही मनला देना।
वाह रे बेटा तय लमसेना।
2-मोरो दाई ददा हे,मोरों घर द्वार हे।
थोडा बहुत हावय घला खेतीखार हे।
संगमा पढ़त लिखत होंगे आँखी चार
मय का जानव एखर अइसन पियार हे।
मोर बर का रोना अउ हँसना।
वाह रे बेटा तय लमसेना।
3-मोर अंतस के पीरा कोन ला बतावव।
मोर जिनगी के कथा कोन ला सुनावव।
का मय अइसन गुनाह कर डारेव 'ज्ञानु'
नदी मा रहिके कइसे मगर ले दुश्मनी निभावव।
होगेव जइसे मय पोसवा परेवना।
वाह रे बेटा तय लमसेना।
ज्ञानु'दास' मानिकपुरी
चंदेनी कवर्धा

पागा कलगी -28//5//ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*

विषय - लमसेना
विधा - तुकबंदी
*लमसेना*
बनके जी मैं लमसेना।
थोपत हँवव गोबर छेना।।
सोचे रहेंव खूब मजा पाहूँ,
सुखे सुख म जिनगी पहाहूँ,
फेर धंधागेव पिंजरा कस मैना।
बनके जी मैं लमसेना।
थोपत हँवव गोबर छेना।।
सोचेंव कथरी ओढ़ घीव खाहूँ,
सास ससुर के गुन ल गाहूँ।
फेर मैं अढ़हा का जानव संगी,
कि सुवारी के गोड़ ल दबाहूँ।।
रात दिन रोवावत हे फूलकैना
बनके जी मैं लमसेना।
थोपत हँवव गोबर छेना।।
सारी नइ हे न सारा नइ हे,
दुख पीरा के सुनइया नइ हे।
घुट घुट के जिनगी जीयत हँव ,
आँसू के कोनो पोछइया नइ हे।
छूटगे दाई ददा से लेना देना।
बनके जी मैं लमसेना।
थोपत हँवव गोबर छेना।।
मोह माया म मैं ह धंधायेंव,
घानी कस बइला मैं ह पेरायेंव।
गंगू तेली हवय मोर ससुरार,
अठ्ठनी रुपया बर मैं लुलवायेंव।।
सुवारी बुलावय खींच के डेना।
बनके जी मैं लमसेना।
थोपत हँवव गोबर छेना।।
ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*
बिलासपुर -8889747888

पागा कलगी -28 //4//चोवा राम " बादल"

लमसेना (आल्हा छंद में)
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पाँच साल बर मँय लमसेना, हावँव भाई गोंड़ गरीब।
पानी रहिके प्यासा रहिथँव, अइसे हावय मोर नसीब।।1।।
हालत मोर समझ लव संगी,खेत ससुर के करथँव काम।
जोता थँव बइला भँइसा कस, नइये आठों पहर अराम ।।2।।
दिन भर मोर परीक्षा होथे, जाँचत रहिथे दाई सास।
नम्बर कोनो नइ देखावय, पता नहीं कब होहूँ पास ।।3।।
मँय तो अभी कहे भर के हँव, पाछू बनहूँ असल दमाँद ।
मन चातक के प्यास बुझाही, उही शरद पुन्नी के चाँद ।।4।।
पढ़े लिखे तो नइ अन संगी, जुन्ना हमरो रीत रिवाज।
लमसेना बस्तर के घोंटुल, पुरखौती मानत हन आज।।5।।
नारी के हम इज्जत करथन, होथे नारी हमर सियान।
का अच्छा का गिनहा होथे, नइये हमला जादा ग्यान ।।6।।
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चोवा राम " बादल"
हथबंद
23/02/2017

पागा कलगी -28//3//जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"

दोहा(लमसेना)
1
बेटा के जी आस में,बढ़ जाये परिवार।
बोहे लमसेना घलो,सास ससुर के भार।
2
बेटी के दाई ददा, सेवा बर लुलवाय।
लमसेना हर हाल के,एक आसरा ताय।
3
लमसेना के रीत ला, पुरखा हवे बनाय।
जेखर बेटा नइ रहय,वो लमसेना लाय।
4
छोटे रख परिवार ला,बेटा बेटी काय?
बेटी पा झन दुख मना,घर लमसेना आय।
5
बस बेटी भर के बिदा, हमर हरे का रीत?
कखरो जिनगी सुख बिना,जाये जी झन बीत।
6
बाबू पथरा लाद के,बेटी करे पराय।
उसने बेटा के ददा,लमसेना ल पठाय।
7
दाई बाबू झन छुटय, झन जाबे तैं भूल।
बनके लमसेना रबे,दूनो कुलबर फूल।
8
लमसेना बन बेटवा, बेटी के घर जाय।
करम करय घर जान के,जग में नाम कमाय।
9
बेटी बर हे दू ठिहा,मइके अउ ससुरार।
बेटी कस बेटा घलो,सबके बने अधार।
10
बेटी परघर जाय के,लेवय सबला जीत।
बेटा लमसेना बनय, बढ़े मया अउ मीत।
11
सेवा बर जाये भले,कखरो धन झन गने।
लमसेना लालच करे, नोहे एहा बने।
12
लमसेना ला लेय के, होवे कतको बात।
पइसा वाला पाय के,लालच मा हे जात।
13
जतका ठिन भेजा हवे,ततका ठिन हे गोठ।
बेटी कस सेवा बजा,नाम काम कर पोठ।
जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981442795