शनिवार, 4 मार्च 2017

पागा कलगी -28 //4//चोवा राम " बादल"

लमसेना (आल्हा छंद में)
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पाँच साल बर मँय लमसेना, हावँव भाई गोंड़ गरीब।
पानी रहिके प्यासा रहिथँव, अइसे हावय मोर नसीब।।1।।
हालत मोर समझ लव संगी,खेत ससुर के करथँव काम।
जोता थँव बइला भँइसा कस, नइये आठों पहर अराम ।।2।।
दिन भर मोर परीक्षा होथे, जाँचत रहिथे दाई सास।
नम्बर कोनो नइ देखावय, पता नहीं कब होहूँ पास ।।3।।
मँय तो अभी कहे भर के हँव, पाछू बनहूँ असल दमाँद ।
मन चातक के प्यास बुझाही, उही शरद पुन्नी के चाँद ।।4।।
पढ़े लिखे तो नइ अन संगी, जुन्ना हमरो रीत रिवाज।
लमसेना बस्तर के घोंटुल, पुरखौती मानत हन आज।।5।।
नारी के हम इज्जत करथन, होथे नारी हमर सियान।
का अच्छा का गिनहा होथे, नइये हमला जादा ग्यान ।।6।।
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चोवा राम " बादल"
हथबंद
23/02/2017

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