शनिवार, 4 मार्च 2017

पागा कलगी -28//5//ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*

विषय - लमसेना
विधा - तुकबंदी
*लमसेना*
बनके जी मैं लमसेना।
थोपत हँवव गोबर छेना।।
सोचे रहेंव खूब मजा पाहूँ,
सुखे सुख म जिनगी पहाहूँ,
फेर धंधागेव पिंजरा कस मैना।
बनके जी मैं लमसेना।
थोपत हँवव गोबर छेना।।
सोचेंव कथरी ओढ़ घीव खाहूँ,
सास ससुर के गुन ल गाहूँ।
फेर मैं अढ़हा का जानव संगी,
कि सुवारी के गोड़ ल दबाहूँ।।
रात दिन रोवावत हे फूलकैना
बनके जी मैं लमसेना।
थोपत हँवव गोबर छेना।।
सारी नइ हे न सारा नइ हे,
दुख पीरा के सुनइया नइ हे।
घुट घुट के जिनगी जीयत हँव ,
आँसू के कोनो पोछइया नइ हे।
छूटगे दाई ददा से लेना देना।
बनके जी मैं लमसेना।
थोपत हँवव गोबर छेना।।
मोह माया म मैं ह धंधायेंव,
घानी कस बइला मैं ह पेरायेंव।
गंगू तेली हवय मोर ससुरार,
अठ्ठनी रुपया बर मैं लुलवायेंव।।
सुवारी बुलावय खींच के डेना।
बनके जी मैं लमसेना।
थोपत हँवव गोबर छेना।।
ईंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*
बिलासपुर -8889747888

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