सोमवार, 12 जून 2017

पागा कलगी -34//3//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

गीतिका छंद(जोरा खेती किसानी के)
उठ बिहनिया काम करके,सोझियाबों खेत ला।
कोड़ खंती मेड़ रचबों, पालबों तब पेट ला।
धान होही खेत भीतर,मेड़ मा राहेर जी।
सोन उपजाबोन मिलके,रोज जाँगर पेर जी।
हे किसानी के समय अब,काम ला झट टारबों।
बड़ झरे काँटा झिटी हे,गाँज बिन बिन बारबों।
काँद दूबी हे उगे चल,खेत ला चतवारबों।
जोर के गाड़ा म खातू,खार मा डोहारबों।
काम ला करबोंन डँटके,साँझ अउ मुँधियार ले।
संग मा रहिबोन हरदम,हे मितानी खार ले।
रोज बासी पेज धरके,काम करबों खेत मा।
हे बचे बूता अबड़ गा, काम बइठे चेत मा।
रूख बँभरी के तरी मा,घर असन डेरा हवे।
ए मुड़ा ले ओ मुड़ा बस,मोर बड़ फेरा हवे।
हाथ धर रापा कुदारी,मेड़ के मुँह बाँधबों।
आय पानी रझरझा रझ,फेर नांगर फाँदबों।
जेठ हा बुलकत हवे अब,आत हे आसाड़ हा।
हे चले गर्रा गरेरा ,डोलथे बड़ डार हा।
अब उले दर्रा सबो हा,भर जही जी खेत के।
झट सुनाही ओह तोतो,हे अगोरा नेत के।
धान बोये बर नवा मैं,हँव बिसाये टोकरी।
खेत बर बड़ संग धरथे, मोर नान्हें छोकरी।
कोड़हूँ टोकॉन कहिथे,भात खाहूँ मेड़ मा।
तान चिरई के सुहाथे ,गात रहिथे पेड़ मा।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)

पागा कलगी -34 //2//ज्ञानु'दास' मानिकपुरी

विषय-खेती किसानी के करले तइयारी
विधा-दोहा-चौपाई मा लिखे के प्रयास
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चिंता मा परगे ददा,आवत देख अषाढ़।
भिड़े हवे दिनरात जी,बूता के हे बाढ़।।
फेंकत हावै खातू कचरा।
पाटतँ हावय डिपरा डबरा।।
काँटा खूँटी बीनत हावै।
छानी परवाँ ला जी छावै।।
नाँगर बख्खर साजत हावै।
जुड़ा नवाँ अउ डाँड़ी लावै।।
लेवत हावै नहना जोता।
सौचै आसो करहूँ बोता।।
बइला हवै एक मरखण्डा।
देखत चमके लउड़ी डण्डा।।
मुश्किल मा होथे जी काबू।
लान पकड़ के बाँधे बाबू।।
करिया धवरा जोड़ी साजे।
दिनभर उंखर बूता बाजे।।
पैरा भूसा काँदी खावै।
पानी पी पी खूब कमावै।।
नाँगर बोहे खाँध मा,धरे तुतारी हाथ।
बाखा चरिहा हा दबे,बइला जावै साथ।।
धान बीजहा आनी बानी।
सिटिर सिटिर जी गिरथे पानी।।
सुग्घर चलत हवै पुरवाई।
करे बाँट बूता मिल भाई।।
कोनो नाँगर हावै फाँदे।
कोनो मेढ़पार ला चाँदे।।
कोनो सींचत हावै खातू।
धान बोय जी कका बरातू।।
बड़े ददा के गोठ सियानी।
नइये काही के अभिमानी।।
एके लउड़ी हाँके सबला।
हाट बजार घुमावँय हमला।।
दाई बासी धरके जावै।
बइठ मेढ़ सब मिलके खावै।।
काकी घरके बूता करथे।
कोदो ल बड़े दाई छरथे।।
सुनता अड़बड़ हे इखर,धरे हाथ मा हाथ।
दुख पीरा रहिथे सहत,मिलके हावै साथ।।
🙏🙏🙏
ज्ञानु'दास' मानिकपुरी
चंदेनी कवर्धा

पागा कलगी -34//1//बालक "निर्मोही

*घनक्छरी छ्न्द*
🌴🌴🌷🌷🌷🌴🌴
जाग न रे बेटा जाग भाग न रे बेरा संग,
करे बर तोर बेटा अबड़ बियारी हे।
नांगर बाखर ल तो सुघर जतन कर,
मन म सरेख ले न कति ब तूतारी हे।
खातू माटी बिजहा के कर ले जुगाड़ बेटा,
खेती अउ किसानी के करना तियारी हे।
पाछु झन रबे तैहा, बादर निहोरै नहीं,
आघू बरकत बेटा पाछु सँगवारी हे।
🌴 *बालक "निर्मोही"*🌴
🌷🌷बिलासपुर🌷🌷

बुधवार, 17 मई 2017

पागा कलगी -33//9//ज्ञानु'दास' मानिकपुरी

कुंडली छंद-देश बर जीबो मरबो
मरना जीना देश बर,करो देश हित काम।
छोड़व स्वारथ के करम,हौवे जग मा नाम।।
हौवे जग मा नाम,देश के सेवा करबो।
बैर कपट ला छोड़,दुःख पीरा ला हरबो।।
जात पाँत ला छोड़,संगमा सबके रहना।
छोड़ राग अउ द्वेष,देश बर जीना मरना।।
ज्ञानु'दास' मानिकपुरी
चंदेनी कवर्धा

पागा कलगी -33 //8//पारितोष धीरेन्द्र

देश के खातिर जीबो
सत सतकरम सुमति के संगी
रद्दा नावा गढ़वइबो !
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो !!
चिचियावत रहे ले बन्दे मातरम
का जन गण मन म उमंग होही !
भाई भाई के बइरी बने हे
कइसे उच्छल जलधि तरंग होही!!
माँ भारती के अँचरा म
रंग पिरीत के भरवइबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो
कुलुप अंधियारी अत्याचार के
घनघोर घटा घोपाये हे
बैरी बिजुरिया अनाचार के
लहक दहक डरवाये हे
चिर हरइया दुश्शासन के
जंघा फेर टोरवईबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो
गरीबी के गोड़हत्थी चुरोके
जात पात के दशकरम कराना हे
छुवाछुत के मइल ल धोके
प्रेम जल म समाज फरियाना हे
गरभ गुमान ल पिण्डा दे के
नावा बिहान करवईबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो
ठूड़गा रूखवा बमरी म
सहिष्णुता के खोंधरा सजाना हे
सोन चिरइया माँ भारती ब
रामराज के मकुट सिरजाना हे
सोनहा धान के सोनहा बाली कस
घर घर म मया बगरईबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो
धधकत हे अगियन छतीयन म
तन मन म भूरी गुंगवावत हे
कोरा के लइका बन नक्सली
उधमा धुर उधम मचावत हे
बन्दुक संदूक छीन छान के
हल अउ कलम धरईबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो
गोख्खी बैरी परोसी अपन
समरथ थोरको नई जानत हे
बाप होथे बाप रे गधहा
ये बात थोरको नई मानत हे
चेमचाली करत करत म बेटा
लाहौर म तिरंगा फहरईबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो 

-पारितोष धीरेन्द्र

पागा कलगी -33//7//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

देस के खातिर जीबों
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भाई चारा बाँटबों।
सुनता के डोरी आँटबों।
खोधरा खाई पाटबों।
इरसा द्वेस ला काटबों।
दुख पीरा ला छीबों।
देस के खातिर जीबों।
आँखी बइरी के फोड़बों।
हाड़ा गोड़ा ला टोरबों।
बइरी के गुमान लेस के।
कहलाबों रखवार देस के।
देस बर बिस घलो पीबों।
देस के खातिर जीबों।
जात पात ला छोड़ के।
मया ममता ला ओढ़ के।
देस के मान खातिर।
मोह नइहे जान खातिर।
जय जय भारत कीबों।
देस के खातिर जीबों।
हिमालय मा चढ़के।
माथ मा धूर्रा मढ़के।
सागर समुंद तँउर के।
रखबों लाज मँउर के।
भारत वासी एक रीबों।
देस के खातिर जीबों ।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको( कोरबा)
9981441795

पागा कलगी -33//6//लक्ष्मी नारायण लहरे

देश के खातिर जीबो .....
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अब जगव ग मोर देश के जवान
देश के खातिर जोबो संगी देश खातिर मरबो
हमर भूईंया के कण कण म बसे हावे प्रान
वन्दे मातरम
जय जवान जय किसान
जय हिन्द के नारा ल लगाबो
छोटे बड़े सबो ल गले लगाबो
जुर मिलके संगी खलिहान म अन्न उपजाबो
मनखे संग भेद भाव हमन झन रखी
सबो धरम के आदरो करी
उंच नीच ल छोड़ी
जुर मिलके साथ चली
सुमंगल होही हामरो
माता पिता के आदर करी
नारी के सम्मान
नोनी बाबू ल पढाके बना दी दयावान
लन लबारी मन म झिन राखो
सुन ल संगवारी ...
ये दुनिया म चार दिन के हे जिंदगानी
सुख दुःख म हंसो रे संगी देश म हे हमर भागीदारी
चलव सुनता के दिया ल जलाबो
पढ़ लिखे हमन संगी देश का नाम जगाबो
एक दुसर के सुख दुःख म अपन हाथ बटाबो ..
अब जगव ग मोर देश के जवान
देश के खातिर जोबो संगी देश खातिर मरबो ...
० लक्ष्मी नारायण लहरे ,साहिल , कोसीर सारंगढ़