बुधवार, 17 मई 2017

पागा कलगी -33 //8//पारितोष धीरेन्द्र

देश के खातिर जीबो
सत सतकरम सुमति के संगी
रद्दा नावा गढ़वइबो !
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो !!
चिचियावत रहे ले बन्दे मातरम
का जन गण मन म उमंग होही !
भाई भाई के बइरी बने हे
कइसे उच्छल जलधि तरंग होही!!
माँ भारती के अँचरा म
रंग पिरीत के भरवइबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो
कुलुप अंधियारी अत्याचार के
घनघोर घटा घोपाये हे
बैरी बिजुरिया अनाचार के
लहक दहक डरवाये हे
चिर हरइया दुश्शासन के
जंघा फेर टोरवईबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो
गरीबी के गोड़हत्थी चुरोके
जात पात के दशकरम कराना हे
छुवाछुत के मइल ल धोके
प्रेम जल म समाज फरियाना हे
गरभ गुमान ल पिण्डा दे के
नावा बिहान करवईबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो
ठूड़गा रूखवा बमरी म
सहिष्णुता के खोंधरा सजाना हे
सोन चिरइया माँ भारती ब
रामराज के मकुट सिरजाना हे
सोनहा धान के सोनहा बाली कस
घर घर म मया बगरईबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो
धधकत हे अगियन छतीयन म
तन मन म भूरी गुंगवावत हे
कोरा के लइका बन नक्सली
उधमा धुर उधम मचावत हे
बन्दुक संदूक छीन छान के
हल अउ कलम धरईबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो
गोख्खी बैरी परोसी अपन
समरथ थोरको नई जानत हे
बाप होथे बाप रे गधहा
ये बात थोरको नई मानत हे
चेमचाली करत करत म बेटा
लाहौर म तिरंगा फहरईबो
चाहे छूटय परान हमर
पर देश के खातिर जीबो 

-पारितोष धीरेन्द्र

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