रविवार, 15 जनवरी 2017

पागा कलगी -25 //5//दिलीप कुमार वर्मा

विषय--छेरछेरा
विधा--उल्लाला छंद
बड़े बिहानी उठ चलौ,संगी साथी से मिलौ। 
झोला धर के हाँथ मा,गाजा बाजा साथ मा।
चला छेरछेरा कुटे,संगी साथी सब जुटे।
हाँथ म झोला धर चला,धर ले टुकनी ला घला।
गली गली चिल्लाव रे,घर-घर हूत कराव रे।
छेरिक छेरा शोर हे,दानी बइठे खोर हे।
टुकना धर के धान जी,दानी होय महान जी।
पसर पसर ओ देत हे,लेने वाला लेत हे।
एक बछर मा आय जी,कतको धान बटाय जी।
लइका मन चिल्लाय जी,दान धान के पाय जी।
लइका रेंगत नइ थके,दादी दादा मन तके।
खेलत कूदत आत हे,झोला भर के जात हे।
झोला भर गे पेक जी,जल्दी येला बेच जी।
पुन्नी मेला जाय के,आबो खउ ला खाय के।
पइसा जतका हे मिले,मेला जाके मन खिले।
आनी बानी खात हे,अड़बड़ मजा उड़ात हे।
घूमत हाबय संग मा,मिले ख़ुशी के रंग मा।
संग म बइठे खात हे,संझा के घर आत हे।
दिलीप कुमार वर्मा
बलौदा बाज़ार

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