रविवार, 15 जनवरी 2017

पागा कलगी -25//1//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"

विषय:-- छेरछेरा
विधा:-- छंद
पुस पुन्नी परब छेरछेरा,
कुलकत प्रानी अउ रुख हे।
झुम झुमके नाचे गाये बर,
सँघरा सजे दु:ख सुख हे।
दइयत देवे खातिर भुइँया,
सुनाईन अपन परन ला।
कहिन घोर्रीयाय झन बैठौ,
अबतो अरपौ अन धन ला।
महिनत के मुँह झन मुरझावै,
कभु बिछा जवै झन सपना।
मुँहु के बाना मार काकरो,
झोंकहु झन हाय कलपना।
मै महतारी जम्मो झन के,
सब मोरे संतान हरौ।
भाई बांटा बांट खोंट के,
सबके कोठी धान धरौ।
मनभावन माई के बोली,
सब झन ला सुहाईस हे।
कोठी के धान हेर हेरा,
छेरछेरा आईस हे।
भात पेज मा पेट भरे सब,
उछाह चँहु खुंट बगरगे।
मेला भरगे चगन-मगन मन,
अंग अंग अबड़ लहर गे।
पुस पुन्नी अँजोरी पाख मा,
अँजोर चहुँ ओर पसर थे।
समरसता धरे छेर-छेरा,
के पबरीत परब परथे।
रचना:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"
गोरखपुर,कवर्धा
11/01/2017
9685216602

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें