रविवार, 3 जनवरी 2016

"छत्तीसगढ के पागा" क्र 3/ चित्र अधारित


ये प्रतियोगिता मा संलगन चित्र दे गे रहिस जेमा रचनाकार भाई मन अपन रचना रखिन-
1 मिलन मलहरिया
"छत्तीसगढ के पागा" क्र0.3
छत्तीसगढी कविता के प्रतियोगिता
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चला रे संगी चला रे साथी
घरोघर बहरी निकालबो रे
गाँव गलि ल सुवक्छ बहारके
छत्तीसगढ़ ल महकाबो रे
महतारी के ओनहा चिखलागे
खचवा डबरा ल पाटबो रे
जूरमिल सुवक्छ्ता गीत गाबो रे
चला रे संगी ....................
जोंगईया सबो करईया हे कोन
नेता बस बहरी धरईया रे
अधिकारी पाछू चलईया संगी
मिलजूल फोटू खिचवईया रे
आवत जावत देखावा करथे
कोनो नई हावय करईया रे
अपन गलि-घर खूद जतनबो रे
चला रे संगी .......................
हमी ल हे रहना गाँव-शहर म
त हमीच ल हावय सजाना रे
आवा निकला घरघर ले संगी
सफाई अभयान ढोल बजावा रे
सबो जघा ल सुघ्घर चमकाके
छत्तीसगढ़ ल सरग बनाबो रे
सुवक्छता नारा मन म बसाबो रे
चला रे संगी ...........................
कचरा—कुबुध्दी ल टमरके-धरके
सड़क गलि-समाज ले निकालबो रे
मन-बीचार म बईठे दवेस जलन ल
निकालके सबझन फेकबो रे
जाति-पाति भेद राक्छस ल बिदारके
एकेसंग रहिबो जीबो-मरबो रे
सरग जईसन छत्तीसगढ़ बसाबो रे
चला रे संगी ...............................
चला रे संगी चला रे साथी
घरोघर बहरी निकालबो रे
गाँव गलि ल सुवक्छ बहारके
छत्तीसगढ़ ल महकाबो रे


मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर
मिलन मलरिहा रचना (2)
विषय-चित्र अधारित।
घर के कुड़ा सकेल के , घुरवा ले के डार।
खातू बनही काम के, नई लगही उधार।।
जेबीक खातू छिच के, खेत ल बने सवार।
कीटनासक ल छोड़के , घरके दार बघार।।
जग म कचरा बिखरे हे, बनजर होवत खार।
झोला धरे बजार जा, झिल्लि पन्नि बीदार।।
मन के कचरा ल पहली , फेर फेक आने ल।
कुड़ाकरकट बहारके, धर सकेल अपने ल।।
खुद तही सुधर ग लहरी, सनसार सुधर जाय।
सबो जीव सुयम एक हे, नइ लगय कछु उपाय।।
जेन ल देख तेन भाइ, फोटु खिचाए ल आय।
जोंगय ओहा सबो ल, अपन नेता कहाय।।
बड़हत परदूसन धरा, दिनदिन पानि भगाय।
किसान रोवय किसानी, काला दूख बताय।।
आवा मिलके टुट पड़ा, कचरा राक्छस ताय।
झउहा झउहा फेकदे, खचवा तरि कुड़हाय।।
सुवक्छता बर परन करा, कचरा रख सकलाय।
कुड़ादान म रखबो जी, चाहे घुरवा जाय।।


मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर
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2 महेन्द्र देवागन "माटी"
साफ - सफाई
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घर ल अपन साफ करके
बाहिर में कचरा फेंकत हे
सड़ गल के जब बदबू मारत
नाक दबा के रेंगत हे ।
जगा जगा झिल्ली के थैली
नाली में फेंकावत हे
पानी ह सब रुक गेहे
नाली ह बज बजावत हे ।
कतको मच्छर पनपत हाबे
डेंगू पांव पसारत हे
अस्पताल में भीड़ लगे हे
डाक्टर के पांव पखारत हे ।
जगा जगा फेंकाहे झिल्ली
गाय गरु मन खावत हे
बिन मारे के मारे ओमन
मउत के मुहूं में जावत हे ।
गंदगी हे सबके बिमारी
आदमी एला जानत हे
भासन देथे बड़े बड़े फेर
कोनो ह नइ मानत हे ।
पेड़ पउधा परयावरन
सबला नुकसान पहुंचावत हे
शुद्ध हवा ल पाये खातिर
पेड़ ल नइ लगावत हे ।
जागो रे मोर भाई बहिनी
कचरा झन फइलावव
जिनगी ल बचाये खातिर
एकेक पेड़ लगावव ।
एकेक पेड़ लगावव
एकेक पेड़ लगावव ।
रचनाकार
महेन्द्र देवांगन "माटी"
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला - कबीरधाम ( छ. ग.)
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3
शालिनी साहू
कुरुद साजा
पागा तीन बर कविता
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साफ सफई
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गाव गाव डगर डगर म चलत हे,
सफई के अभियान।
चारो मुडा बगरे हे कचरा,
मिलत हे एकर परमान।।
कका बबा सब मिलजुल के,
साफ सफई म हे बियस्थ।
गाव गली पारा परोस म,
सब मनखे हे सुवस्थ।।
ईही हरय सुवस्थ,
जिनगी के पतवार।
लोग लईका निरोग,
खुश हे परिवार।।
एकर झोला म भराय,
नरवा नदिया हे सराय।
गली खोर ल साफ रखव,
बिकट कचरा हे भराय।।
नरवा नदिया तरिया के सफई,
परदुसन के होवत हे निवारन।
वातावरन के सरंक्षन होवत हे,
लगावत हे वृक्षारोपन।।
इन्द्रावती शिवनाथ के पबरित धार,
दिखही छ.ग के गली खोर अउ पार।
सरगुजा बस्तर के संकरी गली खार,
मिलही निरमल पानी के धार।।
साथ सुथरा निरमल बहाव,
दिखही तिरबेनी के संगम।
अरपा पईरी महानदी के मिलन,
अविरल होही सुग्घर सुगम।।
जेकर बोहावत धार म हे,
जिवनदायिनी के बरदान।
छत्तीसगढ तोर गुन ल कतका गावव,
देवत हस अन्नदान।।
चुकचुक ले गली खोर दिखही,
हरियर हरियर रुख राई।
डबरी तरिया म ढेस खोखमा खेलही,
नई पनकय दुख के लाई।।
किसन के बांसरी बाजही,
मगन होके मोर मटमटही बेटी नाचही।।
पडकी परेवना के चुचु गीत सुनाही,
तक धिना धिन मंदरिहा बजाही।।
दिही सबला सुख समृद्धी,
सुवस्थ जिनगी के मिलही बधाई।
हैजा पिलिया चिकनगुनिया के
छत्तीसगढ ले धाय धाय होही बिदाई।।
छत्तीसगढ राज म लक्छमी दाई आही,
सुपा सुपा यश बगराही।
अपन घर के दुवारी ल हमन बहारबो,
चाउर पिसान के चउक पुराही।।
गोटी माटी कचरा ल घुरवा गांगर म डालव,
हमर करम इही म तरही।
छत्तीसगढ महतारी के सेवा करव,
हमर झोला खुशी से भरही।।
शालिनी साहू
कुरुद साजा
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4 श्री सूर्यकांत गुप्त
छत्तीसगढ़ के पागा क्रमांक तीन बर
तागा म थोरकिन शब्द गूंथे के प्रयास...
तन मन दूनो साफ रख, रखौ सहर तुम साफ।
चलै नही देखावटी, नइ करही जन माफ।।
ऊँच नीच छोटे बड़े, भेद भाव झन पाल।
घर बाहिर रख साफ तैं, कटै रोग जंजाल।।
मुखिया के अभियान ला, सफल बनावौ आज।
पहिरावौ जी देस ला, स्वच्छ मुलुक के ताज।।
-सूर्यकांत गुप्ता
छत्तीसगढ़ के पागा क्रमांक तीन बर मोर आखर गुंथाये दूसर तागा....
चुक चुक उज्जर कपड़ा पहिरे, उठाये हें बीड़ा सफाई के।
मिसाल बनै एकजुटता के, हिंदु मुस्लिम सिक्ख इसाई के।।
चिंता हे डबरा ल पाटे के, ऊँच नीच के खाई के।
खाइ कसम कभू हौवै न कम सन्मान हमर धरती माई के।।
-सूर्यकांत गुप्ता
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5 श्री महेश मनु
पागा क्रमांक colonthree इमोटिकॉन स्वच्छता अभियान
नेता आइस
मीडिया ला बलाइस
कलफ लगे कुर्था ल
बाँहि तक चढ़ा इस
अलग अलग एंगल ले
फोटो ला खिंचाइस
चैनल म खबर चालिस
पेपर म फ़ोटो छपगे
नेता के दार भात चुरगे
औ स्वच्छता अभियान पुरगै ।।
_ महेश पाण्डेय "मनु"
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"छत्तीसगढ के पागा" क्र 3 दिनांक 23/11/15 से 30/11/15
6- श्री नवीन कुमार तिवारी
"छत्तीसगढ के पागा" क्र 3 दिनांक 23/11/15 से 30/11/15
अन देखना ,
एति देखि के ओती देखि ,,
गवई गांव देखि के शहर देखि
देख के होवत हम हलकान जी ,
सब्बो सुघ्घर, माई पीला मनखे ,
करात एक उदीम जी ,
कखरो हाथ में झावुँहा ,बुहारी
कखरो हाथ रापा कुदारी जी
पंच संग सरपंचीन हवे
जमींदार संग कलेक्टर जी ,
नौकर चाकर घलो हवे फेर
ये मन हा काबर पकड़हिं बुहारी ल जी
ये कइसे अलकरहां दिन आगे ,,
झेन ये बुहारी पकढ़िन बड़का साहेब जी
पकड़ के बुहारी कैसे मुस्कियावत हवे
फोटु घलो खिचवावत हवे
माइक पकड़े सिटिर पिटिर
ये का गोटियावत हवे ,
जेती देखले के समाचार में देखले
बस बुहारी संग फोटु दीखलावत जी
हम हा माथा पकड़ सोचत हवन ,
अपन सुवारिन संग गुनत हवन ,
ये सब्बो डहर का होवत जी ,
जम्मों मनखे अक बका गे जी
अध पगला फरमान के आघू
सब्बो शीश नवात जी
दिखावा करके इनाम पाये के
ये मन करत उदीम जी
हाथ में बुहारी के बू नहीं आवै
अइसे करात जतन जी
पाउडर इतर लगा के संगी ,
सोचहू कैसे होही सफाई जी ?
लबरा मन के लबरा काम
करत हवे सफाई के नौटंकी जी
बापू के करात जग हंसाई
फोटू खीच के प्रदर्शनी दिखावत
,का एहि सोच बापू के जी ,
नवीन कुमार तिवारी 22.11.2015
एल आई जी १४/२
मोतीलाल नेहरू नगर ईस्ट
भिलाई नगर जिला दुर्ग
छत्तीस गढ़,,,490020
छत्तीसगढ के पागा क्रमांक ३ बर मोर दुसरिहा रचना ,,
लबरा गोठ,
मोर बिचार तोर बिचार ,
ये हवे काखर बिचार
अच्छा दिन आहि ,
सब्बो सस्ता हो जाहि ,
दिखावत हवे अज्झो ,,
मुंधियार आँखि के सपना ,
जागत हवे लुटवाना,
लबरा बोली मिठवा मिठवा
दुलौरिन के भाखा मिठवा,
हवे मन के बात ,
सोच रमन के गोठ,
दुलरत हवे के पुचकारत हवे
लाल लाल आँखि घलो दिखावत हवे
मेछरा गे हवे सत्ता में आके ,
तभी तो आनी बानी गठियावात हवे
जैसे संगी होवत हवे
खाए के दूसर ,दिखाए के दूसर
गजराज के ,दांत
रोकथाम के ढकोसला देखावत
करात हवे कमीशन खाए के इंतजाम
कभू पलास्टिक तो कभू गुटखा में,
लगावत हवे कानून के रोक ,
फेर रोक हा रोक होते ,
साहेब बाबू के शौक होते
लेवत हवे ,कहावत हवे
गावत हवे गुण गान
चमचा बन करात हवे
अपन अपन दोगलई के काम
स्वछता के घलो दिखावा ,
बगरा के कचरा ,
सफाई के खिचवावत हवे
फोटु साँझा बिहनिया ,
सोज्झे होतिस सफाई हा संगी
तो सोच काबर होतिस रोग राई संगी
तो झेन करना हो दिखावा बंद संगी ,
करो दिल से काम संगी ,,
नवीन कुमार तिवारी 23.11.2015,
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