शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

//"छत्तीसगए के पागा" क्र -1 // विषय-"देवारी"


फेस बुक के "छत्तीसगढी मंच" मा "छत्तीसगढ के पागा" नाम से छत्तीसगढी कविता के प्रतियोगिता चलत हे । ऐखर पहिली  प्रतियोगिता जउन दिनांक 7/11/15 ले 15/11/15 तक  "देवारी" विषय मा आयोजित होइस ओखर जम्मा रचना अइसन हे-

1-" ए देवारी कुछ अइसन मनाबो"
ए देवारी ल कुछ अइसन मनाबो
कोनो गरीब के अंधियारी हटाबो
रोवत ल देबो मुसकान चल संगी
जिनगी म ओखर अंजोर बगराबो
दूसर के घर करथे पोतके पररी
खुदके घर ह रहिथे छररी-दररी
चिरहा फटहा पहीनथे लईकामन
उखर लईकाबर कपड़ा बिसाबो
रद्दा म जरे फटाका ल उठाथे
हर बछर कतको मनेमन ललाथे
पछताथे अपन गरीबी के ऊपर
अइसन लईका ल फटाका देवाबो
चाइना लाइट म कइसन तिहार
जा के देख बाट जोहतहे कुम्हार
नइ करन मोल अउ भाव ओखरकर
परन लव माटी के दीयना जलाबो
छत्तीसगढ़िया के हक ल देवाबो
छत्तीसगढ़ी म बोलबो-गोठियाबो
तब मनही सबझन के सुग्घर देवारी
छत्तीसगढ़ के संस्कीरति ल बगराबो
तिहार उही जेन सबला मिलाथे
घर-घर म जेन खुसी ल फ़इलाथे
पत्ती ल झन बाटव तुमन जुवा के
दुःख बाँट कखरो मनखे कहाबो|
सुनिल शर्मा नील
थान खम्हरिया,बेमेतरा
7828927284
09/11/2015
2- छ.ग. पागा रचना प्रतियोगिता बर मोर रचना धन, धान्य भंडार हे, लक्ष्मी दाई साथ| तोर नाम जिनगी कटय, मन म मत रहय आश|| देवारी आगे हवय, माटी दिया जलाय| घर मा रऊक छाय हवय, लक्ष्मी पुजा मनाय||
-हेमलाल साहू
3-^ छत्तीसगढ़ के पागा क्रमांक १ ^
देवारी तिहार हो ,
फटाखा के बहार हो ,
मातर तिहार हो ,
तव सब्बो मताए हो ,
फेर काखर होवत निचत कमी संगी ?
रूप के रानी हवे,
बावन सियानी हवे ,
तीन पतिया के रवानी हवे
दांव के नजराना हवे ,\
खीसा में रूपया हवे
हारे जीत के हुंकार हवे
फेर काखर होवत निचत कमी संगी ?
चश्मा पहिने पहटिया हो ,
लाल लाल लंगोटिया हो
दुनू हाथ में लौड़ी भांजत हो ,
मुह में ललीहा लाली पान के हो ,
पारा में हांका पारत हो ,
दोहा के नवा रंगत हो
होरी के बेटवा हीरो झन हो ,
राधा किशन संग नाचत हो
बस गोवर्धन के पूजा हो ,,,
-नवीन कुमार तिवारी
4"छत्तीसगढ़ के पागा"
"देवारी के दीया "
**************************
चल संगी देवारी में, जुर मिल दीया जलाबो
अंधियारी ल दूर भगाके, जीवन में अंजोर लाबो।
कतको भटकत अंधियार में, वोला रसता देखाबो
भूखन पियासे हाबे वोला, रोटी हम खवाबो
मत राहे कोनो अढ़हा, सबला हम पढ़ाबों
चल संगी देवारी में, जुर मिल दीया जलाबो।
छोड़ो रंग बिरंगी झालर, माटी के दीया जलाबो
भूख मरे मत कोनो भाई, सबला रोजगार देवाबो
लड़ई झगरा छोड़के संगी, मिलबांट के खाबो
चल संगी देवारी में,जुर मिल दीया जलाबो।।
घर दुवार ल लीप पोत के, गली खोर ल बहारबो
नइ होवन देन बीमारी,साफ सुथरा राखबो
जीवन हे अनमोल संगी, एला सबला बताबो
चल संगी देवारी में, जुर मिल दीया जलाबो।।
पियासे ल हम पानी देबोन, भूखे ल खवाबो
जाड़ में कांपत लोगन ल,कंबल हम ओढ़ाबो
भेद भाव ल छोड़के,हाथ में हाथ मिलाबो
चल संगी देवारी में, जुर मिल दीया जलाबो।।
रचना
महेन्द्र देवांगन "माटी"
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला - कबीरधाम ( छ ग )
8602407353
5"छग के पागा बर"
मोरो घर दीया बरही
आंसो के देवारी म,
मोरो पुरखा मन तरही,
आंसो के देवारी म,
जग होही अंजोर,
आंसो के देवारी म,
महरही गली-खोर,
आंसो के देवारी म,
भरही सबके पेट,
आंसो के देवारी म,
मिलही अड़बड़ भेंट,
आंसो के देवारी म,
मया के फोरहूं खुरहोरी,
आंसो के देवारी म,
खुषी मिलही कोरी-कोरी,
आंसो के देवारी म....
मनोज कुमार श्रीवास्तव
6छत्तीसगढी "पागा" परतियोगता बर रचना >> (1)
**गरीब बर का देवारी**
दिया बरत हे जगमक जगमक
फूटहा हे कोठी टूटहा हे दुवारी
लईका रोए छुरछुरी ला कहीके
महगाई म गरीब बर का देवारी
धनतेरस म खीर मिठाई घरघर
सूख्खा रोटी नई हावय हमरबर
बम फटाखा कहा पाबो संगवारी
महगाई म गरीब बर का देवारी
लछमी ल लछमीवाला ह बिसाथे
मातरानी सोन के कलस म आथे
माटी कलस म तेल अटागे भारी
महगाई म गरीब बर का देवारी
सुरकदीस मिरचा बुझागे बम
अनारदाना नईहे टीकली हे कम
खाए बर तेल नईए बड़ दूखभारी
महगाई म गरीब बर का देवारी
भात कम पेज हवय ग अड़बड़
पताल थोरहा मिरचा के कलबल
दिया भूतागे अब कहाके फुलवारी
महगाई म गरीब बर का देवारी
सबो घर दमकत हे अंगना बारी
लिपाय पोताय कहरय जी छुहारी
धान लुवाएबर बाचे नईहे बनिहारी
महगाई म गरीब बर का देवारी ।
मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर
7 ^छत्तीसगढ़ के पागा सप्ताह १ ^ दिनांक ७/११/१५ से १५/११/१५ ,,,
देवारी तिहार ,....2...............
गरीबहा के कइसन तिहार बार
झेन दिन मिलत संगी
अमीरहा के जूठन,
वहीच्च दिन हो जाते देवारी तिहार ,
अमिरहा के उतरन पहनावा ,
मिल जाहि तो होते तिहार
अमिरहा के फूटे फटाखे
वहीच्च कचरा म मिळत बम बड़का,
गरीबहा के हो जाते किस्मत बड़का
अमिरहा के कोठी में जलत चकमकी
ओखरे धुन्धहाँ रोशनी ,म
चमकत बिन दुवारी के झोपड़ी ,
अमिरहा के पकवान फ़ेकत उच्छ रत
गरीबहा के कचरा में खोजत पकवान
अमिरहा के लइका अलवा जलवा
बिन बदरी करत फिसिर फिसिर
गरीबहा के लइका पुष्ट पहलवान
कथरी ओढे हांसत मिसिर मिसिर
बिन पइसा कइसे तिहार
अमिरहा के होते दीवारी तिहार
अमिरहा के जूठन, गरीबहा के तिहार ,
गरीबहा के झोपड़ी बिन दुवारी,
गरीबहा सोचत झन आतिस देवारी तिहार,,,
नवीन कुमार तिवारी 13.11.15.
8 छ.ग.पागा रचना बर नानकुन प्रस्तुति...
देवारी आरी चलै, फाटै छाती तोर।
मंहगाई के मार मा, दिया जरै ना खोर।।
हाय गरीबी मारथे, मानै नही तिहार।
संगी मन जुरियाइ के, देवन दुखड़ा टार।।
बात एक ठन कोसथे, बने रथें लाचार।
भागैं मेहनत ले सदा, जीथें भीख अधार।।
बिनती लछमी दाइ से, बदलै मनुख बिचार।
मेहनत से नाता जुरै, मानय बने तिहार।।
जय जोहार भाई मन ला...
-सूर्यकांत गुप्ता
9 ** दिया जलाए भरले का होही ? **
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जखम म ककरो मलहम कभु लगाए नही
अंतस के पीरा ककरो तारे सवारे नही
घर-देहरी म दिया जलाए भरले का होही ?
दाई ददा ल बुढहतबेरा म घरले निकाले
दारु जूवा म पइसा खेती बारी ल बेच डारे
गरीब मनखे डोकरी-डोकरा ल ताना मारे
महतारी दूखियारी के पीरा कभु नइ जाने
देवारी रतिहा लछमी पूजापाठ ले का होही
घर-देहरी म दिया जलाए भरले का होही ?
मनखे ल मनखे सही कभु तो तय नई जाने
डोकरा सियनहा के कहना ल नई तो माने
अपनेच सही दूसर के ईज्जत ल नई समझे
गिरे परे मनखे के दरद ल कभु नई पहिचाने
देखावा करे अउ गलती ल तोपे ले का होही
घर-देहरी म दिया जलाए भरले का होही ?
रंग-रंगोली टीमीक टामक बर दीया जलाए
सतमारग परकास दिखईया दीया नई लाए
लछमी बम कटरिना छुरछुरी मुरगा मनभाए
छानही म चढ़के राकेट म आगी तय धराए
सत के रद्दा रेंग ग कोदू जीनगी सवर जाही
घर-देहरी म दिया जलाए भरले का होही ?
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मिलन मलरिहा

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