बुधवार, 25 मई 2016

पागा कलगी-10//राजेश कुमार निषाद

।। पापी पेट के सवाल हे ।।
दर दर मैं भटकत हंव बेटी
देख मोर कईसन हाल हे।
मोर बर तै अतेक सुघ्घर भोजन लाने
खाहूँ मोर पापी पेट के सवाल हे।
लोग लईका ल पाल पोश के बड़े करेंव
फेर कोनो काम के नइये।
घर ले मोला बाहिर कर दिस
तभो ओमन ल चैन अराम नइये।
देवी बनके तै मोर करा आये
बेटी तोला मोर कतेक ख्याल हे।
तोर लाने भोजन ल मैं खाहूँ
मोर पापी पेट के सवाल हे।
सुघ्घर मानवता तै देखावत हस बेटी
फेर ये तो मोह माया के संसार हे।
आज तो तै मोला भोजन करावत हस
फेर मैं कहाँ जाहूँ न अब मोर घर द्वार हे।
सड़क किनारे मोर बसेरा बेटी
तन ढके बर न मोर करा चादर अऊ साल हे।
तोर लाने भोजन ल मैं खाहूँ बेटी
मोर पापी पेट के सवाल हे।
धन धन हे ओ दाई ददा
जऊन तोर जईसे बेटी ल जनम दे हे।
मोर जईसे गरीब अभागा करा
जऊन तोला भोजन धर के भेजे हे।
अईसन दाई ददा के मैं चरण पखारत हंव
जेकर तोर जईसन लाल हे।
तोर मया म मैं भोजन खाहूँ
मोर पापी पेट के सवाल हे।
रचनाकार÷ राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद ( समोदा )

पागा कलगी-10//सूर्यकांत गुप्ता

मगर नही अंधेर
सबे करमफल भोगथन, धरतिच मा जी जान।
कइसे कइसे जियत हन, धरके रोग सियान।।
जउन कोढ़ के रोग से, दुख पावत हे रोज।
सगा सहोदर हा घलो, करै न सेवा सोझ।।
घर बाहिर वो घूमथे, माँगत भरथे पेट।
किल्हर किल्हर के रेंगथे, कहुँचो जाथे लेट।।
प्रभु के घर मा देर हे, मगर नही अंधेर।
आथे कउनो भेस मा, सम्मुख देर सबेर।।
बेटा बर तरसत रथें, मारैं बेटी कोंख।
आँसू तो तकलीफ के, नोनी लेथे सोख।।
पा के नोनी आज मैं, भोजन तोर प्रसाद।
कइहौं बेटिच हा करै, सबके घर आबाद।।
जय जोहार....
सूर्यकांत गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग

पागा कलगी-10 //ज्ञानु मानिकपुरी"दास"

$मानवता के सन्देश$
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धन्य-धन्य हे बेटी तोर मया,
दीन-दुःखी बर तोर दया।
अथाह परेम उमड़े दीन-दुःखी बर
दया मया छलकत हे तोर जिया।
मोर फ़ुटहा करम म अंजोर होंगे न,
गांव-गांव म बेटी तोर शोर होंगे न।
मोला पेट भर खवाके तय बेटी,
तय मोर दाई लइका मय तोर होगेव न।
देवत हे आज मानवता के सन्देश,
रहव चाहे कोनो देश-परदेश।
"जन सेवा ही प्रभु सेवा है"
मन में रहय झन झूठ,कपट,द्वैष।
वाह रे किस्मत अउ तोर खेल,
बेटा,बाप ल निकाले घरले ढकेल।
आज बेटा बर दाई-ददा गरु होंगे,
सिखौना बात उखर करु होंगे।
कहा गय समाजसेवी दान करइया मन,
बड़े बड़े बात करइया नेता भंडारा करइया मन।
"परहित सरिस धरम नही भाई" उपदेश करइया मन।
मुँह के बड़ लबार होथे करम धरम करइया मन।
दुनिया आथे दुनिया जाथे देखत खड़े तमाशा ल।
दया मया बिन जिनगी बिरथा हे कब समझहूँ ये परिभाषा ल।
बेटी,कखरो बेटी,कखरो पतनी,कखरो महतारी बन जथे।
दुःख सुख के समझइया दुलौरिन संग संगवारी बन जथे।
आओ मिलके ये संकल्प करन,
दीन दुःखी मनखे के करबो जतन।
मानव जीवन के सार इही हे"ज्ञानु"
भूखे प्यासे ल दाना पानी अउ बेटी के जतन।..... अउ बेटी के जतन।
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आपके छोटे भाई
ज्ञानु मानिकपुरी"दास"
चंदेनी(कवर्धा)

पागा कलगी-10//अशोक साहू, भानसोज


मनखे जनम ल पाके संगी
मनखे के सेवा बजा ले।
नर सेवा नारायण सेवा कईथे
ईही करम अपना ले।।
पियासे ल पानी पिया दे
लांघन ल खवा दे भात।
गरीब ह घला तो मनखे ए
झन मार ओला लात।।
पईसा होय ले कोनो अमीर नई होवय
दिल ले होवय धनवान।
गिरे थके के दुख ल हरथे
उही ओकर बर भगवान।।
दुवारी म आथे कोनो गरीब
लांघन भूखन पियासा।
झन करबे निराशा ओला
तोरे ले लगाए हे आशा।।
संसकार अइसन घर घर म होय
सिखय सुघ्घर सेवा भाव।
अमीर गरीब के गड्ढा पाटय
दीन हीन बर राहय लगाव।।

अशोक साहू, भानसोज

पागा कलगी-10//ललित वर्मा

चल बहिनी मंदिर जाबो
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चल बहिनी मंदिर जाबो
देवता मन के दरसन पाबो
सिढिया तीर म बईठे होही
भगत मन ल जोहत होही
लुगरा-लुहूंगी बिछाय होही
चांऊर ह छरियाय होही
दान-पुन करबो अउ मानव धरम निभाबो
चल बहिनी मंदिर जाबो
कपडा कंदरहा चिराय होही
चीटे-चीट मईलाय होही
दतून-मुखारी नंदाय होही
अउ तईहा के नहाय होही
कपडा सिल कांचबो अउ खलखल ले नहवाबो
चल बहिनी मंदिर जाबो
बीमारी म घेराय होही
खसु-खजरी छाय होही
कोढ ह कंदकंदाय होही
तन घावेघाव गोदाय होही
बईद बन ईलाज करबो दवई ल लगाबो
चल बहिनी मंदिर जाबो
मुंधरहा ले आय होही
पेट घलो रिताय होही
परसादे बस ल पाय होही
रतिहा के भूखाय होही
दार-भात-साग संग तस्मई ल खवाबो
चल बहिनी मंदिर जाबो
देवता मन के दरसन पाबो
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रचना - ललित वर्मा,
छुरा, जिला - गरियाबंद

पागा कलगी-10//संतोष फरिकार ‪मयारू‬

मोरो बेटी*
कोनो जनम के ओ बेटी
होबे बेटी मोरो ओ
मोर दुख दरद ला देख बेटी
दार भात ल तय खवाए ओ
दीन भरहा होगे रहिस
कोनो नई देखीस निहार के
कोन मेर ले तोर नजर परीस
घर ले लाने दार भात धर के
कोनो जनम के ओ बेटी
होबे बेटी मोरो ओ
कोन जनम म का पाप करेव
आज होगेव मय कोढ़ी ओ
गांव गली खोर मोहल्ला म
कोनो नई देखय निहार के ओ
कोनो जनम के ओ बेटी
होबे बेटी मोरो ओ
दुख पीरा ला देख ओ बेटी
घर ले लाने दार भात ओ
आज हाट बजार बंद पड़े हे
कोनो नई देखत हे खड़े होके
काय दुख ल गोठीयावव बेटी
मरत रहेव भुख पीयास मे
धन्य धन्य हे तोर दाई ददा
तोर असन बेटी पा के ओ
कोनो जनम के ओ बेटी
होबे बेटी मोरो ओ
तोरे असन होतीस मोरो बेटी
भटकन नई देतीस मोला ओ
करम छड़हा हव मय ओ बेटी
एक झन बेटी घलो नई पाएव ओ
रसता डहर म देख मोला
घर ले लाने दार भात ओ
कोनो जनम के ओ बेटी
होबे बेटी मोरो ओ
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रचना .संतोष फरिकार ‪#‎मयारू‬
गांव .देवरी भाटापारा
जिला.बलौदा बजार भाटापारा
मो . 9926113995

पागा कलगी-10 //ललित साहू "जख्मी"



"एक बिता के पेट"
एक बिता के ये पेट बैरी
दुनिया भर ला नचावत हे
भगवान बन ये नोनी हा
सियान ला भात खवावत हे
जतकी समाज आघु बढत हे
ततकी भुखमरी हमावत हे
एक कांवरा के भात बर
शरीर, ईमान घलो बेचावत हे
काकरो घर के चुल्हा जुडाय
काकरो घर कलेवा फेंकावत हे
गरीब के लईका भुख मा मर गे
अमीर खा-खा के बिमारी बुलावत हे
छट्ठी,मरनी,बिहाव के बांचे भात ला
कुकुर घुरवा मा बइठ के खावत हे
कम झन परे भले फेंका जाय
कही के मनखे सान बतावत हे
ये नोनी तो सियान ला खवइस
तुमन के झन ला खवाये हव
मनखे बन के जनम धरे हो
का मनखे के फरज निभाय हो?
चलो आज सब परन करबो
भुख मा कोनहो ला नई मरन दन
हमर राहत ले कोनहो गरीब के
यमराज ला परान नई हरन दन
ललित साहू "जख्मी"
ग्राम-छुरा / जिला-गरियाबंद(छ.ग.)
9144992879