सोमवार, 20 जून 2016

पागा कलगी-12/16/बी के चतुर्वेदी

" जीवन अउ जंगल "
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"रूखवा राई जीवन. के खानदानी लागे रे
काट काट झाड़ी जंगल. मनमानी लागे रे "
"नई बांचे रूख राई जीव जंतु कहां जाही
तोर. अंगना चिरैयय बोली नदारत. हो जाही
तोला संसो फीकर जीव. चाय. पानी लागे रे "
"वनखरहा जीव देखे गहबर कूदत. नाचे
चिरैया डारा डारा चहकत. आनी बानी बांचे
कैसन भूईयां आकास. के कहानी लागे रे "
"कुसियार कतको मीठ लागे जरी ले नई काटें
डारा पाना धरावत आगी कैसन जाड़ छांटे
मनखे जोनी सुराज अब. बईमानी लागे रे "
"हवा पानी गर्रा धुंका पनिया बिमार लागे
कभू डोले धरती गुइंया किल्ली गोहार. जागे
एठत अटियात करे विकास के जुबानी लागे रे "
"तोर चतुराई होगे मुड़ पीरा कतेक जीये पाही
हवा मा बिमारी बहे पानी मा जहर घोराही
तोर जिनगी के जिद्दी मरे के दिवानी लागे रे "
"सबले चतुरा सवले बपुरा मनखे तनखे बांके
अपन. सुख. देखे कभू दूसर के दुख. नई. झांके
तोरी मोरी चिथा पुदगी अजब. परानी लागे रे "
"तोला देथे तेला तै काटे तौ सांस. कहां ले पाबे
घर. बनाये उजारे जंगल. वन सांप. जैसन चाबे
तोर. चतुराई. हर. कतका कन. बयानी लागे रे "
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बी के चतुर्वेदी 8871596335
क्वाटर न-- डी टाईप 153
एच टी पी एस कालोनी दर्री
कोरबा पश्चिम जिला कोरबा

पागा कलगी-12/15/योगेश साहु

"झन काट रुख ला"
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झन काट सगवारि ओ रुख ला गा .... 
जेमे मिलते तोला फल फुल हा गा ....... 
चारों कोति हवा चलत हे ...... 
कतना सुघड़ लगत हे .....
 कतना खुशी के बात ए सगवारि हो .......
 ए रुख राई हाबे ना ता हमर जिंदगी चलत हे....
जिंदगी जीए बर आए हन ......
जइसन हमर ए घर हे .......
ओसने ओ काकरो घर ए ........ 
झन काट सगवारि ओ रुख ला वहु
में काकरो जीवन हे........
 झन काट सगवारि ओ रुख ला गा ..........
जीव जंतु चिराई मन तोला देखत हे ...... 
अब हमन कहा जाबो कहीं के ओकर आँखी ले आसु निकलत हे ........
 झन काट सगवारि ओ रुख ला गा ......... 
एमे सबके जिंदगी ह समाये हे .......
उही रुख ले कच्चा माल बनके आय हे ........ 
अउ ए जिंदगी ला चालाये बर बेरोजगार मन ला काम दिलाये हे...... 
झन काट सगवारि ओ रुख ला गा........
सबो झन के जिंदगी इही में हे ........
 फुल मिलत हे फल मिलत हे.......
अउ मिलत हे चारा .......
 झन काट सगवारि ओ रुख ला गा ए जिंदगी के नईये ठिकाना ......
***योगेश साहु अरजुनि बालोद ***

रविवार, 19 जून 2016

पागा कलगी-12/14/अनुभव तिवारी

तरपत तरपत रहिगे चिरई अमराई कहां गंवागे रे
नावा जुग का आइस मनखे जुन्ना जुग ल भुलागे रे
दुख पीरा काकर करा गोहरावन देवता पथरा होगे रे
संसो म जिनगी पहाथे सुख अब सपना होगे रे
जेखर खांद म कूदन झूलन ओ बर पीपर नंदागे रे
नावा जुग का आइस मनखे जुन्ना जुग ल भुलागे रे
कइसे जिनगी जीबो संगी लोहा लाखड के अमराई म
कांपत हे छाती बिचकत हे मनखे अपन परछाई म
परियावरन परदूसित होगे चिरइ चुरगुन सिरागे रे
नावा जुग का आइस मनखे जुन्ना जुग ल भूलागे रे
अब भूंइया नइ बांचिस सिरतो मरघट काला बनाबो रे
परिया परे खेती डोली ल फेर कइसे हरियाबो रे
मानुस के लोभन म देखा सावन घलौ रिसागे रे
नावा जुग का आइस मनखे जुन्ना जुग ल भूलागे रे |
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आपका
अनुभव तिवारी खोखरा जांजगीर चाम्पा छग 9179696759

पागा कलगी-12/13/ललित साहू "जख्मी"

"लकड़ी चोरहा" (बियंग)
अरे टूरा कहां जात हस रे
टंगिया धर के मटमटात हस रे
गोंदे तो रा एको ठन रुख ला
चपटा दुहुं साले तोर मुख ला
तोर बाप के राज चलत हे का
मोला रुख गोंदे बर छेंकत हस
कतको ला कटवात हे सरकार हा
फेर हर पईत तेहा मुही ला देखत हस
रुख गोंद के मेहा परवार पोसत हव
जंगल उजरईया मन ला महुं कोसत हव
हमन तो सुख्खा रुख ला गोंद के लानथन
ऊही लकड़ी मा तो अपन चुल्हा सिपचाथन
चार काड़ी कोरई मा छानही ला छाथन
चार काड़ी ला बेच के पईसा कमाथन
चार काड़ी कही-कही के जंगल चाट डारत हव
सुख्खा कही-कही के कांचा रुख ला मारत हव
वाह रे तुंहर पढ़े-लिखे मन के मतलबिहा गोठ
सरी जंगल ला बेच के हो गे हव बड़ पोठ
मोला बता जंगल के जगा का मोर बबा बेचत हे
रद्दा बर रुख गोंदथे तेला बता कोन छेंकत हे
आरा मे गोला चिरथे अऊ बंदुक मा चिरई तुकत हे
रुख ला उंडा के चिरई गुडा़ ला आगी फूंकत हे
जंगल के सबो जीव आज कांपत हावे
कोनहो आही बंचाय बर कहीके झांकत हावे
चिरई आगास मा उडीयाथे फेर ठिहा रुख राई ये
मरहा चिरई के टूटे पांख ये मनखे के चतुराई ये
साले तोला छेंकत हव ता तेहा सब ला गिनावत हस
धरती दाई ला भुला के परवार के फरज निभावत हस
अईसन मत का महु ला कुदरत के चिंता हे
फेर तेहा मोला बता नेता मन के पेट के बिता हे
रुख राई ला बचाना हे ता सबला एक होना परही
भोरहा मा हो जौन सोंचत होहु नेता मन देस गरही
चलो किरया खाओ आज ले सबो मोर संग दुहु
लकड़ी चोरहा जानहु तेला पानी घलो झन दुहु
रुख ले हे हवा पानी छांव अऊ सबो के जिनगानी
नई कटे जंगल, नई मरे जीव अब हमरो हावे बानी
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रचनाकार - ललित साहू "जख्मी"
ग्राम -छुरा
जिला - गरियाबंद (छ.ग.)
9144992879

पागा कलगी-12/11/ लता नायर

घिनहा कस काम काबर करेस गा l
घम छाँही तोहू तो पात रहेस
गवार कस काट देहेस गा !!
घर गोंसईयां कस होय कर
गर के काँटा बने तै !
जै गाछ ला दावन कुछु नहीं करिस
तैला तै गिधवा कस नोंच देहे गा !!
मोर बसेरा ला तिडी -बिडी़
गुरमट्टी कस कर देहेस गा !
तै कलेचुप काबर मोर सोन चिरई ला मुरईकस मुरकेट देहे गा !!
अब झेन कहबे आँधी घटा आइस है !
तै खुदे नियतखोर कस जमो भुईयां ला उजाड देहेस गा !!
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**** लता नायर
लखनपुर सरगुजा ******

पागा कलगी-12/10/राजकिशोर धिरही

झन काटव रुख ल।
झन काटव रुख ल।।
उजर जाथे हमर खोंधरा
पाथन हमन जाड़ भोंभरा।
बड़ कल्लइ होथे जीये ल
मरथन जम्मों माइ पिला।।
समझव भाखा,दुख ल।
झन काटव रुख ल।।
धर के आरी तै काट देथच
टांगी टांगा ले छांट देथस।
ची ची चूं चूं करत रइथन
भिंया मा गिर गिर मरथन।।
छमा करव भूल चूक ल।
झन काटव रुख ल।।
केप केप करथे पिला,
महतारी हर उड़ जाथे।
काट काट रुख राइ,
मनखे हर दुख लाथे।।
सही के सहथन भूख ल।
झन काटव रुख ल।।
रुख काटे ले भईया
आसरा उजर जाथे।।
चिरई चुरगुन मन
बिन रुख मर जाथे।।
जीये देवव जिव मूक ल
झन काटव रुख ल।।
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🙏🏼राजकिशोर धिरही🙏🏼
ग्राम+पोस्ट-तिलई
तहसील-अकलतरा
जिला-जांजगीर चांपा(छ.ग.)
पिन-495668

पागा कलगी-12/9/इंजी.गजानंद पात्रे"सत्यबोध"

रुख राई हे बेटा बरोबर
सुघ्घर पोसव पालव जी।
जिंदगी के ये आधार हे भईया
मिलके पेड़ लगावव जी।
सुख दुःख के साथी हमर
तनहा के मितान जी।
देवता रूप विराजे ये म
कहत हे पोथी पुराण जी।
मया दया के शीतल छाँव देथे
जिंदगी बर पुरवाई जी।
भूखे प्यासे ल खाना देथे
तन काया बर दवाई जी।
दुनिया के आधार खड़े हे
बड़े बड़े कारखाना जी।
झईन काटव् रुख राई ल भाई
ये हे जीवन समाना जी।
रुख राई पानी बरसावय
किसान के मन हरसावय जी।
सरग के बादर ल खिंच
धरती म उतारय जी।
अन्न धन्न सब हुए मतंगा
करम किसान के सिरजावय जी।
सोये बर पलंग सुपेती बने हे
बइठे बर सोफ़ा दीवाना जी।
लकड़ी काठ कस जीवन बने हे
सब ल हे एक दिन इही म जल जाना जी।
आज शहरीकरण औद्योगीकरण के कारन
बन के होवत हे विनाश जी
भविष्य के बात ल सोचव
जीना दूभर हो जाहि सबके,
जब शुद्ध हवा नई मिलहि
लेह बर हमला स्वांस जी।
बइठे बर छाँव नई मिलहि,
सब मरही भूखे प्यास जी।
करत पुकार हे पात्रे भाई,
कहना मोर मानव जी।
सब कोई अपन जीवन म
भाई रुख राई लगावव जी।
तन मन धन !
सब ले ऊपर वन !
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रचना-- इंजी.गजानंद पात्रे"सत्यबोध"