रविवार, 19 जून 2016

पागा कलगी-12/9/इंजी.गजानंद पात्रे"सत्यबोध"

रुख राई हे बेटा बरोबर
सुघ्घर पोसव पालव जी।
जिंदगी के ये आधार हे भईया
मिलके पेड़ लगावव जी।
सुख दुःख के साथी हमर
तनहा के मितान जी।
देवता रूप विराजे ये म
कहत हे पोथी पुराण जी।
मया दया के शीतल छाँव देथे
जिंदगी बर पुरवाई जी।
भूखे प्यासे ल खाना देथे
तन काया बर दवाई जी।
दुनिया के आधार खड़े हे
बड़े बड़े कारखाना जी।
झईन काटव् रुख राई ल भाई
ये हे जीवन समाना जी।
रुख राई पानी बरसावय
किसान के मन हरसावय जी।
सरग के बादर ल खिंच
धरती म उतारय जी।
अन्न धन्न सब हुए मतंगा
करम किसान के सिरजावय जी।
सोये बर पलंग सुपेती बने हे
बइठे बर सोफ़ा दीवाना जी।
लकड़ी काठ कस जीवन बने हे
सब ल हे एक दिन इही म जल जाना जी।
आज शहरीकरण औद्योगीकरण के कारन
बन के होवत हे विनाश जी
भविष्य के बात ल सोचव
जीना दूभर हो जाहि सबके,
जब शुद्ध हवा नई मिलहि
लेह बर हमला स्वांस जी।
बइठे बर छाँव नई मिलहि,
सब मरही भूखे प्यास जी।
करत पुकार हे पात्रे भाई,
कहना मोर मानव जी।
सब कोई अपन जीवन म
भाई रुख राई लगावव जी।
तन मन धन !
सब ले ऊपर वन !
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रचना-- इंजी.गजानंद पात्रे"सत्यबोध"

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