सोमवार, 20 जून 2016

पागा कलगी-12/15/योगेश साहु

"झन काट रुख ला"
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झन काट सगवारि ओ रुख ला गा .... 
जेमे मिलते तोला फल फुल हा गा ....... 
चारों कोति हवा चलत हे ...... 
कतना सुघड़ लगत हे .....
 कतना खुशी के बात ए सगवारि हो .......
 ए रुख राई हाबे ना ता हमर जिंदगी चलत हे....
जिंदगी जीए बर आए हन ......
जइसन हमर ए घर हे .......
ओसने ओ काकरो घर ए ........ 
झन काट सगवारि ओ रुख ला वहु
में काकरो जीवन हे........
 झन काट सगवारि ओ रुख ला गा ..........
जीव जंतु चिराई मन तोला देखत हे ...... 
अब हमन कहा जाबो कहीं के ओकर आँखी ले आसु निकलत हे ........
 झन काट सगवारि ओ रुख ला गा ......... 
एमे सबके जिंदगी ह समाये हे .......
उही रुख ले कच्चा माल बनके आय हे ........ 
अउ ए जिंदगी ला चालाये बर बेरोजगार मन ला काम दिलाये हे...... 
झन काट सगवारि ओ रुख ला गा........
सबो झन के जिंदगी इही में हे ........
 फुल मिलत हे फल मिलत हे.......
अउ मिलत हे चारा .......
 झन काट सगवारि ओ रुख ला गा ए जिंदगी के नईये ठिकाना ......
***योगेश साहु अरजुनि बालोद ***

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