सोमवार, 20 जून 2016

पागा कलगी-12/20/महेश मलंग

जियत जागत देवता ए भैया
नदिया जंगल रुख राई .
एला बचाव लव कहिके
गोहरावत हे परकिति दाई.
ये नदिया जंगल पहार
हमला मिले बरदान आय
जम्मो परानी के जिनगी के
अहि सहारा और परान आय.
फर फूल जरी बुटी देथे
अहि लाथे बरखा रानी.
चला के आरी रुख राई म
करत हन बड़ नदानी .
परियाबरन के रच्छा करथे
मौसम के चक्का चलाथे.
परदूषन राक्षस ले घलो
हमला एहा बचाथे.
दुनिया म मंगल तब तक हे
जब तक बचे हे जंगल.
खतम हो जाही तौ हो जाही
सबके जीना दुभर.
जेन डारा म बैईठन ह
ओही ला झन काटव .
बहुत हो गे देरी भैया
अब तो सब मन जागव .

-महेश मलंग

पागा कलगी-12/19/डा: गिरजा शर्मा

सब प्रानी संग चिर ई चिरगुन
मन पारें गोहार
एहर हमर है जीये के अधार
झन का टो तुमन मितान
उमड़त घुमड़त करिया। बादर ल बलाके
एमन पानी बरसाथें ग
त हरियाथे हमर धरती दाई
सोनहा धान हर लहलहाथे खेत म
त किसान हर मुसकाथे ग मितान
एमे के फूल फल अमरित कस
एकर छाँव म जुड़ाथे ग प्रान
आज उजारबो हमन ऐला त न ई बाँचे ग हमर परान
सब झन मिलके किरिया खाई
जगाबो ग हमन रूख राई ल
हमर दाई के कोरा ल हरियर करबो
आऊ गरब बो बन जाबो एकर मितान
आऊ बचा बो सबके प्रान
आवा आवा ग मितान।
🌷🌷🌷🙏
डा: गिरजा शर्मा
क्वार्टर-225,से-4/a
बालको नगर
कोरबा। (छ ग)

पागा कलगी-12/18/सूर्यकांत गुप्ता

परियावरन बचाव
चीरत हौ का समझ के, मोरद्ध्वज के पूत।
काटे पेड़ जियाय बर, नइ आवय प्रभु दूत।।
रूख राइ काटौ मती, सोचौ पेड़ लगाय।
बिना पेड़ के जान लौ, जिनगी हे असहाय।।
बिन जंगल के हे मरें, पशु पक्षी तैं जान।
बाग बगइचा के बिना, होही मरे बिहान।।
आनन फानन मा सबो, कानन उजड़त जात।
करनी कुदरत ला तुँहर, एको नई सुहात।।
पीये बर पानी नही, कइसे फसल उगाँय।
बाढ़े गरमी घाम मा, मूड़ी कहाँ लुकाँय।।
जँउहर तीपन घाम के, परबत बरफ ढहाय।
परलय ओ केदार के, कउने सकय भुलाय।।
एती बर बाढ़त हवै, उद्यम अउ उद्योग।
धुँगिया धुर्रा मा घिरे, अनवासत हन रोग।।
खलिहावौ झन देस ला, जंगल झाड़ी काट।
सरग सही धरती हमर, परदूसन मत पाट।।
करौ परन तुम आज ले, रोजे पेड़ लगाव।
बिनती "सूरज" के हवै, परियावरन बचाव।।
जय जोहार.......
सूर्यकांत गुप्ता
1009, "लता प्रकाश"
सिंधिया नगर दुर्ग (छ. ग.)

पागा कलगी-12 /17/शुभम् वैष्णव

कुंडली-
चिरई मन जाही कहाँ , जब काटहु सब पेंड़।
करले थोकिन तैं दया , ओला झन अब छेड़।
ओला झन अब छेड़ , उजाड़ झन तैं घरौंदा।
जुड़ जुड़ के तिनका ह, ऊंखर बने ग घरौंदा।
झन ले कखरो हाय , जिनगी दुभर हो जाही।
अपन घर मन ल छोड़, कहाँ चिरई मन जाही।
सिरा जाही ग सम्पदा, हो जाही नुकसान।
जस धरती के अंग हे , तस एला तैं मान।
तस एला तैं मान, एखर तैं ह कर रक्षा।
सब ह करै सम्मान, होवय ग अइसन शिक्षा।
काल ले सबो मेर , इही तो बात सुनाही।
कखरो घर टुटही त , तोर पुन्य सिरा जाही।
देख झन अपन फायदा , पेंड कटई ल रोक।
जेन मन पेड़ काटही , ओहु मन ल तैं टोंक।
ओहु मन ल तैं टोंक , खरा नियम तैं बना दे।
करय सब ह सम्मान, तै ह अब अलख जगादे।
झन कर बन के नास, परानी के ग कर जतन।
रख तैं सबके ध्यान , फायदा देख झन अपन।
-शुभम् वैष्णव

पागा कलगी-12/16/बी के चतुर्वेदी

" जीवन अउ जंगल "
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"रूखवा राई जीवन. के खानदानी लागे रे
काट काट झाड़ी जंगल. मनमानी लागे रे "
"नई बांचे रूख राई जीव जंतु कहां जाही
तोर. अंगना चिरैयय बोली नदारत. हो जाही
तोला संसो फीकर जीव. चाय. पानी लागे रे "
"वनखरहा जीव देखे गहबर कूदत. नाचे
चिरैया डारा डारा चहकत. आनी बानी बांचे
कैसन भूईयां आकास. के कहानी लागे रे "
"कुसियार कतको मीठ लागे जरी ले नई काटें
डारा पाना धरावत आगी कैसन जाड़ छांटे
मनखे जोनी सुराज अब. बईमानी लागे रे "
"हवा पानी गर्रा धुंका पनिया बिमार लागे
कभू डोले धरती गुइंया किल्ली गोहार. जागे
एठत अटियात करे विकास के जुबानी लागे रे "
"तोर चतुराई होगे मुड़ पीरा कतेक जीये पाही
हवा मा बिमारी बहे पानी मा जहर घोराही
तोर जिनगी के जिद्दी मरे के दिवानी लागे रे "
"सबले चतुरा सवले बपुरा मनखे तनखे बांके
अपन. सुख. देखे कभू दूसर के दुख. नई. झांके
तोरी मोरी चिथा पुदगी अजब. परानी लागे रे "
"तोला देथे तेला तै काटे तौ सांस. कहां ले पाबे
घर. बनाये उजारे जंगल. वन सांप. जैसन चाबे
तोर. चतुराई. हर. कतका कन. बयानी लागे रे "
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बी के चतुर्वेदी 8871596335
क्वाटर न-- डी टाईप 153
एच टी पी एस कालोनी दर्री
कोरबा पश्चिम जिला कोरबा

पागा कलगी-12/15/योगेश साहु

"झन काट रुख ला"
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झन काट सगवारि ओ रुख ला गा .... 
जेमे मिलते तोला फल फुल हा गा ....... 
चारों कोति हवा चलत हे ...... 
कतना सुघड़ लगत हे .....
 कतना खुशी के बात ए सगवारि हो .......
 ए रुख राई हाबे ना ता हमर जिंदगी चलत हे....
जिंदगी जीए बर आए हन ......
जइसन हमर ए घर हे .......
ओसने ओ काकरो घर ए ........ 
झन काट सगवारि ओ रुख ला वहु
में काकरो जीवन हे........
 झन काट सगवारि ओ रुख ला गा ..........
जीव जंतु चिराई मन तोला देखत हे ...... 
अब हमन कहा जाबो कहीं के ओकर आँखी ले आसु निकलत हे ........
 झन काट सगवारि ओ रुख ला गा ......... 
एमे सबके जिंदगी ह समाये हे .......
उही रुख ले कच्चा माल बनके आय हे ........ 
अउ ए जिंदगी ला चालाये बर बेरोजगार मन ला काम दिलाये हे...... 
झन काट सगवारि ओ रुख ला गा........
सबो झन के जिंदगी इही में हे ........
 फुल मिलत हे फल मिलत हे.......
अउ मिलत हे चारा .......
 झन काट सगवारि ओ रुख ला गा ए जिंदगी के नईये ठिकाना ......
***योगेश साहु अरजुनि बालोद ***

रविवार, 19 जून 2016

पागा कलगी-12/14/अनुभव तिवारी

तरपत तरपत रहिगे चिरई अमराई कहां गंवागे रे
नावा जुग का आइस मनखे जुन्ना जुग ल भुलागे रे
दुख पीरा काकर करा गोहरावन देवता पथरा होगे रे
संसो म जिनगी पहाथे सुख अब सपना होगे रे
जेखर खांद म कूदन झूलन ओ बर पीपर नंदागे रे
नावा जुग का आइस मनखे जुन्ना जुग ल भुलागे रे
कइसे जिनगी जीबो संगी लोहा लाखड के अमराई म
कांपत हे छाती बिचकत हे मनखे अपन परछाई म
परियावरन परदूसित होगे चिरइ चुरगुन सिरागे रे
नावा जुग का आइस मनखे जुन्ना जुग ल भूलागे रे
अब भूंइया नइ बांचिस सिरतो मरघट काला बनाबो रे
परिया परे खेती डोली ल फेर कइसे हरियाबो रे
मानुस के लोभन म देखा सावन घलौ रिसागे रे
नावा जुग का आइस मनखे जुन्ना जुग ल भूलागे रे |
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आपका
अनुभव तिवारी खोखरा जांजगीर चाम्पा छग 9179696759