सोमवार, 20 जून 2016

पागा कलगी-12 /17/शुभम् वैष्णव

कुंडली-
चिरई मन जाही कहाँ , जब काटहु सब पेंड़।
करले थोकिन तैं दया , ओला झन अब छेड़।
ओला झन अब छेड़ , उजाड़ झन तैं घरौंदा।
जुड़ जुड़ के तिनका ह, ऊंखर बने ग घरौंदा।
झन ले कखरो हाय , जिनगी दुभर हो जाही।
अपन घर मन ल छोड़, कहाँ चिरई मन जाही।
सिरा जाही ग सम्पदा, हो जाही नुकसान।
जस धरती के अंग हे , तस एला तैं मान।
तस एला तैं मान, एखर तैं ह कर रक्षा।
सब ह करै सम्मान, होवय ग अइसन शिक्षा।
काल ले सबो मेर , इही तो बात सुनाही।
कखरो घर टुटही त , तोर पुन्य सिरा जाही।
देख झन अपन फायदा , पेंड कटई ल रोक।
जेन मन पेड़ काटही , ओहु मन ल तैं टोंक।
ओहु मन ल तैं टोंक , खरा नियम तैं बना दे।
करय सब ह सम्मान, तै ह अब अलख जगादे।
झन कर बन के नास, परानी के ग कर जतन।
रख तैं सबके ध्यान , फायदा देख झन अपन।
-शुभम् वैष्णव

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