गुरुवार, 23 जून 2016

पागा कलगी-12/23/कन्हैया साहू "अमित"

आवव,
परकीति के पयलगी पखार लन।
धरती ल चुकचुक ले सिंगार दन।
परकीति के पयलगी पखार लन।।
धरती ल चुकचुक ले सिंगार दन।।।
रुख-राई फूल-फल देथे,
सुख-सांति सकल सहेजे।
सरी संसार सवारथ के,,
परमारथ असल देते।।
धरती के दुलरवा ला दुलार लन।
जीयत जागत जतन जोहार लन।।
परकीति के पयलगी पखार लन।।१
रुख-राई संग संगवारी,
जग बर बङ उपकारी।
अन-जल के भंडार भरै,
बसंदर के बने अटारी।।
मत कभु टंगिया,आरी,कटार बन।
घर कुरिया ल कखरो उजार झन।।
धरती ल चुकचुक ले सिंगार दन।।२
रुख-राई ल देख बादर,
बरसथे भुइंया आगर।
बिन जल जग जल जाही,
देवधामी जस हे आदर।।
संरक्छन के सुग्घर संसार दन।
परियावरन के तैं रखवार बन।।
परकीति के पयलगी पखार लन।।३
रुख-राई ल बचाव संगी,
पेङ परिहा बनाव संगी।
चिहुर चिरई चिरगुन,
सिरतोन सिरजाव संगी।।
बिनास ल बेवहार म उतार झन।
पर हित 'अमित' पालनहार बन।।
धरती ल चुकचुक ले सिंगार दन।।४
परकीति के पयलगी पखार लन।।।।
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बुधवार, 22 जून 2016

पागा कलगी-12/22/अमित चन्द्रवंशी"सुपा"

का होंगे आज मनखे मन ला दुनिया ला बरबाद करे बर तुले हवय,
दुनिया ला उजाड़े बर पेड़ पौधा ला काटे बर मनखे मन तुले हवय।
पेड़ ही नई होहिय ता शुद्ध-शुद्ध ताजा-ताजा वायु कहा ले पहु,
दुनिया मा जीना हवय ता पड़े पौधा ला कटाव नही ओला उगहु।।
उजड़त हवय जंगल हा जमीन होवत हवय रुखासुखा,
उजड़त हवय जंगल हा पशु पक्षी दुनिया ले जावत हवय।
पानी सुखागे पेड़ झाड़ हा दुःखे बरोबर दिखात हवय,
पर्यावरण ला बरबाद करे बर मनखे मन तुले हवय।।
कबहु-कबहु जंगल मा आगी लगथे,
पुरा पशु-पक्षी मन जल के मर जाथे।
का होंगे मनखे मन ला पेड़ ला कटथे,
ट्रेन दौड़ाय बर जंगल ला उजड़त हे।।
वर्षो बाद जंगल धरती में धस के नवा-नवा कोयला देथे,
कबहु-कबहु प्रकृतिक आपदा ले जंगल ह बचावत हवय।
हर साल नवा-नवा फूल-फल सुन्दर हवा देवत हवय,
तभो मनखे मन दुनिया ला उजड़े बर पेड़ काटत हवय।।
-अमित चन्द्रवंशी"सुपा"
रामनगर कवर्धा
8085686829

पागा कलगी-12/21/चोवाराम वर्मा

"झन काटव पगला"
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झन काटव पगला रुख राई ल
कलपावव मत धरती दाई ल।
रुख राई,जंगल झाड़ी म
जीव जन्तु के बसेरा हे।
सुवा,मैना,पड़की,कठखोलवा
नाना पंछी के डेरा हे।
बड़ मयारू होथे बिरवा
दाई ददा कस कोरा हे।
समझावव बहिनी भाई ल।
झन काटव पगला रुख राईल
देख तो नान नान पिलवा,
कइसन छटपटावत हे।
तोर चलाये आरा आरी
चिर करेजा खावत हे।
बिन छंईहाँ घाम पियास म
कतको झन मर जावत हे।
करम के फल भुगते ल परही
तोर पाप घईला भरावत हे।
सरग म बईठे चन्द्रगुप्त ह
घाटे घाटा चढ़ावत हे।
झन खन गिरे बर खाई ल।
झन काटव पगला रुख राई ल
नई रइहि जंगल झाड़ी
हवा बिना मर जाबे।
बंजर हो जहि भुँइया के कोंख
अन्न पानी कंहाँ ले पाबे।
डार के चुके बेंदरा कस
मुड़ धर पाछू पछताबे ।
अपने टंगिया म अपने गोड़ ल
काट रोबे चिल्लाबे।
झन रिसवावव"बादल"भाईल
(रचनाकार---चोवाराम वर्मा "बादल"ग्राम पोस्ट हथबंध )

सोमवार, 20 जून 2016

पागा कलगी-12/20/महेश मलंग

जियत जागत देवता ए भैया
नदिया जंगल रुख राई .
एला बचाव लव कहिके
गोहरावत हे परकिति दाई.
ये नदिया जंगल पहार
हमला मिले बरदान आय
जम्मो परानी के जिनगी के
अहि सहारा और परान आय.
फर फूल जरी बुटी देथे
अहि लाथे बरखा रानी.
चला के आरी रुख राई म
करत हन बड़ नदानी .
परियाबरन के रच्छा करथे
मौसम के चक्का चलाथे.
परदूषन राक्षस ले घलो
हमला एहा बचाथे.
दुनिया म मंगल तब तक हे
जब तक बचे हे जंगल.
खतम हो जाही तौ हो जाही
सबके जीना दुभर.
जेन डारा म बैईठन ह
ओही ला झन काटव .
बहुत हो गे देरी भैया
अब तो सब मन जागव .

-महेश मलंग

पागा कलगी-12/19/डा: गिरजा शर्मा

सब प्रानी संग चिर ई चिरगुन
मन पारें गोहार
एहर हमर है जीये के अधार
झन का टो तुमन मितान
उमड़त घुमड़त करिया। बादर ल बलाके
एमन पानी बरसाथें ग
त हरियाथे हमर धरती दाई
सोनहा धान हर लहलहाथे खेत म
त किसान हर मुसकाथे ग मितान
एमे के फूल फल अमरित कस
एकर छाँव म जुड़ाथे ग प्रान
आज उजारबो हमन ऐला त न ई बाँचे ग हमर परान
सब झन मिलके किरिया खाई
जगाबो ग हमन रूख राई ल
हमर दाई के कोरा ल हरियर करबो
आऊ गरब बो बन जाबो एकर मितान
आऊ बचा बो सबके प्रान
आवा आवा ग मितान।
🌷🌷🌷🙏
डा: गिरजा शर्मा
क्वार्टर-225,से-4/a
बालको नगर
कोरबा। (छ ग)

पागा कलगी-12/18/सूर्यकांत गुप्ता

परियावरन बचाव
चीरत हौ का समझ के, मोरद्ध्वज के पूत।
काटे पेड़ जियाय बर, नइ आवय प्रभु दूत।।
रूख राइ काटौ मती, सोचौ पेड़ लगाय।
बिना पेड़ के जान लौ, जिनगी हे असहाय।।
बिन जंगल के हे मरें, पशु पक्षी तैं जान।
बाग बगइचा के बिना, होही मरे बिहान।।
आनन फानन मा सबो, कानन उजड़त जात।
करनी कुदरत ला तुँहर, एको नई सुहात।।
पीये बर पानी नही, कइसे फसल उगाँय।
बाढ़े गरमी घाम मा, मूड़ी कहाँ लुकाँय।।
जँउहर तीपन घाम के, परबत बरफ ढहाय।
परलय ओ केदार के, कउने सकय भुलाय।।
एती बर बाढ़त हवै, उद्यम अउ उद्योग।
धुँगिया धुर्रा मा घिरे, अनवासत हन रोग।।
खलिहावौ झन देस ला, जंगल झाड़ी काट।
सरग सही धरती हमर, परदूसन मत पाट।।
करौ परन तुम आज ले, रोजे पेड़ लगाव।
बिनती "सूरज" के हवै, परियावरन बचाव।।
जय जोहार.......
सूर्यकांत गुप्ता
1009, "लता प्रकाश"
सिंधिया नगर दुर्ग (छ. ग.)

पागा कलगी-12 /17/शुभम् वैष्णव

कुंडली-
चिरई मन जाही कहाँ , जब काटहु सब पेंड़।
करले थोकिन तैं दया , ओला झन अब छेड़।
ओला झन अब छेड़ , उजाड़ झन तैं घरौंदा।
जुड़ जुड़ के तिनका ह, ऊंखर बने ग घरौंदा।
झन ले कखरो हाय , जिनगी दुभर हो जाही।
अपन घर मन ल छोड़, कहाँ चिरई मन जाही।
सिरा जाही ग सम्पदा, हो जाही नुकसान।
जस धरती के अंग हे , तस एला तैं मान।
तस एला तैं मान, एखर तैं ह कर रक्षा।
सब ह करै सम्मान, होवय ग अइसन शिक्षा।
काल ले सबो मेर , इही तो बात सुनाही।
कखरो घर टुटही त , तोर पुन्य सिरा जाही।
देख झन अपन फायदा , पेंड कटई ल रोक।
जेन मन पेड़ काटही , ओहु मन ल तैं टोंक।
ओहु मन ल तैं टोंक , खरा नियम तैं बना दे।
करय सब ह सम्मान, तै ह अब अलख जगादे।
झन कर बन के नास, परानी के ग कर जतन।
रख तैं सबके ध्यान , फायदा देख झन अपन।
-शुभम् वैष्णव