शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

पागा कलगी-16 //3//संतोष फरिकार

जा जा रे मोर पडकी परेवना
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जा जा रे मोर पड़की परेवना
तय मोर मंईके बर ऊड़ जा ना
मोर भैया बर राखी छोड़ आ ना
जा जा रे मोर पड़की परेवना
मोर दाई ददा के संदेसा ले आबे
काय काय बुता करत हे पुछ लेबे
मोर संगी सहेली के सोर ले लेबे
भैया भंऊजी संग मील के आबे
जा जा रे मोर पड़की परेवना
मोर संदेस पुछही त दाई ल बताबे
तोर बेटी बेटी ह बने बने हवय
दाई ददा के सुरता करत रहिथे
भैया भंऊजी के नाव लेवत रहिथे
जा जा रे मोर पड़की परेवना
मोर दाई ददा कन बंईठ के आबे
बने हाल चाल पुछ के ही आबे
मोर मंईके के खेत खार घुम आबे
भैया के संग दीन भर बिता लेबे
जा जा रे मोर पड़की परेवना
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रचनाकार
संतोष फरिकार
देवरी भाटापारा
# मयारू
९९२६११३९९५

पागा कलगी-16 //2//चोवा राम वर्मा" बादल "

उड़ जा रे परेवना,भईया बर राखी पहुंचाबे ।
काली हे राखी के तिहार, झन कोनो मेर बिलमाबे ।
नानपन म दाई-ददा सिरागे,
पालिन भउजी भईया ।
दुःख के घाम कभू नई पाएवं,
राखिन अंचरा छंईया ।
बड़ दिन होगे देखे नई अवं,झटकुन आहीं बलाबे ।
उड़ी जा रे परेवना,भईया बर राखी पहुंचाबे ।1
ददा के पाछू ददा बरोबर,
बड़का भईया ह होथे ।
छोटे भाई ह दीदी कहिके ,
घातेच्च मया ल पुरोथे ।
बड़ पबरित ए पिरित के धागा,झन कहूँ तैँ गिराबे ।
उड़ी जा रे परेवना , भईया बर राखी पहुंचाबे ।2।
मोर धनी परदेस गेहे ,
कब आही नइये संदेसा ।
सास-ससुर के सेवा में हौं ,
हाबय मोरे भरोसा ।
मै जातेवं फेर का करवं,फोर फोर के बने समझाबे ।
उडी जा रे परेवना , भईया बर राखी पहुंचाबे ।3 ।
सुभ मुहुरुत म भईया पहिनहि,
बहिनी के भेजे राखी ।
पन करही मोर रक्छा करे के,
सुरुज देंवता ल देके साखी ।
कतका फभही भईया ल राखी,आके मोला बताबे ।
उड़ी जा रे परेवना,भईया बर राखी पहुंचाबे। ।4।
आबे तहाँ ले तोला रे भाई,
जेन खाबे मैं खवाहूँ ।
तोर थकासी फुर्र हो जाही,
नंहँवा , डेना सहलाहूँ ।
पाछू बछर कस तीजा पोरा म, मोर संग मइके जाबे ।
उड़ी जा रे परेवना , भईया बर राखी पहुंचाबे ।
काली हे राखी के तिहार, झन कोनो मेर बिलमाबे ।5।
(रचनाकार --चोवा राम वर्मा" बादल ")
हथबंद
दिनांक----17 अगस्त 2016

पागा कलगी-16//1//बंटी छतिसगढिया

ऐ रे परेवना जा
मोर भैया के देश रे
भैया हाबे आन देश
बहिनी मै आन रे
ले जा ले जा रे परेवना
मोर भैया बर संदेश रे
रदॣदा जोहत हाबे बताबे
बहिनी ससुरे देश मे
राखी के तिहार म भाई
ले वा के ले जा अपन देश रे
ऐ रै परेवना जा
मोर भैया के देश रे ।।।।
दाई ददा तिही रे भाई
तोर आश म आहू ग
तोर छोरे लहू के मै
तोला कईसे भूलाहू ग
मोर भरोसा तिही भैया
राखी के फरज निभाबे
हाबे अगोरा ऐ ग भैया
मोला अपन देश
ले वा के ले जाबे
ऐ रे परेवना जा
मोर भैया के देश रे
भैया ल कहि दे बे संदेश ।।।
तोर बहिनी बेटी हो भाई
तिही मोर महतारी ग
तोर कोरा म खेले बाढे
तिही पराये भावर
मोर घर दुवारी बसाये भाई
मोला ले वा के जा भाई
तोर अगोरा हाबे मोला
तिही मोर ददा दाई
ऐ रे परेवना जा
मोर भैया के देश
भैया ल दे देबे संदेश ।।।।
++++++++++++++++++++++
गलती होही क्षमा करहू ग
मै नवसिखिया नादान
क्षमा करे जे भगवान बरोबर
क्षमा करे ते महान ।।।।

//पागा कलगी 16 के रूपरेखा//

//पागा कलगी 16 के रूपरेखा//

अवधि-16 अगस्त16 से 31 अगस्त तक

विषय- दे गे चित्र के अनुसार
संचालक- श्री आचार्य तोषण चुरेन्द (पागा कलगी-7 के विजेता)

निर्णायक-श्री दीनदयाल साहू, सहायक संपादक चौपाल, हरिभूमि
श्री राजकमल राजपूत वरिष्ठ साहित्यकार, थानखम्हरिया बेमेतरा

नियम-छत्तीसगढ़ी कविता के प्रतियोगिता पागा कलगी 15 के रचना सीधा छत्तीसगढ़ी मंच मा पोष्ट करना हे । जेन रचनाकार छत्तीसगढ़ी मंच के सदस्य नई हे, ओ एडमिन मन के व्यक्तिगत वाटशॅंप म भेज सकत हंे । कानो सार्वजनिक वाटशाॅप/फेसबुक समूह से रचना नई देना हे । प्रतियोगिता अवधि तक प्रतियोगिता के रचना केवल फेसबुक समूह छत्तीसगढ़ी मंच अउ ब्लाग पागा कलगी भर म होही । यदि रचना अंते तंते पाये जाही त रचना ला प्रतियोगिता से बाहिर कर दे जाही ।

विधा - अइसे विधा के बंधन नई हे, फेर काव्य के कोनो विधा मा रचना दैं त विधा के संक्षिप्त जानकारी रचना के पहिली दू डांड म देवंय त जादा अच्छा रहिही । जेखर ले नवा रचनाकार मन ओ विधा ला आत्मसात कर सकय । विधा के ज्ञान नई होय त विधा के नाम मत देवंय ।
विशेष- रचना हर स्थिति म चित्र ला शब्द देवत होय, विषय ले भटके रचना ला अमान्य कर दे जाही ।
प्रतिभागी रचना छत्तीसगढ़ी मंच ला छोड़ के अंते पोष्ट नई करना हे ।

पागा कलगी-15 //29//आशा देशमुख

| देश बर जीबो देश बर मरबो |
बैरी बैरी सब कथे ,असली बैरी कौन |
घर मा बइठे भेदिया ,देश ल बेचय जौंन ||
ये माटी चंदन अय भइया ,माथ म अपन लगावव |
पहली तो घर के बैरी ला ,कसके धूर चटावव |
जेन करय दाई के सौदा ,वो सपूत का होही |
मुड़ी मुड़ाके गली घुमावव ,तर बत्तर वो रोही |
ज्ञान रतन भंडार भरे हे ,ये भारत भुंइया मा |
रहना चाहे सब दुनियाँ हा , येकर गा छइहाँ मा |
आगी बर आगी बन जावव ,पानी बर गा पानी |
झन करन देवव अब बैरी ल ,अपन इहाँ मनमानी |
भारत भुइयाँ के सब लइका , सब मिल मान बढ़ावव |
एकर रक्षा के खातिर सब,सरबस अपन लुटावव |
ये धरती मा जनमे हावे ,सरग के जम्मो देवता |
जइसे लागे पाये हावे,झारा झारा नेवता |
जतका इहाँ जयचंद लुकाए,खोज खोज के मारव
इकर बंधना ले धरती ला ,सब मिल के मुक्तावव |
ये दाई झन कर तै चिंता ,तोरे सेवा करबो |
तोरे अंचरा मा हम जीबो ,तोर पँउरी म मरबो |
, जय हिन्द जय भारत,
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
छत्तीसगढ़

सोमवार, 15 अगस्त 2016

पागा कलगी-15//28// ललित वर्मा,"अंतर्जश्न"

बिसय: देस बर जीबो देस बर मरबो
देस बर जीबो देस बर मरबो, देस ल जबर बनाबो रे
बीते बरस के जगतगुरू ल,फेर पागा पहिराबो रे
ललकारत हे पाकिस्तान,चीन खडे हे छाती तान
कस्मीर अउ अरूनाचल म, जबरन बईठे हे बेईमान
अईसन सांप-छछूंदर मन ल, कूचर-कूचर के जलाबो रे
देस बर जीबो देस बर मरबो, देस ल जबर बनाबो रे
हुतकारत हे आज परधान, फूफकारत हे गबरू-जवान
जुरमिल देस ल टीप लेगेबर, जबर जोस संग धरे कमान
अईसन देस के अघुवा मन ल, कांध-मुडी म चढाबो रे
देस बर जीबो देस बर मरबो, देस ल जबर बनाबो रे
गडियाथे झंडा मंगलयान, सहराथे दुनिया के बिग्यान
ब्रम्होस हे ब्रम्हास्त्र बरोबर, बोफोर्स धरे हे अग्निबान
अईसन देस के गरब हवय त, काबर नई इतराबो रे
देस बर जीबो देस बर मरबो,देस ल जबर बनाबो रे
बीते बखत के जगतगुरू ल, फेर पागा पहिराबो रे
रचना:- ललित वर्मा,"अंतर्जश्न" 
छुरा

पागा कलगी-15//27//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

देश बर जीबो देश बर मरबो
आवव जुरमिल इही परन करबो,
देश बर जीबो देश बर मरबो।
कुकरा बासत नांगर धर जाबो,
खेती किसानी जांगर भर कमाबो।
सोनहा अन्न उपजाये खातिर,
धरती दाई के सेवा करबो।
भूंख गरीबी ल दुरिहा करे बर,
आवव संगवारी कमर कसबो।
देश बर जीबो देश बर मरबो।
आधा दिन हम जनता कर जाबो,
जनता जनार्दन के अशिष पाबो।
जेकर वोट से मंतरी बने हन,
ओकर किरपा करजा उतारबो।
समस्या ल उंकरो हल करे बर,
जोहारे चिट्ठी थइल म धरबो।
देश बर जीबो देश बर मरबो।
तोर उपर आंच नई आवन दन,
सरहद म मां तोर लाल खड़े हन।
दुश्मन मुड़ी टकराके फुट जही,
पहाड़ के पथरा सरिक अड़े हन।
देश के माटी के रक्षा खातिर,
बैरी के टोंटा म हाथ धरबो।
देश बर जीबो देश बर मरबो।
राष्ट्र निर्माता के उपाधी संग,
शिक्षा के भार भरोस खांध मढ़ाय हन।
शिक्षक के आदर मान संग,
नमस्ते गुरूजी के सम्मान पाय हन।
नवा पीढ़ी के उज्जवल रद्दा बर,
ज्ञान जोरन उंकर हांथ म धरबो।
देश बर जीबो देश बर मरबो।
आवव जुरमिल इही परन करबो,
देश बर जीबो देश बर मरबो।
रचना:-- सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर,कवर्धा