शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

पागा कलगी-16 //2//चोवा राम वर्मा" बादल "

उड़ जा रे परेवना,भईया बर राखी पहुंचाबे ।
काली हे राखी के तिहार, झन कोनो मेर बिलमाबे ।
नानपन म दाई-ददा सिरागे,
पालिन भउजी भईया ।
दुःख के घाम कभू नई पाएवं,
राखिन अंचरा छंईया ।
बड़ दिन होगे देखे नई अवं,झटकुन आहीं बलाबे ।
उड़ी जा रे परेवना,भईया बर राखी पहुंचाबे ।1
ददा के पाछू ददा बरोबर,
बड़का भईया ह होथे ।
छोटे भाई ह दीदी कहिके ,
घातेच्च मया ल पुरोथे ।
बड़ पबरित ए पिरित के धागा,झन कहूँ तैँ गिराबे ।
उड़ी जा रे परेवना , भईया बर राखी पहुंचाबे ।2।
मोर धनी परदेस गेहे ,
कब आही नइये संदेसा ।
सास-ससुर के सेवा में हौं ,
हाबय मोरे भरोसा ।
मै जातेवं फेर का करवं,फोर फोर के बने समझाबे ।
उडी जा रे परेवना , भईया बर राखी पहुंचाबे ।3 ।
सुभ मुहुरुत म भईया पहिनहि,
बहिनी के भेजे राखी ।
पन करही मोर रक्छा करे के,
सुरुज देंवता ल देके साखी ।
कतका फभही भईया ल राखी,आके मोला बताबे ।
उड़ी जा रे परेवना,भईया बर राखी पहुंचाबे। ।4।
आबे तहाँ ले तोला रे भाई,
जेन खाबे मैं खवाहूँ ।
तोर थकासी फुर्र हो जाही,
नंहँवा , डेना सहलाहूँ ।
पाछू बछर कस तीजा पोरा म, मोर संग मइके जाबे ।
उड़ी जा रे परेवना , भईया बर राखी पहुंचाबे ।
काली हे राखी के तिहार, झन कोनो मेर बिलमाबे ।5।
(रचनाकार --चोवा राम वर्मा" बादल ")
हथबंद
दिनांक----17 अगस्त 2016

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