सोमवार, 15 अगस्त 2016

पागा कलगी-15//27//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

देश बर जीबो देश बर मरबो
आवव जुरमिल इही परन करबो,
देश बर जीबो देश बर मरबो।
कुकरा बासत नांगर धर जाबो,
खेती किसानी जांगर भर कमाबो।
सोनहा अन्न उपजाये खातिर,
धरती दाई के सेवा करबो।
भूंख गरीबी ल दुरिहा करे बर,
आवव संगवारी कमर कसबो।
देश बर जीबो देश बर मरबो।
आधा दिन हम जनता कर जाबो,
जनता जनार्दन के अशिष पाबो।
जेकर वोट से मंतरी बने हन,
ओकर किरपा करजा उतारबो।
समस्या ल उंकरो हल करे बर,
जोहारे चिट्ठी थइल म धरबो।
देश बर जीबो देश बर मरबो।
तोर उपर आंच नई आवन दन,
सरहद म मां तोर लाल खड़े हन।
दुश्मन मुड़ी टकराके फुट जही,
पहाड़ के पथरा सरिक अड़े हन।
देश के माटी के रक्षा खातिर,
बैरी के टोंटा म हाथ धरबो।
देश बर जीबो देश बर मरबो।
राष्ट्र निर्माता के उपाधी संग,
शिक्षा के भार भरोस खांध मढ़ाय हन।
शिक्षक के आदर मान संग,
नमस्ते गुरूजी के सम्मान पाय हन।
नवा पीढ़ी के उज्जवल रद्दा बर,
ज्ञान जोरन उंकर हांथ म धरबो।
देश बर जीबो देश बर मरबो।
आवव जुरमिल इही परन करबो,
देश बर जीबो देश बर मरबो।
रचना:-- सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर,कवर्धा

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