शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

पागा कलगी -21//3//राजेश कुमार निषाद

।। मोर छत्तीसगढ़ महतारी ।।
चलव संगी चलव साथी लाज बचाबो मोर छत्तीसगढ़ महतारी के।
ये परदेशिया मन कतका राज करही अऊ कतेक जुलुम साहिबो येकर अत्याचारी के।
चलव संगी चलव साथी लाज बचाबो मोर छत्तीसगढ़ महतारी के।
खाली हाथ आय रहिन बस हाथ में धर के झोरा।
लूट लूट के लेगत हे ये मन अब बोरा बोरा।
देखव परदेशिया के चाल कईसे हमन ल मुरख बनावत हे।
हमर महतारी के कोरा म आके हमी ल टुंहु देखावत हे।
अईसन मउका झन आवय सुध रखव राज दुलारी के।
चलव संगी चलव साथी लाज बचाबो मोर छत्तीसगढ़ महतारी के।
छत्तीसगढ़ महतारी के लाज बचाये बर गोली खा लेबोन छाती म।
नवजवान लईका सियान सब हाँसत झूल जाबो फासी म।
अईसन लड़ाई लड़बो हमन जप के नाम बलिहारी के।
चलव संगी चलव साथी लाज बचाबो मोर छत्तीसगढ़ महतारी के।
भाई चारा के पाठ ल मिलजुल के सब ल पढ़ाना हे।
मन म एक ही बात ठानव छत्तीसगढ़ महतारी के लाज बचाना हे।
मिलजुल के तुमन रहे बर सिखव फेर देखव का हाल होही ये मालगुजारी के।
चलव संगी चलव साथी लाज बचाबो मोर छत्तीसगढ़ महतारी के।
कतेक सुघ्घर हावय छत्तीसगढ़िया मनखे मन
फेर देखव शासन हावय काकर ग।
दया मया येकर मन कस अऊ कहूँ नई मिलय
चाहे दुनिया म देखव तुमन जाकर ग।
दुरिहा राहव ये परदेशिया मन ले
नइये ये मन हमर चिन्हारी के।
चलव संगी चलव साथी लाज बचाबो मोर छत्तीसगढ़ महतारी के।
रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद( समोदा )
9713872983

पागा कलगी -21 //2//मनीराम साहू 'मितान'

@@मोर छत्तीसगढ़ महतारी@@
सुत उठ के तोला जोहारवँ,
दिन-रात करवँ तोर चारी।
जय होवय तोर, जय होवय,
मोर छत्तीसगढ़ महतारी।
भारत माँ के दुलौरिन अस तैं,
तोला कइथे कटोरा धान के।
तोर मया म दुलराइस दाई,
बीर नारायन सोना खान के।
धन भाग हमु जनम पायेन,
पायेन तोर दुलार वो भारी।
जय होवय....................
रुखराई,खेत-खार दिखे तैं,
जीव,चिरई-चिरगुन,चाँटी म।
तोर दरस ल रोजे पाथवँ,
मोर गाँव के धुर्रा-माटी म।
सुग्घर तोर रूप हवय वो,
दिखथस कोदो-साँवर कारी।
जय होवय....................
खरतरिहा हे तोर लइका मन,
कर देथे पथरा ल पिसान वो।
उवत-बुड़त कमावत रइथे,
जेन मन ल कइथे किसान वो।
संगी उँकर नाँगर-बइला,
'तुलसी दल' हे उँकर तुतारी।
जय होवय.....................
तोर सेवा म जिनगी बीतय,
दे सकन समे म सीस वो।
सच के रद्दा ल झन छोड़िन,
दे अइसन हमला असीस वो।
जुर-मिल सुनता म राहन,
अइसने पटय सबो के तारी।
जय होवय..................
मनीराम साहू 'मितान'
कचलोन(सिमगा)बलौदाबाजार
(छ.ग.)493101
मो. 9826154608

पागा कलगी -21//1//श्रवण साहू

।।जय मोर छत्तीसगढ़ महतारी।।
जय जय हे छत्तीसगढ़ महतारी।
तोर महिमा जग मा बड़ भारी।।
ऋषि मुनि अऊ तपसी के डेरा।
सबो जीव जंतु के तैंहा बसेरा।।
हरियर हावय मा तोर कोरा।
रूप तोर मोहय चंद्र चकोरा।।
तीरथ तंही, तंही चारो धाम।
पांव रखे जिंहा मोर प्रभु राम।।
बड़ निक लागे धनहा डोली।
हवे सुग्घर तोर गुरतुर बोली।।
धान पान के तैंहा उपजईया।
सबो प्राणी के प्रान बचईया।।
बड़े बिहना कोयली गुन गाये।
चिरई चिरगुन महिमा बताये।।
नाचय रूखवा झुमरय खेती।
भारत मां के तैं दूलौरिन बेटी।।
नरवा, डोंगरी मन ला भाये।
परबत मुकुट शोभा बढ़हाये।।
तोर चरण मा माथ नवांवय।
तोर 'दुलरवा',गुन तोर गावय।।
रचना- श्रवण साहू
गांव-बरगा जि. बेमेतरा (छ.ग.)
मोबा. - +918085104647

गुरुवार, 10 नवंबर 2016

//पागा कलगी-20 के परिणाम //


पागा कलगी-20 जेखर विषय-‘मन के अंधियारी मेटव‘ रहिस, ये विषय मा कुल 8 रचना प्राप्त होइस । सबो रचनाकार संगी मन के रचना म देवारी के दीया जगमगावत हे, सबो झन ला अंतस ले बधाई । दे गे विषय म जेन रचना सबले लकठा लगीस ओही ल ये दरी पागा के भेट करे जात हे ।
भाई गुमान साहू के मुड़ मा ‘पागा कलगी-20‘ के पागा ला धरे जात हे ।

भाई गुमान साहू ला छत्तीसगढ़ी साहित्य मंच डइर ले अंतस ले बधाई

सोमवार, 31 अक्टूबर 2016

पागा कलगी -20//8//धर्मेन्द्र डहरवाल

----- माटी के चोला संगी माटी म मिल जाही------
कतको कमाले धन अउ दौलत तोर संग कहां ये जही,
हाड़ मास के बने ये तन ह कतका दिन ले खंटाही,
दया धरम तै करले भइया तोर नाव ह जग म छाही,
माटी के ये चोला संगी माटी म मिल जाही।
का रखे हे जात पात मे जम्मो मनखे ह भाई ये,
सुघ्घर पिरीत के गोठ गोठीयाले इही ह प्रेम सगाई ये,
जे करथे भेद जात पात म सिरतो म उही कसाई ये,
मांथ नवालव धरती दाई के इही जगजननी माई ये,
जेन सत के रद्दा म रेगही सरग उही ह जाही,
माटी के ये चोला संगी माटी म मिल जाही।
सब जानत हे का होथे ग पापी मन के कहानी,
बैर झन कर ककरो बर तै तोर सुखी रही जिनगानी,
प्रेम भाव ले रहा सब संग करले संगी मितानी,
दुखीया के तै दुख हर ले पोछदे आंखी के पानी,
धरम के बाट ल तै अपनाले तोर जिनगी सुख म पहाही,
माटी के ये चोला संगी माटी म मिल जाही।
मतलबीहा झन तै बन भईया छल कपट ल छोड़दे,
चारी चुगली अउ द्वेश भाव संग जम्मो नता ल टोरदे,
करू कासा अभीमान छोड़ के मया के रंग ल घोरदे,
भेद भाव अउ पाप बैर ल माटी के पोरा कस फोर दे,
मीठ बोली तै बोल तोला सब सौ बछर ले सोरयाही,
माटी के ये चोला संगी माटी म मिल जाही।
.
.
रचनाकार--- धर्मेन्द्र डहरवाल
ग्राम- सोहागपुर पोस्ट परपोड़ी
जिला बेमेतरा (C.G.)

पागा कलगी -20//7//दिलीप वर्मा

पागा कलगी 20 बर रचना।
विषय--मन के अंधियारी मेटव।
विधा--कुण्डली
करम अपन सुधार के,मया म सब ल लपेट। 
बैर भाव सब भूल के,मन अंधियारी मेंट।
मन अंधियारी मेट,देख जग सुंदर लागय।
प्रीत बढ़े हर एक ले,सोये भाग हर जागय।
मानव सच हे बात,कि सुख के इही मरम।
मया म सब ल लपेट,सुधार के अपन करम। ।1।
बैर रखे अंतस जरे,तन हर खीरत जाय।
मन अंधियारी मेट लौ,घर घर ख़ुशी ह आय।
घर घर ख़ुशी ह आय,अउ धन ह बाढ़त जावय।
बढ़य कुटुम कबीला,मया मा सबो समावय।
रख तै सब ले प्रेम,नहीं ते नई हे ख़ैर।
तन हर खीरत जाय,कि अंतस रखे ले बैर। ।2।
दिलीप वर्मा
बलौदा बाज़ार

पागा कलगी -20//6//ज्ञानु मानिकपुरी"दास"

छत्तीसगढ़ी गजल
~~~~~~~~~
नफरत के काँटा ल छाटे ल परही जी।
मया पिरीत के पौधा लगाये ल परही जी।
काबर भुलागे मनखे अपन करम ल
करम धरम मनखे ल सिखायें ल परही जी।
भुले रहिथे ऐहर नशाखोरी दुराचारी म
खींच के सोझ रद्दा म रेंगाये ल परही जी।
पुरखा के रीति रिवाज ल छोड़त जात हे
दिखावा छोड़के रीति रिवाज ल अपनाये ल परही जी।
ये माटी के सेवा जतन करेबर भुलागे रे
मशीनी के भरोसा ल छोड़ाये ल परही जी।
21वीं सदी म जीयत हन अउ बलि देथन ग
अंधविश्वास के थाती ल हटाये ल परही जी।
अबके लईकामन लोक लिहाज नइ जानय ग
पढ़ें लिखे के संग संस्कार धराये ल परही जी।
बहु बेटा मन दाई ददा के मान नइ करय ग
दाई ददा हे भगवान के रूप बताये ल परही जी।
ना कोनो अमीर ना कोनो गरीब जी
उच्च नीच के भेदभाव ल मिटाये ल परही जी।
कब तक जीबो हमन अंधियारी म"ज्ञानु"
जुरमिलके ये सब 'अंधयारी ल मिटाये' परही जी।
ज्ञानु मानिकपुरी"दास"
चंदेनी कवर्धा