सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

पागा कलगी -20//8//धर्मेन्द्र डहरवाल

----- माटी के चोला संगी माटी म मिल जाही------
कतको कमाले धन अउ दौलत तोर संग कहां ये जही,
हाड़ मास के बने ये तन ह कतका दिन ले खंटाही,
दया धरम तै करले भइया तोर नाव ह जग म छाही,
माटी के ये चोला संगी माटी म मिल जाही।
का रखे हे जात पात मे जम्मो मनखे ह भाई ये,
सुघ्घर पिरीत के गोठ गोठीयाले इही ह प्रेम सगाई ये,
जे करथे भेद जात पात म सिरतो म उही कसाई ये,
मांथ नवालव धरती दाई के इही जगजननी माई ये,
जेन सत के रद्दा म रेगही सरग उही ह जाही,
माटी के ये चोला संगी माटी म मिल जाही।
सब जानत हे का होथे ग पापी मन के कहानी,
बैर झन कर ककरो बर तै तोर सुखी रही जिनगानी,
प्रेम भाव ले रहा सब संग करले संगी मितानी,
दुखीया के तै दुख हर ले पोछदे आंखी के पानी,
धरम के बाट ल तै अपनाले तोर जिनगी सुख म पहाही,
माटी के ये चोला संगी माटी म मिल जाही।
मतलबीहा झन तै बन भईया छल कपट ल छोड़दे,
चारी चुगली अउ द्वेश भाव संग जम्मो नता ल टोरदे,
करू कासा अभीमान छोड़ के मया के रंग ल घोरदे,
भेद भाव अउ पाप बैर ल माटी के पोरा कस फोर दे,
मीठ बोली तै बोल तोला सब सौ बछर ले सोरयाही,
माटी के ये चोला संगी माटी म मिल जाही।
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रचनाकार--- धर्मेन्द्र डहरवाल
ग्राम- सोहागपुर पोस्ट परपोड़ी
जिला बेमेतरा (C.G.)

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