सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

पागा कलगी -20//7//दिलीप वर्मा

पागा कलगी 20 बर रचना।
विषय--मन के अंधियारी मेटव।
विधा--कुण्डली
करम अपन सुधार के,मया म सब ल लपेट। 
बैर भाव सब भूल के,मन अंधियारी मेंट।
मन अंधियारी मेट,देख जग सुंदर लागय।
प्रीत बढ़े हर एक ले,सोये भाग हर जागय।
मानव सच हे बात,कि सुख के इही मरम।
मया म सब ल लपेट,सुधार के अपन करम। ।1।
बैर रखे अंतस जरे,तन हर खीरत जाय।
मन अंधियारी मेट लौ,घर घर ख़ुशी ह आय।
घर घर ख़ुशी ह आय,अउ धन ह बाढ़त जावय।
बढ़य कुटुम कबीला,मया मा सबो समावय।
रख तै सब ले प्रेम,नहीं ते नई हे ख़ैर।
तन हर खीरत जाय,कि अंतस रखे ले बैर। ।2।
दिलीप वर्मा
बलौदा बाज़ार

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