मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

पागा कलगी -24 //3//राजेश कुमार निषाद

।। गुरु घासीदास बाबा के संदेश ।।
तोर कतका करंव बखान बाबा तै सत के पुजारी ग।
जनम धरे तै बाबा महंगू के घर अमरौतीन तोर महतारी ग।
दिन रिहिस हे 18 दिसम्बर सन् सत्रह सौ छप्पन के ग।
सत के मार्ग देखाये चमत्कार देखे सब तोर बचपन के ग।
कर्म भूमि बनाये बाबा तै ह भण्डार पूरी ग।
बईठ के तप करे बाबा तै ह अंवरा धंवरा तरी ग।
सत के अलख जगा के छुवाछुत ल दूर भगाये ग।
मनखे मनखे एक समान संदेश ले भाईचारा म रहे बर सिखाये ग।
बीच जंगल झाड़ी म बाबा तै ह जपे सतनाम ग।
तोर तीर म सांप आवय अऊ बघवा हलावय दोनों कान ग।
छाता पहाड़ तोर डेरा बाबा गिरौदपुरी धाम ग।
सत के जपईया बाबा जपे तै सतनाम ग।
तै रचना करे बाबा सात वचन सतनाम पंथ के।
मुखिया कहाये बाबा तै सतनाम गुरु ग्रंथ के।
जन्म भूमि अऊ तपो भूमि बाबा तोर गिरौदपुरी धाम ग।
सन् 1850 म तै दुनिया छोड़े बाबा अलख रखे सतनाम ग।
रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद ( समोदा )
9713872983

पागा कलगी -24//2//चोवा राम "बादल"

विषय--- गुरु घासीदास के संदेस।
विधा ---दोहा छंद।
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मंच के सम्मुख मोरो छोटकुन प्रयास समर्पित हे।
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(1)
बाबा घासीदास के, सुन लौ गा संदेस।
जप करके सतनाम के, मेटव अपन कलेस।
(2)
मनखे मनखे एक हे, अन्तस हाबय एक ।
करनी ला करके बने, मनखे बन जा नेक ।
(3)
मदिरा माँस तियाग दौ, गुरु दे हे जी ज्ञान।
रहन बसन अच्छा रहे,सब झन पाथे मान।
(4)
सादा रहय बिचार हा, छल मल ले जी दूर।
खान पान सादा रहय, सुख मिलही भरपूर।
(5)
चारी चुगरी बन भरे, परिया जिनगी खेत ।
करम कमाई कर बने, मूरख मनवा चेत।
(6)
सुग्घर तन ला पाइ के, झन कर गरब गुमान ।
आतम ला सिंगार ले, बन भाई गुनवान ।
(7)
धरती मा दाई ददा, हे सऊँहे भगवान।
चरन म चारों धाम हे, कोरा सरग समान ।
(8)
सब के भितरी मा उही, एके प्रभु ह समाय ।
काबर करथौ छुत छुआ, बोझा पाप बढ़ाय ।
(9)
माँदर बाजय तक धिना, झाँझर बोलय बोल ।
पंथी मा सतनाम के, पी लव अमरित घोल ।
(10)
ग्रंथ ह गोठियाय नहीं, चुपेचाप अभियास ।
जग मा बिन गुरु ज्ञान के,कटय नहीं जम फाँस ।
(11)
सरधा के पालो चढ़े, जैतखाम बिसवास ।
मन मंदिर में जी सदा, गुरु के होवय बास ।
(12)
सबला मरना जी हवय, आज नहीं ते काल।
पुन के धन ला जोड़ ले,झन राहव कंगाल ।
(13)
मन भितरी मैनी भरे, जगा जगा फिसलाय ।
सत भाखा मा माँज लव, जनम सफल हो जाय।
(14)
सत मा हे धरती टिके, सत मा टिके अगास ।
पन्थ चलव सतनाम के, छोड़व उदिम पचास ।
(15)
सात बिता काया हवे, जेमा दस ठन द्वार ।
तारा दव सतनाम के, होही बेंड़ा पार ।
(16)
लाल हवय सब के लहू, हंसा एके आय ।
एक हवे भगवान हा, सब घट हवय समाय।
(17)
जात पाँत के भेद ला , कोन सकय समझाय।
जात पाँत ठप्पा लगे, जग मा कोन ह आय।
(18)
सुमिरन कर सतनाम के, सत के जोत जलाय ।
सत के महिमा हे बड़े, सत मा पाप नसाय ।
चोवा राम "बादल"
हथबंद 19-12--2016

पागा कलगी -24//1//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"

प्रदत्त विषय:--गुरू घासीदास के संदेश...
विधा:-- पंथी गीत।
उवत बुड़त ले,धरती सरग ले,खुशी छागे ना।
गुरू घासी के, गुरू बाबा के, जयन्ति आगे ना।।
/1/
एक दिन सतलोख म पुरुषपिता,
गुरू घासी ल बुलाये रहिन।
धरती म जायेके हंसा उबारेके,
भार भरोस बोहाये रहिन।।
१८दिसंबर सन १७५६ के,
गुरू धरती म आये रहिन।
भुले बिसरे पिछड़े मानव समाज ल,
सत के ज्ञान बताये रहिन।।
आज उही बानी,सुने गुने के, पारी आगे ना।
गुरू घासी के,सतज्ञानी के,जयन्ति आगे ना।
/2/
गिरौद के बन मा गुरू नानपन मा,
भारी महिमा देखाये रहिन।
सांप चाबे मरे परे बुधारु चरन
अमरित देके जियाये रहिन।
महुरा सही जुआ चोरी नशा,
गुरू दुरिहा रहव चेताये रहिन।
पढ़व लिखव खेलव करव बुता,
करमइता बनेबर सिखाये रहिन।
चलव जाबो कंठी,धोती पहिर के,पंथी नाचे ला।
गुरू घासी के,सतधारी के,जयन्ति आगे ना।
/3/
मनखे श्रमहीन बनगे गरियार बैला,
देके ज्ञान तुतारी रेंगाये रहिन।
एक पुरूष बर हे एके नारी,
दुसर माताबहिन बताये रहिन।
एकता समानता सत्य अहिंसा के,
जनजन ल पाठ पढ़ाये रहिन।
मनखे मनखे होथे एक बरोबर,
सत्यसार संदेश बताये रहिन।
उही संदेश,बताये धरे के,पारी आगे ना।
गुरू घासी के,गुरू बाबा के,जयन्ति आगे ना।
/4/
चुरकी भर धान ल बाहरा पुरोके,
वैज्ञानिक खेती देखाये रहिन।
भांटा के जर मिरचा कलम बांध के,
कृषि बगवानी सिखाये रहिन।
उही बिज्ञान के रद्दा छत्तीसगढ़,
धान कटोरा कहाये रहिन।
भागमानी बड़े छत्तीसगढ़िया,
अइसन सतगुरू ल पाये रहिन।
गुरू के रद्दा, धरे छत्तीसगढ़,अंजोर लागे ना।
गुरू घासी के,गुरू बाबा के,जयन्ति आगे ना।
रचना:--सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"
'शिक्षक'गोरखपुर,कवर्धा
18दिसंबर2016
9685216602

रविवार, 18 दिसंबर 2016

//पागा कलगी 23 के परिणाम//



दिसम्बर के पहिली पखवाड़ा मा ‘वाह रे आतंकवाद‘ जेखर संचालक श्री जितेन्द्र ‘खैरझिटिया‘ रहिन, म 10 रचना प्राप्त होइस । ये आयोजन के निर्णायक आदरणीय माणिक जी ‘नवरंग‘, रायगढ़ रहिन । उन्खर निर्णय उन्खरे शब्छ म-
‘‘सब्बो झन के रचना बनई सुन्दर हावय । भावपक्ष, कलापक्ष अउ भाव अभिव्यक्ति ला आधार मान के मैं कविता/गीत के आंकलन करे हंव ।
मोर विचार ले .......
पहिली नं म श्री कौशल साहू ‘फरहदिया‘
दूसर नं. म श्रीमती आशा देशमुख
के कविता हवय ।
दूनों विजेता ला गाड़ा-गाड़ा बधाई, मोला ये अवसर दे बर ‘छत्तीसगढ़ी साहित्य मंच के बहुत-बहुत धन्यवाद ।‘‘
छत्तीसगढ़ी साहित्य मंच के डहर ले सबो रचनाकार के संगे-संग विजेता मन ल अंतस ले बधाई

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2016

पागा कलगी -23 //10//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"

प्रदत्त पंक्ति:-//वाह रे आतंकवाद//
वाह रे 
आतंकवाद,
लांघ डरे मरजाद।
मानवता के हत्या करके,कइसन फल तय पाबे।
अंधरा टमड़ के बता दिही,रौरव नरख म जाबे।
मरन बाद
भी नि मिटही,
अन्तर्मन अवसाद।
जस करनी तस भरनी हे मुहु म केरवस पोतागे।
चारो मुड़ा थुआ थुआ करे,नाक कान झोरागे।
मुहु के
भार पाय तभो,
भागत नइहे साद।
अंचित करई सुहावय नही,देख तरुवा पिराथे।
जादा के अति करइया घला,भुईया ले सिराथे।
भरभरा
के ढही जथे,
अंचितहा जयजाद।
नाहक करतहस अतियाचार,ढिलथस करकस बोली।
निरपराध मनखे के छाती,मारत फिरथस गोली।
मुहु हे
जुच्छा सांप के,
मनुष डसे के बाद।
रचना:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"

पागा कलगी -23 //9//चन्द्रप्रकाश साहू

वाह रे आतंकवाद
वाह रे आतंकवाद तोर काय अवकात.
कोलिया होके शेर ल ते दिखाये ऑख.
आंखी दिखाबे त आंखी तोर फूटही.
लगही गोली अउ तोर कन्हिया ह टूटही.
मान ज बात ल झन कर काकरो से लड़ई.
जांगर ह टूटही नइ मिलय मूते बर परई.
आगी म जल के होबे तै एक दिन राख.
कोलिया होके शेर ल ते दिखाये ऑख.
बारुद के ढेर म अब हमन तोला सुताबो.
कतना इतराथस ओला अब हमन देखाबो.
अब मत इतरा तोर मरे के पारी आगे हे.
शेर देख जैसे कोलिहिया ह खारे-खार भागे हे.
नइ राहय तोर रेहे बर जगा जाबे शमशान घाट.
कोलिया होके शेर ल ते दिखाये ऑख.
चन्द्रप्रकाश साहू
रायपुर (छ.ग.)
९६१७२४७५५०

पागा कलगी -23//8//आर्या प्रजापति

विषय - वाह रे आतंकवाद
विधा - तुकांत
मानुस के तै भैस धरइया,
सैनिक ल धोखा देके मरइया।
सबके आखी म आंसु डरइया,
तुहर नई हे का ददा अउ भईया।
रही-रही वार करे पल्लोखिया,
तै का जानबे दर्द ल परदेसिया।
पर के बुध के बात मनइया,
नई हे तुहर घर म पीये बर पसइया।
रोक ले अपन आप ल जिनगी संवर जाही,
रोआ के तुमन ल का मिलही।
संभल जा नही त जान नई बचही,
जमीन त जमीन कफन घलो नई मिलही।
कउआ अउ चिल के नाश्ता हरव,
थोकन तो भगवान ल डरव।
कभुं तो अपन फर्ज ल जानव,
धर्म अउ जात-पात ल झन बाटव।
भाई- भाई हरन सबो झन ल मत लडा़व,
लफ ले टांग ल झन अडा़व।
हाथ ल कखरो खुन ले मत रंगव,
जादा झन करव तुहर साख उखाड़ डरव।
का तै बाटबे हमन ल जात-पात म,
खड़े हे सबो झन हमर साथ म।
झन तै उड़ अतेक आसमान म,
परबे हमरो सपेटा आ जब औकात म।
आर्या प्रजापति
मो. नं. -9109933595
गांव - लमती (सिंगारपुर)
जिला - बलोदाबजार