विषय--- गुरु घासीदास के संदेस।
विधा ---दोहा छंद।
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मंच के सम्मुख मोरो छोटकुन प्रयास समर्पित हे।
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(1)
बाबा घासीदास के, सुन लौ गा संदेस।
जप करके सतनाम के, मेटव अपन कलेस।
(2)
मनखे मनखे एक हे, अन्तस हाबय एक ।
करनी ला करके बने, मनखे बन जा नेक ।
(3)
मदिरा माँस तियाग दौ, गुरु दे हे जी ज्ञान।
रहन बसन अच्छा रहे,सब झन पाथे मान।
(4)
सादा रहय बिचार हा, छल मल ले जी दूर।
खान पान सादा रहय, सुख मिलही भरपूर।
(5)
चारी चुगरी बन भरे, परिया जिनगी खेत ।
करम कमाई कर बने, मूरख मनवा चेत।
(6)
सुग्घर तन ला पाइ के, झन कर गरब गुमान ।
आतम ला सिंगार ले, बन भाई गुनवान ।
(7)
धरती मा दाई ददा, हे सऊँहे भगवान।
चरन म चारों धाम हे, कोरा सरग समान ।
(8)
सब के भितरी मा उही, एके प्रभु ह समाय ।
काबर करथौ छुत छुआ, बोझा पाप बढ़ाय ।
(9)
माँदर बाजय तक धिना, झाँझर बोलय बोल ।
पंथी मा सतनाम के, पी लव अमरित घोल ।
(10)
ग्रंथ ह गोठियाय नहीं, चुपेचाप अभियास ।
जग मा बिन गुरु ज्ञान के,कटय नहीं जम फाँस ।
(11)
सरधा के पालो चढ़े, जैतखाम बिसवास ।
मन मंदिर में जी सदा, गुरु के होवय बास ।
(12)
सबला मरना जी हवय, आज नहीं ते काल।
पुन के धन ला जोड़ ले,झन राहव कंगाल ।
(13)
मन भितरी मैनी भरे, जगा जगा फिसलाय ।
सत भाखा मा माँज लव, जनम सफल हो जाय।
(14)
सत मा हे धरती टिके, सत मा टिके अगास ।
पन्थ चलव सतनाम के, छोड़व उदिम पचास ।
(15)
सात बिता काया हवे, जेमा दस ठन द्वार ।
तारा दव सतनाम के, होही बेंड़ा पार ।
(16)
लाल हवय सब के लहू, हंसा एके आय ।
एक हवे भगवान हा, सब घट हवय समाय।
(17)
जात पाँत के भेद ला , कोन सकय समझाय।
जात पाँत ठप्पा लगे, जग मा कोन ह आय।
(18)
सुमिरन कर सतनाम के, सत के जोत जलाय ।
सत के महिमा हे बड़े, सत मा पाप नसाय ।
विधा ---दोहा छंद।
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मंच के सम्मुख मोरो छोटकुन प्रयास समर्पित हे।
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(1)
बाबा घासीदास के, सुन लौ गा संदेस।
जप करके सतनाम के, मेटव अपन कलेस।
(2)
मनखे मनखे एक हे, अन्तस हाबय एक ।
करनी ला करके बने, मनखे बन जा नेक ।
(3)
मदिरा माँस तियाग दौ, गुरु दे हे जी ज्ञान।
रहन बसन अच्छा रहे,सब झन पाथे मान।
(4)
सादा रहय बिचार हा, छल मल ले जी दूर।
खान पान सादा रहय, सुख मिलही भरपूर।
(5)
चारी चुगरी बन भरे, परिया जिनगी खेत ।
करम कमाई कर बने, मूरख मनवा चेत।
(6)
सुग्घर तन ला पाइ के, झन कर गरब गुमान ।
आतम ला सिंगार ले, बन भाई गुनवान ।
(7)
धरती मा दाई ददा, हे सऊँहे भगवान।
चरन म चारों धाम हे, कोरा सरग समान ।
(8)
सब के भितरी मा उही, एके प्रभु ह समाय ।
काबर करथौ छुत छुआ, बोझा पाप बढ़ाय ।
(9)
माँदर बाजय तक धिना, झाँझर बोलय बोल ।
पंथी मा सतनाम के, पी लव अमरित घोल ।
(10)
ग्रंथ ह गोठियाय नहीं, चुपेचाप अभियास ।
जग मा बिन गुरु ज्ञान के,कटय नहीं जम फाँस ।
(11)
सरधा के पालो चढ़े, जैतखाम बिसवास ।
मन मंदिर में जी सदा, गुरु के होवय बास ।
(12)
सबला मरना जी हवय, आज नहीं ते काल।
पुन के धन ला जोड़ ले,झन राहव कंगाल ।
(13)
मन भितरी मैनी भरे, जगा जगा फिसलाय ।
सत भाखा मा माँज लव, जनम सफल हो जाय।
(14)
सत मा हे धरती टिके, सत मा टिके अगास ।
पन्थ चलव सतनाम के, छोड़व उदिम पचास ।
(15)
सात बिता काया हवे, जेमा दस ठन द्वार ।
तारा दव सतनाम के, होही बेंड़ा पार ।
(16)
लाल हवय सब के लहू, हंसा एके आय ।
एक हवे भगवान हा, सब घट हवय समाय।
(17)
जात पाँत के भेद ला , कोन सकय समझाय।
जात पाँत ठप्पा लगे, जग मा कोन ह आय।
(18)
सुमिरन कर सतनाम के, सत के जोत जलाय ।
सत के महिमा हे बड़े, सत मा पाप नसाय ।
चोवा राम "बादल"
हथबंद 19-12--2016
हथबंद 19-12--2016
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