बुधवार, 25 जनवरी 2017

मनखे

मनमोहन छंद

मनखे के हे, एक धरम । मनखे बर सब, करय करम
मनखे के पहिचान बनय । मनखेपन बर, सबो तनय

दूसर के दुख दरद हरय । ओखर मुड़ मा, सुख ल भरय
सुख के रद्दा, अपन गढ़य । भव सागर ला पार करय

मनखे तन हे, बड़ दुरलभ । मनखे मनखे गोठ धरब
करम सार हे, नषवर जग । मनखे, मनखे ला झन ठग

जेन ह जइसन, करम करय । तइसन ओखर, भाग भरय
सुख के बीजा म सुख फरय । दुख के बीजा ह दुख भरय

मनखे तन ला राम धरय । मनखे मन बर, चरित करय
सब रिश्ता के काम करय । दूसर के सब, पीर हरय
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मंगलवार, 24 जनवरी 2017

//पागा कलगी 25 के परिणाम//



जनवरी के पहिली पखवाड़ा म ‘छेरछेरा‘ विषय म प्रतियोगिता होइस । जेमा कुल 8 रचना आइस । ये आयोजन के निर्णायक छंदविद अरूण निगमजी रहिन । अरूण निगमजी के अनुसार-‘‘हर प्रतिभागी के रचना ह सुघ्घर हे । नाममात्र सुधार के बाद श्रेष्ठ रचना बन जाही । उनकर सामान्य गलती लय टूटना, गलत तुकान्त, तुकान्तता के अभाव, शब्द के मात्रा बिगाड़ के लिखना हे ।‘‘ प्रतियोगिता म बिना गलती या सबसे कम गलती वाले रचना ल चुने जाथे । ये आधार म ये प्रतियोगिता के परिणाम ये प्रकार हे-
पहिली विजेता- श्रीमती आशा देशमुख
दूसर विजेता- श्री मिलन मलरिहा

दूनों विजेता मंच के तरफ ले  अंतस ले बधाई, सबो प्रतिभागी मन के आभार ।

संयोजक
छत्तीसगढ़ी साहित्य मंच









सोमवार, 16 जनवरी 2017

//पागा कलगी-26 के रूपरेखा//



बेरा-दूसर पखवाड़ा जनवरी 2017 तक
16 जनवरी ले 31 जनवरी तक

विषय-‘आसो के जाड़‘

विधा-विधा रहित

मंच संचालक- श्री राजेश कुमार निषाद (पागा कलगी-16 के उपविजेता)

निर्णायक-श्रीमती शकुंतला शर्मा, वरिष्ठ साहित्यकार, दुर्ग

निवेदन-‘छत्तीसगढ़ साहित्य मंच के जम्मो रचनाकार भाई मन आप सब से निवेदन हे के कविता कोनो ना कोनो विधा-शिल्प मा निश्चित होथे, ये अलग बात हे के हम ओ विधा-शिल्प ला नई जानत होबो । कुछु विधा मा नई होही त तुकांत विधा मा जरूर होही । यदि आप मन अपन रचना के विधा के घला उल्लेख कर देहू त सोना म सुहागा हो जही ।

पागा कलगी -25//8//आशा देशमुख

विषय ...छेरछेरा
विधा .....आल्हा छंद में परयास
सुन वो दीदी सुन वो बहिनी ,चल जाबो पुन्नी स्नान |
अबड़ पुण्य हे कहिथे एकर ,चलो हमू मन करबो दान |
बड़ महत्तम छेरछेरा के ,कहिथे सब वो कथा पुरान |
सबो परब पुरखा मन मानय ,हमू राखबो इंखर मान |
अनधन से सब कोठी भरगे ,टुकनी टुकनी देवे धान |
धरती दाई तोर मया मा ,हांसत खेलत हवे किसान |
लइका लोग सियान सबो झन ,किंजरय अँगना घर अउ खोर |
दर दर दर दर आवत रहिथे ,उड़े छेरछेरा के शोर |
डंडा पड़की नाचत हावय ,कुहुक कुहुक के गावय गीत |
सबो मनावय मया परब ला ,चलत हवय पुरखा ले रीत |
एक कथा बलि राजा के हे ,माँगय दान बिष्णु भगवान |
अजर अमर होगे राजा हा ,दान बनाये हवे महान |
हवे दान के महिमा भारी ,कतको किस्सा देवव सीख |
भोलेनाथ घलो हा माँगे ,अन्नपुर्णा दाई ले भीख |
भुइया हे भगवान बरोबर ,हावय हमर इही पहिचान |
हमरो संस्कृति पोठ धरोहर ,जेमा बसय धरम के प्रान |
हे विधना सब तोर हाँथ मा ,तोर रचाये हे संसार |
सबो डहर खुशयाली महकय ,तोर दया हे अपरम्पार |
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
15 .1.2017.रविवार

रविवार, 15 जनवरी 2017

पागा कलगी -25//7//ज्ञानु'दास' मानिकपुरी

पागा कलगी 25 बर मोरों रचना
छेरछेरा'
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मया बाटे ले मया मिलथे।
तोर मनके नफरत मिटथे।
मन भर दया धरम कमाले।
सफल मनखे जनम बनाले।
का लेके तय आये जगमें।
का लेके तय जाबे जगसे।
आगे दान धरम के तिहार।
छेरछेरा नाचे बर तुंहर द्वार।
बड़ महत्त्व हे ए परब छेरछेरा के।
हमर संस्कृति छत्तीसगढ़ धरा के।
पूस पुन्नी म बाबा भोला ल मनबो।
मुठा मुठा धान झोला भर पाबो।
कोनों बाजा कोनों घन्टी बजावय।
कतको नाचय पारी पारी गावय।
अरन दरन कोदों दरन गावय।
तभे देबे तभे टरन गावत जावय।
मुठा भर देले नइ होवय तुंहर उन्ना कोठी।
असीस हे छेरछेरा के भरे रहय तुंहर कोठी।
झन भुलावव अपन संस्कृति अउ संस्कार ल।
जुरमिल के मनावव संगी छेरछेरा तिहार ल।
ज्ञानु'दास' मानिकपुरी
चंदेनी कवर्धा

पागा कलगी -25 //6//मिलन मलरिहा

*छेरछेरा* 
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दे तो दाई टुकना, छेरछेरा मांगे जाहव
अघुवागे सबो संगी, मैं पाछु नई राहव
टुटगे हावय टुकना, बेटा धरले झोला
पलास्टीक के जुग हे, काला देहँव तोला
हमर घर के धान, बस कुरो मा अमागे
थोरकन बाचे मेरखु, काठा मा धरागे
जारे छोटकू लऊहा, छेरछेरा माँग लाबे
गाँव-गली मा मांगबे, धान ला तैहा पाबे
सहरमुड़ा तै जाबे, चाकलेट भर तै खाबे
लऊहा तै आईजबे, इसकुल घलो जाबे
पढ़बे लिखबे छोटकू, साहेब तैहा बनबे
बनके साहेब बेटा, छेरछेरा सब ला देबे
गरीब किसानमन के, दुख-दरद हर लेबे
छत्तीसगढ़िया कोठी के, मान तैहा बढ़ाबे
खेती ला उद्योग दरजा, तहीच हा देवाबे
फेर जुरमिल के सबो, कहिबो छेरछेरा..
डोकरी-दाई, कोठी के धान ला हेरतेहेरा......
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मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर

पागा कलगी -25 //5//दिलीप कुमार वर्मा

विषय--छेरछेरा
विधा--उल्लाला छंद
बड़े बिहानी उठ चलौ,संगी साथी से मिलौ। 
झोला धर के हाँथ मा,गाजा बाजा साथ मा।
चला छेरछेरा कुटे,संगी साथी सब जुटे।
हाँथ म झोला धर चला,धर ले टुकनी ला घला।
गली गली चिल्लाव रे,घर-घर हूत कराव रे।
छेरिक छेरा शोर हे,दानी बइठे खोर हे।
टुकना धर के धान जी,दानी होय महान जी।
पसर पसर ओ देत हे,लेने वाला लेत हे।
एक बछर मा आय जी,कतको धान बटाय जी।
लइका मन चिल्लाय जी,दान धान के पाय जी।
लइका रेंगत नइ थके,दादी दादा मन तके।
खेलत कूदत आत हे,झोला भर के जात हे।
झोला भर गे पेक जी,जल्दी येला बेच जी।
पुन्नी मेला जाय के,आबो खउ ला खाय के।
पइसा जतका हे मिले,मेला जाके मन खिले।
आनी बानी खात हे,अड़बड़ मजा उड़ात हे।
घूमत हाबय संग मा,मिले ख़ुशी के रंग मा।
संग म बइठे खात हे,संझा के घर आत हे।
दिलीप कुमार वर्मा
बलौदा बाज़ार